Wednesday, August 13, 2025

मिनीमन गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस : विदिशा कलेक्टर अंशुल गुप्ता (IAS Anshul Gupta 2016) इन दिनों चर्चा में क्यों हैं?

जमीन, जायजा, जनता और जनभागीदारी

 डॉ. दीपक राय, भोपाल, 25 जुलाई 2025 (मो. 9424950144)

IAS Anshul Gupta Good Work During Collector


आलेख को पढ़ना शुरू करने से पहले इसकी तस्वीर को गौर से देखिए। चूंकि मेरी किशोरावस्था ठेठ गांव में गुजरी है और शासन और जनता के बीच की दूरी मैंने खू​ब महसूस की है, आज भी जनता इस दूरी को महसूस करती है। इसलिए इस फोटो को देखकर मैं सहसा ठहर गया। मेरा निजी आंकलन कहता है कि इस फोटो में दिख रहे शख्स कोई मास्साब हैं, जो कि गांव के गली-मोहल्ले में घूम रहे हैं। कोई महिला उनसे वार्तालाप कर रही है। मेरी सोच इससे आगे नहीं पहुंच पाएगी। क्योंकि शिक्षक सर्वसुभल होते हैं। वर्तमान दौर की बात करें तो किसी को लगेगा कि यह व्यक्ति ग्राम पंचायत का रोजगार सहायक है, कोई इन्हें पंचायत सचिव कह सकता हैै। कुछ लोग पटवारी तक पहुंच सकते हैं। लेकिन कोई भी नायब तहसीलदार तक पहुंच पाएगा? मुझे ऐसा नहीं लगता। शासन की इसी दूरी की वजह से सरकार, आम जनता का भरोसा नहीं जीत पाती। मुझे अच्छे से याद है, साल 2014 में, मैं पी.-एच.डी. कर रहा था। नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे। संसद की सीढ़ियों में अपना माथा टेकने के बाद उन्होंने 'मिनीमन गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस' की अवधारणा दी थी। वे न्यूनतम शासन में अधिकतम सुशासन चाहते थे। इसी कारण डिजिटल इंडिया अभियान लांच किया गया। मोदी सरकार हर काम फास्ट और पारदर्शी तरीके से करना चाहती थी, अभी भी चाहती है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, मुख्य सचिव अनुराग जैन कई दफा कह चुके हैं कि अफसरों को अपने कार्यालय से बाहर निकलकर भी कार्य करना चाहिए। अफसरों को, सीधे जनता के बीच पहुंचकर सीधा संवाद करना चाहिए। अधिकांश अफसरों ने ऐसा नहीं किया, लेकिन कुछ अधिकारियों ने नवाचार के रूप में इसे अपनाया। मुझे याद है— पी. नरहरि, डॉ. सुदाम खाड़े, तरुण पिथौड़े, भरत यादव, डॉ. इलैया राजा टी., डॉ. सलोनी सिडाना, दीपक सक्सेना, वीएस चौधरी कोलसानी, प्रवीण अढ़ायच, कौशलेंद्र विक्रम सिंह, रोशन सिंह ने अपने जिले में कलेक्टर रहते हुए जमीन में जनता के बीच जाकर कई नवाचार किये। इन अफसरों ने जनता के दिलों में जो जगह बनाई है, वह अद्वितीय है। तरुण पिथौड़े तो बाइक में बैठकर कभी भी, किसी भी गांव का जायजा लेने पहुंच जाते थे। एक बार नहीं, कईयों बार उन्होंने ऐसा किया।

चलिए, अब सस्पेंस खत्म करते हैं। मेरे आलेख के फोटो में ग्रामीण महिला से संवाद कर रहे शख्स के बारे में बताता हूं। आईआईटी, आईआईएम से पढ़े-लिखे इस युवा का नाम अंशुल गुप्ता हैं, वर्ष 2016 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी हैं। अभी विदिशा कलेक्टर हैं। दूसरे शख्स आईएएस ओमप्रकाश सनोड़िया हैं, वे जिला पंचायत के सीईओ हैं। जिस दौर में आम आदमी के लिए नायब तहसीलदार के आफिस में घुसना भी 'खौफ खाने वाली' बात हो। ऐसे में पर्ची भेजकर कलेक्टर से मिलने की 'हिमाकत' करने की बात तो दूर की कौड़ी है? लेकिन कलेक्टर अंशुल गुप्ता खुद जनता तक पहुंच  रहे हैं, इसलिए यह तस्वीर सुकून दे रही है। 'जनता के बीच' जमीन पर उतरकर मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ संवाद कर रहे यह अफसर, जनता में 'भरोसा' और 'उम्मीद' की किरण हैं। दरअसल, अंशुल गुप्ता ने कुछ दिन पहले ही कलेक्टरी संभाली है, उसके बाद से लगातार जमीनी दौरे पर निकल पड़ते हैं। पिछले दिनों नटेरन तहसील क्षेत्र के एक गांव में पहुंचे थे, तस्वीर वहीं की है। वे लगातार जमीनी स्तर पर सघन भ्रमण करके यह समझ रहे हैं कि शासन की योजनाएं धरातल तक पहुंच रही हैं या नहीं? वे सिर्फ भ्रमण नहीं करते, पैदल चलकर ग्रामीणों से संवाद करके उनकी समस्याएं सुनते हैं, संवाद करते हैं। यह तो रही सिर्फ एक तस्वीर की चर्चा। विदिशा में और भी बहुत-कुछ हो रहा है। कुछ और काम 'जरा हटकर' स्टाइल में किये जा रहे हैं। सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों के निराकरण के प्रति वे इतने गंभीर हैं कि अफसरों पर निगरानी शुरू कर दी है। हर शिकायत का सही तरीके से संतुष्टिपूर्वक निराकरण हो, इसके लिए युद्धगति से मॉनिटरिंग कर रहे हैं। हर मंगलवार को जिला मुख्यालय पर होने वाली जनसुनवाई में अधिकांश समय स्वयं उपस्थित रहकर समस्याएं सुनते हैं। अपने धैर्य के साथ संकल्प को पूरा करने के लिए पहचाने जाने वाले कलेक्टर अंशुल गुप्ता जब उज्जैन नगर निगम कमिश्नर रहे तब भी कई राष्ट्रीय अवार्ड जीते। नवाचारी अफसर होने के कारण वे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की टीम का हिस्सा भी रहे हैं। अपनी एकाग्रता और दृढ़ता के लिए पहचाने जाने वाले यह आईएएस, जनभागीदारी के साथ जन-संचालित अभियान चलाने के लिए चर्चा में हैं। विदिशा में एक और मौन क्रांति की पटकथा लिखी जा रही है। कुपोषण को खत्म करने के लिए संचालित पोषण संजीवनी अभियान में जनभागीदारी के माध्यम से कुपोषण को समाप्त करने की ओर बढ़ रहे हैं। विदिशा में जनभागीदारी के साथ अब यह अभियान स्वत: स्फूर्त जन आंदोलन बन गया है। यह अभियान एक राष्ट्रीय मॉडल के रूप में उभर रहा है। कई रिसर्च में यह दावा किया गया है कि कुपोषण केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक समस्या भी है। इस अभियान की शक्ति अंतर-विभागीय सहयोग और जमीनी स्तर पर लोगों की भागीदारी बढ़ाई जा सकती है। विदिशा में स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास, पंचायती राज विभाग और नागरिक समाज समूहों ने एक बहुआयामी रणनीति को लागू करने के लिए निर्बाध समन्वय में काम किया है। जिले के ब्लॉक मुख्यालयों में स्थित पांच एनआरसी को आधुनिक पोषण केंद्रों के रूप में उन्नत किया गया है, जहां चौबीसों घंटे बाल चिकित्सा देखभाल, पोषण निगरानी और व्यक्तिगत उपचार उपलब्ध हैं। इन केंद्रों में भर्ती बच्चों को अब चिकित्सा हस्तक्षेप से लेकर भावनात्मक समर्थन तक, सभी पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए, प्रशासन ने सामुदायिक दान, स्वयं सहायता समूहों के प्रयासों और कॉर्पाेरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) निधि का उपयोग करके स्वच्छता सामग्री, स्टील के बर्तन और स्थानीय स्तर पर प्राप्त पौष्टिक भोजन से युक्त पोषण किट तैयार किया है। विदिशा में अपनाई गई इस रणनीति ने न केवल संसाधन अंतराल को पाटा, बल्कि समुदाय के सदस्यों के बीच एक मजबूत भावनात्मक हिस्सेदारी भी बनाई। कलेक्टर की सोच है कि पोषण केवल भोजन तक सीमित नहीं है, इसलिए इस अभियान के तहत मातृ शिक्षा, उचित स्तनपान प्रथाओं, हाथों की स्वच्छता, आहार विविधता और निरंतर परामर्श पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। मासिक समीक्षा, डिजिटल डैशबोर्ड, एमआईएस ट्रैकिंग और बाल रोग विशेषज्ञों और पोषण विशेषज्ञों द्वारा क्षेत्रीय दौरों ने वास्तविक समय की निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित की जा रही है।

पिछले दिनों विदिशा में जल गंगा संवर्धन अभियान भी मिशन मोड में संचालित हुआ। सीईओ ओमप्रकाश सनोड़िया बताते हैं कि खेत तालाब, डगवेल रिचार्ज, कूप रिचार्ज निर्माण लक्ष्य से अधिक हुआ। यह तब हुआ, जबकि विदिशा की भूमि कृषि के लिए उर्वर है, इस कारण किसान तालाब निर्माण में रुचि नहीं दिखा रहे थे। इसके बाद खुद कलेक्टर अंशुल गुप्ता जनता के बीच पहुंचे और तालाबों से स्वरोजगार की पहल और भूमिगत जल संरक्षण पर लंबी चर्चा की। देखते ही देखते सैकड़ों तालाब खुद गए, आज सब लबालब हैं। आईएएस अंशुल गुप्ता द्वारा विदिशा जिले में चलाया जा रहा 'जमीन, जायजा, जनता  और जनभागीदारी से शासन' का मिशन एक आशा की एक नई किरण बन रहा है। मुझे लगता है जनता से जुड़कर ही सुशासन शब्द को जमीन पर उतारा जा सकता है। 

(लेखक डॉ. दीपक राय भोपाल स्थित पत्रकार हैं, वे 16 वर्षों से पत्रकारिता, संचार और शोध लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं।)