Thursday, September 30, 2010

अयोध्या फैसला


चारों ओर समाचार चैनलों की चबड़-चबड़ चल रही है , कोई अयोध्या की नदी दिखा रहा है तो कोई फूल बनाने वाली महिलाओं से इंटरव्यू आखिर दिखाएं भी क्यों नहीं बेचारे दिखाएं भी तो क्या विगत चार दिन से वहीं डेरा जो जमाए बैठे हैं फैसला आने के पहले दिखाने के लिए यही तो बचा है।
खैर बात करते हैं फैसला आने के 1 घंटे पहले भोपाल की यहां पर तो कर्फ्यू जैसे हालात हैं यानि सड़कों पर बस आॅटो तक नहीं दिख रही है। मैं भी पूरी तैयारी कर बैठा हूं क्योंकि जल्दी ही आॅफिस के लिए निकल गया था। सड़कों पर ईधर उधर देख रहा हूं शायद आॅफिस जाने कोई साधन मिल जाए पर नहीं कुछ निजी वाहन ही यहां से गुजरते दिख रहे हैं आटो वाले मनमानी किराया मांग रहे हैं अभी 2.20 मिनिट हुए हैं दस मिनिट निकल गए अचानक एक बाईक चालक मेरे पास आकर रुका और बोला कहां जाना है मैं बोला राजभवन तक वो बोल चलो बैठो उस सज्जन ने मुझे पीएचक्यू तक छोड़ दिया वहां से उसका रास्ता बदल गया मैं फिर आगे की राह तकने लगा। उसके बाद फिर एक एम-80 चालक (छोटा टू व्हीलर वाहन जो बिरले ही दिखता है) ने मुझे कहा चलो तुम्हें छोड़ देते हैं । ये दो उदाहरण ऐसे वक्त देखे जा सकते हैं जब अधिकतर समाचार पत्र और न्यूज चैनल यह बता रहे हैं कि शहर में अशांति न फैलाएं, शांति बनाए रखें, हम सब एक हैं। जिन दो आदमियों ने मुझे लिफ्ट दी वे वाकई नेक हैं तारीफ के काबिल हैं। उन्हें डर नहीं है फैसला कुछ भी आए क्योंकि उन्हें तो दूसरों की सहायता करने में ही मजा आता है। मैं भी बहुत खुश हुआ सन्नाटे से भरी सड़क में मुझ अनजान को गाड़ी मैं बैठाकर ले जाने वालों को देखकर। ऐसे लोगों से ही बना है हमारा हिंदुस्तान । चलो अब फैसला जो भी आए मंदिर बने या मस्जिद मैं उसे कबूल करूंगा, क्योंकि हमारे देख की उन्नति उसी में शामिल है।
अयोध्या फैसले के दिन 03.14 बजे पोस्ट ब्लॉग

Saturday, September 25, 2010

मनमानी न करो ‘सरकार’


कुछ सवाल
१. क्या आरोप लगने से कोई अपराधी हो जाता है?
२. क्या किसी सम्माननीय पद पर बैठे व्यक्ति पर झूठे आरोप लगाए जाने चाहिए?
३. क्या कुलपति जैसे ओहदे के व्यक्ति को न्यान जाने बगैर कार्रवाई करनी चाहिए?
४. क्या किसी महिला को अपने महिला होने का दुरुपयोग करना चाहिए?

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विवि के इतिहास में शायद पहली बार किसी कुलपति ने इतनी ऐसी हरकत की हो, आरोप लगा और एचओडी को पद से हटा दिया, यहां तक कि वह आरोप तय हुए ही नहीं और पद छीन लिया। विवि के पत्रकारिता विभाग के एचओडी पुष्पेंद्र पाल सिंह पर एक महिला शिक्षाविद् ने प्रताड़ना का आरोप लगाया है। महिला आयोग ने इस मामले में सुनवाई के लिए 28 सितंबर तारीख तय कर दी। यानि उन पर अभी तक आरोप तय भी नहीं हुए हैं। इसके बाद पीपी सिंह को पद से हटाना अनुचित है। ज्ञात हो कि कुछ महीने पहले ही यहां पर नए कुलपति कुठियाला आए हैं। ये जबसे आए तबसे ही विवि का माहौल पूरी तरह से बदल गया। उन्होंने यहां पर नए पाठ्यक्रम शुरू कराए हैं उसके बाद इन पाठ्यक्रमों पर वह आरोप लगे जो शायद ही पहले लगे हों। कई कोर्स की मान्यता पर भी सवाल उठे थे। कुठियाला के पहले यहां पर श्री अत्चयुतानंद जी कुलपति रहे हैं। उनके कार्यकाल में कभी आंदोलन नहीं हुए। यानि कुठियाला में ही कुछ ‘खोट’ है। पिछले दिनों एक विभाग ही नहीं कई विभागों ने कुलपति के खिलाफ विरोध जताया था। विद्यार्थियों को आरोप है कि कुलपति को यह शक है कि उनके खिलाफ विरोध भड़काने में पीपी सिंह अव्वल रहे हैं। पर शक का यह मतलब तो नहीं कि एक सम्माननीय पद पर बैठे विभागाध्यक्ष की कुर्सी जांच किए बिना ही छुड़ा ली जाए। विश्वविद्यालय के छात्रों को जैसे ही जानकारी लगी की एचओडी के खिलाफ ऐसी कार्रवाई की गई है तो वे उत्तेजित हो गए। और कुलपति से मिलने पहुंच गए पर वहां कुलपति नहीं मिले। ऐसे में छात्र जांच की मांग करने लगे जब उन्हें संतुष्टि पूर्ण जवाब नहीं मिला तो उग्र होना स्वाभाविक था। उसके बाद ही ये छात्र-छात्राएं आमरण अनशन पर बैठ गए। अभी-अभी मुझे खबर लगी है कि कुछ छात्र अस्पताल में भी भर्ती हो गए हैं। छात्र इस बात से आहत हैं कि उनके नेक विभागाध्यक्ष को झूठे आरोपों में फंसाया गया है। एक शिक्षक पर अगर झूठे आरोप लगें तो बच्चों का उबलना जरूरी है। एक छात्र ने बताया कि हम तब तक अनशन पर बैठेंग जब तक कि हमारे सम्माननीय एचओडी को वापस नहीं बुला लिया जाता, क्योंकि वे बेकसूर हैं।

Monday, September 6, 2010

रिहाई पर राजनीति, मां पत्नी से तो पूछो



लखीसराय में कुछ दिनों पहले पुलिस से माओवादियों की मुठभेड़ हो गई जनाब पुलिस की फटके हाथ में आ गई कई पुलिसवाले मारे गए और चार को माओ ने अपने गिरफ्त में ले लिया। अब माओवादियों ने सरकार के सामने शर्त रख दी कि आप लोग हमारे सात साथियों को छोड़ दो वरना हम इन चार पुलिस वालों को मार डालेंगे, लेकिन बिहार की नितीश सरकार ने कहा हम तो माओ के साथियों को नहीं छोड़ेगे। इतना सुनते ही माओवादियों ने एक एएसआई लुकास टेटे को मार डाला अब बचे तीन पुलिस वाले वे बेचारे डरे सहमे से थे, पुलिसवालों के परिजन मुख्यमंत्री के निवास पर पहुंच गए, लेकिन पता नहीं सात दिन बाद यानि रविवार रात को माओवादियों ने तीन पुलिस वालों को छोड़ दिया इसके बाद शुरू हो गई बिहार में राजनीति यानि वोट की बातें आपको बता दें बिहार में विधानसभा के चुनाव की तारीखें तय हो गई हैं। तीन पुलिस वाले जिंदा वापस लौटे तो उन्हें देखकर सरकार ने अपना मुंह मीठा किया वहीं विपक्ष ने भी सरकार पर निशाना साधा। खबरें भी खूब दिखाई गर्इं, पेपरों पर भी खबरें छपीं लेकिन गुमनाम था वह पुलिस वाला लुकास जिसकी मौत माओवादियों ने कर दी क्या कसूर था उस पुलिस वाले का
कुछ सवाल हैं जिनके जवाब कौन देगा-
पहला सवाल-
क्या बिहार में हो रहे चुनावों के चलते जानबूझकर किसी नेता ने माओवादियों से मिलकर पुलिसकर्मियों का अपहरण कराया था।
दूसरा सवाल-
क्या जानबूझकर एक पुलिसवाले को मारने के लिए किसी राजनेता ने खेल खेला
तीसरा सवाल-
क्या कसूर था उस पत्नी का जिसके पति को माओवादियों ने मार डाला
चौथा सवाल-
माओवादी तो अपने आप को जनता के रखवाले माने जाते हैं उनका विरोध तो भ्रष्टाचारी सरकार का विरोध है पर वे निर्दोषों को क्यों मार देत हैं
पांचवा सवाल-
क्या बिहार सरकार ने जानबूझकर घिरे हुए माओवादियों को भागने का मौका दिया है
जवाब आप भी दे सकते हैं


अरे यार आप लोगों के पास क्या देश की समस्याएं कम पड़ गईं है जो हमारे निजी जीवन की मनमानी कहानी गढ़ रहे हैं ऐसा एक पत्रकार के सामने सलमान खान ने कहा, आप जानते होंगे आजकल खासकर टीवी चैनलों ने तो खबरों का मसाला सड़ाकर प्रस्तुत किया है। जी हां सलमान ने इंडिया टीवी के एक पत्रकार को बुरी तरह डांट दिया। वे कैटरीना कैफ के साथ संबंधों को लेकर पूछे जाने वाले सवालों से परेशान थे, सलमान ने कहा, देश में शिक्षा, भ्रष्टाचार जैसे कई मुद्दे हैं जिन पर अगर मीडिया कैमरा चलाए तो वाकई देश की उन्नति होगी और मीडिया का पतन तो रुकेगा ही। वाकई सलमान को कहना गलत नहीं है आजकल जिस तरह से मीडिया ने खबरों को रूप बिगाड़ा है उससे तो लोगों को भी परेशानी होने लगी है लोग पत्रकारों को ओछी निगाहों से देखते हैं