Monday, March 28, 2011

सात बहनों को बड़ी दिक्कत से मिला भाई


  सड़क पर पड़ी प्रसूता महिला
  रायसेन जिले के बाढ़ेर गांव में 7 बहनों को एक भाई मिला। माजरा यह है कि गांव की काशीबाई की उम्र 32 साल है, पहले ही उनकी 7 बेटियां हैं 27 मार्च को इन 7 बहनों को एक भाई भी मिल गया, लेकिन बड़ी कठिनाई से। विदिशा से पास होने के कारण काशीबाई को प्रसव के लिए अस्पताल लाया जा रहा था, लेकिन बच्चे के पैदा होने को जैसे ग्रहण लग गया हो। विदिशा में इतनी सुरक्षा व्यवस्था थी, मानो ऐसा लग रहा था कि कंस का पहरा हो। चारों तरफ पुलिस वाले। काशीबाई की सास, पति आटो से प्रसूता को अस्पताल ले जा रहे थे कि ‘बदनाम’ पुलिस ने आटो रोक दिया। पति, सास ने लाखों मिन्नतें की साहब हमारी बहू को बच्चा होने वाला है, अस्पताल जाने दो। लेकिन पुलिस वालों ने उन्हें अस्पताल नहीं जाने दिया, जबकि पुलिस वाले प्रसूता को तड़पते देख रहे थे। भगवान न करे कि उस वक्त ड्यूटी पर मौजूद पुलिस वालों की बीबी, बेटी, के साथ भी ऐसा हो। क्योकि प्रसव पीड़ा वे पुलिस वाले क्या जानें यह तो एक मां बनने वाली महिला ही जान सकती है। पुलिस वाले चाहते तो आटो को अस्पताल जाने दे सकते थे। अगर उन्हें शहर आ रहे नेताओं की इतनी  ही चिंता थी तो उन्होंने यह क्यों नहीं सोचा कि मुख्यमंत्री खुद चाहते हैं कि हर प्रसव अस्पताल में सुरक्षित रूप से हो। खैर ऐसे पुलिस वालों ने ही पुलिस को बदनाम किया है। यह मामला विधानसभा में भी उठा। इस मामले पर कार्रवाई होना लाजिमी है।
  खबर इस प्रकार है-
विदिशा में प्रसव पीड़ा से तड़प रही एक महिला को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों ने मात्र 200 मीटर दूर अस्पताल तक नहीं पहुंचने दिया। खुद प्रसूता, उसकी सास व पति पुलिसवालों के सामने खूब गिड़गिड़ाए लेकिन वे नहीं पसीजे। करीब आधा घंटे तक तड़पने के बाद उस महिला की चौराहे पर ही डिलीवरी हो गई। दरअसल, रविवार को विदिशा में अंत्योदय मेले में शिवराजसिंह चौहान, सांसद सुषमा स्वराज, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा सहित दर्जनों नेता शहर में आने वाले थे, इसलिए रास्तों पर कड़ी सुरक्षा की गई थी। पुलिस वाले इनकी सुरक्षा में तैनात थे। उसी समय रायसेन के ग्राम बाढ़ेर निवासी प्रहलाद सिंह अहिरवार अपनी 32 वर्षीय पत्नी काशीबाई को ऑटोरिक्शा से जिला अस्पताल ले जा रहा था। नीमताल चौराहे पर खड़े पुलिस जवानों ने उसे रोक लिया। प्रहलाद व उसकी मां कस्साबाई ने पुलिसवालों को प्रसूता की हालत के बारे में बताया लेकिन उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

Thursday, March 10, 2011

साक्षात्कार का सच

मप्र लोक सेवा आयोग के दफ्तर के नंबर दो गेट पर मैं
 यह है छोटू जो कि अपनी मम्मी के साथ असिस्टेंट प्रोफेसर का इंटरव्यू देने आया था। नहीं-नहीं आप गलत समझ रहे हैं, इसकी मम्मी इंटरव्यू देने आइं थीं।

इंटरव्यू देकर आफिस से बाहर निकलतीं एक अभ्यार्थी।

 तारीख 7 मार्च दिन सोमवार मैं मप्र की व्यवासयिक राजधानी इंदौर में था। यहां पर ही मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपी- पीएससी) का प्रमुख कार्यालय है। पुरानी बिल्डिंग टूटे गेट, बुजुर्ग सुरक्षा गार्ड हैं। पेड़-पौधे तो बहुत थे, पर गर्मी के मौसम में पतझड़ के कारण पेड़ों से पत्तियों का बेक्रअप हो रहा है। (बे्रकअप= फिल्म लव आजकल के बाद यह शब्द ज्यादा प्रचलित हुआ है, दो प्रेमी-प्रेमिका का जब प्यार से मन भर जाता है तो वह आपसी सहमति से अपना प्यार का रिश्ता तोड़ लेते हैं)। लेकिन यहां पर सबसे अच्छा है वो है इस इमारत की नींव यानी यहां से कई अधिकारी निकले हैं। जो इस बिल्डिंग के अंदर बैठे हैं वे भी उम्रदराज हैं पर उनका ज्ञान तो आपार है कोई भी विषय क्यों न हो, पढ़ाई के दिग्गजों की हवा निकाल देते हैं।

  इसे भी जानिए
  मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग वैसे तो अधिकारियों को पैदा करने की फैक्ट्री मानी जाती है परंतु प्रारंभ से ही यहां पर धांधली के आरोप प्रतिभागी लगाते रहते हैं। ऐसा ही मेरे सामने भी हुआ जब मैं इंदौर स्थित पीएससी के हेड आॅफिस पहुंचा। वहां पर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए इंटरव्यू चल रहे थे। कई लोग वहां पहुंचे किसी ने टाई लगाई थी, वहीं कई युवतियां, महिलाएं साड़ी पहनकर आर्इं थीं। कई प्रतिभागियों को जब पता चला कि मैं जर्नलिस्ट हूं तब वे बोले भाई साहब आप ऐसी खबर छापिए जिससे पीएससी वाले लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के नंबर दिखाएं क्योंकि ऐसा न करने से धांधली(सेटिंग) का डर बना रहता है।
उन लोगों को मैंने कहा हां हम प्रयास करेंगे कि ऐसी खबर बनाएं इसके बात कुछ विशेषज्ञों से मेरी बात हुई जिसमें उन्होंने कहा कि ऐसा करना संभव नहीं है क्योंकि यह एक गोपनीय प्रक्रिया है और भर्ती में कोई घपला नहीं होता।
आप भी जान सकते हैं अपने नंबर
मैं आपको बता दूं कि धांधली का पता लगाना तो संभव नहीं लगता पर आप अपने नंबर जान सकते हैं वो भी सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाकर। जी हां आरटीआई ही ऐसा हथियार है जिससे आप लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के नंबर जान सकते हैं। अगर कोई आरटीआई से जानकारी न दे तो हाईकोर्ट का दरवाजा खुला है। पर हां दूसरों के नंबर नहीं जाने जा सकते, ऐसे में प्रतिभागी अपना आंकलन कैसे कर सकता है। अत: साक्षात्कार का सच जानना आज भी मुश्किल ही है।