जब से पेसे की पत्रकारिता करने लगे है
कसम से अपनों और समाज से दूर रहने लेगे है
कसम ऊपर वाले की दिन भर सोने लेगे है
शाम४ बजे से रात २ बजे नौकरी करकर
प्रकृति से लड़ने लगे है
अब हम मन ही मन वो कागज़ की कसती वो बारिस का पानी
गाना गाने लगे है
इस को हमारी टेंसन न समजो यारो
हम सही की पत्रकारिता करने लगे है
रात २ बजे दाल चावल गटकने लगे है
राय जो करते थे नाटक अब सुखा रुखा खाने लगे है
अब हमे विस्वास हो गया यारो हम्मे एक पत्रकार का गुड
अन्ने लगे है
अब तो लोग कहते है भाई राय साहब बदलने लगे है
कसम से अपनों और समाज से दूर रहने लेगे है
कसम ऊपर वाले की दिन भर सोने लेगे है
शाम४ बजे से रात २ बजे नौकरी करकर
प्रकृति से लड़ने लगे है
अब हम मन ही मन वो कागज़ की कसती वो बारिस का पानी
गाना गाने लगे है
इस को हमारी टेंसन न समजो यारो
हम सही की पत्रकारिता करने लगे है
रात २ बजे दाल चावल गटकने लगे है
राय जो करते थे नाटक अब सुखा रुखा खाने लगे है
अब हमे विस्वास हो गया यारो हम्मे एक पत्रकार का गुड
अन्ने लगे है
अब तो लोग कहते है भाई राय साहब बदलने लगे है
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