Wednesday, October 10, 2012

दो मुद्दे, दिखावे कुछ, सच्चाई कुछ


1. हरियाणा में डीएलएफ का बड़ा कारोबार है। दिल्ली से सटे राज्य में सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा ने डीएलएफ की मदद कर अरबों की संपत्ति बनाई है। जीं हां मंगलवार को सोनिया हरियाणा पहुंची, बहाना था रेप पीडि़तों से मिलना। सोनिया उन्हें सहानूभूति दे आईं। आखिर देना भी चाहिए। राज्य में एक महीने के भीतर बलात्कार के 15 मामले सामने आ गए
.........पर कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त
सोनिया बोलीं रेप तो देशभर में हो रहा है। यानी वे रेप पीडि़तों से मिलने का बहाना निकालकर अपने दामाद की बात करने हरियाणा पहुंचीं होगी। या यूं कहें मामला सुलटाना तो पड़ेगा न भई आखिर सासु मां जो ठहरीं।
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2. ममता बनर्जी ने 72 घंटे का समय दिया। सरकार नहीं मानी तो समर्थन वापस ले लिया। सरकार की निगाहें सपा और बसपा पर टिक गईं। सपा तो दोस्त है कांग्रेस की। बहुजन समाज पार्टी की मायावती भी बोलीं हां हम भी अभी यूपीए सरकार का साथ देंगे।
...............पर कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त
मायावती बुधवार को फैसला सुनाने वाली थीं, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने उनकी नींद उड़ा दी। आय से अधिक दौलत कमाने के मामले में कोर्ट ने केंद्र सरकार और सीबीआई को फटकार लगाई। यानी माया की जांच हो। एक दिन बीता और केंद्र से मिल गईं मायावती। चलो जांच में ढील तो मिली।

Sunday, July 8, 2012

कमीशन के भूखे ‘भगवान’

prakash amte aur mandaki amte. hamare doctor inse kuch to sekh sakte hai.

राम-रावण का युद्ध चल रहा था। रावण का बेटा मेघनाद और लक्ष्मण जी भिड़ गए। लक्ष्मण जी से हारने की कगार पर पहुंचे मेघनाद ने शक्तिबाण चला दिया। लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए। अब ऐसा डॉक्टर की तलाश शुरू हुई जो लक्ष्मण जी का इलाज कर सके। अब डॉक्टर भी मिले तो दुश्मन रावण के मुल्क के। सुषेण नामक वैद्य जी हां। वैद्य ने दोस्ती देखी न दुश्मनी और लक्ष्मण जी का इलाज किया।
ऐसे होते थे वैद्य डॉक्टर
अब बाबा आम्टे की बात करते हैं। दुनिया भर में प्रसिद्धि बटोरने वाले सच्चे जनसेवक थे बाबा आम्टे। बचपन में चांदी के पलंगों में सोने वाले बाबा ने जवानी समाजसेवा को समर्पित कर दिया। उनके बेटे और बहू जो कि पेशे से डॉक्टर हैं वे भी पैसे नहीं समाजसेवा कमा रहे हैं। प्रकाश और बहू मंदाकिनी आम्टे महाराष्ट्र में कुष्ठ रोगियों के लिए सेवा में समर्पित हैं....
आप सोच रहे होंगे कि मैं इनकी बात क्यों कर रहा हूं। आपके सवालों का जवाब नीचे है
आजकल अधिकतर डॉक्टर बेईमान हो गए हैं। दवा कंपनियों से पैसे और गिफ्ट लेने की बातें तो पहले भी सुनी थीं। मैंने तो यहां तक सुना था कि कई कंपनियां डॉक्टरों को फ्लैट भी गिफ्ट करती हैं। पर रविवार को पढ़ी खबर से सन्न रह गया। एक दवा कंपनी ने लाखों रुपए खर्च कर डॉक्टरों को विदेश की सौर करवा दी। मात्र टिकट ही 12 लाख रुपए का था। सोचिए पूरी यात्रा में कितने रुपए खर्च हुए होंगे।
इन डॉक्टरों से इलाज कराने वाले कई मरीज ऐसे होते हैं, जो जिंदगी भर मेहनत से रुपए कमाते हैं और एकसाथ 12 हजार रुपए भी नहीं देख पाते। जब बीमार पड़ते हैं तो डॉक्टर कमीशन के चक्कर में महंगी दवाएं लिखते हैं, गरीबों को जिंदगी बचाने के लिए दवाएं खरीदनी पड़ती हैं। डॉक्टर चाहें तो सस्ती दवाएं भी लिख सकते हैं। पर ऐसे में विदेश घूमने को कहां मिलेगा।
एक डॉक्टर ईमानदारी से भी काम करे तो वह इतना  कमा सकता है कि उसका जीवन बेहतर कट सकता है। फिर कई डॉक्टर लोगों से खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं। पैसों के लोभ में इतनी महंगी दवाएं क्यों लिख देते हैं कि बिल देखकर ही लोग मर जाएं। आखिर विदेश सैर या गिफ्ट की भूख से भगवान बेइमान क्यों बन रहा है।
मैं ऐसे दर्जनों डॉक्टरों को जानता हूं, जो हफ्ते में एक दिन नि: शुल्क परामर्श देते हैं और हो सके तो उन्हें दवाएं भी उपलब्ध कराते हैं। ऐसे समाजिक सेवा करने वाले डॉक्टर भी तो पैसों के लोभी हो सकते हैं पर अभी तक वे बचे हुए हैं। शायद वे सच्चाई जानते हैं। जो भी हो भगवान कहे जाने वाले डॉक्टरों को कुछ तो शर्म करनी चाहिए। ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि उन्हें विदेश यात्रा नहीं मिलेगी। उन्हें गिफ्ट नहीं मिलेंगे, लेकिन हां सबसे बड़ी चीज मिलेगी। मरीजों की दुआ।

Sunday, April 22, 2012

ऐसे, कैसे चलेगा काम?

IAS Manan

mla manghi

r vinel krihna IAS
  दो राज्य, दो कलेक्टर, दोनों आईएएस (प्रमोटी नहीं) दोनों बेहद पढ़े-लिखे, दोनों में समाज सेवा का जज्बा और जोश, दोनों में देश के बदलाव की चाहत, दोनों को चाहने वालों की लंबी लाइनें, दोनों इमानदार, दोनों पड़ोसी राज्यों में नियुक्त हैं (आर. वीनिल कृष्णा-ओडीशा, एलेक्स पॉल मेनन-छत्तीसगढ़), दोनों लोगों की समस्या जानने, लोगों को जागरूक करने भयानक जंगलों में घुसते हैं, दोनों सरकारी तामझाम से दूर। सिर्फ कुछ गार्डों के साथ, दोनों को सिर्फ काम से मतलब, नक्सलियों के इलाके में नक्सलियों के खिलाफत, जनता को विकास से जोड़ने की जोशीली बातें। बस यही कारण उनके लिए मुसीबत बन जाता है। पर ऐसे अधिकारियों के जज्बे को सलाम। क्योंकि वे उन नेताओं से बेहतर हैं जो गार्डों के घेरे और हेलीकॉप्टर के बिना कहीं नहीं जाते।
अब 16 फरवरी 2011 की शाम को याद कीजिए, उड़ीसा के मलकानगिरी कलेक्टर आर. वीनिल कृष्णा का अपहरण कर लिया गया वे एक ग्राम विकास कार्यक्रम में पहुंचे और इंजीनियर द्वारा बनाए गए पुल की जांच खुद पहुंच गए। पुल तक पहुंचे ही थे, घात लगाए नक्सलियों ने उन्हें पकड़ लिया। 7 दिन बाद मांगें मनवाने पर ही नक्सलियों ने कृष्णा को रिहा किया। करीब 14 महीने गुजरे राज्य बदल गया, 21 अप्रैल 2012, को छत्तीसगढ़ के नए जिले सुकमा कलेक्टर आईएएस एलेक्स पॉल मेनन का अपहरण। मेनन भी ग्राम सुराज अभियान में शामिल होने माझीपारा गांव पहुंचे थे। सीईओ से कलेक्टर बने 2006 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को शायद पेचीदगियों का अनुमान नहीं था कि सच्चाई सुनने के आदी भारत में कम ही मिलते हैं। खासकर जब नेताओं ने गरीबों को कुचला है, उनके अधिकारों का अतिक्रमण किया है। मेनन लोगों को जीने के तरीके बता रहे थे, वहीं आम आदमी बनकर आए नक्सलियों को उनकी बातें चुभने लगीं और कलेक्टर को घेर लिया।

हमारे इमानदार कर्मचारी
इमानदारी और कलेक्टर की लोकप्रियता देखिए, सिर्फ दो गार्ड 20 से ज्यादा नक्सलियों से भिड़ गए और अपने अधिकारी को बचाने के लिए शहीद हो गए। नक्सलियों का काला चेहरा इसी से बेनकाब होता है। हो सकता है कि आम नागरिकों से नक्सली बने इन आतंकियों के साथ कुछ गलत हुआ हो। पर इसका मतलब कतई नहीं कि आम पुलिस वालों की हत्या कर दी जाए, जरा सोचिए अपने परिवार से दूर इन जवानों के बारे में जो दिन-रात जंगल में रहते हैं। लोगों की सेवा करते हैं। नक्सलियों को देखने पर उन्हें चुनौती देते हैं, अचानक गोली नहीं चलाते। इसी के उलट नक्सलवादी अचानक हमले कर उनकी हत्या कर देते हैं। सोचिए इन गार्डों के परिवारों पर क्या गुजरती होगी। 10 से 12 हजार रुपए कमाने वाले सपूतों को खो देते हैं। जंगल पर नक्सलियों का राज कायम है। सरकार सिर्फ एयर कंडीशनर कमरों में बैठकर मीटिंग लेती है और आदेश देती है कि नक्सलियों से सख्ती से निपटा जाए। जान गंवाते हैं हमारे आम जवान और ऐसे लोग या ग्राम प्रधान जो पुलिस का सहयोग करते हैं। नक्सली उन लोगों को जिंदा जला देते हैं, जिनपर उन्हें शक होता है कि यह हमारी खबर सरकार तक पहुंचा रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ में चल रहे ग्राम सुराज क्या गुल खिलाएगा। जब अभियान में जाने वाले अधिकारी तक सुरक्षित नहीं होते, मुंह खोलने वाले लोगों को जान गंवानी पड़ती है तो फिर गांव वाले कैसे नक्सलियों के विरोधी बन सकते हैं।

रील लाइफ से रियल में आते हैं
शोले तो सभी ने देखी होगी। गब्बर के इलाके में जब एक इमानदार पुलिसवाला आता है तो उसके हाथ काट दिए जाते हैं। दो अपराधी जब लोगों को जागरूक करने आते हैं तो कई ग्रामीणों की जान डाकु ले लेते हैं। शहर पढ़ने जाने वाले युवक की हत्या कर देत हैं। ऐसे में रील लाइफ तो हीरो को हीरो बना देती है।
पर देखिए छत्तीगढ़ के जंगलों में रहने वाले लोग क्यों जान गवाएंगे। जहां सरकार नहीं पहुंचती, योजनाओं का लाभ नहीं मिलता, ऐसी जगहों पर नक्सली विराजमान हैं। अब जनता की सरकार तो नक्सली ही हुए न। रियल लाइफ में डाकू गब्बर को मारना आसान नहीं है।

अपहरण पर अपहरण, उदासीन सरकार, आतंकियों के बुलंद हौसले
ओडीशा में दो इतालवी पर्यटकों का अपहरण हो या फिर 24 मार्च को हुए सत्तारूढ़ पार्टी बीजू जनता दल (बीजद) के विधायक झिना हिकाका (34 साल) का अपहरण, सभी मामले में सरकार सिर्फ मिटिंग लेती है। नक्सली हर बार अपनी मांगें मनवा लेते हैं। पर अब चिंता पहले से कहीं गंभीर हैं।
-विधायक
-दो कलेक्टर
इन चिंताओं पर बयानबाजी की बारिशें होती हैं। बस निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता।

5000 किमी तो वार कर लेंगे, देश का क्या
देश के 28 स्वतंत्र राज्यों में छत्तीसगढ़, कर्नाटक, ओडीशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार-उत्तर प्रदेश में आंशिक रूप से नक्सली व्याप्त हैं। ऐसे में क्या कहा जाए। देश आजाद होने के 60 साल से ज्यादा बीत गए। अग्नि-5 विदेशों में चमक रही है। 5 हजार किमी तक मार करने वाली मिसाइल से हम दुनियाभर से बच सकते हैं। वहां हमले कर सकते हैं, लेकिन देश के अंदर ऐसा क्या हो गया कि मुठ्ठी भर नक्सलियों को निशाना नहीं बना पाए।

विदेशों से सीखें
अमेरिका घर बैठे-बैठे इस्लामाबाद में दुनिया के सबसे बड़े आतंकी लादेन को मार गिराता है। लीबिया की जनता तानाशाह शासक गद्दाफी को पुल के अंदर से   निकालकर मौत देती है। ऐसे में हमारे देश की सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि नक्सलियों पर नियंत्रण नहीं रख पा रही है।

कैसे कसी कमर
16 अप्रैल, जगह नई दिल्ली, मुद्दा नक्सलवादी। सभी नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्री, देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री पी चिदंबरम। इन सभी ने मीटिंग की। कहा- नक्सलियों पर लगाम लगाकर रहेंगे। 5 दिन नहीं बीते और कलेक्टर का अपहरण, दो गार्डों की हत्या। अब बताइए, कैसे कमर कस रही है सरकार। ऐसी कई बैठकें पहले भी हो चुकी हैं पर समस्या जस की तस बनी है। सरकार के नाम एक भी बड़ी उपलब्धि नहीं हैं। हां सिर्फ कुछ नाकामियां जरूर मिली हैं। 

दूसरे अधिकारी क्या करेंगे
छत्तीसगढ़ ने हाल ही में 9 नए जिलों का गठन किया है। सभी जगह नए कलेक्टर व अन्य अधिकारी तैनात किए हैं। अब जब कलेक्टर का अपहरण हो रहा है तो अन्य जिलों के अधिकारी क्यों नक्सलियों को चुनौती देंगे। भला मुसीबत क्यों लेगें। क्या इसका जवाब है सरकार के पास। जंगली इलाकों के बीच के ये जिले, जहां सरकारी मदद के पहले नक्सली पहुंच जाते हैं। वहां की सड़कों पर नक्सलियों का कब्जा है। सड़क बनाने वाले ठेकेदार लेवी (एक प्रकार की रिश्वत)  देते हैं, तब वहां काम करते हैं। ऐसे में सरकार का अगला कदम क्या होगा? यह एक बड़ा सवाल है। सरकार को इमानदारी से सेना के माध्यम से एक बड़े अभियान चलाने की जरूरत है, हां और राज्यों को भी केंद्र की मदद करनी होगी। राज्य और केंद्र का समन्वित कार्य ही इस लाल आतंक को समाप्त कर सकता है।

Saturday, January 7, 2012

सावधान

बात 1997 की है। जब मैं चौथी कक्षा में पढ़ता था, गांव का सरकारी स्कूल। शिक्षकों की कमी का दौर था। मेरे गांव के पड़ोसी गांव में तो एक शिक्षक ही था, इसीलिए दोनों गांवों के बच्चे एक साथ पढ़ते थे। हमारे गांव के स्कूल में कक्षाएं एक साथ लगती थीं। एक मासाब थे मिश्रा सर, बड़े ही सख्त, शराब के आदी। एक दिन मैं स्कूल की खिड़की पार कर निकल गया, तब सर को पता चला तो, आव देखा न ताव उलटी हथेली गाल पर रख दी। उनकी सोने की अंगूठी मेरे गाल पर छप गई, जैसे किसी ने सील लगा दी। बस अपन रोते-रोते घर पहुंच गए। मेरी बऊ (दादी) ने ऐसा देखा तो गुस्से से लाल हो गई और पहुंच गर्इं स्कूल। मिश्रा जी को खूब डांट पड़ी। इसके बाद जब मां को जानकारी लगी तो उन्होंने बऊ को समझाया और मुझे धमकाया। कहा, दो बार ऐसी गलती की तो मैं भी मारूंगी।
उस समय शिक्षा का अधिकार कानून लागू नहीं हुआ था। शिक्षक रूल से पिटाई करते थे। बेशरम (एक प्रकार का पौधा)  की छड़ी से पिटाई होती थी। सजा पर रोक नहीं थी। आप सोच रहे होंगे ये आत्मकथा मैं आपको क्यों सुना रहा हूं।
दरअसल भोपाल के एक स्कूल की घटना ने मुझे यह लिखने पर मजबूर कर दिया। लाइब्रेरी में बैठे छात्र जब हू-हल्ला मचा रहे थे तो एक शिक्षक ने उन्हें सजा दे दी। वो भी 500 बार यह लिखवाया कि हम दोबारा अनुशासन नहीं तोड़ेंगे। बेशक बच्चे बहुत छोटे थे। पर माता-पिता को यह मामला बड़ा लगा, अखबार में खबरें छपीं। बाल अधिकार संरक्षण आयोग स्कूल पहुंच गया। आखिर इतनी जरूरत क्या थी। बच्चों को दी गई सजा मामूली थी। शारीरिक भी नहीं। ऐसे में माता-पिता इतने उत्तेजित कैसे हो सकते हैं। क्या बच्चों को सिर में नहीं चढ़ा रहे हैं।
पिछले साल की घटना को ले लें राजधानी के एक प्रतिष्ठित स्कूल जिसका रिजल्ट अब खराब हो गया है, में पढ़ने वाले छात्रों को स्कूल ने टीसी दे दी थी, कारण था वे पढ़ाई के प्रति लापरवाह और अनुशासन को तोड़ने में हमेशा आगे रहते थे। कई बार चेतावनी के बाद भी वे नहीं सुधरे तो स्कूल ने बाहर कर दिया। विवाद कलेक्टर तक पहुंच गया। शिक्षा के अधिकार कानून का भला हो। स्कूल की नहीं चली और बच्चे फिर स्कूल में पहुंच गए। रिजल्ट आया तो मेरिट में कोई भी छात्र नहीं था, एक ऐसे स्कूल से जिसने कई आईएएस दिए हैं।
बच्चों की हरकतों पर नजर न रखने के कारण बच्चों में कई समस्याएं आ रही हैं। ऐसे में बच्चों को अच्छे संस्कार देने का समय आ गया है, नहीं तो इस उम्र में बच्चे क्या सीखेंगे उसके दूरगामी परिणाम दुख भरे हो सकते हैं।
गाजियाबाद के एक स्कूल की घटना है, न्यू ईयर में 10वीं के छात्र-छात्राएं शराब पीते पकड़े गए। ये बच्चे घर से पार्टी मनाने की बात कहकर निकले थे। माता-पिता को क्या पता कि वे क्या कर रहे हैं। ये बच्चे 12-15 साल की उम्र के थे।
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शोध का सच
एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि बच्चे जल्द युवा बनने की चाहत रखते हैं। पर्यावण के बदलने के साथ-साथ बच्चों में सेक्चुअल हार्मोन भी जल्द विकसित हो रहे हैं। बच्चे ब्यॉवफ्रेंड, गर्लफ्रेंड की बातें करते हैं। प्यार के बारे में कुछ पता नहीं, लेकिन पटरी पर कट जाते हैं।  स्कूलों में मस्ती के स्तर को भी पार कर जाते हैं। स्कूलों में मोबाइल फोन ले जाते हैं, ऐसे वैसे नहीं ब्लैकबेरी। एक छात्र जब दूसरे को यह दिखाता है तो उनके अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना आती है। पढ़ाई दूर की बात यू-ट्यूब पर वीडियो देखते हैं। अश्लील फिल्में भी देखते हैं। एक कमरे में कैद बच्चे क्या कर रहे हैं। कामकाजी माता-पिता को इसकी जानकारी ही नहीं रहती। ऐसे में बच्चों को इतना सिर में चढ़ाना गलत है। बच्चों के बारे में हमेशा जानकारी लेना पालकों का कर्तव्य होना चाहिए।