आज किसी ने तन मन धन झकझौर कर दिया वो इंसान जो मेरे साथ काम कर रहे है उनने मुझसे कहा क्या तेरी कोई सेटिंग है में हंसा क्या बात कही थी मेरा मन भी हिल गया मेने जबाब दिया की नहीं मेरी कोई नहीं है मै तो प्यार ही नहीं किया वे तापाक से बोले अरे भाई प्यार नहीं मै तो सेटिंग की बात कर रहा हु आज प्यार कौन करता है पगले अरे तू भी जमा ले मुघे उनकी बात पर मज़ा आ रहा था पर वो बन्दा जब से नौकरी कर रहा था जब मै पैदा हुआभी नहीं था मेरे भोपाल में आये जादा दिन नहीं हुए है पर मजाल की किसी लड़की का दीदार किया हो
इसके पीछे न जाने क्यों मेरा मन ही नहीं करा मै तो सिर्फ आनंद लेता हूँ
अब भोपाल का बारे मै पढिये यहाँ लड़की का सब कुछ दीखता है पर क्या करू चेहरा नहीं दीखता क्यौकी यहाँ की लड़किया सभी नहीं वे तो मुह मै कपडा बंधकर ही घर से निकलती है मजाल की कोई उनका थोबडा देख सके मै तो बेचारा आनंद लेने वाला पत्रकार हर चीज़ को गौर करके देखना आदत बन गयी है
Tuesday, July 28, 2009
Sunday, July 26, 2009
कहाँ है ऐसे पत्रकार
मेरे सहर में पी साईनाथ आये २५ जुलाई २००९ को भोपाल वासी पत्रकारों को संबोधित किया की हमारा काम समाज का सामने सरकार की सच्चाई लाना है सरकारी इनाम लेना हमारी आवश्यकता नहीं होती साईनाथ विसेसकर ग्रामीण पत्रकारिता का युग पुरुष कहे जाते है
पर आज जो पत्रकार बन रहे है वे ऐसी में बैठकर काम करना पसंद कर रहे है उन्हें अगर सरकारी इन्नाम मिलेगा तो वे अपने को बड़ा समझने लगते है
अगर उन्हें किसी गाँव में या छोटे सहर में रिपोर्टिंग का लिए भेजा जाता है तो वे नहीं जाना पसंद करते
पत्रकारिता का स्वरुप बदलने लगा है पर पत्रकार को साईनाथ से प्रेरणा जरुर लेनी चाहिए
एक बात और साईनाथ को प्रसिद्ध अंतररास्ट्रीय रेमन मेगसेसे पुरुस्कार भी मिल चूका है
Saturday, July 25, 2009
पत्रकारिता का गुड आने लगे है
जब से पेसे की पत्रकारिता करने लगे है
कसम से अपनों और समाज से दूर रहने लेगे है
कसम ऊपर वाले की दिन भर सोने लेगे है
शाम४ बजे से रात २ बजे नौकरी करकर
प्रकृति से लड़ने लगे है
अब हम मन ही मन वो कागज़ की कसती वो बारिस का पानी
गाना गाने लगे है
इस को हमारी टेंसन न समजो यारो
हम सही की पत्रकारिता करने लगे है
रात २ बजे दाल चावल गटकने लगे है
राय जो करते थे नाटक अब सुखा रुखा खाने लगे है
अब हमे विस्वास हो गया यारो हम्मे एक पत्रकार का गुड
अन्ने लगे है
अब तो लोग कहते है भाई राय साहब बदलने लगे है
कसम से अपनों और समाज से दूर रहने लेगे है
कसम ऊपर वाले की दिन भर सोने लेगे है
शाम४ बजे से रात २ बजे नौकरी करकर
प्रकृति से लड़ने लगे है
अब हम मन ही मन वो कागज़ की कसती वो बारिस का पानी
गाना गाने लगे है
इस को हमारी टेंसन न समजो यारो
हम सही की पत्रकारिता करने लगे है
रात २ बजे दाल चावल गटकने लगे है
राय जो करते थे नाटक अब सुखा रुखा खाने लगे है
अब हमे विस्वास हो गया यारो हम्मे एक पत्रकार का गुड
अन्ने लगे है
अब तो लोग कहते है भाई राय साहब बदलने लगे है
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