Tuesday, December 21, 2010

     दीपक राय  
    सब एडिटर भोपाल
    किसान और हममें क्या अंतर है... 1. हमें शहर में 20-24 घंटे बिजली मिलती है पर किसान को सिर्फ 5-6 घंटे ही बिजली दी जा रही है। 2. जहां शहर में काम करने वाला एक बाबू तक करोड़पति है पर किसान मर जाता है पर एक साथ पचास हजार रुपए तक नहीं देख पाता। 3. छोटे-छोटे कामों के लिए बार-बार शहर आता है, रिश्वत देता है तब उसे खसरा नक्शा व अन्य प्रमाणपत्र मिलते हैं। 4. रात में जब हम रजाई ओढ़के सोते हैं तब वह रात की शिफ्ट (12-6) बजे तक खेतों की सिंचाई करता है। 5. किसान की फसल खराब होती है तो उसे पर्याप्त मुआवजा नहीं दिया जाता, मुआवजा देते समय हम जैसे कई पढ़े-लिखे अधिकारी रिश्वत लेते हैं। 6. हमारे बच्चे (शहर में) केजी से ही ए-जेड तक अंग्रेजी पढ़ते हैं, पर किसान का बेटा बमुश्किल 6वी कक्षा में अंग्रेजी का नाम सुनता है। 7. जब हमारी तन्ख्वाह नहीं बढ़ती तो हम स्कूल बंद कराते हैं, अस्पताल में मरीजों को नहीं देखते, तोड़फोड़ करते हैं। 8. हां पर जब फसल तैयार होती है तो हम उसके द्वारा पैदा किए गए अनाज को खाते हैं।  लेकिन यह महाआंदोलन किसानों ने ही किया आखिर कब तक दबे-कुचले जिएंगे हमारे अन्यदाता। एक दिन के जाम ने भोपाल की रफ्तार बंद कर दी। किसानों ने लोगों से माफी भी मांगी कि उनके कारण शहरवासियों को दिक्कतें हुर्इं। उनका मिजाज देखिए  180 में से सिर्फ 50 मांगें मानी गर्ईं और उन्होंने आंदोलन खत्म कर दिया। ऐसे हैं हमारे किसान। किसान आंदोलन की रत्ती-रत्ती भर जानकारी के लिए नीचे पढ़िए

  • प्रदेश भर से किसान पंद्रह दिन के आंदोलन की हिसाब से अपनी व्यवस्था करकर आए हैं। वे ट्रॉली में खाद्यान्न के साथ ही पीने और निस्तार के लिए पानी तथा ओढ़ने-बिछाने के लिए कपडे लाए हैं। महीनेभर पहले संघ के पदाधिकारियों ने  प्रदेशभर  के  ग्रामीण  क्षेत्रों  में  पर्चे  बंटवा दिए थे, जिसमें पंद्रह दिन के राशन, पानी समेत गर्म कपड़े साथ लाने की बात कही गई थी। किसानों को भोपाल
    लाने के लिए पदाधिकारियों ने ट्रेनों व वाहनों की व्यवस्था भी की थी। ठहरने की व्यवस्था रवीन्द्र भवन परिसर में बने पार्क में की गई है।
    रात को जमकर नाचे
    मुख्यमंत्री निवास के पास स्थित प्रियदर्शिनी पार्क में सोमवार को  किसानों ने सरकारी की वादाखिलाफी के खिलाफ भड़ास निकाली। वहीं रात में जमकर नाच गाना किया। सोमवार सुबह से यह पार्क बाहर से आए किसानों से खचाखच भर गया। दिन भर यहां सभा होती रही। नेताआें ने कई बार मुख्यमंत्री और मीडिया पर गुस्सा उतारा। शाम साढेÞ पांच बजे सभा खत्म हो गई। इसके बाद  रात तक किसान नाचते गाते रहे।
    दुकानदारों की चांदी
    सभा स्थल के बाहर देर रात तक खोमचे वालों का जमावाड़ा लगा रहा। इसके अलावा पानी के पाउच, मूंगफली और नाश्ते के ठेले लगे हुए थे।
    आत्महत्या की कोशिश
    रोशनपुरा चौराहे पर एक किसान ने आत्महत्या की कोशिश की, लेकिन  पुलिस ने पहुंच कर उसे रोक दिया। उसका कहना था कि वह बहुत परेशान है।
    सड़कों पर बनीं बाटियां
    प्रदर्शन के लिए आए किसानों ने सड़कों पर ही खाना बनाया।  किसानों ने कंडे जला कर बांटियां सेंकी और बैगन तथा आलू भून कर खाए। 
    बच्चे-बुजुर्ग भी आए
    प्रदर्शन में  बच्चे और बुजुर्ग किसान भी शामिल हुए। बच्चों ने सुबह से ही चक्काजाम के लिए मोर्चा संभाल लिया, वहीं बुजुर्ग किसान ट्रालियों में आराम फरमाते रहे।
    दस रुपए में खाना
    भारतीय किसान संघ ने किसानों के लिए सभा स्थल पर भोजन की सशुल्क व्यवस्था की थी। जो खाने का सामान नहीं लाए थे, वे दस रुपए का कूपन लेकर भोजन के पैकेट ले सकते थे।
    शराब की दुकानें बंद
    चेतक ब्रिज, 11 मील और रोशनपुरा पर किसानों का उग्र रवैया देखते हुए जिला प्रशासन ने एहतियातन इन इलाकों की शराब की दुकानें बंद करा दीं। दरअलस किसान बड़ी संख्या में शराब की दुकानों पर एकत्रित हो रहे थे, जहां दुकानदारों से हुज्जत भी हुई। रात में 10.30 बजे के बाद कुछ दुकाने खुल गर्इं।

  •   राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ ने पांच हजार टैक्टर-ट्रालियों से बंद किए भोपाल के प्रमुख रास्ते
  •     प्रदेश के कई जिलों से आए 1 लाख से ज्यादा किसानों ने प्रमुख चौराहों और हाईवे को किया हाईजैक
  •    एक लाख किसानों को भोपाल की सीमा पर रोका गया
  •    बिजली, सिंचाई के लिए पानी, फसलों की लागत के अनुरूप बोनस की किसान कर रहे मांग
  •     राजभवन और मुख्यमंत्री निवास जाने वाली सड़कों पर भी नहीं चल सके वाहन
  •    मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मंत्रियों सहित नेताओं और अफसरों तक ने उठाई परेशानी
  •    प्रमुख सड़कों पर रेंगती दिखीं गाड़ियां, नहीं हुए किसानों को शांत करने के गंभीर प्रयास
  •    चेतक ब्रिज चौराहे पर आरएएफ को हटाना पड़ा मरने-मारने को उतारू लठैत किसानों के सामने से
  •    ट्रैक्टर-ट्रालियों में बिस्तर और 15 दिन के खाने-पीने के सामान से लैस हैं किसान
  •    रोशनपुरा चौराहे पर एक किसान ने की आत्महत्या की कोशिश
  •     लचर पुलिस और प्रशासनिक इंतजामों की खुल गई पोल 
  • सात साल में पहली मर्तबा फूटा गुस्सा
    •    30 अगस्त 2006: मुख्यमंत्री निवास में किसान पंचायत में कई वादे किए गए।
    •  13 अप्रैल 2007 : किसान मंच की बैठक मंत्रालय में हुई।
    •   20  फरवरी 2008 :  जंबूरी मैदान में किसान महापंचायत बुलाई। जिसमें मुख्यमंत्री ने कई घोषणाएं कीं।
    •  25 जून 2008: किसान मंच की तीसरी बैठक मंत्रालय में हुई। किसान प्रतिनिधियों से कई सुझाव आए।
    •  4 फरवरी 2009 : भारतीय किसान संघ  द्वारा लाल परेड ग्राउंड पर रैली आयोजित की गई।
    •  9 दिसंबर 2010 : भारतीय किसान संघ  ने मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री और आला अधिकारियों को 183 मांगों का ज्ञापन सौंपा। साथ ही इसका निराकरण नहीं होने पर 20 दिसंबर को राजधानी में सांकेतिक धरने की सूचना दी गई।  
    •   पंद्रह दिन के राशन के साथ डाला डेरा   
    • प्रमुख मांगे
  •  गांवों में 24 घंटे बिजली की आपूर्ति।
  • महापंचायत की घोषणाओं पर अमल हो।
  •   बिजली चोरी  प्रकरण निरस्त हों।
  •   उपजाऊ जमीन अधिग्रहीत न हो।
  •   नया भू अर्जन कानून बनाया जाए।
  •   अर्जित भूमि पर स्थापित उद्योग में परिवार के एक सदस्य को नौकरी।
  •   सांईखेड़ा-तूमड़ा जिला नरसिंहपुर में एनटीपीसी प्रोजेक्ट निरस्त करें।
  • इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के लिए किसान नहीं देंगे अपनी जमीन।
  •   आरबीसी एक्ट में संशोधन
  •   कृषि भूमि की रजिस्ट्री के लिए स्टांप डयूटी समाप्त की जाए।
  •   भू अधिकार एवं ऋण पुस्तिका को ही अधिकृत किया जाए।
  • किसी भी स्तर पर फसल बीमा की अनिवार्यता समाप्त कर इसे ऐच्छिक किया जाए।
  •   तिकली और तिपहिया तौल कांटों को समाप्त कर इलेक्ट्रानिक एवं प्लेट तौल कांटे को अनिवार्य करें।
  • नगर पंचायत, नगर पालिका और नगर निगम की सब्जी बाजारों को मंडी बोर्ड के तहत लाया जाएं।

  प्रदेशभर से आए एक लाख से ज्यादा किसानों ने 5 हजार ट्रैक्टर ट्रालियों की मदद से सोमवार को राजधानी के प्रमुख चौराहों और हाइवे को हाइजैक कर लिया। इससे राजधानी की यातायात व्यवस्था ध्वस्त हो गई। किसानों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री निवास जाने वाले  पालीटेक्निक चौराहे पर ट्रैक्टर-ट्रालियां लगाकर ऐसा जाम लगाया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहा

क्या क्या कहाँ कहाँ हुआ

रोशनपुरा चौराहे पर कांग्रेस भवन से लेकर मुल्ला रमूजी चौराहे तक दोनों ओर की सड़कों पर किसानों ने आड़ी-तिरछी ट्रैक्टर-ट्रॉलियां खड़ी कर दीं। न्यू मार्केट से पॉलीटेक्निक होकर पुराने शहर को जाने वाला रास्ता पूरी तरह बंद था। ऐसे में वाहन चालकों को रोशनपुरा से जहांगीराबाद, काली मंदिर, सेंट्रल लाइब्रेरी, बस स्टैंड होकर पुराने शहर की तरफ जाना पड़ा।
पॉलीटेक्निक चौराहा : किसानों ने बाणगंगा पुल से पॉलीटेक्निक चौराहे तक ट्रॉलियों की कतार लगा दी थी। डंडे लेकर खडेÞ प्रदर्शनकारी वाहन चालकों को रोकने के साथ बदसलूकी कर रहे थे। वीआईपी रोड से होकर हमीदिया अस्पताल, ईएमई सेंटर व लालघाटी चौराहा जाने वाले वाहन चालक डिपो चौराहे से मुख्यमंत्री निवास, भारत भवन से आ-जा रहे थे। इससे यहां जाम लगा।
चेतक ब्रिज :चेतक ब्रिज पर किसानों के कब्जा कर लेने के कारण ट्रैफिक पुलिस ने बोर्ड आॅफिस चौराहे पर चारों दिशाओं के वाहनों का प्रवेश बंद कर दिया। ऐसे में न्यू मार्केट से आने वाले वाहनों  से रचना नगर अंडरब्रिज, गौतम नगर, चेतक ब्रिज के नीचे घंटों जाम लगा रहा।
11 मील तिराहा: होशंगाबाद रोड स्थित 11 मील तिराहे पर किसानों ने सुबह 8 बजे से चक्काजाम कर दिया।न और मंत्रियों सहित नेताओं अ  सीएम, मंत्री  परेशानौर अफसरों तक को परेशानी का सामना करना पड
Þा।मुख्यमंत्री को सुबह पीटीआरआई में पुलिस अधिकारियों की एक बैठक में जाना था। पॉलिटेक्निक चौराहे पर लगे जाम की वजह से उन्हें काफी घूम कर पीटीआरआई पहुंचना पड़ा, जिससे वे करीब पंद्रह मिनट लेट हो गए। वित्त मंत्री राघवजी सुबह रायसेन जाने के लिए निकले थे और पुल बोगदा पर डेढ़ घंटे तक जाम में फंसे रहे। जाम का असर ही था कि गृह मंंत्री उमाशंकर गुप्ता सहित कई मंत्री भोपाल में होने के बावजूद आज मंत्रालय नहीं पहुंचे। ऊर्जा मंत्री राजेंद्र शुक्ल एक मीटिंग के लिए सिलसिले में मंत्रालय आए और दोपहर का खाना उन्हें यहीं खाना पड़ा।
स्मृति ने पार किया रेलवे ब्रिज: महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष स्मृति ईरानी को  जाम के कारण भाजपा कार्यालय  काफी घूम कर जाना पड़ा। दूध डेरी की ओर से हबीबगंज स्टेशन तक उन्हें लाया गया। रेलवे फुट ब्रिज पार कर वे स्टेशन के मुख्य गेट पर आईं और वहां से कार से भाजपा प्रदेश कार्यालय पहुुंची। ईरानी को इसी तरीके से घंटे भर बाद फिर विमानतल ले जाया गया। 
प्रभात झा ने छोड़ी गाड़ी: 


   फोटो परिचय- किसानों ने ट्रैक्टर से जाम लगा दिया, वे जहां आंदोलन कर रहे थे वहीं खाना बनाने लगे। रात में वहीं सो गए।  
  यह फोटो हमें उपलब्ध कराए हैं फोटो जर्नलिस्ट नवीन बेलवंशी ने




भोपाल कूच कर रहे किसानों के ट्रेक्टरों द्वारा लगाए गए जाम के कारण भाजपा प्रदेशाध्यक्ष को रविवार रात होशंगाबाद में गाड़ी छोड़ कर ट्रेन पकड़नी पड़ी। झा बैतूल से सड़क मार्ग से भोपाल के लिए निकले थे और देर रात तक होशंगाबाद में लगे जाम में फंसे रहे।
   मध्यप्रदेश का टिकैत
प्रभु पटैरिया   वरिष्ठ पत्रकार पीपुल्स समाचार

सोमवार सुबह सड़क पर निकले लोग भले ही मुख्य चौराहों पर भारी तादाद में किसानों को देख दांतो तले अंगुलियां दबा रहे हों, लेकिन गुरिल्ला युद्ध की तरह किसानों का शहर पर यह कब्जा रविवार रात को ही होना शुरू हो गया था। छत्रपति शिवाजी की भांति किसानों ने शहर के किसी कोने के बजाए ठीक प्रदेश के ‘राजा’ के घर के सामने डेरा जमाया। मप्र में पहली बार इतनी शांति से एक लाख से अधिक किसानों के इतने बड़े आंदोलन ने 1980 और 1990 के दशक के किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की याद दिला दी। चौधरी चरण सिंह के बाद वे पकी उम्र में पश्चिमी उप्र के किसानों के मसीहा बन कर उभरे थे और दिल्ली में ऐसे ही ट्रैक्टर अड़ा कर किसानों की मांगे मनवाते थे।
जी हां, टिकैत की तरह। शायद उनसे भी एक कदम आगे बढ़ कर आरएसएस के सहयोगी संगठन भारतीय किसान संघ के 67 वर्षीय प्रदेशाध्यक्ष शिवकुमार शर्मा ने धीरे से देश के मध्य भाग में अब तक के सबसे बडेÞ किसान आंदोलन का इतिहास रच दिया। सरकारी नौकरी छोड़ कर किसान संघ से जुड़े शर्मा सात साल से किसानों की समस्याओं पर प्रदेश की भाजपा सरकार और उसके नेताओं से बातचीत कर रहे थे। समाधान की उनकी हर कोशिश में ज्ञापन के पन्ने बढ़ते चले गए और आज उसमें 183 बिंदु हो गए हैं। जबलपुर विवि के छात्र नेता रहे शर्मा को इस आंदोलन के लिए कानून का भी डर नहीं लगा, क्योंकि वे खुद एलएलबी हैं। सरकार को न पसीजता देख शर्मा और उनकी टीम ने छह माह से गांव-गांव जाकर किसानों को ऐसा जगाया कि खड़ी फसल की चिंता छोड़, बिना शोर शराबा किए टैÑक्टरों में सवार हो किसानों का हुजूम भोपाल आ पहुंचा। हाड़ कंपकपाती ठंड, सर्द हवाओं व खुले आसमान से बेखबर किसान सड़कों पर दाल-बाटी सेंक सरकार के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सिर पर आए किसान और शहर में घुस आए पांच हजार से अधिक ट्रैक्टरों को देख सरकार जागी भी पर किसानों द्वारा केवल 50 मांग ही रखने और सरकार द्वारा उन्हें जायज करार देने के बाद भी ‘मशीनरी’ इनसे संबंधित आदेश निकालने को तैयार नहीं हुई। इसलिए किसानों को राजधानी की सड़कों पर दो-चार दिन बिताने पड़ें तो बिताने दीजिए। सड़कें जाम होने के लिए उन्हें कोसिए पर ध्यान रखिए वे अन्नदाता हैं। पेट पालने के साथ सरकारें बनवाने वाले प्रदेश के अन्नदाता आज पहली बार जागे हैं, तो उनकी समस्याओं का समाधान जरूरी है।

  जिम्मेदार कौन?
पुलिस या खुफिया तंत्र

ब्रजेश चौकसे, वरिष्ठ पत्रकार पीपुल्स संवाददाता।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस समय राजधानी में प्रदेश भर के पुलिस अधीक्षकों को एसी चैम्बरों से निकलकर मैदानी स्तर पर पुलिस की विजिबिलिटी बढ़ाने की नसीहत दे रहे थे, उस वक्त भोपाल पर किसानों ने कब्जा कर पूरी व्यवस्था चौपट कर रखी थी। व्यवस्था बनाने के लिए अफसर दिखाई दे रहे थे, न पुलिसकर्मी। किसानों में आक्रोश अचानक नहीं फूटा और न ही अचानक उठकर वे भोपाल पहुंचे। बल्कि पूरी योजना और तैयारी के साथ प्रदेश भर से हजारों किसान ट्रैक्टर-ट्रॉलियों से राजधानी पहुंचे। न तो खुफियां तंत्र को भनक लगी और न 24 घंटे चौकन्ना रहने का दम भरने वाली पुलिस को। कौन है, इसका जिम्मेदार? एडीजी इंटेलीजेंस ऋषि कुमार शुक्ला या आईजी डॉ. शैलेंद्र श्रीवास्तव या फिर एसएसपी आदर्श कटियार। इनसे भोपाल के रहवासी पूछ रहे हैं कहां थी, आपकी पुलिस। भोपाल में दो-दो एसपी, आधा दर्जन एएसपी और दर्जन भर से अधिक डीएसपी  हैं, वे रात को शहर में क्यों नहीं निकलते, जबकि पहले दो एएसपी होने के बावजूद रात भर अधीनस्थों को चैक करते थे। आरामतलब हो चुकी पुलिस की गश्त की पोल भी किसानों ने खोल दी। शहर की सीमाओं पर रात भर प्वाइंट लगाकर चैकिंग करने वाली पुलिस कहां थी? किन ट्रकों से ‘वसूली’ में व्यस्त थी। गश्त चैक करने वाले अधिकारी कहां थे, कहां बैठकर कागजी खानापूर्ति कर रहे थे, उनसे जवाब लिया जाना चाहिए। जबकि रविवार रात 11 बजे से किसानों का सीएम निवास के सामने पॉलीटेक्निक चौराहे पर जमावड़ा शुरू हो गया था। विभिन्न रास्तों से शहर में प्रवेश करने वाले ट्रैक्टर-ट्रॉली सवार किसानों को किसी ने रोककर क्यों नहीं पूछा, उन्हें बॉर्डर के थानों पर क्यों नहीं रोका गया। मजे की बात यह है कि इस रात पुलिस पूरे शहर में कांबिंग गश्त कर रही थी। कांबिंग गश्त उसे कहते हैं, जिसमें पुलिस हर इलाके के चप्पे-चप्पे की तलाशी करती है। कैसा होता है भोपाल पुलिस का तलाशी अभियान,  इसकी कलई भी किसानों ने खोल दी है। मान भी लें कि पुलिस को अंदेशा नहीं था कि इतनी बड़ी संख्या में किसान भोपाल आ जाएंगे तो उनके आने के बाद भी ट्रैफिक परिवर्तन की योजना क्यों नहीं बनाई गई, क्यों लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। किसानों के इस आंदोलन ने खुफिया तंत्र और भोपाल में बैठे आला अफसरों की काबिलियत पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। 


Thursday, December 2, 2010

इन्हें सलाम

  3 दिसंबर को विश्व विकलांगता दिवस है ऐसे में भोपाल के यह चेहरे विकलांगता को चिढ़ाकर अच्छों -अच्छों को पछाड़ रहे हैं ऐसे में इन्हें सलाम

Wednesday, November 24, 2010

ये पब्लिक है, सजा देती है, मजा देती है

nitish  apne parivaar ke saath chunav jeetne ke baad

क्या आप नेता हैं, क्या आप वोट डालते हैं, क्या आप जागरुक हैं?
खैर कोई बात नहीं आप जो भी हैं। पर एक बात जरूरी है कि जनता जागरुक हो गई है। यह बात बिहार चुनाव में नीतीश की जीत ने साबित कर दिया है। यह वही राज्य है जहां पर लालू ने खूब रबड़ी खाई है, यह वही राज्य है जहां के लोगों से अधिकतर भारतीय राज्यों के लोग ‘डर’ महसूस करते  हैं। बिहार को अपराधों का राज्य भी कहा जाता रहा है। करीब एक साल पहले जब भोपाल के लालघाटी के पास सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आई तो दूसरे दिन देश के एक बड़े अखबार के माने जाने पद पर बैठे इंसान ने लिखा था ‘भोपाल को बिहार होने से बचाएं’। यानी बिहार में ऐसी सत्ता थी जो अपराध को कम नहीं कर पाती थी। लेकिन जब से नीतीश ने राज्य की डोर हाथ में ली तो वहां अपराध में कमी आई। विकास हुआ। सबसे बड़ी बात  यहां की जनता में राज्य सरकार के प्रति विश्वास जागा है, यह विश्वास करीब कई सालों पहले गायब हो गया था। एक बात और है। यहां की जनता जागरुक हो गई है। लालू जो कि अब घर में बैठकर भजन करने की क्षमता रखते हैं ने जनता को खूब बेवकूफ बनाया, लेकिन ये पब्लिक है मेरे दोस्त सब जानती है। कहते हैं गलत कर्माें की सजा उपरवाला देता है, यह पूरी तरह गलत है। सजा या फल तो आपको धरती में ही मिल जाता है तभी तो राबड़ी देबी दो सीटों से लड़ने के बाद बुरी तरह हार गर्इं। कुछ भी हो मैं बिहारी जनता को सलाम करता हूं वाकई हम भी उससे सीखें  । न तो वह किसी पार्टी के बहकावे में आई और न ही चोचलेबाजी में उसने नीतीश को एक मौका और दे दिया। कुछ दिन पहले नीतीश पर कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने आरोप लगाए कि नीतीश ने केंद्र के पैसों का सदुपयोग नहीं किया और बिहार का विकास अवरुद्ध हुआ है। तब नीतीश ने बयान दिया कि मुझे एक मौका और दिया जाए तब मैं यहां सुधार की गाड़ी आगे चलाउं यानि नीतीश ने स्वीकारा कि विकास कम ही हुआ है। बस क्या है जनता ने दे दिया एक और मौका। नीतीश सरकार यानी (जदयू-भाजपा गठबंधन) को 243 में से  204 सीटों पर विजय मिली है।  आईबीएन 7 ने अपने एक लेख में  लिखा कि देश के किसी भी राज्य में पहली बार इतनी अधिक सीटों से एनडीए जीती है।  पर नीतीश को जनता के विश्वासों का ध्यान रखना होगा और राज्य में रोजगार (क्योंकि राज्य से पलायन अभी जारी है) और शिक्षा के अवसर बढ़ाने होंगे वह भी ईमानदारी से वरना ये तो पब्लिक है......

Thursday, September 30, 2010

अयोध्या फैसला


चारों ओर समाचार चैनलों की चबड़-चबड़ चल रही है , कोई अयोध्या की नदी दिखा रहा है तो कोई फूल बनाने वाली महिलाओं से इंटरव्यू आखिर दिखाएं भी क्यों नहीं बेचारे दिखाएं भी तो क्या विगत चार दिन से वहीं डेरा जो जमाए बैठे हैं फैसला आने के पहले दिखाने के लिए यही तो बचा है।
खैर बात करते हैं फैसला आने के 1 घंटे पहले भोपाल की यहां पर तो कर्फ्यू जैसे हालात हैं यानि सड़कों पर बस आॅटो तक नहीं दिख रही है। मैं भी पूरी तैयारी कर बैठा हूं क्योंकि जल्दी ही आॅफिस के लिए निकल गया था। सड़कों पर ईधर उधर देख रहा हूं शायद आॅफिस जाने कोई साधन मिल जाए पर नहीं कुछ निजी वाहन ही यहां से गुजरते दिख रहे हैं आटो वाले मनमानी किराया मांग रहे हैं अभी 2.20 मिनिट हुए हैं दस मिनिट निकल गए अचानक एक बाईक चालक मेरे पास आकर रुका और बोला कहां जाना है मैं बोला राजभवन तक वो बोल चलो बैठो उस सज्जन ने मुझे पीएचक्यू तक छोड़ दिया वहां से उसका रास्ता बदल गया मैं फिर आगे की राह तकने लगा। उसके बाद फिर एक एम-80 चालक (छोटा टू व्हीलर वाहन जो बिरले ही दिखता है) ने मुझे कहा चलो तुम्हें छोड़ देते हैं । ये दो उदाहरण ऐसे वक्त देखे जा सकते हैं जब अधिकतर समाचार पत्र और न्यूज चैनल यह बता रहे हैं कि शहर में अशांति न फैलाएं, शांति बनाए रखें, हम सब एक हैं। जिन दो आदमियों ने मुझे लिफ्ट दी वे वाकई नेक हैं तारीफ के काबिल हैं। उन्हें डर नहीं है फैसला कुछ भी आए क्योंकि उन्हें तो दूसरों की सहायता करने में ही मजा आता है। मैं भी बहुत खुश हुआ सन्नाटे से भरी सड़क में मुझ अनजान को गाड़ी मैं बैठाकर ले जाने वालों को देखकर। ऐसे लोगों से ही बना है हमारा हिंदुस्तान । चलो अब फैसला जो भी आए मंदिर बने या मस्जिद मैं उसे कबूल करूंगा, क्योंकि हमारे देख की उन्नति उसी में शामिल है।
अयोध्या फैसले के दिन 03.14 बजे पोस्ट ब्लॉग

Saturday, September 25, 2010

मनमानी न करो ‘सरकार’


कुछ सवाल
१. क्या आरोप लगने से कोई अपराधी हो जाता है?
२. क्या किसी सम्माननीय पद पर बैठे व्यक्ति पर झूठे आरोप लगाए जाने चाहिए?
३. क्या कुलपति जैसे ओहदे के व्यक्ति को न्यान जाने बगैर कार्रवाई करनी चाहिए?
४. क्या किसी महिला को अपने महिला होने का दुरुपयोग करना चाहिए?

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि के इतिहास में शायद पहली बार किसी कुलपति ने इतनी ऐसी हरकत की हो, आरोप लगा और एचओडी को पद से हटा दिया, यहां तक कि वह आरोप तय हुए ही नहीं और पद छीन लिया। विवि के पत्रकारिता विभाग के एचओडी पुष्पेंद्र पाल सिंह पर एक महिला शिक्षाविद् ने प्रताड़ना का आरोप लगाया है। महिला आयोग ने इस मामले में सुनवाई के लिए 28 सितंबर तारीख तय कर दी। यानि उन पर अभी तक आरोप तय भी नहीं हुए हैं। इसके बाद पीपी सिंह को पद से हटाना अनुचित है। ज्ञात हो कि कुछ महीने पहले ही यहां पर नए कुलपति कुठियाला आए हैं। ये जबसे आए तबसे ही विवि का माहौल पूरी तरह से बदल गया। उन्होंने यहां पर नए पाठ्यक्रम शुरू कराए हैं उसके बाद इन पाठ्यक्रमों पर वह आरोप लगे जो शायद ही पहले लगे हों। कई कोर्स की मान्यता पर भी सवाल उठे थे। कुठियाला के पहले यहां पर श्री अत्चयुतानंद जी कुलपति रहे हैं। उनके कार्यकाल में कभी आंदोलन नहीं हुए। यानि कुठियाला में ही कुछ ‘खोट’ है। पिछले दिनों एक विभाग ही नहीं कई विभागों ने कुलपति के खिलाफ विरोध जताया था। विद्यार्थियों को आरोप है कि कुलपति को यह शक है कि उनके खिलाफ विरोध भड़काने में पीपी सिंह अव्वल रहे हैं। पर शक का यह मतलब तो नहीं कि एक सम्माननीय पद पर बैठे विभागाध्यक्ष की कुर्सी जांच किए बिना ही छुड़ा ली जाए। विश्वविद्यालय के छात्रों को जैसे ही जानकारी लगी की एचओडी के खिलाफ ऐसी कार्रवाई की गई है तो वे उत्तेजित हो गए। और कुलपति से मिलने पहुंच गए पर वहां कुलपति नहीं मिले। ऐसे में छात्र जांच की मांग करने लगे जब उन्हें संतुष्टि पूर्ण जवाब नहीं मिला तो उग्र होना स्वाभाविक था। उसके बाद ही ये छात्र-छात्राएं आमरण अनशन पर बैठ गए। अभी-अभी मुझे खबर लगी है कि कुछ छात्र अस्पताल में भी भर्ती हो गए हैं। छात्र इस बात से आहत हैं कि उनके नेक विभागाध्यक्ष को झूठे आरोपों में फंसाया गया है। एक शिक्षक पर अगर झूठे आरोप लगें तो बच्चों का उबलना जरूरी है। एक छात्र ने बताया कि हम तब तक अनशन पर बैठेंग जब तक कि हमारे सम्माननीय एचओडी को वापस नहीं बुला लिया जाता, क्योंकि वे बेकसूर हैं।

Monday, September 6, 2010

रिहाई पर राजनीति, मां पत्नी से तो पूछो



लखीसराय में कुछ दिनों पहले पुलिस से माओवादियों की मुठभेड़ हो गई जनाब पुलिस की फटके हाथ में आ गई कई पुलिसवाले मारे गए और चार को माओ ने अपने गिरफ्त में ले लिया। अब माओवादियों ने सरकार के सामने शर्त रख दी कि आप लोग हमारे सात साथियों को छोड़ दो वरना हम इन चार पुलिस वालों को मार डालेंगे, लेकिन बिहार की नितीश सरकार ने कहा हम तो माओ के साथियों को नहीं छोड़ेगे। इतना सुनते ही माओवादियों ने एक एएसआई लुकास टेटे को मार डाला अब बचे तीन पुलिस वाले वे बेचारे डरे सहमे से थे, पुलिसवालों के परिजन मुख्यमंत्री के निवास पर पहुंच गए, लेकिन पता नहीं सात दिन बाद यानि रविवार रात को माओवादियों ने तीन पुलिस वालों को छोड़ दिया इसके बाद शुरू हो गई बिहार में राजनीति यानि वोट की बातें आपको बता दें बिहार में विधानसभा के चुनाव की तारीखें तय हो गई हैं। तीन पुलिस वाले जिंदा वापस लौटे तो उन्हें देखकर सरकार ने अपना मुंह मीठा किया वहीं विपक्ष ने भी सरकार पर निशाना साधा। खबरें भी खूब दिखाई गर्इं, पेपरों पर भी खबरें छपीं लेकिन गुमनाम था वह पुलिस वाला लुकास जिसकी मौत माओवादियों ने कर दी क्या कसूर था उस पुलिस वाले का
कुछ सवाल हैं जिनके जवाब कौन देगा-
पहला सवाल-
क्या बिहार में हो रहे चुनावों के चलते जानबूझकर किसी नेता ने माओवादियों से मिलकर पुलिसकर्मियों का अपहरण कराया था।
दूसरा सवाल-
क्या जानबूझकर एक पुलिसवाले को मारने के लिए किसी राजनेता ने खेल खेला
तीसरा सवाल-
क्या कसूर था उस पत्नी का जिसके पति को माओवादियों ने मार डाला
चौथा सवाल-
माओवादी तो अपने आप को जनता के रखवाले माने जाते हैं उनका विरोध तो भ्रष्टाचारी सरकार का विरोध है पर वे निर्दोषों को क्यों मार देत हैं
पांचवा सवाल-
क्या बिहार सरकार ने जानबूझकर घिरे हुए माओवादियों को भागने का मौका दिया है
जवाब आप भी दे सकते हैं


अरे यार आप लोगों के पास क्या देश की समस्याएं कम पड़ गईं है जो हमारे निजी जीवन की मनमानी कहानी गढ़ रहे हैं ऐसा एक पत्रकार के सामने सलमान खान ने कहा, आप जानते होंगे आजकल खासकर टीवी चैनलों ने तो खबरों का मसाला सड़ाकर प्रस्तुत किया है। जी हां सलमान ने इंडिया टीवी के एक पत्रकार को बुरी तरह डांट दिया। वे कैटरीना कैफ के साथ संबंधों को लेकर पूछे जाने वाले सवालों से परेशान थे, सलमान ने कहा, देश में शिक्षा, भ्रष्टाचार जैसे कई मुद्दे हैं जिन पर अगर मीडिया कैमरा चलाए तो वाकई देश की उन्नति होगी और मीडिया का पतन तो रुकेगा ही। वाकई सलमान को कहना गलत नहीं है आजकल जिस तरह से मीडिया ने खबरों को रूप बिगाड़ा है उससे तो लोगों को भी परेशानी होने लगी है लोग पत्रकारों को ओछी निगाहों से देखते हैं

Tuesday, August 10, 2010


धूम्रपान का खिलाफ हमने मुहीम छेड़ी है हमारी संस्था नजर कृषि एवं पर्यावरण
संरक्षण समिति ने १ सर्वे करवाया जिसमे बहुत ही चिंता देने वाले पहलु सामने आये है हमारा सर्वे न्यूज़ पेपर में भी प्रकाशित भी हुआ
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