Sunday, April 22, 2012

ऐसे, कैसे चलेगा काम?

IAS Manan

mla manghi

r vinel krihna IAS
  दो राज्य, दो कलेक्टर, दोनों आईएएस (प्रमोटी नहीं) दोनों बेहद पढ़े-लिखे, दोनों में समाज सेवा का जज्बा और जोश, दोनों में देश के बदलाव की चाहत, दोनों को चाहने वालों की लंबी लाइनें, दोनों इमानदार, दोनों पड़ोसी राज्यों में नियुक्त हैं (आर. वीनिल कृष्णा-ओडीशा, एलेक्स पॉल मेनन-छत्तीसगढ़), दोनों लोगों की समस्या जानने, लोगों को जागरूक करने भयानक जंगलों में घुसते हैं, दोनों सरकारी तामझाम से दूर। सिर्फ कुछ गार्डों के साथ, दोनों को सिर्फ काम से मतलब, नक्सलियों के इलाके में नक्सलियों के खिलाफत, जनता को विकास से जोड़ने की जोशीली बातें। बस यही कारण उनके लिए मुसीबत बन जाता है। पर ऐसे अधिकारियों के जज्बे को सलाम। क्योंकि वे उन नेताओं से बेहतर हैं जो गार्डों के घेरे और हेलीकॉप्टर के बिना कहीं नहीं जाते।
अब 16 फरवरी 2011 की शाम को याद कीजिए, उड़ीसा के मलकानगिरी कलेक्टर आर. वीनिल कृष्णा का अपहरण कर लिया गया वे एक ग्राम विकास कार्यक्रम में पहुंचे और इंजीनियर द्वारा बनाए गए पुल की जांच खुद पहुंच गए। पुल तक पहुंचे ही थे, घात लगाए नक्सलियों ने उन्हें पकड़ लिया। 7 दिन बाद मांगें मनवाने पर ही नक्सलियों ने कृष्णा को रिहा किया। करीब 14 महीने गुजरे राज्य बदल गया, 21 अप्रैल 2012, को छत्तीसगढ़ के नए जिले सुकमा कलेक्टर आईएएस एलेक्स पॉल मेनन का अपहरण। मेनन भी ग्राम सुराज अभियान में शामिल होने माझीपारा गांव पहुंचे थे। सीईओ से कलेक्टर बने 2006 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को शायद पेचीदगियों का अनुमान नहीं था कि सच्चाई सुनने के आदी भारत में कम ही मिलते हैं। खासकर जब नेताओं ने गरीबों को कुचला है, उनके अधिकारों का अतिक्रमण किया है। मेनन लोगों को जीने के तरीके बता रहे थे, वहीं आम आदमी बनकर आए नक्सलियों को उनकी बातें चुभने लगीं और कलेक्टर को घेर लिया।

हमारे इमानदार कर्मचारी
इमानदारी और कलेक्टर की लोकप्रियता देखिए, सिर्फ दो गार्ड 20 से ज्यादा नक्सलियों से भिड़ गए और अपने अधिकारी को बचाने के लिए शहीद हो गए। नक्सलियों का काला चेहरा इसी से बेनकाब होता है। हो सकता है कि आम नागरिकों से नक्सली बने इन आतंकियों के साथ कुछ गलत हुआ हो। पर इसका मतलब कतई नहीं कि आम पुलिस वालों की हत्या कर दी जाए, जरा सोचिए अपने परिवार से दूर इन जवानों के बारे में जो दिन-रात जंगल में रहते हैं। लोगों की सेवा करते हैं। नक्सलियों को देखने पर उन्हें चुनौती देते हैं, अचानक गोली नहीं चलाते। इसी के उलट नक्सलवादी अचानक हमले कर उनकी हत्या कर देते हैं। सोचिए इन गार्डों के परिवारों पर क्या गुजरती होगी। 10 से 12 हजार रुपए कमाने वाले सपूतों को खो देते हैं। जंगल पर नक्सलियों का राज कायम है। सरकार सिर्फ एयर कंडीशनर कमरों में बैठकर मीटिंग लेती है और आदेश देती है कि नक्सलियों से सख्ती से निपटा जाए। जान गंवाते हैं हमारे आम जवान और ऐसे लोग या ग्राम प्रधान जो पुलिस का सहयोग करते हैं। नक्सली उन लोगों को जिंदा जला देते हैं, जिनपर उन्हें शक होता है कि यह हमारी खबर सरकार तक पहुंचा रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ में चल रहे ग्राम सुराज क्या गुल खिलाएगा। जब अभियान में जाने वाले अधिकारी तक सुरक्षित नहीं होते, मुंह खोलने वाले लोगों को जान गंवानी पड़ती है तो फिर गांव वाले कैसे नक्सलियों के विरोधी बन सकते हैं।

रील लाइफ से रियल में आते हैं
शोले तो सभी ने देखी होगी। गब्बर के इलाके में जब एक इमानदार पुलिसवाला आता है तो उसके हाथ काट दिए जाते हैं। दो अपराधी जब लोगों को जागरूक करने आते हैं तो कई ग्रामीणों की जान डाकु ले लेते हैं। शहर पढ़ने जाने वाले युवक की हत्या कर देत हैं। ऐसे में रील लाइफ तो हीरो को हीरो बना देती है।
पर देखिए छत्तीगढ़ के जंगलों में रहने वाले लोग क्यों जान गवाएंगे। जहां सरकार नहीं पहुंचती, योजनाओं का लाभ नहीं मिलता, ऐसी जगहों पर नक्सली विराजमान हैं। अब जनता की सरकार तो नक्सली ही हुए न। रियल लाइफ में डाकू गब्बर को मारना आसान नहीं है।

अपहरण पर अपहरण, उदासीन सरकार, आतंकियों के बुलंद हौसले
ओडीशा में दो इतालवी पर्यटकों का अपहरण हो या फिर 24 मार्च को हुए सत्तारूढ़ पार्टी बीजू जनता दल (बीजद) के विधायक झिना हिकाका (34 साल) का अपहरण, सभी मामले में सरकार सिर्फ मिटिंग लेती है। नक्सली हर बार अपनी मांगें मनवा लेते हैं। पर अब चिंता पहले से कहीं गंभीर हैं।
-विधायक
-दो कलेक्टर
इन चिंताओं पर बयानबाजी की बारिशें होती हैं। बस निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता।

5000 किमी तो वार कर लेंगे, देश का क्या
देश के 28 स्वतंत्र राज्यों में छत्तीसगढ़, कर्नाटक, ओडीशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार-उत्तर प्रदेश में आंशिक रूप से नक्सली व्याप्त हैं। ऐसे में क्या कहा जाए। देश आजाद होने के 60 साल से ज्यादा बीत गए। अग्नि-5 विदेशों में चमक रही है। 5 हजार किमी तक मार करने वाली मिसाइल से हम दुनियाभर से बच सकते हैं। वहां हमले कर सकते हैं, लेकिन देश के अंदर ऐसा क्या हो गया कि मुठ्ठी भर नक्सलियों को निशाना नहीं बना पाए।

विदेशों से सीखें
अमेरिका घर बैठे-बैठे इस्लामाबाद में दुनिया के सबसे बड़े आतंकी लादेन को मार गिराता है। लीबिया की जनता तानाशाह शासक गद्दाफी को पुल के अंदर से   निकालकर मौत देती है। ऐसे में हमारे देश की सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि नक्सलियों पर नियंत्रण नहीं रख पा रही है।

कैसे कसी कमर
16 अप्रैल, जगह नई दिल्ली, मुद्दा नक्सलवादी। सभी नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्री, देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री पी चिदंबरम। इन सभी ने मीटिंग की। कहा- नक्सलियों पर लगाम लगाकर रहेंगे। 5 दिन नहीं बीते और कलेक्टर का अपहरण, दो गार्डों की हत्या। अब बताइए, कैसे कमर कस रही है सरकार। ऐसी कई बैठकें पहले भी हो चुकी हैं पर समस्या जस की तस बनी है। सरकार के नाम एक भी बड़ी उपलब्धि नहीं हैं। हां सिर्फ कुछ नाकामियां जरूर मिली हैं। 

दूसरे अधिकारी क्या करेंगे
छत्तीसगढ़ ने हाल ही में 9 नए जिलों का गठन किया है। सभी जगह नए कलेक्टर व अन्य अधिकारी तैनात किए हैं। अब जब कलेक्टर का अपहरण हो रहा है तो अन्य जिलों के अधिकारी क्यों नक्सलियों को चुनौती देंगे। भला मुसीबत क्यों लेगें। क्या इसका जवाब है सरकार के पास। जंगली इलाकों के बीच के ये जिले, जहां सरकारी मदद के पहले नक्सली पहुंच जाते हैं। वहां की सड़कों पर नक्सलियों का कब्जा है। सड़क बनाने वाले ठेकेदार लेवी (एक प्रकार की रिश्वत)  देते हैं, तब वहां काम करते हैं। ऐसे में सरकार का अगला कदम क्या होगा? यह एक बड़ा सवाल है। सरकार को इमानदारी से सेना के माध्यम से एक बड़े अभियान चलाने की जरूरत है, हां और राज्यों को भी केंद्र की मदद करनी होगी। राज्य और केंद्र का समन्वित कार्य ही इस लाल आतंक को समाप्त कर सकता है।