Tuesday, April 28, 2015

95 हजार 878 शिक्षकों की कमी से जूझ रहा मप्र

बुरे दौर से गुजर रहे मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूल, आरटीई का नहीं हो रहा पालन
5000 स्कूलों नहीं हैं एक भी शिक्षक
-1 लाख 14 हजार 444 सरकारी प्राथमिक-माध्यमिक स्कूल हैं मप्र में
-1 करोड़ 35 लाख 66 हजार 965 बच्चे पढ़ते हैं (6 से 13 वर्ष की आयु के )
-यू-डाइस (एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली) की रिपोर्ट में सामने आए तथ्य
- 1 शिक्षक के भरोसे 17 हजार 972 विद्यालय
- 65 हजार 946 विद्यालयों में महिला शिक्षक नहीं
-33 छात्रों पर औसतन एक शिक्षक ही है
-24 हजार से ज्यादा विद्यालयों में 1 शिक्षक 50 से ज्यादा विद्यार्थियों को पढ़ा रहा

मध्य प्रदेश के 5 हजार 295 सरकारी विद्यालयों में कोई भी शिक्षक नहीं है। राज्य में कुल 95 हजार 878 शिक्षकों की कमी है। यह बात यूनिसेफ के अध्ययन में सामने आई है। हालाकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आरटीई लागू होने के बाद राज्य के हालात कुछ सुधरे हैं, मगर चुनौतियां अभी भी बांकी हैं। 'सोशल मीडिया और शिक्षाÓ विषय पर हुई कार्यशाला में काफी चिंताजनक तथ्य सामने आए हैं। राज्य में हुए अध्ययन को मानें तो प्रदेश में कुल 1 लाख 14 हजार 444 सरकारी प्राथमिक-माध्यमिक विद्यालय हैं, जहां छह से 13 वर्ष की आयु के कुल एक करोड़ 35 लाख 66 हजार 965 बच्चे पढ़ते हैं। सितंबर 2014 में आई यू-डाइस (एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली) की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 5,295 विद्यालय शिक्षक विहीन हैं।
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यहां राहत
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शिक्षा के अधिकार कानून लागू होने के शिक्षा की स्थिति में थोड़ा सुधार भी हुआ है।

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शिक्षा के अधिकार का नहीं हो रहा पालन
शिक्षा का अधिकार लागू होने के पांच साल बाद भी यहां बदहाली का दौर है। मप्र में 17 हजार 972 विद्यालय ऐसे हैं जो 1 शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। 65 हजार 946 विद्यालयों में तो महिला शिक्षक ही नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि छात्रों को पढ़ाने के लिए आरटीई के तहत तय किए गए दिशा निर्देशों का भी ठीक तरह से पालन नहीं हो रहा है। हाल यह है कि सरकारी विद्यालयों में औसतन 33 छात्रों पर एक शिक्षक है। 24 हजार से ज्यादा विद्यालय ऐसे हैं, जहां एक शिक्षक 50 से ज्यादा विद्यार्थियों को पढ़ा रहा है। वहीं 19 हजार से ज्यादा स्कूलों में एक कक्षा में 50 से ज्यादा विद्यार्थियों को बैठना पड़ता है।
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क्या कहते हैं नियम
आरटीई के नियमों की रोशनी में देखें तो राज्य में विद्यालय के अनुपात में कुल 95 हजार 878 शिक्षकों की कमी है, इनमें 46 हजार 973 शिक्षक प्राथमिक शालाओं और उच्च प्राथमिक शालाओं में 48 हजार 905 शिक्षक कम हैं।
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क्या है आरटीई में
यूनेस्को की शिक्षा के लिए वैश्विक मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2010 के मुताबिक, लगभग 135 देशों ने अपने संविधान में शिक्षा को अनिवार्य कर दिया है तथा मुफ्त एवं भेदभाव रहित शिक्षा सबको देने का प्रावधान किया है। भारत में भी शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है। बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिनियम 1 अप्रैल 2010 को पूर्ण रूप से लागू हुआ। इस अधिनियम के तहत छह से लेकर चौदह वर्ष के सभी बच्चों के लिए शिक्षा को पूर्णत: मुफ्त एवं अनिवार्य कर दिया गया है।
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आरटीई के प्रावधान
छह से चौदह वर्ष तक के हर बच्चे के लिए नजदीकी विद्यालय में मुफ्त आधारभूत शिक्षा अनिवार्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बच्चों से किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा और न ही उन्हें शुल्क अथवा किसी खर्च की वजह से आधारभूत शिक्षा लेने से रोका जा सकेगा। यदि छह के अधिक उम्र का कोई भी बच्चा किन्हीं कारणों से विद्यालय नहीं जा पाता है तो उसे शिक्षा के लिए उसकी उम्र के अनुसार उचित कक्षा में प्रवेश दिलवाया जाएगा।

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वर्सन
राज्य में शिक्षा में अभी सुधार की जरूरत है। आरटीई लागू होने के बाद राज्य के हालात कुछ सुधरे हैं, मगर चुनौतियां अभी बहुत है। अब शिक्षा के अधिकार के साथ सीखने के अधिकार की बात होनी चाहिए। बच्चों के शिक्षित होने से बच्चे ही नहीं, राज्य के विकास में भी अंतर आएगा। उन्होंने इस मौके पर माना कि सोशल मीडिया शिक्षा और उसके स्तर के विकास में अहम भूमिका निभा सकता है, और इसके लिए जागरूक लोगों को आगे आना होगा।
-ट्रेवोर क्लार्क, यूनीसेफ


राज्य में सोशल मीडिया द्वारा शिक्षा के प्रति जागृति लाने के लिए चल रहे प्रयास वर्तमान समय की जरूरत हैं। हमें इस सिलसिले को आगे बढ़ाना होगा, समाज के हर वर्ग को इससे जोडऩा होगा। शिक्षा से जुड़ी बात उस हर व्यक्ति तक पहुंचानी होगी, जो मोबाइल का इस्तेमाल करता है।
- अनिल गुलाटी, यूनिसेफ के संचार विशेषज्ञ

Thursday, April 16, 2015

dowery

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16 april 2015