Wednesday, September 4, 2024

स्व. पूनम चंद यादव : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पिता जी को विनम्र नमन

 *संघर्ष से सफलता की कहानी गढ़ गए 'बाबूजी'*

Poonamchandra yadav father of cm mohan yadav


डॉ. दीपक राय, भोपाल, दैनिक मीडिया गैलरी, (04 सितंबर 2024)

धर्म, कर्म, तप और त्याग की प्रतिमूर्ति, मजबूती के आधार स्तंभ और जीवंत कर्म चेतना के प्रतीक, साहस और संघर्ष ही जिनके जीवन का इष्ट रहा। ऐसे थे— बाबूजी स्व. पूनम चंद यादव। 100 वर्ष की उम्र तक जीवंत जीवन जीकर इस दुनिया से विदा ले गए। जाते—जाते जीवन को प्रेरणा देने वाली ऐसा अतीत छोड़ गए, जिसे किताबों में पढ़ाया जा सकता है। युवाओं में प्रेरणा निर्माण के लिए स्व. पूनम चंद यादव का जीवन संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा...

आज एक ऐसे पिता का देवलोक गमन हो गया, जिसने अपने अथक परिश्रम और खून—पसीने से बच्चों का बचपन सींचा। उनमें से एक बच्चा बड़ा होकर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना। जी हां, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पिता श्री पूनम चंद यादव ने मंगलवार को अंतिम सासें लीं। जब वे उज्जैन में आखिरी सांसें ले रहे थे तब उनका होनहार बेटा भोपाल के मुख्यमंत्री कार्यालय में प्रदेश की जनता के हित के लिए कामकाज में लगा हुआ था। करीब साढ़े 8 महीने पहले मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले डॉ. मोहन यादव अपने मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए थे। इसके पीछे उनके पिता बाबूजी पूनम चंद यादव के संघर्षों की लंबी दास्तान थी। हमेशा खुशमिजाजी में जीने वाले पूनम चंद यादव पिछले करीब एक हफ्ते से अस्वस्थ थे। स्व. पूनम चंद यादव अपने पीछे तीन बेटे नंदू यादव, नारायण यादव और डॉ. मोहन यादव के साथ दो बेटियां श्रीमती कलावती यादव एवं शांति देवी को छोड़ गए हैं। स्व. यादव जीवट इंसान रहे और अंतिम समय तक 100 वर्ष की आयु होने पर भी उन्होंने अपना कार्य स्वयं किया। उनकी एक बेटी कलावती यादव नगर निगम में अध्यक्ष हैं। स्व. पूनमचंद यादव रतलाम से आकर उज्जैन में बसे थे, उन्होंने पहले हीरा मिल में मजदूरी की नौकरी की, बाद में खुदका छोटा कामधंधा शुरू किया, चाय भजिए की दुकान खोली। मोहन यादव भी उस दुकान में अपने पिता और चाचा का हाथ बंटाते थे। वो दुकान पर भी बैठते थे और स्कूल भी जाते थे। उन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया। स्व. पूनम चंद यादव की जीवटता ऐसी थी कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी खुद मंडी में उपज बेचने जाते थे। खुदका जीवन भले संघर्षमय रहा हो, लेकिन पूनम चंद यादव ने बच्चों में संस्कार कूट—कूटकर भरे थे। वर्ष 1984 का वाकया है, उज्जैन के माधव साइंस कॉलेज में छात्र संघ का शपथ विधि समारोह हुआ था, इसमें डॉ. मोहन यादव सहसचिव बनाए गए थे। सभी प्रतिनिधियों ने ब्लेजर पहनकर शपथ ली थी, लेकिन मोहन यादव यादव सिर्फ शर्ट पेंट में शपथ लेते दिखाई दिये थे। बाद में यह बात सामने आई थी कि मोहन यादव ने पिता के कहने कॉलेज में लगने वाली विवेकानंद की मूर्ति के लिए पैसे दान कर दिये थे। इस कारण वे ब्लेजर नहीं खरीद पाये थे। दान की ऐसी संस्कृति के जनक पिता का चले जाना मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के जीवन की अब तक की सबसे बड़ी क्षति होगी। हमने कई बार देखा है कि जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भोपाल से अपने पैतृक निवास उज्जैन जाते थे तब अपने पिता से आशीर्वाद स्वरूप कुछ पैसे भी लेते थे। पिछले दिनों पिता दिवस के मौके पर पिता से आशीर्वाद लेने के बाद डॉ. मोहन यादव ने पिता से पैसे मांगे तो पिता ने 500 रुपए के नोटों की गड्डी निकालकर सीएम बेटे के हाथों में थमा दी थी। इस पर सीएम मोहन यादव ने एक नोट रखा था और पूरी गड्डी लौटा दी। हालांकि पिता पूनम चंद यादव ने भी टैक्टर रिपेयरिंग का खर्च मोहन यादव से मांग लिया था, तब पिता—बेटा के बीच खूब हंसी—ठिठौली हुई थी। आज स्व. पूनम चंद यादव जी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी अनगिनत कहानियां हमेशा अमर रहेंगी। आइए, पुण्य आत्मा की शांति और उनके परिवार को यह दर्द सहने की शक्ति प्रदान करने के लिए हम सभी भगवान से प्रार्थना करते हैं।

ओम् शांति, शांति, शांति...

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