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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में विस्तृत जानकारीयुक्त लेख डॉ. दीपक राय |
कुछ देखी, कुछ सुनी
Tuesday, October 14, 2025
शाखा के अनुशासन से खुले सेवा के रास्ते
RSS : जड़ों से वट वृक्ष बनने की यात्रा
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Deepak Rai Article for RSS @ 100 Years |
Tuesday, September 30, 2025
NEP: Mughal 'Great' Mugaalta & false Narratives
एनईपी : मुगल 'महान' मुगालता और झूठे नैरेटिव
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NCERT Change Course for Mugal |
डॉ. दीपक राय, भोपाल, मोबाइल -9424950144
विश्वगुरु की झलक दिख सके। सबसे बड़ा प्रहार इतिहास पर किया गया। पुस्तकों के माध्यम से वह इतिहास पढ़ाया गया जिससे भावी पीढ़ी तक गलत संदेश पहुंचा। करीब 50 वर्षों से हमारे बच्चों को गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा था, यह कितना दुखद है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से सुकूनदायक समाचार मिल रहे हैं।'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020' (NEP) लागू होने के 5 वर्षों में कई बदलाव दिखे हैं। बच्चों को स्कूलों में पढाई जाने वाली एनसीईआरटी की पुस्तकों में शिक्षा तथ्यनिष्ठ, बहुस्तरीय और विवेकशील इतिहास शामिल किया जा रहा है।
एक्ट ईस्ट' : संपर्क और सामरिक रूप से समृद्ध होता भारत
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Modi Govt Poicy for North Eastern State, Mizoram Connect First Time Railway line, Sairong-Bairabi Rail Line |
पूर्वोत्तर सीमांत राज्य से आंखों देखा हाल : मिजोरम की राजधानी का रेल नेटवर्क से जुड़ना
डॉ. दीपक राय, 9424950144
भारत को आज पूर्वोत्तर संपर्क के साथ ही सामरिक तौर पर बड़ी उपलब्धि मिलने जा रही है। मिजोरम राज्य की राजधानी आइजोल के सायरंग स्टेशन से ट्रेनें आज से दौड़ने लगेंगी। पहली बार रेल नेटवर्क से जुड़ा यह राज्य यातायात, संपर्क, अर्थव्यवस्था और पयर्टन के मानचित्र पर तो आएगा ही। साथ ही साथ सुरक्षा सामरिक दृष्टि से यह बेहद महत्वपूर्ण है। यह आलेख मैंने स्वयं के अनुभव के आधार पर लिखा है। मैं पिछले दिनों इस राज्य का भ्रमण करके आया हूं और इस दौरान संपूर्ण रेल लाइन का दौरा भी किया है। आपको बता दूं कि देश के किसी भी हिस्से से मिजोरम पहुंचने का सड़क मार्ग काफी संकरा, लंबा और 'खतरनाक' है। नई दिल्ली से 50 घंटे यानि 2 दिन 2 रात यात्रा करके यहां पहुंचा जाता है। हवाई यात्रा भी बहुत सीमित और काफी महंगी है। वर्ष 2030 तक उत्तर पूर्वी सीमांत 7 राज्यों की की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में यह बड़ा कदम है। बइरबी—साइरंग 51.38 किलोमीटर लंबी रेल लाइन ने 'मिजोरम से अब दिल्ली दूर नहीं' को पुष्ट किया है। अब मिजोरम के लोग भारत की राजधानी नई दिल्ली के साथ सभी राज्यों से रेल मार्ग से जुड़ गए हैं। इस रेल लाइन से जहां आवाजाही बहुत तेज़, सुरक्षित और सस्ती होगी, आंतरिक सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी। चूंकि मिजोरम राज्य की सीमा बांग्लादेश और म्यामांर से सटी हुई है। यह रेल लाइन राष्ट्रीय सुरक्षा की लाइफ लाइन बनेगी। चूंकि मिजोर में 8 से 10 महीने मानसून चलता है, सड़क मार्ग बहुत बाधित रहता है। रेल से अब यहां सफर सुहाना होगा। जैसा कि हम जानते हैं मिज़ोरम लंबे समय से एक अनदेखा पर्यटन रत्न रहा है। अब देश के अन्य हिस्सों से लोग रेल मार्ग से मिजोरम की अनछुए पहाड़, पारंपरिक उत्सव और इको-टूरिज्म का आनंद ले सकते हैं। आइए इस रेल लाइन के बारे में जानते हैं। फरवरी 2011 में भारतीय रेलवे ने इस परियोजना को पूरा करने के लिए वर्ष 2015 तक लक्ष्य रखा था, लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया। 29 नवंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस लाइन की आधारशिला रखी थी। 21 मार्च 2016 को असम बॉर्डर से सटे मिजोरम के बइरबी तक रेल मार्ग को ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया था। अब 13 सितंबर 2025 को यहां से राजधानी एक्सप्रेस सहित तीन यात्री ट्रेनों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरी झंडी दिखाएंगे। उत्तर पूर्व के 7 राज्यों को '7 सिस्टर्स स्टेट इन इंडिया' कहा जाता है। अभी असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश में ट्रेनें चल रही हैं। मिज़ोरम में ट्रेनें आज से दौड़ने लगेंगी। जबकि मणिपुर, मेघालय, नागालैंड और सिक्किम रेल नेटवर्क से बाहर हैं। 'मिजोरम का देश से जुड़ना' सरकारी के 'संकल्प से सिद्धी' का उदाहरण है क्योंकि उत्तर पूर्वी राज्य की सिर्फ 51.30 किमी दूरी की लाइन बिछाने के लिए 8071 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। आमतौर पर मैदानी इलाके में 1 किलोमीटर तक रेले लाइन बिछाने में लगभग 10 से 12 करोड़ का खर्च आता है। लेकिन यह रेल लाइन इतनी चुनौती भरी है कि इसमें लंबी—लंबी टनल और ऊंचे-ऊंचे ब्रिज बनाए गए हैं। अधिकांश रेलमार्ग टनल—पुल से गुजरता है। इस लिहाज बइरबी—सायरंग रेल लाइन के एक किलो मीटर लाइन बिछाने में औसत 157 करोड़ रुपये खर्च हुए। यह लागत हाई स्पीड रेल कॉरिडोर बनाने के बराबर है। यहां रेल पटरी बिछाने का काम जोखिम भरा रहा। पूरी लाइन घने जंगल से होकर गुजरती है जिसमें गहरी खाइयां, खड़ी पहाड़ियां हैं। यहां 70 मीटर से अधिक और 114 मीटर तक की अधिकतम ऊंचाई वाले छह ऊंचे पुल हैं। एक ब्रिज 114 मीटर उंचा है, जो कि दिल्ली के कुतुबमीनार (72 मीटर) से 42 मीटर अधिक उंचा है। कुल लंबाई का 23 प्रतिशत मार्ग पुलों से होकर गुजरता है, 55 बड़े पुल, जबकि छोटे पुलों की संख्या 88 है। सभी सुरंगों में बलास्ट रहित ट्रैक बिछाया गया है। इस रेल लाइन में 45 सुरंगें हैं, जो कुल ट्रैक की 31% हैं। सबसे लंबी सुरंग 1.868 कि.मी. लंबाई वाली है। सुरंगों और पुलों के अलावा, 23.715 किलोमीटर (46%) ट्रैक खुला है। ज़्यादातर हिस्सा गहरी कटाई के ज़रिए तैयार किया गया है। आपको बता दूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक्ट ईस्ट नीति' की शुरुआत की। इसका लक्ष्य पूर्वोत्तर राज्यों को देश की मुख्यधारा से जोड़ना है। मोदी ने कहा था कि पूर्व अर्थात ईस्ट का अर्थ है- एम्पॉवर (सशक्त बनाना), एक्ट (कार्य करना), स्ट्रेंथन (मजबूत बनाना) और ट्रांसफॉर्म (बदलना)। ये शब्द पूर्वोत्तर के प्रति सरकार के दृष्टिकोण का सार बताते हैं। आज से मिजोरम के लोग असम के सिलचर, गुवाहाटी और दिल्ली तक आसानी से पहुंचेंगे। मालगाड़ियों की आवाजाही से व्यापार और लॉजिस्टिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। आइज़ोल के बाज़ारों में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें कम होंगी। “गुवाहाटी से आगे पूर्वोत्तर की खोज” के तहत एक स्पेशल टूरिस्ट ट्रेन यहां तक पहुंच पाएगी। रणनीतिक रूप से अहम इसलिए है क्योंकि पूर्वोत्तर के मिजोरम राज्य की सीमा बांग्लादेश और म्यांमार से जुड़ती है। वहीं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के जरिये चीन, नेपाल, भूटान तक सीमा पहुंचती है। यहां तक रेलवे लाइन बिछने से रणनीतिक सुरक्षा की दृष्टि से सरकार मजबूत होगी।
भरत यादव का दूसरा नाम, नवाचारी काम
जन्मदिवस विशेष : एक आईएएस की अनकही, अनसुनी सुशासन की कहानियां
प्रसंगवश
डॉ. दीपक राय,
डेली मीडिया गैलरी, भोपाल
9424950144
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IAS Bharat Yadav Best Work Doing his Service |
हमने देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अक्सर यह कहते सुना है- 'अफसरों को अपने कैबिन से निकलकर जनता के बीच पहुंचना चाहिए, इससे सुशासन कायम होता है और शासन के प्रति जनता का विश्वास बढ़ता है।' कुछ अफसर ऐसा करते हैं, लेकिन अधिकांश नहीं करते। आज एक ऐसे ही आईएएस अफसर का जन्मदिवस है। नाम है- भरत यादव। वर्ष 2008 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के इस आईएएस अफसर के बारे में, मैं आपको कुछ ऐसी बातें बताने जा रहा हूं- जिसे शायद आपने न पहले सुना होगा, न ही पढ़ा होगा। इससे पहले उनके बारे में कुछ जान लेते हैं। भरत यादव हाशिए पर पड़े समुदायों तक कल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाने के अपने अभिनव दृष्टिकोण के लिए पहचाने जाते हैं। 20 जून 1981 को दतिया जिले में जन्मे भरत यादव चांदी की चम्मच मुंह में लेकर नहीं आए थे। उन्होंने जीवन का हर मुकाम अपनी मेहनत और कठिन परिश्रम के दम पर हासिल किया। बचपन से ही वे पढ़ाई में इतने होशियार थे कि 5वीं कक्षा में ही नवोदय विद्यालय प्रवेश की कठिन परीक्षा पास कर ली थी। बीए (इंग्लिश लिटरेचर), एमए राजनीति शास्त्र पढ़ने के बाद वे रेलवे में टीटीई रहे। पढ़ने की इतनी ललक कि रेलवे की कठिन नौकरी के दौरान समय निकालकर खूब पढ़ते थे। इसी मेहनत के दम पर भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ। पहली पोस्टिंग सहायक कलेक्टर अलीराजपुर मिली। सहायक कलेक्टर होशंगाबाद, एसडीएम मुलताई, सीईओ जिला पंचायत नरसिंहपुर, उपसचिव नगरीय प्रशासन, प्रोजेक्ट डायरेक्टर उदय के पद पर कार्य किया। पहली कलेक्टरी सिवनी में मिली। यहां उन्होंने सुशासन और समाजहित के ऐसे कार्य किये जो इतिहास में दर्ज हो गए। संभवत: वह कार्य देश में कोई अन्य कलेक्टर नहीं कर पाया। सिवनी के बाद बालाघाट, मुरैना, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, जबलपुर, नरसिंहपुर कलेक्टर रहे। उनकी कार्यशैली जनता और शासन को इतनी पसंद आई कि 7 जिलों में कलेक्टर रहे। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई बार सार्वजनिक मंच से भरत यादव के कार्यों की सराहना की। बाद में वे प्रबंध संचालक ऊर्जा विकास निगम रहे, आयुक्त मप्र गृह निर्माण मंडल, आयुक्त नगरीय प्रशासन विभाग, मुख्यमंत्री के सचिव पद का दायित्व भी संभाला। अब एमपीआरडीसी के एमडी के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।
भरत यादव पहली बार सिवनी जिला कलेक्टर बनाए गए। उन्होंने कभी भी अपने उपर 'लालफीताशाही' हावी नहीं होने दिया। उनसे मिलने के लिए कभी किसी को लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा। आफिस का दरवाजा आम आदमी के लिए हमेशा खुले रहता था। वे एक बार एक स्कूल पहुंचे, जो कि दृष्टिहीन बच्चों का था। वहां जाकर देखा तो तमाम अव्यवस्थाएं थीं। प्रबंधन ने आर्थिक समस्या बताई। वर्ष 2015 में कलेक्टर भरत यादव ने सामाजिक भागीदारी से एक एक चैरिटी शो करवाया और डेढ़ करोड़ रुपए जुट गए। इस नवाचार ने दिव्यांग बच्चों का जीवन संवार दिया। भरत यादव ने ऐसा ऐतिहासिक कार्य किया था जो शायद ही देश में कोई कलेक्टर कर पाया होगा! मीडिया की खबर पर संज्ञान लेकर 'सड़क पर घूम रहे मानसिक दिव्यांगों के लिए पुनर्वास' योजना बनाई थी। कईयों को उपचार के लिए ग्वालियर भेजा था। नतीजा यह रहा कि दो मानसिक दिव्यांग अब स्वस्थ हैं और अपने घर में रहकर अच्छा जीवन यापन कर रहे हैं। उस समय सोशल मीडिया वेबसाइट फेसबुक लोगों में लोकप्रिय थी। स्वयं कलेक्टर सक्रिय रहते थे। लोग अपनी समस्याएं लिखकर उन्हें मैंसेजर भेज देते थे, जिस पर वे तत्काल संबंधित अधिकारियों को घटनास्थल पर भेज देते थे, समस्याओं का निराकरण की फोटो भी पोस्ट करवाते थे। इन बातों को 9-10 साल बीत गए, लेकिन सिवनीवासी आज भी उन्हें याद करते हैं। भरत यादव की दूसरी पदस्थापना बालाघाट कलेक्टर के रूप में रही। वहां 151 दिव्यांग जोड़ों की शादी कराने का रिकॉर्ड बनाया था। वे जिले के उन दुर्गम गांवों में दौरा करने पहुंच जाते थे, जहां पर आजादी के बाद कोई अधिकारी नहीं पहुंचा था। वे जबलपुर कलेक्टर बनाए गए। कोविड-19 पैर पसार रहा था। एक ऐसा जिला जो देश के सबसे लंबे नेशनल हाइवे से जुड़ा था। इस दौरान उन्होंने एसपी अमित सिंह के साथ मिलकर सक्रिय लॉकडाउन उपाय और एसओपी अपनाया। बाद में अन्य जिलों में भी जबलपुर मॉडल लागू किया गया। पहली लहर में जबलपुर में जन सहयोग से एक लाख लोगों को राशन बांटने का रिकॉर्ड बनाया। जबलपुर राष्ट्रीय स्तर पर पांचवां और प्रदेश में पहला जिला माना गया था। लोगों ने माना था कि भरत यादव में जनसमर्थन की गजब अपील है, जिस कारण जनता उनसे जुड़ना पसंद करती है। मुरैना जिले में कलेक्टर रहने के दौरान वे स्कूल-कॉलेज जाते और वहां युवाओं को प्रेरित करते थे। उन्होंने आर्मी में जाने की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए लाइब्रेरी और शारीरिक प्रशिक्षण के लिए कई संसाधन उपलब्ध करवाए थे। ग्वालियर में कलेक्टर रहते हुए भी उनके कई कार्य उल्लेखनीय रहे। कोरोना काल में जब कई जिलों के कलेक्टर फोन तक नहीं उठाते थे। तब नरसिंहपुर कलेक्टर रहते हुए भरत यादव ने मिसाल कायम की। स्वयं को खतरे में डालते हुए जिला पंचायत सीईओ केके भार्गव के साथ पीपीई किट पहनकर जिला चिकित्सालय पहुंच गए थे। कोरोना मरीजों का हाल जाना और मरीजों व मेडिकल स्टाफ का मनोबल बढ़ाया था।
आईएएस भरत यादव ने गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मंडल म. प्र. के आयुक्त पद पर रहते हुए रिडेंसीफिकेशन (पुनर्घनत्वीकरण) का नवाचार किया। आज वह पुनर्घनत्वीकरण योजना राज्य के साथ ही देश में बहुत लोकप्रिय है। प्रदेश के सैकड़ों सरकारी कार्यालयों की सूरत बदल गई है, जबकि शासन का एक पैसा भी व्यय नहीं हो रहा। भरत यादव के नवाचारी मस्तिष्क और व्यावहारिक सरलता से प्रभावित होकर तत्कालीन शिवराज सरकार ने उन्हें नगरीय प्रशासन विभाग का आयुक्त बनाया। उनके कार्यकाल में 'स्वच्छ सर्वेक्षण 2023' में मध्यप्रदेश को देश का दूसरा स्वच्छतम प्रदेश का पुरस्कार मिला। इंदौर सातवीं बार देश का सबसे स्वच्छ शहर बना। पीएम स्वनिधि और पीएम आवास योजना योजनाओं में मध्यप्रदेश की रैंकिंग नंबर वन आई। एक बार नगरीय प्रशासन विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की अनुशासनहीनता की शिकायतें आई थीं। किसी अफसर ने उसे नौकरी से निकालने की अनुशंसा कर दी थी। जब यह फाइल आयुक्त भरत यादव के पास पहुंची तो उन्होंने एक संवेदनशील टिप्पणी लिखकर कर्मचारी की नौकरी बचा ली। हालांकि उन्होंने कर्मचारी को अनुशासनहीनता की सजा भी दी और उस कर्मचारी तबादला कर दिया गया था।
यूं तो आईएएस भरत यादव से जुड़ी सैकड़ों कहानियां हैं, लेकिन यहां जगह और समय की सीमाएं हैं। लेखनी को यहीं विराम देता हूं। संवेदनशीलता, सुशासन, नवाचार और सहृदयता वाले व्यक्तित्व आईएएस भरत यादव को जन्म दिवस की हार्दिक बधाईयां एवं शुभकामनाएं। बाबा महाकाल और बाबा कामतानाथ आपकी हर मनोकानाएं पूरी करें...