Tuesday, October 14, 2025

शाखा के अनुशासन से खुले सेवा के रास्ते


 राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में​ विस्तृत जानकारीयुक्त लेख डॉ. दीपक राय


RSS का शताब्दी वर्ष : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में बहुत कुछ जानना जरूरी है
प्रसंगवश
डॉ. दीपक राय, भोपाल
राष्ट्र साधना के लिए राष्ट्र प्रथम के लक्ष्य के साथ अपना सफर प्रारंभ करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। 100 साल का यह सफर सुगम नहीं रहा। संघ के हर स्वयंसेवक ने अनुशासन के रास्ते इन 100 सालों में, नि:स्वार्थ अपने खाते में कई उपलब्धियां हासिल की हैं। संघ के सफर का सबसे बड़ा पड़ाव मैं 'सेवा' को मानता हूं। यह बात तथ्यों के साथ जानना जरूरी है।वर्ष 1925 की विजयादशमी के दिन जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी, तब उन्होंने कहा था कि राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए अपना जीवन-सर्वस्व आत्मीयतापूर्वक अर्पित करने को तैयार नेता ही स्वयंसेवक हैं। महात्मा गांधी ने कई अवसरों पर संघ के अनुशासन और राष्ट्र सेवा की सरहाना की थी। वर्ष 1934 में गांधीजी ने वर्धा में आरएसएस के एक शिविर का दौरा भी किया था जहां उन्होंने संघ में  समरसता, अनुशासन, अस्पृश्यता के पूर्ण अभाव, उच्च सादगी की प्रशंसा की थी। 16 सितंबर 1947 को गांधीजी ने दिल्ली में आरएसएस की एक सभा को संबोधित करते हुए आरएसएस की सेवा एवं बलिदान भावना को सराहा था। संघ के शताब्दी वर्ष समारोह में 1 अक्टूबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई यह बात— 'खुद दुख उठाकर दूसरों के दुख हरना। ये स्वयंसेवक की पहचान है। संघ देख के उन क्षेत्रों में भी कार्य करता रहा है जो दुर्गम हैं, जहां पहुंचना सबसे कठिन है।' बहुत महत्वपूर्ण है। संघ की 100 वर्षों की इस गौरवमयी यात्रा की स्मृति में भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के भी जारी किए हैं। 27 सितंबर 1925 को जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी, तब शायद ही किसी ने ऐसा सोचा होगा कि आगामी सौ वर्षों में यह संगठन इतना विशाल और प्रभावशाली बन जाएगा। जिस तरह विशाल नदियों के किनारे मानव सभ्यताएं पनपती हैं, उसी तरह संघ के किनारे भी सैकड़ों जीवन पुष्पित-पल्लवित हुए हैं। शिक्षा, कृषि, समाज कल्याण, आदिवासी कल्याण, महिला सशक्तिकरण, समाज जीवन के ऐसे कई क्षेत्रों में संघ निरंतर कार्य करता रहा है। विविध क्षेत्र में काम करने वाले हर संगठन का उद्देश्य एक ही है, भाव एक ही है— राष्ट्र प्रथम। संघ का कार्य लगातार समाज के समर्थन से ही आगे बढ़ते रहा है। संघ-कार्य सामान्यजन की भावनाओं के अनुरूप होने के कारण शनैः शनैः इस कार्य की स्वीकार्यता समाज में बढ़ती चली गई। राष्ट्र-कार्य हेतु समाज की बहनों की भागीदारी के लिए राष्ट्र सेविका समिति की भूमिका इस यात्रा में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। संघ जब से अस्तित्व में आया है तब से संघ के लिए देश की प्राथमिकता ही उसकी अपनी प्राथमिकता रही। आज़ादी की लड़ाई के समय डॉक्टर हेडगेवार जी समेत अनेक कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया, डॉक्टर साहब कई बार जेल तक गए। आजादी की लड़ाई में संघ ने कितने ही स्वतन्त्रता सेनानियों को संघ संरक्षण दिया। हिंसा से प्रभावित लोगों को सुरक्षा, चिकित्सा उपलब्ध कराई, विस्थापित लोगों का पुनर्वास कराया। विभाजन से पहले भी आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गुरुजी एम.एस. गोलवलकर और संघ के कई वरिष्ठ नेताओं ने पंजाब के विभिन्न हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया था और उन्होंने वहाँ के लोगों को आत्मरक्षा और राहत कार्यों के लिए संगठित किया था। तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं ने भी अपने परिवारों और समुदाय की रक्षा के लिए संघ की मदद ली थी।  द ट्रिब्यून अख़बार ने अपनी एक रिपोर्ट में आरएसएस को “The sword arm of Punjab” कहा था। 1984 में जब सिख विरोधी दंगे के दौरान स्वयंसेवक सिखों की रक्षा और राहत कार्यों के लिए सबसे आगे रहे। लेखक खुशवंत सिंह ने कहा है कि  इंदिरा गांधी की हत्या के बाद में हिंदू-सिख एकता बनाए रखने में आरएसएस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मार्च 1947 में, मुस्लिम लीग द्वारा उकसाई गई भीड़ हरमंदिर साहिब की ओर बढ़ी, तो तलवारों और लाठियों से लैस आरएसएस के स्वयंसेवकों ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। कश्मीर से गोवा और दादरा नगर हवेली तक, संघ ने भारत की अखंडता को बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाई है। आरएसएस स्वयंसेवकों ने 1947-48 के युद्ध के दौरान सेना की सहायता भी की थी। 1954 में स्वयंसेवकों ने दादरा और नगर हवेली को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराने में अग्रणी भूमिका निभाई। गोवा की आज़ादी के लिए आरएसएस ने भूमिगत स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया था। पुर्तगाली सैनिकों की गोलीबारी में कई स्वयंसेवकों ने अपने प्राण न्योछावर भी किए। उनका बलिदान गोवा के भारत-विलय में निर्णायक साबित हुआ। शताब्दी वर्ष में आरएसएस पंच-परिवर्तन के माध्यम से स्वदेशी, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और परिवार प्रबोधन का संदेश जन-जन तक पहुंचाने का पुण्य कार्य कर रहा है। निरंतर राष्ट्र साधना में लगे संघ के खिलाफ साजिशें भी हुईं, संघ को कुचलने का प्रयास भी हुआ। ऋषितुल्य परम पूज्य गुरु जी को झूठे केस में फंसाया गया। लेकिन संघ कभी नहीं डिगा। प्रारंभ से संघ राष्ट्रभक्ति और सेवा का पर्याय रहा है। विभाजन की पीड़ा में जब लाखों परिवार बेघर थे तब स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों की सेवा की। संघ की शाखाएं व्यक्ति निर्माण की नर्सरी हैं, जहां अनुशासन, नेतृत्व और कर्तव्यनिष्ठा सिखाई जाती है। हमने देखा है कि देश में प्राकृतिक आपदा हो या कोई संकट, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्य करते दिख जाते हैं। ऐसे स्वयंसेवकों की तपस्या और समर्पण ने इसे विश्व का सबसे बड़ा गैर लाभकारी संगठन बनाया है। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण जैसे राष्ट्रीय संकल्पों में भी संघ के कार्यकर्ताओं का सक्रिय योगदान भूला नहीं जा सकता। कोविड-19 महामारी के दौरान भी संघ और उसके स्वयंसेवकों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए मई 2021 में लगभग 300 स्वयंसेवकों ने कोलार में लंबे समय से बंद पड़े एक अस्पताल को मात्र दो सप्ताह में फिर से शुरू कर दिया।
वर्ष 1952 में स्थापित, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम, आज देश का सबसे बड़ा आदिवासी कल्याण संगठन है। वर्तमान में यह संगठन देश के 323 ज़िलों की लगभग 52,000 बस्तियों और गाँवों में 20,000 से अधिक परियोजनाएँ चला रहा है। इन परियोजनाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कौशल विकास और सांस्कृतिक पुनर्जागरण जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। आज भी प्राकृतिक आपदा में हर जगह स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक रहते हैं। एक समय में जहां सरकारें नहीं पहुंच पाती थीं वहां संघ पहुंच जाता। अलगाववाद और उग्रवाद झेल रहे पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों में आरएसएस ने 1946 में गुवाहाटी में पहली शाखा स्थापित की।आरएसएस दशकों से आदिवासी परंपराओं, आदिवासी रीति-रिवाज, आदिवासी मूल्यों को सहेजने-संवारने का अपना कर्तव्य निभा रहा है। सेवा भारती, विद्या भारती, एकल विद्यालय, वनवासी कल्याण आश्रम, आदिवासी समाज के सशक्तिकरण के मॉडल हैं। संघ की हर महान विभूति ने, हर सर-संघचालक ने भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी समरसता के लिए समाज के सामने एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान का स्पष्ट लक्ष्य रखा है। आज संघ के समक्ष अलग चुनौतियां हैं। दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता, हमारी एकता को तोड़ने की साजिशें, डेमोग्राफी में बदलाव के षड़यंत्र जैसे मुद्दों पर संघ कार्य कर रहा है। यह गर्व की बात है कि स्वदेशी भावना के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस रोडमैप भी बना लिया है। वर्ष 2026 में संघ के शताब्दी वर्ष के पूर्ण होने पर हर भारतीय राष्ट्रयज्ञ में अपनी भूमिका निभाएगा और भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने में योगदान देगा। साल 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य पूरा करने में भी संघ के कार्यकर्ता अपना बहुमूल्य योगदान देंगे, स्वयंसेवक देश की ऊर्जा बढ़ाएंगे, देश को प्रेरित करेंगे। अपने इन संकल्पों को लेकर संघ अब अगली शताब्दी यात्रा शुरू करने केे लिए तैयार दिख रहा है।

RSS : जड़ों से वट वृक्ष बनने की यात्रा


Deepak Rai Article for RSS @ 100 Years


*राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के 100 वर्ष : संगठन को शक्ति और ऊर्जा देने वाले व्यक्तित्व*
प्रसंगवश
डॉ. दीपक राय, भोपाल।
इस विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) 100 वर्ष का हो रहा है। इन 100 साल की यात्राओं को तभी समझा जा सकता है, जबकि इसकी जड़ों की ओर गहनता के साथ देखा जाए। हमें यह पता है कि कोई भी पेड़ अपनी जड़ों  की दम पर ही मजबूत बनता है। संघ रूपी पेड़ को वटवृक्ष रूपी मजबूती प्रदान करने के लिए यूं तो हर स्वयंसेवक का श्रेय है, लेकिन इसकी जड़ों को सींचने में कुछ प्रमुख महानुभावों ने मुख्य भूमिका निभाई है। वर्ष 1925 की विजयादशमी भारतवर्ष के लिए स्वर्ण अक्षरों में तब दर्ज हुई जबकि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी, इसी दिन संघ की स्थापना हुई। इन 100 वर्षों में संघ ने न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उसके नेतृत्वकर्ताओं ने संगठन को डिगने नहीं दिया, यह अपने 'राष्ट्रप्रथम' के लक्ष्यों के साथ निरंतर हरा—भरा होते रहा। आरएसएस को अब तक 6 सरसंघचालकों का नेतृत्व प्राप्त हुआ है। आपने, अलग—अलग परिस्थितियों, अलग-अलग कालखंड में संगठन को नई दिशा, नई दशा और ऊर्जा दी।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार: महाराष्ट्र के नागपुर में 1 अप्रैल 1889 को जन्मे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार संघ के संस्थापक और प्रथम सरसंघचालक थे। उनका  कार्यकाल 1925-1940 के बची रहा। उनकी सोच थी कि भारत की गुलामी का कारण असंगठित हिंदू समाज है। यही कारण है कि उन्होंने युवावस्था में ही क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया। उनके विचारों के बाद संघ की नींव रखी गई। डॉ. हेडगेवार ने 'शाखा' के माध्यम से अनुशासन, संगठन और राष्ट्रभक्ति का बीज बोया। संघ का बीज अंकुरित होकर एक पौधे का रूप ले रहा था, तभी 21 जून 1940 को वे दुनिया छोड़कर चले गए।
माधव सदाशिव गोलवलकर श्रीगुरुजी : माधव सदाशिव गोलवलकर श्रीगुरुजी संघ के दूसरे सरसंघचालक रहे। 19 फरवरी 1906 को जन्मे श्रीगुरुजी का कार्यकाल सबसे लंबा 1940-1973 (33 वर्ष) तक रहा। 1947 के विभाजन में लाखों शरणार्थियों की सेवा, 1948 में गांधीजी हत्या के बाद लगे प्रतिबंध का सामना के बीच उन्होंने संघ को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया। सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा उनके नेतृत्व में ही सामने आई।
बाला साहेब देवरस : 11 दिसंबर 1915 को जन्मे बाला साहेब का कार्यकाल  1973-1994 तक रहा। संघ को समाज के अधिक निकट कैसे लाया जाये? इस कार्ययोजना को उन्होंने परिणाम तक पहुंचाया। 'संघ को सेवाकार्यों' से जोड़ने की पहल उनके कार्यकाल में ही प्रारंभ हुई। देवरस साहब का स्पष्ट मानना था कि संघ का कार्य केवल एक वर्ग का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज का है। वनवासी, दलित और वंचित समाज को संघ की धारा से जोड़ने का अभियान उनके नेतृत्व में ही धार पकड़ पाया। 1975-77 के आपातकाल में संघ के कार्यकर्ता लोकतंत्र की रक्षा जेल गए और आंदोलन किए।
प्रो. राजेंद्र सिंह रज्जू भैया : 29 जनवरी 1922 को रज्जू भैया का जन्म हुआ। उनका कार्यकाल वर्ष 1994-2000 तक रहा। वे थे तो भौतिकी के प्राध्यापक, लेकिन विद्वता, सौम्यता और आत्मीयता उनकी पहचान थी। वे संवादप्रिय कार्यशैली के साथ कार्य करते थे। गहरी बातों को सरल शब्दों में समझाने की क्षमता रखते थे। जब वे सरसंघचालक बने तो कार्यकर्ताओं के बीच परिवार जैसा भाव जगाया। जो भी संघ कार्यकर्ता उनके कार्यकाल में रहा, वह अक्सर स्मृतियां साझा करते देखा जाता है।
कुप्पाहल्ली सीतारामैया सुदर्शन : आप संघ के पांचवें सरसंघचालक (2000-2009) रहे। 18 जून 1931 को रायपुर में जन्मे सुदर्शन जी तकनीकों पृष्ठभूमि वाले इंजीनियर थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक को आधुनिक दृष्टिकोण अपनाने की विशेष पहल की। स्वदेशी, विज्ञान और अध्यात्म को मिलाकर उन्होंने संघ को नई दिशा प्रदान की। 'जब हम अपनी संस्कृति, स्वावलंबन और स्वदेशी पर टिके रहेंगे तभी भारत की प्रगति तभी संभव है' ऐसे विचारों वाले सुदर्शन जी का 15 सितंबर 2012 को उनका निधन हो गया।
डॉ. मोहन भागवत : डॉ. मोहनराव मधुकर राव भागवत 2009 से वर्तमान तक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं। उनका जन्म 11 सितंबर 1950 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ। उनके पिता मधुकर राव भागवत गुजरात के प्रांत प्रचारक थे और माता मालती जी स्वयं संघकार्य के प्रति समर्पित थीं। इसलिए बाल्यकाल से ही उनमें संघ के बीज पड़ गए। नागपुर से पशु चिकित्सा विज्ञान (B.V.Sc. & A.H.) की पढ़ाई करने वाले डॉ. भागवत ने अपना चमचमाता पेशेवर भविष्य को त्यागकर 'राष्ट्र प्रथम' को चुना। वे 1977 में पूर्णकालिक प्रचारक बने और 1975 की आपातकालीन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी नहीं डिगे। वर्ष 1991 में उन्हें संघ का अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख बनाया गया। इस दौरान भागवत ने संघ की कार्यपद्धति और विचारधारा को देशभर में नई ऊर्जा के साथ पहुंचाया। 21 मार्च 2009 को वे संघ के पांचवे सरसंघचालक बने। वे इस पद पर आसीन होने वाले सबसे युवा सरसंघचालक हैं। संवाद के साथ समन्वय की रणनीति के साथ आधुनिक समाज में संघ को प्रासंगिक और सर्वग्राही बनाने का उनका प्रयास दिखाई दे रहा है। उन्होंने सामाजिक समरता की बेल को आगे बढ़ाया और जाति, पंथ और भाषा की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर 'हम सब हिंदू है' के संकल्प को बलवान किया। संघ को परंपरावादी तरीके से आगे बढ़ाते हुए तकनीक, पर्यावरण, महिला सहभागिता, शिक्षा और ग्राम विकास, स्वदेशी जैसे समकालीन विषयों को संघ का हिस्सा बनाया।
करोड़ों स्वयंसेवकों के साथ आज अगर संघ इस ऊँचाई पर पहुंचा है तो वह सभी छह सरसंघचालकों की दूरदृष्टि और आजीवन तपस्या का परिणाम है। डॉ. हेडगेवार जी ने बीज बोया, श्रीगुरुजी ने वटवृक्ष बनाया, बालासाहेब देवरस ने उसे समाज से जोड़ा, रज्जू भैया ने आत्मीयता दी, सुदर्शन ने उसे आधुनिक विचारों का जोड़ा और वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने उसे विश्व पटल पर आत्मविश्वास, संवाद और व्यापक स्वीकार्यता के साथ स्थापित किया।
इसी का परिणाम है कि वर्ष 1925 की स्थापना तारीख से आत तक संघ राष्ट्रभक्ति और संगठनशीलता के ध्येय के साथ एक सशक्त, स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर राष्ट्र का निर्माण करने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है।

Tuesday, September 30, 2025

Modi Ji 75th Birthday Special Page and Article


 

Modi Ji 75th Birthday Special Page and Article

NEP: Mughal 'Great' Mugaalta & false Narratives


Dr. Deepak Rai, Bhopal, Mobile -9424950144
India's education system has always been rich, but there came a time when nefarious attempts were made to change the country's history. The first attack was made on the Indian education system. The real termite is Macaulay's education system, in which devotion to Englishism, reference books, quotes, all belong to the cunning British. Macaulay's education policy has caused as much damage to India as perhaps no other policy could have done. We became Indians by blood and colour, but remained British by interest, thoughts, morality and intellect. The British left the country, but the blood of Britishness continued to run inside many Indians. Even in independent India, no efforts were seen to bring about concrete changes in the education system, so that a glimpse of Vishwaguru could be seen. The biggest attack was made on history. That history was taught through books, which gave a wrong message to the future generation. It is very sad that for the last 50 years our children were being taught wrong history. However, for the last few days, some comforting news has been received. Many changes have been seen in the 5 years since the implementation of 'National Education Policy 2020' (NEP). Factual, multi-layered and rational history is being included in the NCERT books taught to children in schools.
25 books have been banned in Jammu and Kashmir which were spreading false narratives, glorifying terrorism and misleading the youth. Books of authors like Maulana Maududi, Victoria Schofield, David Devdas, Arundhati Roy, AG Noorani have been banned. The investigation by the Home Department has revealed that history was being distorted and taught in these books. NCERT has shown the most activism in this matter. Chapters on great warriors have been added to the syllabus. By including patriots like Field Marshal Sam Manekshaw, Brigadier Mohammad Usman and Major Somnath Sharma in the books, students are being introduced to the inspiring history of courage, duty and sacrifice. NCERT has changed the syllabus of class 5th, 6th, 7th and 8th on a large scale. Some books have already come in the market. The cultural and glorious history of Madhya Pradesh is also a part of it. A few years ago, NCERT books were giving wrong information about history to children. In chapter 4 of the history book of class VII, from page number 37 to 48, 12 pages were devoted to the praise of the Mughal Empire. The period of 16th and 17th century was shown. The tenure of Jahangir to Bahadur Shah Zafar was mentioned. In this, the coins of the Mughal period, the system of governance, architecture, religion, culture etc. were mentioned. In chapter 8, from page number 94 to page number 104, the politics of the 18th century and the Mughal Empire were described in detail. In the old syllabus, Akbar was written as 'Akbar the Great'. How can anyone call Akbar 'great' knowing the massacre of about 30,000 Rajputs by Akbar in Chittorgarh Vijay (1568) and the harsh decisions taken by him as part of his policy of power and expansion. Now the word 'great' has been removed from the new syllabus. Reformist efforts like Navratna Sabha were seen during Akbar's reign. The innovations of Todarmal, Mansingh, Tansen and Birbal, who were included in Akbar's Navratna, the revenue system of the Mughal period, Todarmal's contribution in the Mansafdari system come to the fore. Din-e-Ilahi is called liberal, while the truth is that Islamic scholars themselves started it to get themselves declared as Nabi, Khalifa, Paigambar. Even though there is a discussion of some administrative reforms and Navratnas, he was definitely not 'great'. Now in the year 2025, NCERT has made many important amendments related to the Mughal period in the new book of Social Science (History) of class 8 “Exploring Society: India and Beyond”. These amendments are presenting historical events from a more real, factual, and balanced point of view. Many other topics including weather, climate, geographical changes, Indian Constitution, market review, business, etc. have been covered in detail by removing the Mughal Empire. In earlier books, Babur was being taught as the 'founder of the Mughal dynasty' and an 'intellectual'. Now he has been presented as a 'cruel invader' and 'ruthless conqueror'. Religious and cultural destruction, destruction of temples and looting during the invasion of India have been described. Earlier Aurangzeb was taught as a "harsh but administratively successful" emperor. In the new syllabus, he has been portrayed as a religiously intolerant and oppressive ruler. It has also been mentioned that the reinstatement of Jaziya tax, the execution of Guru Tegh Bahadur, the destruction of many Hindu temples and gurudwaras, etc. have been specially highlighted. The book also states that political rebellion and religious discontent increased rapidly during his reign. A new section has been added to the Class 8 book: "Note on Some Darker Periods in History". It says, "It is important to know the dark sides of history, but it is unfair to blame any community or class of today for them." This note explains the cruel side of history to the students and gives the message of maintaining tolerance and unity in today's society. If we look at the words used in the previous syllabus and the current revised words, Akbar the Great, Akbar: a mixture of tolerance and cruelty, Aurangzeb – religious disciplinarian Aurangzeb – intolerant and fanatic ruler, Babur – founder Babur – aggressive invader. In the new syllabus, instead of describing the administration of the Mughal period as only centralized and efficient, it has now been told that power was also used many times to suppress political opposition, spread cultural dominance and religious fanaticism. Actually, now the time has come to give factual and unbiased knowledge of history to the students. What never happened before, is now seen happening, this is a good thing. But the change should not stop here. There is a lot that is yet to change. NCERT has received feedback regarding the content of the books prepared under the new education policy, an expert committee has been formed to investigate it. After its report, extensive changes can be seen in the curriculum. These changes should not be limited to this. Historians have their own role, but the western view is embedded in the teaching of all subjects. There is a lack of self, Indian consciousness. The institutions and academies preparing the curriculum in the states should also prepare such a reference, which can stop false narratives and make the Indian education system the main objective.
(The author is a Bhopal-based journalist, he has been active in journalism and writing work for the last 16 years.)

एनईपी : मुगल 'महान' मुगालता और झूठे नैरेटिव

NCERT Change Course for Mugal

डॉ. दीपक राय, भोपाल, मोबाइल -9424950144

भारत की शिक्षा प्रणाली तो हमेशा से ही समृद्ध रही है, लेकिन कुछ समय ऐसा आया जिसमें देश के इतिहास को बदलने का कुत्सित प्रयास किये गए। इसमें सबसे पहला प्रहार भारतीय शिक्षा प्रणाली पर किया गया। असली दीमक मैकाले की शिक्षा पद्धति है, जिसमें अंग्रेजियत के प्रति भक्तिभाव, सन्दर्भ ग्रन्थ, उद्धरण सभी धूर्त अंग्रेजों के ही हैं। 
मैकाले की शिक्षा नीति ने जितना नुकसान भारत का किया है, शायद ही किसी और ही किसी ने किया होगा। रक्त और रंग से भारतीय हो गए, लेकिन रुचि, विचारों, नैतिकता और बुद्धि से अंग्रेज रहे। अंग्रेज देश छोड़कर तो चले गए, लेकिन कई भारतीयों के अंदर अंग्रेजियत का खून दौड़ते रहा। आजाद भारत में भी शिक्षा व्यवस्था में ठोस बदलाव के प्रयास नहीं दिखे, जिससे
विश्वगुरु की झलक दिख सके। सबसे बड़ा प्रहार इतिहास पर किया गया। पुस्तकों के माध्यम से वह इतिहास पढ़ाया गया जिससे भावी पीढ़ी तक गलत संदेश पहुंचा। करीब 50 वर्षों से हमारे बच्चों को गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा था, यह कितना दुखद है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से सुकूनदायक समाचार मिल रहे हैं।'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020' (NEP) लागू होने ​के 5 वर्षों में कई बदलाव दिखे हैं। बच्चों को स्कूलों में पढाई जाने वाली एनसीईआरटी की पुस्तकों में शिक्षा तथ्यनिष्ठ, बहुस्तरीय और विवेकशील इतिहास शामिल किया जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर में 25 उन किताबों को प्रतिबंधित किया गया है जिनमें झूठा नैरेटिव फैलाने, आतंकवाद को महिमामंडित करने और युवाओं को गुमराह करने का काम किया जा रहा था। मौलाना मौदूदी, विक्टोरिया स्कोफील्ड, डेविड देवदास,अरुंधति रॉय, एजी नूरानी जैसे लेखकों की किताबों को प्रतिबंधित किया गया है। गृह विभाग की जांच में सामने आया है कि इन किताबों में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पढ़ाया जा रहा था।
इस मामले में सबसे ज्यादा सक्रियता एनसीईआरटी ने दिखाई है। महान योद्धाओं के अध्याय पाठ्यक्रम में जोड़े गए हैं। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान और मेजर सोमनाथ शर्मा जैसे देशभक्तों को पुस्तकों में शामिल करके विद्यार्थियों को साहस, कर्तव्य और बलिदान की प्रेरणादायक इतिहास से परिचित कराया जा रहा है। एनसीईआरटी ने कक्षा पांचवी, छठवीं, सातवीं और आठवीं का सिलेबस बड़े स्तर पर बदला है। कुछ किताबें तो बाजार में भी आ चुकी हैं। मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक और गौरवशाली इतिहास भी इसका हिस्सा है। 
कुछ वर्ष पहले ते एनसीईआरटी की किताबें बच्चों को इतिहास की गलत जानकारी दे रही थीं। कक्षा सातवीं की इतिहास किताब के चैप्टर 4 में पेज नंबर 37 से 48 तक 12 पेज में केवल मुगल साम्राज्य का गुणगान था। 16 वीं एवं 17 वीं शताब्दी का दौर दिखाया गया था। जहांगीर से लेकर बहादुर शाह जफर तक के कार्यकाल का उल्लेख किया गया। इसमें मुगल काल की मुद्राएं, वहां की शासन व्यवस्था, वास्तु कला, धर्म, संस्कृति आदि का उल्लेख किया गया था। चैप्टर 8 में 18 वीं शताब्दी की राजनीति एवं मुगल साम्राज्य के बारे में पेज नंबर 94 से लेकर पेज नंबर 104 तक विस्तार से वर्णन किया गया था। 
पुराने पाठ्यक्रम में अकबर को 'अकबर महान' लिखा गया। चित्तौड़गढ़ विजय (1568) में अकबर द्वारा लगभग 30,000 राजपूतों के नरसंहार, सत्ता और विस्तार की नीति के तहत कठोर निर्णयों को जानकार कोई अकबर को 'महान' कैसे कह सकता है। अब नए पाठ्यक्रम में 'महान' शब्द हटा दिया गया है। नवरत्न सभा जैसे सुधारवादी प्रयास अकबर के शासनकाल में दिखे थे। अकबर के नवरत्न में शामिल टोडरमल, मानसिंह, तानसेन और बीरबल के नवाचार, मुगल काल की राजस्व व्यवस्था, मनसफदारी व्यवस्था में टोडरमल का योगदान सामने आता है। दीन-ए-इलाही को उदारता कहा जाता है, जबकि सच यह है कि इस्लामिक विद्वानों ने ही स्वयं को नबी, खलीफा, पैगम्बर घोषित करवाने के लिए इसे चलाया था। भले ही कुछ प्रशासनिक सुधारों और नवरत्नों की चर्चा हो, लेकिन वे 'महान' तो कतई नहीं थे।
अब वर्ष 2025 में एनसीईआरटी ने कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान (इतिहास) की नई पुस्तक “Exploring Society: India and Beyond” में मुग़ल काल से संबंधित कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं। ये संशोधन ऐतिहासिक घटनाओं को अधिक वास्तविक, तथ्यात्मक, और संतुलित दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं। मुगल साम्राज्य को हटाकर मौसम, जलवायु, भौगोलिक परिवर्तन, भारतीय संविधान, बाजार की समीक्षा, व्यवसाय सहित कई अन्य विषयों को विस्तृत रूप में शामिल किया गया है।
पहले की पुस्तकों में बाबर को 'मुग़ल वंश का संस्थापक' और 'बुद्धिजीवी' पढ़ाया जा रहा था। अब उसे 'क्रूर आक्रमणकारी' और 'निर्दयी विजेता' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। भारत पर हमले के दौरान धार्मिक और सांस्कृतिक विध्वंस, मंदिरों के ध्वंस और लूटपाट का वर्णन दिया गया है। पहले औरंगज़ेब को एक “कठोर लेकिन प्रशासनिक रूप से सफल” सम्राट के तौर पर पढ़ाया जाता था। नए पाठ्यक्रम में उसका चित्रण धार्मिक असहिष्णु और दमनकारी शासक के रूप में किया गया है। इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि जज़िया कर की पुनःस्थापना, गुरु तेग बहादुर का वध, कई हिंदू मंदिरों और गुरुद्वारों का विध्वंस आदि पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि उसके शासनकाल में राजनीतिक विद्रोह और धार्मिक असंतोष तेज़ी से बढ़े।
कक्षा 8 की पुस्तक में एक नया अनुभाग जोड़ा गया है: "Note on Some Darker Periods in History"। इसमें लिखा है कि “इतिहास के अंधेरे पक्षों को जानना आवश्यक है, परंतु उनके लिए आज के किसी समुदाय या वर्ग को दोष देना अनुचित है।” यह नोट छात्रों को इतिहास के क्रूर पक्ष को समझाते हुए आज के समाज में सहिष्णुता और एकता बनाए रखने का संदेश देता है। पूर्व के पाठ्यक्रम में प्रयुक्त शब्द और वर्तमान संशोधित शब्दों को देखें तो अकबर महान, अकबर: सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण, औरंगज़ेब– धार्मिक अनुशासक औरंगज़ेब–असहिष्णु और कट्टर शासक, बाबर–संस्थापक बाबर–आक्रामक आक्रमणकारी किया गया है। नए पाठ्यक्रम में मुग़ल काल के प्रशासन को केवल केंद्रीकृत और कुशल न बताकर, अब यह बताया गया है कि सत्ता का उपयोग कई बार राजनीतिक विरोध को दबाने, सांस्कृतिक प्रभुत्व और धार्मिक कट्टरता फैलाने के लिए भी किया गया था। दरअसल, अब विद्यार्थियों को इतिहास का तथ्यपरक और निष्पक्ष ज्ञान देने का वक्त आ गया है। जो पहले कभी नहीं हुआ, वह अब होते दिख रहा है, यह अच्छी बात है। लेकिन बदलाव को यहीं नहीं रुकना चाहिए। बहुत कुछ है जिसे बदलना अभी बाकि है। एनसीईआरटी को नई शिक्षा नीति के तहत तैयार की गई किताबों की सामग्री को लेकर प्रतिक्रियाएं मिली हैं, इसकी जांच के लिए विशेषज्ञ समिति बनाई गई है। इसकी रिपोर्ट के बाद पाठ्यक्रम में व्यापक बदलाव दिख सकते हैं। यह बदलाव यहीं तक सीमित नहीं होने चाहिए। इतिहासकारों की अपनी भूमिका है, पर समस्त विषयों के पठन-पाठन में ही पश्चिमी दृष्टि समाई है। स्व का, भारतीय चेतना का अभाव है। राज्यों में पाठ्यक्रम तैयार करने वाली संस्थाएं, अकादमियों को भी ऐसा संदर्भ तैयार करना चाहिए, जिससे झूठे नैरेटिव रोके जा सकें और भारतीय शिक्षा प्रणाली मूल उद्देश्य हो।
(लेखक भोपाल स्थित पत्रकार हैं, वे पिछले 16 वर्षों से पत्रकारिता एवं लेखन कार्य में सक्रिय हैं।)

एक्ट ईस्ट' : संपर्क और सामरिक रूप से समृद्ध होता भारत

 




Modi Govt Poicy for North Eastern State, Mizoram Connect First Time Railway line, Sairong-Bairabi Rail Line


पूर्वोत्तर सीमांत राज्य से आंखों देखा हाल :  मिजोरम की राजधानी का रेल नेटवर्क से जुड़ना

डॉ. दीपक राय, 9424950144

भारत को आज पूर्वोत्तर संपर्क के साथ ही सामरिक तौर पर बड़ी उपलब्धि मिलने जा रही है। मिजोरम राज्य की राजधानी आइजोल के सायरंग स्टेशन से ट्रेनें आज से दौड़ने लगेंगी। पहली बार रेल नेटवर्क से जुड़ा यह राज्य यातायात, संपर्क, अर्थव्यवस्था और पयर्टन के मानचित्र पर तो आएगा ही। साथ ही साथ सुरक्षा सामरिक दृष्टि से यह बेहद महत्वपूर्ण है। यह आलेख मैंने स्वयं के अनुभव के आधार पर लिखा है। मैं पिछले दिनों इस राज्य का भ्रमण करके आया हूं और इस दौरान संपूर्ण रेल लाइन का दौरा भी किया है। आपको बता दूं कि देश के किसी भी हिस्से से मिजोरम पहुंचने का सड़क मार्ग काफी संकरा, लंबा और 'खतरनाक' है। नई दिल्ली से 50 घंटे यानि 2 दिन 2 रात यात्रा करके यहां पहुंचा जाता है। हवाई यात्रा भी बहुत सीमित और काफी महंगी है। वर्ष 2030 तक उत्तर पूर्वी सीमांत 7 राज्यों की की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में यह बड़ा कदम है। बइरबी—साइरंग 51.38 किलोमीटर लंबी रेल लाइन ने 'मिजोरम से अब दिल्ली दूर नहीं' को पुष्ट किया है। अब मिजोरम के लोग भारत की राजधानी नई दिल्ली के साथ सभी राज्यों से रेल मार्ग से जुड़ गए हैं। इस रेल लाइन से जहां आवाजाही बहुत तेज़, सुरक्षित और सस्ती होगी, आंतरिक सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी। चूंकि मिजोरम राज्य की सीमा बांग्लादेश और म्यामांर से सटी हुई है। यह रेल लाइन राष्ट्रीय सुरक्षा की लाइफ लाइन बनेगी। चूंकि मिजोर में 8 से 10 महीने मानसून चलता है, सड़क मार्ग बहुत बाधित रहता है। रेल से अब यहां सफर सुहाना होगा। जैसा कि हम जानते हैं मिज़ोरम लंबे समय से एक अनदेखा पर्यटन रत्न रहा है। अब देश के अन्य हिस्सों से लोग रेल मार्ग से मिजोरम की अनछुए पहाड़, पारंपरिक उत्सव और इको-टूरिज्म का आनंद ले सकते हैं। आइए इस रेल लाइन के बारे में जानते हैं। फरवरी 2011 में भारतीय रेलवे ने इस परियोजना को पूरा करने के लिए वर्ष 2015 तक लक्ष्य रखा था, लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया। 29 नवंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस लाइन की आधारशिला रखी थी। 21 मार्च 2016 को असम बॉर्डर से सटे मिजोरम के बइरबी तक रेल मार्ग को ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया था। अब 13 सितंबर 2025 को यहां से राजधानी एक्सप्रेस सहित तीन यात्री ट्रेनों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरी झंडी दिखाएंगे। उत्तर पूर्व के 7 राज्यों को '7 सिस्टर्स स्टेट इन इंडिया' कहा जाता है। अभी असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश में ट्रेनें चल रही हैं। मिज़ोरम में ट्रेनें आज से दौड़ने लगेंगी। जबकि मणिपुर, मेघालय, नागालैंड और सिक्किम रेल नेटवर्क से बाहर हैं।  'मिजोरम का देश से जुड़ना' सरकारी के 'संकल्प से सिद्धी' का उदाहरण है क्योंकि उत्तर पूर्वी राज्य की सिर्फ 51.30 किमी दूरी की लाइन बिछाने के लिए 8071 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। आमतौर पर मैदानी इलाके में 1 किलोमीटर तक रेले लाइन बिछाने में लगभग 10 से 12 करोड़ का खर्च आता है। लेकिन यह रेल लाइन इतनी चुनौती भरी है कि इसमें लंबी—लंबी टनल और ऊंचे-ऊंचे ब्रिज बनाए गए हैं। अधिकांश रेलमार्ग टनल—पुल से गुजरता है। इस लिहाज बइरबी—सायरंग रेल लाइन के एक किलो मीटर लाइन बिछाने में औसत 157 करोड़ रुपये खर्च हुए। यह लागत हाई स्पीड रेल कॉरिडोर बनाने के बराबर है। यहां रेल पटरी बिछाने का काम जोखिम भरा रहा। पूरी लाइन घने जंगल से होकर गुजरती है जिसमें गहरी खाइयां, खड़ी पहाड़ियां हैं। यहां 70 मीटर से अधिक और 114 मीटर तक की अधिकतम ऊंचाई वाले छह ऊंचे पुल हैं। एक ब्रिज 114 मीटर उंचा है, जो कि दिल्ली के कुतुबमीनार (72 मीटर) से 42 मीटर अधिक उंचा है। कुल लंबाई का 23 प्रतिशत मार्ग पुलों से होकर गुजरता है, 55 बड़े पुल, जबकि छोटे पुलों की संख्या 88 है। सभी सुरंगों में बलास्ट रहित ट्रैक बिछाया गया है। इस रेल लाइन में 45 सुरंगें हैं, जो कुल ट्रैक की 31% हैं। सबसे लंबी सुरंग 1.868 कि.मी. लंबाई वाली है। सुरंगों और पुलों के अलावा, 23.715 किलोमीटर (46%) ट्रैक खुला है। ज़्यादातर हिस्सा गहरी कटाई के ज़रिए तैयार किया गया है। आपको बता दूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक्ट ईस्ट नीति' की शुरुआत की। इसका लक्ष्य पूर्वोत्तर राज्यों को देश की मुख्यधारा से जोड़ना है। मोदी ने कहा था कि पूर्व अर्थात ईस्‍ट का अर्थ है- एम्पॉवर (सशक्त बनाना), एक्ट (कार्य करना), स्ट्रेंथन (मजबूत बनाना) और ट्रांसफॉर्म (बदलना)। ये शब्द पूर्वोत्तर के प्रति सरकार के दृष्टिकोण का सार बताते हैं। आज से मिजोरम के लोग असम के सिलचर, गुवाहाटी और दिल्ली तक आसानी से पहुंचेंगे। मालगाड़ियों की आवाजाही से व्यापार और लॉजिस्टिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। आइज़ोल के बाज़ारों में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें कम होंगी। “गुवाहाटी से आगे पूर्वोत्तर की खोज” के तहत एक स्पेशल टूरिस्ट ट्रेन यहां तक पहुंच पाएगी। रणनीतिक रूप से अहम इसलिए है क्योंकि  पूर्वोत्तर के मिजोरम राज्य की सीमा बांग्लादेश और म्यांमार से जुड़ती है। वहीं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के जरिये चीन, नेपाल, भूटान तक सीमा पहुंचती है। यहां तक रेलवे लाइन बिछने से रणनीतिक सुरक्षा की दृष्टि से सरकार मजबूत होगी।

भरत यादव का दूसरा नाम, नवाचारी काम

 


जन्मदिवस विशेष : एक आईएएस की अनकही, अनसुनी सुशासन की कहानियां

प्रसंगवश

डॉ. दीपक राय,

डेली मीडिया गैलरी, भोपाल

9424950144

IAS Bharat Yadav Best Work Doing his Service


हमने देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अक्सर यह कहते सुना है- 'अफसरों को अपने कैबिन से निकलकर जनता के बीच पहुंचना चाहिए, इससे सुशासन कायम होता है और शासन के प्रति जनता का विश्वास बढ़ता है।' कुछ अफसर ऐसा करते हैं, लेकिन अधिकांश नहीं करते। आज एक ऐसे ही आईएएस अफसर का जन्मदिवस है। नाम है- भरत यादव। वर्ष 2008 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के इस आईएएस अफसर के बारे में, मैं आपको कुछ ऐसी बातें बताने जा रहा हूं- जिसे शायद आपने न पहले सुना होगा, न ही पढ़ा होगा। इससे पहले उनके बारे में कुछ जान लेते हैं। भरत यादव हाशिए पर पड़े समुदायों तक कल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाने के अपने अभिनव दृष्टिकोण के लिए पहचाने जाते हैं। 20 जून 1981 को दतिया जिले में जन्मे भरत यादव चांदी की चम्मच मुंह में लेकर नहीं आए थे। उन्होंने जीवन का हर मुकाम अपनी मेहनत और कठिन परिश्रम के दम पर हासिल किया। बचपन से ही वे पढ़ाई में इतने होशियार थे कि 5वीं कक्षा में ही नवोदय विद्यालय प्रवेश की कठिन परीक्षा पास कर ली थी। बीए (इंग्लिश लिटरेचर), एमए राजनीति शास्त्र पढ़ने के बाद वे रेलवे में टीटीई रहे। पढ़ने की इतनी ललक कि रेलवे की कठिन नौकरी के दौरान समय निकालकर खूब पढ़ते थे। इसी मेहनत के दम पर भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ। पहली पोस्टिंग सहायक कलेक्टर अलीराजपुर मिली। सहायक कलेक्टर होशंगाबाद, एसडीएम मुलताई, सीईओ जिला पंचायत नरसिंहपुर, उपसचिव नगरीय प्रशासन, प्रोजेक्ट डायरेक्टर उदय के पद पर कार्य किया। पहली कलेक्टरी सिवनी में मिली। यहां उन्होंने सुशासन और समाजहित के ऐसे कार्य किये जो इतिहास में दर्ज हो गए। संभवत: वह कार्य देश में कोई अन्य कलेक्टर नहीं कर पाया। सिवनी के बाद बालाघाट, मुरैना, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, जबलपुर, नरसिंहपुर कलेक्टर रहे। उनकी कार्यशैली जनता और शासन को इतनी पसंद आई कि 7 जिलों में कलेक्टर रहे। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई बार सार्वजनिक मंच से भरत यादव के कार्यों की सराहना की। बाद में वे प्रबंध संचालक ऊर्जा विकास निगम रहे, आयुक्त मप्र गृह निर्माण मंडल, आयुक्त नगरीय प्रशासन विभाग, मुख्यमंत्री के सचिव पद का दायित्व भी संभाला। अब एमपीआरडीसी के एमडी के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।

भरत यादव पहली बार सिवनी जिला कलेक्टर बनाए गए। उन्होंने कभी भी अपने उपर 'लालफीताशाही' हावी नहीं होने दिया। उनसे मिलने के लिए कभी किसी को लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा। आफिस का दरवाजा आम आदमी के लिए हमेशा खुले रहता था। वे एक बार एक स्कूल पहुंचे, जो कि दृष्टिहीन बच्चों का था। वहां जाकर देखा तो तमाम अव्यवस्थाएं थीं। प्रबंधन ने आर्थिक समस्या बताई। वर्ष 2015 में कलेक्टर भरत यादव ने सामाजिक भागीदारी से एक एक चैरिटी शो करवाया और डेढ़ करोड़ रुपए जुट गए। इस नवाचार ने दिव्यांग बच्चों का जीवन संवार दिया। भरत यादव ने ऐसा ऐतिहासिक कार्य किया था जो शायद ही देश में कोई कलेक्टर कर पाया होगा! मीडिया की खबर पर संज्ञान लेकर 'सड़क पर घूम रहे मानसिक दिव्यांगों के लिए पुनर्वास' योजना बनाई थी। कईयों को उपचार के लिए ग्वालियर भेजा था। नतीजा यह रहा कि दो मानसिक दिव्यांग अब स्वस्थ हैं और अपने घर में रहकर अच्छा जीवन यापन कर रहे हैं। उस समय सोशल मीडिया वेबसाइट फेसबुक लोगों में लोकप्रिय थी। स्वयं कलेक्टर सक्रिय रहते थे। लोग अपनी समस्याएं लिखकर उन्हें मैंसेजर भेज देते थे, जिस पर वे तत्काल संबंधित अधिकारियों को घटनास्थल पर भेज देते थे, समस्याओं का निराकरण की फोटो भी पोस्ट करवाते थे। इन बातों को 9-10 साल बीत गए, लेकिन सिवनीवासी आज भी उन्हें याद करते हैं। भरत यादव की दूसरी पदस्थापना बालाघाट कलेक्टर के रूप में रही। वहां 151 दिव्यांग जोड़ों की शादी कराने का रिकॉर्ड बनाया था। वे जिले के उन दुर्गम गांवों में दौरा करने पहुंच जाते थे, जहां पर आजादी के बाद कोई अधिकारी नहीं पहुंचा था। वे जबलपुर कलेक्टर बनाए गए। कोविड-19 पैर पसार रहा था। एक ऐसा जिला जो देश के सबसे लंबे नेशनल हाइवे से जुड़ा था। इस दौरान उन्होंने एसपी अमित सिंह के साथ मिलकर सक्रिय लॉकडाउन उपाय और एसओपी अपनाया। बाद में अन्य जिलों में भी जबलपुर मॉडल लागू किया गया। पहली लहर में जबलपुर में जन सहयोग से एक लाख लोगों को राशन बांटने का रिकॉर्ड बनाया। जबलपुर राष्ट्रीय स्तर पर पांचवां और प्रदेश में पहला जिला माना गया था। लोगों ने माना था कि भरत यादव में जनसमर्थन की गजब अपील है, जिस कारण जनता उनसे जुड़ना पसंद करती है। मुरैना जिले में कलेक्टर रहने के दौरान वे स्कूल-कॉलेज जाते और वहां युवाओं को प्रेरित करते थे। उन्होंने आर्मी में जाने की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए लाइब्रेरी और शारीरिक प्रशिक्षण के लिए कई संसाधन उपलब्ध करवाए थे। ग्वालियर में कलेक्टर रहते हुए भी उनके कई कार्य उल्लेखनीय रहे। कोरोना काल में जब कई जिलों के कलेक्टर फोन तक नहीं उठाते थे। तब नरसिंहपुर कलेक्टर रहते हुए भरत यादव ने मिसाल कायम की। स्वयं को खतरे में डालते हुए जिला पंचायत सीईओ केके भार्गव के साथ पीपीई किट पहनकर जिला चिकित्सालय पहुंच गए थे। कोरोना मरीजों का हाल जाना और मरीजों व मेडिकल स्टाफ का मनोबल बढ़ाया था।

आईएएस भरत यादव ने गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मंडल म. प्र. के आयुक्त पद पर रहते हुए रिडेंसीफिकेशन (पुनर्घनत्वीकरण) का नवाचार किया। आज वह पुनर्घनत्वीकरण योजना राज्य के साथ ही देश में बहुत लोकप्रिय है। प्रदेश के सैकड़ों सरकारी कार्यालयों की सूरत बदल गई है, जबकि शासन का एक पैसा भी व्यय नहीं हो रहा। भरत यादव के नवाचारी मस्तिष्क और व्यावहारिक सरलता से प्रभावित होकर तत्कालीन शिवराज सरकार ने उन्हें नगरीय प्रशासन विभाग का आयुक्त बनाया। उनके कार्यकाल में 'स्वच्छ सर्वेक्षण 2023' में मध्यप्रदेश को देश का दूसरा स्वच्छतम प्रदेश का पुरस्कार मिला। इंदौर सातवीं बार देश का सबसे स्वच्छ शहर बना। पीएम स्वनिधि और पीएम आवास योजना योजनाओं में मध्यप्रदेश की रैंकिंग नंबर वन आई। एक बार नगरीय प्रशासन विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की अनुशासनहीनता की शिकायतें आई थीं। किसी अफसर ने उसे नौकरी से निकालने की अनुशंसा कर दी थी। जब यह फाइल आयुक्त भरत यादव के पास पहुंची तो उन्होंने एक संवेदनशील टिप्पणी लिखकर कर्मचारी की नौकरी बचा ली। हालांकि उन्होंने कर्मचारी को अनुशासनहीनता की सजा भी दी और उस कर्मचारी तबादला कर दिया गया था।

यूं तो आईएएस भरत यादव से जुड़ी सैकड़ों कहानियां हैं, लेकिन यहां जगह और समय की  सीमाएं हैं। लेखनी को यहीं विराम देता हूं। संवेदनशीलता, सुशासन, नवाचार और सहृदयता वाले व्यक्तित्व आईएएस भरत यादव को जन्म दिवस की हार्दिक बधाईयां एवं शुभकामनाएं। बाबा महाकाल और बाबा कामतानाथ आपकी हर मनोकानाएं पूरी करें...


भारत के लिए कितने जरूरी हैं मोदी?

 

प्रधानमंत्री का जन्म दिवस आज: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया होने के मायने

प्रशंगवश

डॉ. दीपक राय, भोपाल

दैनिक मीडिया गैलरी

17 सितंबर 2025

मो. 9424950144

Why Narendra Modi Importance for India?


दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 75 वर्ष की उम्र में पहुंच गए हैं। हम अपने आस-पास समाज में देखते हैं- इस उम्र में कई लोग गतिहीन हो जाते हैं, लेकिन मोदी जी इसका अपवाद हैं। 75 की उम्र में भी मोदी जी में गजब की 'गतिशक्ति' दिखती है। वे 'मैन इन एक्शन' की तरह काम करते दिखते हैं। जब मैं उनके भाषण सुनता हूं, उनकी चाल-ढाल देखता हूं तो लगता ही नहीं कि वे 75 की उम्र के होंगे! उर्जा से भरा व्यक्तित्व, वैश्विक विजन से भरपूर मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं। दुनियाभर के लोगों में, सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म में सबसे ज्यादा पसंद किये जाने वाले नेताओं में नरेंद्र मोदी अव्वल हैं। मोदी के बाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उसके बाद वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नंबर आता हैं। भारत पर 50% टैरिफ लगाने वाले ट्रंप को उनके देश की जनता ने ही नपसंद किया है, यह हमने हाल ही में देखा है, जबकि मोदी के दृढ़निश्चय को भारत सहित दुनियाभर में सराहा गया है। पीएम मोदी के ट्विटर पर 109 मिलियन (1 मिलियन = 10 लाख), फेसबुक में 51 मिलियन, यूट्यूब में 29 मिलियन और इंस्टाग्राम में 97 मिलियन फॉलोअर्स हैं। बराक ओबामा के ट्विटर पर 130.6 मिलियन, फेसबुक पर 55 मिलियन, यूट्यूब पर 6 लाख 40 हजार और इंस्टा पर 38 मिलियन फॉलोअर्स हैं। ट्रंप के ट्विटर पर 109.2 मिलियन, फेसबुक पर 37 मिलियन, यूट्यूब पर 3.96 मिलियन और इंस्टाग्राम पर 38 मिलियन फॉलोअर्स हैं।

आज मोदी 75 वर्ष के हो रहे हैं तो यह सवाल सहज ही सामने आता है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में कई युवा नेता भी हैं जो देश का नेतृत्व कर सकते हैं? तो फिर मोदी की जरूरत क्या है? इस सवाल के जवाब की तह तक जाने के लिए यह समझना जरूरी है कि आखिर मोदी देश के लिए क्यों जरूरी हैं?

हमें वर्ष 2014 के पहले के भारत को जान लेना चाहिए। तब अक्सर गठबंधन की सरकारें रहीं, दुनिया के नक्शे में भारत को उचित पहचान न मिल सकी। आए दिन आतंकी हमले और आंतरिक सुरक्षा की अनिश्चितता बनी रहती थी। यूपीए गठबंधन की मजबूरी ने देश को कमजोर किया, भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान रचे जाते थे। लेकिन वर्ष 2014 में जब मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो भारत की परिस्थितियां बदलने लगीं। वर्ष 2019 का पुलवामा हमला और हाल ही में पहलगाम हमले को छोड़ दें तो देश में 11 वर्षों में कोई आतंकवादी वारदात नहीं हुई। आंतरिक सुरक्षा भी सुदृढ़ हुई। जब भी पड़ोसी देशों ने दुस्साहस किया तो भारत ने उन्हें उन्हीं के घर में घुसकर मारा। पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर इसके ही उदाहरण हैं। भारत के शौर्य ने नापाक पड़ोसियों को सबक सिखाया। सेना को जितनी आजादी मोदी के शासनकाल में मिली है, शायद ही पहले मिली हो। नक्सली मोर्चे पर भी भारत ने काफी हद तक नियंत्रण पा लिया है। भारत की ख्याति दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। हाल में हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में तीन मजबूत देश भारत, रूस और चीन के मुखिया का मिलना, पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना है। अमेरिका जैसे देश ईष्या में जल रहे हैं।  

भारत को दुनिया में यह मुकाम यूं ही हासिल नहीं हुआ है। यह मोदी जी के 11 वर्षों के कार्यों का फल है। भारत के सशक्तिकरण के लिए किये गए कार्यों को देखें कई किताबें लिखनी पड़ेंगी। कुछ मुख्य विकास कार्यों की बात करें तो रेलवे का विकास, बुलेट ट्रेन परियोजना, वंदे भारत, पूर्वोत्तर राज्यों को रेलवे से जोड़ना, अमृत भारत स्टेशन, अग्निपथ, स्वच्छ भारत अभियान जैसे कई कदम हम अपनी आंखों से देख रहे हैं। कई लागों ने भले मोदी पर 'धार्मिकता' संबंधी आरोप लगाए हों, लेकिन क्या कोई बता सकता है कि उनकी सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में ऐसा भेदभाव दिखा हो? प्रधानमंत्री आवास योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, जनधन खाता, आयुष्मान भारत योजना, पीएम स्वनिधि, स्वामित्व योजना, पीएम किसान सम्मान निधि, जल जीवन मिशन, खेलो इंडिया, पीएम मातृ वंदना योजना, पीएम फसल बीमा, स्टेंड अप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, डिजिटल इंडिया, लखपित दीदी, अटल पेंशन, दीनदयाल अंत्योदय योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण, पीएम स्वनिधि स्ट्रीट वेंडर जैसी न जाने कितनी स्कीम हैं, जिनका लाभ करोड़ों लोगों को मिल रहा है। क्या कोई बता सकता है कि इन योजनाओं के लाभ लेने के फॉर्म में धर्म और जाति का कोई कॉलम बनाया गया है। बिल्कुल नहीं, 'सबके साथ, सबके विकास' की योजनाएं ही मोदी सरकार का ध्येय रहा है। तभी तो सरकार को सबका विश्‍वास हासिल हो रहा है। पीएम मोदी ने हर धर्म, हर जाति के नागरिकों को योजनाओं का लाभ दिया। तीन तलाक जैसी बर्बर प्रथा के खिलाफ कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं के जीवन को नर्क से बाहर निकालने वाले मोदी ही हैं। मुस्लिम समाज की महिलाओं में भी मोदी बेहद लोकप्रिय हुए हैं। डबल इंजन की सरकार वाले राज्यों में महिलाओं के सशक्तिकरण की आर्थिक लाभ वाली योजनाओं में हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी महिलाओं के बैंक खातों में बराबर राशि पहुंच रही है।

सिर्फ सरकारी योजनाओं तक ही नहीं, राजनीतिक परिदृश्य पर भी कई निर्णय ऐतिहासिक हैं। अयोध्या में श्री राम मंदिर बनाकर कई वर्षों से चले आ रहे विवाद का शांतिपूर्ण हल निकालने का मॉडल हम सबके सामने है। हम जानते हैं कि मोदी दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा से आते हैं, उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी ही पार्टी में परिवारवाद पर नियंत्रण करने का राजनीतिक नवाचार प्रारंभ किया है। पीएम मोदी अपनी मां से खूब प्रेम करते थे, लेकिन कभी भी उन्हें और अपने परिवार को पीएम आवास में नहीं रखा। आज जिस बेटे का जन्म दिन मनाया जा रहा है, भले उनकी मां हीराबेन मोदी इस दुनिया में न हों, लेकिन बेटे द्वारा राजनीतिक सुचिता और पारदर्शिता के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं वह लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा और मजबूती को बताता है।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कोई व्यक्ति या नेता कितना भी बड़े विजनरी व्यक्तित्व का धनी क्यों न हो, उम्र किसी की सगी नहीं होती। उम्र, घड़ी के कांटे के साथ बढ़ते रहती है। प्रधानमंत्री जी, वैसे तो आज जन्म दिन के मौके पर आपको तोहफा दिया जाना चाहिए, लेकिन देश की जनता आपसे आज कुछ मांगना चाहती है। मोदी जी जनता को आप से ढेर सारी उम्मीदें हैं। हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी सख्ती और ईमानदारी से बड़े-बड़े फैसले लेने में कभी नहीं हिचकते। वर्तमान में किसी अन्य नेताओं से ऐसी उम्मीदें नहीं की जा सकतीं। ऐसे में मोदी जी से ही कुछ आशाएं हैं। देश, आपके प्रधानमंत्री रहते 'वन नेशन वन इलेक्शन' होते देखना चाहता है। राजनीति में अब भी भाजपा में परिवारवाद के उदाहरण दिखते हैं, इस पर 100% नियंत्रण लगाने की जरूरत है। मोदी जी, इस कुप्रथा को आप ही समाप्त करने की क्षमता रखते हैं। आरक्षण व्यवस्था में बदलाव किया जाना बहुत जरूरी है, इसे जाति आधारित से बदलाव करके आय आधारित करना समय की जरूरत है। आयुष्मान भारत योजना से आपने हर व्यक्ति को 5 लाख रुपये तक देकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में कीर्तिमान रचा है। अब शिक्षा के क्षेत्र में अब कुछ ऐसी की क्रांतिकारी योजना प्रारंभ करने की अपेक्षा है। एक और महत्वपूर्ण बात- डिजिटल इंडिया से भारत में जो इंटरनेट क्रांति आई है, उसने भारतीयों का जीवन बदलकर रख दिया है, लेकिन इंटरनेट की स्वच्छंदता फेक न्यूज के रूप में संकट बन गई है। एआई ने डीप फेक के रूप में बहुत बड़ा खतरा पैदा किया है। एआई से बन रहे फोटो, वीडियो की बाढ़ बहुत बड़ा संकट है। इससे निपटने के लिए विशेष प्रयास जरूरी हैं। प्रधानमंत्री जी, अगर आप उपरोक्त जनता के 'मन की बात' को पूरा करने के लिए प्रयास करेंगे तो यकीन मानिए आपका नाम इतिहास के पन्नों में अमर हो जाएगा। प्रधानमंत्री जी, मैं इस आशा के साथ अपनी बात यहीं समाप्त कर रहा हूं- आप सदैव स्वस्थ्य रहें, सदा उर्जावान रहें, आपकी शेर जैसी छवि से भारत की प्रतिष्ठा पूरी दुनिया में लगातार बढ़े। इन्हीं कामनाओं के साथ आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं...

Wednesday, August 13, 2025

मिनीमन गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस : विदिशा कलेक्टर अंशुल गुप्ता (IAS Anshul Gupta 2016) इन दिनों चर्चा में क्यों हैं?

जमीन, जायजा, जनता और जनभागीदारी

 डॉ. दीपक राय, भोपाल, 25 जुलाई 2025 (मो. 9424950144)

IAS Anshul Gupta Good Work During Collector


आलेख को पढ़ना शुरू करने से पहले इसकी तस्वीर को गौर से देखिए। चूंकि मेरी किशोरावस्था ठेठ गांव में गुजरी है और शासन और जनता के बीच की दूरी मैंने खू​ब महसूस की है, आज भी जनता इस दूरी को महसूस करती है। इसलिए इस फोटो को देखकर मैं सहसा ठहर गया। मेरा निजी आंकलन कहता है कि इस फोटो में दिख रहे शख्स कोई मास्साब हैं, जो कि गांव के गली-मोहल्ले में घूम रहे हैं। कोई महिला उनसे वार्तालाप कर रही है। मेरी सोच इससे आगे नहीं पहुंच पाएगी। क्योंकि शिक्षक सर्वसुभल होते हैं। वर्तमान दौर की बात करें तो किसी को लगेगा कि यह व्यक्ति ग्राम पंचायत का रोजगार सहायक है, कोई इन्हें पंचायत सचिव कह सकता हैै। कुछ लोग पटवारी तक पहुंच सकते हैं। लेकिन कोई भी नायब तहसीलदार तक पहुंच पाएगा? मुझे ऐसा नहीं लगता। शासन की इसी दूरी की वजह से सरकार, आम जनता का भरोसा नहीं जीत पाती। मुझे अच्छे से याद है, साल 2014 में, मैं पी.-एच.डी. कर रहा था। नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे। संसद की सीढ़ियों में अपना माथा टेकने के बाद उन्होंने 'मिनीमन गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस' की अवधारणा दी थी। वे न्यूनतम शासन में अधिकतम सुशासन चाहते थे। इसी कारण डिजिटल इंडिया अभियान लांच किया गया। मोदी सरकार हर काम फास्ट और पारदर्शी तरीके से करना चाहती थी, अभी भी चाहती है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, मुख्य सचिव अनुराग जैन कई दफा कह चुके हैं कि अफसरों को अपने कार्यालय से बाहर निकलकर भी कार्य करना चाहिए। अफसरों को, सीधे जनता के बीच पहुंचकर सीधा संवाद करना चाहिए। अधिकांश अफसरों ने ऐसा नहीं किया, लेकिन कुछ अधिकारियों ने नवाचार के रूप में इसे अपनाया। मुझे याद है— पी. नरहरि, डॉ. सुदाम खाड़े, तरुण पिथौड़े, भरत यादव, डॉ. इलैया राजा टी., डॉ. सलोनी सिडाना, दीपक सक्सेना, वीएस चौधरी कोलसानी, प्रवीण अढ़ायच, कौशलेंद्र विक्रम सिंह, रोशन सिंह ने अपने जिले में कलेक्टर रहते हुए जमीन में जनता के बीच जाकर कई नवाचार किये। इन अफसरों ने जनता के दिलों में जो जगह बनाई है, वह अद्वितीय है। तरुण पिथौड़े तो बाइक में बैठकर कभी भी, किसी भी गांव का जायजा लेने पहुंच जाते थे। एक बार नहीं, कईयों बार उन्होंने ऐसा किया।

चलिए, अब सस्पेंस खत्म करते हैं। मेरे आलेख के फोटो में ग्रामीण महिला से संवाद कर रहे शख्स के बारे में बताता हूं। आईआईटी, आईआईएम से पढ़े-लिखे इस युवा का नाम अंशुल गुप्ता हैं, वर्ष 2016 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी हैं। अभी विदिशा कलेक्टर हैं। दूसरे शख्स आईएएस ओमप्रकाश सनोड़िया हैं, वे जिला पंचायत के सीईओ हैं। जिस दौर में आम आदमी के लिए नायब तहसीलदार के आफिस में घुसना भी 'खौफ खाने वाली' बात हो। ऐसे में पर्ची भेजकर कलेक्टर से मिलने की 'हिमाकत' करने की बात तो दूर की कौड़ी है? लेकिन कलेक्टर अंशुल गुप्ता खुद जनता तक पहुंच  रहे हैं, इसलिए यह तस्वीर सुकून दे रही है। 'जनता के बीच' जमीन पर उतरकर मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ संवाद कर रहे यह अफसर, जनता में 'भरोसा' और 'उम्मीद' की किरण हैं। दरअसल, अंशुल गुप्ता ने कुछ दिन पहले ही कलेक्टरी संभाली है, उसके बाद से लगातार जमीनी दौरे पर निकल पड़ते हैं। पिछले दिनों नटेरन तहसील क्षेत्र के एक गांव में पहुंचे थे, तस्वीर वहीं की है। वे लगातार जमीनी स्तर पर सघन भ्रमण करके यह समझ रहे हैं कि शासन की योजनाएं धरातल तक पहुंच रही हैं या नहीं? वे सिर्फ भ्रमण नहीं करते, पैदल चलकर ग्रामीणों से संवाद करके उनकी समस्याएं सुनते हैं, संवाद करते हैं। यह तो रही सिर्फ एक तस्वीर की चर्चा। विदिशा में और भी बहुत-कुछ हो रहा है। कुछ और काम 'जरा हटकर' स्टाइल में किये जा रहे हैं। सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों के निराकरण के प्रति वे इतने गंभीर हैं कि अफसरों पर निगरानी शुरू कर दी है। हर शिकायत का सही तरीके से संतुष्टिपूर्वक निराकरण हो, इसके लिए युद्धगति से मॉनिटरिंग कर रहे हैं। हर मंगलवार को जिला मुख्यालय पर होने वाली जनसुनवाई में अधिकांश समय स्वयं उपस्थित रहकर समस्याएं सुनते हैं। अपने धैर्य के साथ संकल्प को पूरा करने के लिए पहचाने जाने वाले कलेक्टर अंशुल गुप्ता जब उज्जैन नगर निगम कमिश्नर रहे तब भी कई राष्ट्रीय अवार्ड जीते। नवाचारी अफसर होने के कारण वे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की टीम का हिस्सा भी रहे हैं। अपनी एकाग्रता और दृढ़ता के लिए पहचाने जाने वाले यह आईएएस, जनभागीदारी के साथ जन-संचालित अभियान चलाने के लिए चर्चा में हैं। विदिशा में एक और मौन क्रांति की पटकथा लिखी जा रही है। कुपोषण को खत्म करने के लिए संचालित पोषण संजीवनी अभियान में जनभागीदारी के माध्यम से कुपोषण को समाप्त करने की ओर बढ़ रहे हैं। विदिशा में जनभागीदारी के साथ अब यह अभियान स्वत: स्फूर्त जन आंदोलन बन गया है। यह अभियान एक राष्ट्रीय मॉडल के रूप में उभर रहा है। कई रिसर्च में यह दावा किया गया है कि कुपोषण केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक समस्या भी है। इस अभियान की शक्ति अंतर-विभागीय सहयोग और जमीनी स्तर पर लोगों की भागीदारी बढ़ाई जा सकती है। विदिशा में स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास, पंचायती राज विभाग और नागरिक समाज समूहों ने एक बहुआयामी रणनीति को लागू करने के लिए निर्बाध समन्वय में काम किया है। जिले के ब्लॉक मुख्यालयों में स्थित पांच एनआरसी को आधुनिक पोषण केंद्रों के रूप में उन्नत किया गया है, जहां चौबीसों घंटे बाल चिकित्सा देखभाल, पोषण निगरानी और व्यक्तिगत उपचार उपलब्ध हैं। इन केंद्रों में भर्ती बच्चों को अब चिकित्सा हस्तक्षेप से लेकर भावनात्मक समर्थन तक, सभी पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए, प्रशासन ने सामुदायिक दान, स्वयं सहायता समूहों के प्रयासों और कॉर्पाेरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) निधि का उपयोग करके स्वच्छता सामग्री, स्टील के बर्तन और स्थानीय स्तर पर प्राप्त पौष्टिक भोजन से युक्त पोषण किट तैयार किया है। विदिशा में अपनाई गई इस रणनीति ने न केवल संसाधन अंतराल को पाटा, बल्कि समुदाय के सदस्यों के बीच एक मजबूत भावनात्मक हिस्सेदारी भी बनाई। कलेक्टर की सोच है कि पोषण केवल भोजन तक सीमित नहीं है, इसलिए इस अभियान के तहत मातृ शिक्षा, उचित स्तनपान प्रथाओं, हाथों की स्वच्छता, आहार विविधता और निरंतर परामर्श पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। मासिक समीक्षा, डिजिटल डैशबोर्ड, एमआईएस ट्रैकिंग और बाल रोग विशेषज्ञों और पोषण विशेषज्ञों द्वारा क्षेत्रीय दौरों ने वास्तविक समय की निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित की जा रही है।

पिछले दिनों विदिशा में जल गंगा संवर्धन अभियान भी मिशन मोड में संचालित हुआ। सीईओ ओमप्रकाश सनोड़िया बताते हैं कि खेत तालाब, डगवेल रिचार्ज, कूप रिचार्ज निर्माण लक्ष्य से अधिक हुआ। यह तब हुआ, जबकि विदिशा की भूमि कृषि के लिए उर्वर है, इस कारण किसान तालाब निर्माण में रुचि नहीं दिखा रहे थे। इसके बाद खुद कलेक्टर अंशुल गुप्ता जनता के बीच पहुंचे और तालाबों से स्वरोजगार की पहल और भूमिगत जल संरक्षण पर लंबी चर्चा की। देखते ही देखते सैकड़ों तालाब खुद गए, आज सब लबालब हैं। आईएएस अंशुल गुप्ता द्वारा विदिशा जिले में चलाया जा रहा 'जमीन, जायजा, जनता  और जनभागीदारी से शासन' का मिशन एक आशा की एक नई किरण बन रहा है। मुझे लगता है जनता से जुड़कर ही सुशासन शब्द को जमीन पर उतारा जा सकता है। 

(लेखक डॉ. दीपक राय भोपाल स्थित पत्रकार हैं, वे 16 वर्षों से पत्रकारिता, संचार और शोध लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं।)

Monday, July 28, 2025

The achievement of foreign Tour By Dr. Mohan Yadav : How effective are the efforts for investment possibilities

 

 CM Dr. Mohan Yadav Foreign Visit Special

Perform, Reform, Transform with Global Approach

Dr. Deepak Rai, Bhopal (Mob. 9424950144)

 

The achievement of foreign Tour By Dr. Mohan Yadav :   How effective are the efforts for investment possibilities, Best Effort for Foreign Investment by Chief Minister Dr. Mohan Yadav

Only by making the basic mantra of “Perform, Reform, Transform” a basis can a state become self-reliant. This basic mantra can be put on the ground by setting up industries and increasing investment. These days, efforts are being made from 'local to global' under 'Industry and Employment Year 2025' to take the possibilities of Madhya Pradesh to the global level. We should understand that no matter how many possibilities there are? But unless there is 'attraction', no one will come just like that. Even if someone comes near after attraction, will he be able to stay for a long time? Its guarantee is decided by facilities and 'ease of doing'. I am not saying these things for any particular person. All the above things are related to a state, which is full of possibilities and facilities. It is not hidden from anyone that Madhya Pradesh is a state with industrial, cultural and tourism potential. But the work that has been done to expand these possibilities in the last one and a half years is surprising. There has been a change in the 'investment strategy' which was dependent only on officers. Now, as a new character, the head of the state is seen making Bhagirathi efforts. In a short tenure of one year and seven months, CM Dr. Mohan Yadav has visited 5 countries in three times. This trip has been done with the aim of attracting investors, establishing the state as a center of global trade and increasing the possibilities of employment generation in the state. The CM, who recently returned to Bhopal after interacting with investors in Dubai and Spain, appeared full of hope and enthusiasm. Why is the foreign trip of the CM necessary for industrial expansion and attracting investors in the state? The answer to this also needs to be known. The identity of a good administrator is that he does not remain a 'frog in the well'. A good administrator should have first-hand experience of what is going on in the country and the world. CM Dr. Mohan Yadav is coming back after learning the ways of those countries, their possibilities, innovations from those countries. History is witness that the world has progressed due to adopting the good things and innovations of each other's countries. We should know that whether it is America, Germany, Dubai, Japan and Spain, the basic foundation of the development of all is their industries. The city planning, civilization, industrial progress and traffic system of UK and Germany are worth adopting in Madhya Pradesh. In the coming time, these can also be adopted in Madhya Pradesh. My advice is that the governments should keep visiting developed areas of the country and abroad, because the experience gained by 'traveling' is more effective than listening.

Investment tours will not only open the way for investment, but will also provide a new vision for the development of the state. This tour will not only prove useful for the development of the state in the future, but is also a proof of Madhya Pradesh's commitment in building a 'Developed India @ 2047'. These two statements are very important to understand the possibilities of Madhya Pradesh. During the then UK visit of the CM, British MP Lord Raminder Ranger had said - "Compared to the growth of Europe and USA, India has a growth rate of more than 8 percent. Money invested in India is safe."

 

Also pay attention to the words of another MP Lord Kulveer Ranger - "Madhya Pradesh is an emerging state. CM Dr. Mohan Yadav's one-on-one meetings with investors will yield positive results." What has Madhya Pradesh achieved from the visits to five countries in three times? It is also important to know this. 

First visit: Visited UK and Germany from 24 to 30 November 2024. Investment proposals worth about 78 thousand crores were received from there. Investment proposals worth 18 thousand crores were received in just one and a half days of stay in Germany. Work has progressed on many proposals.

Second visit: Investment visit to Japan from 27 January to 31 January 2024. Investment proposals were received from automobile, cotton production, readymade garments. Japan's richest industrialist showed interest in investing in Madhya Pradesh.

Third visit: Now the Chief Minister has reached Bhopal on 20 July 2025. Met top business representatives in Dubai and Spain from 13 to 19 July. Here too, investment proposals worth thousands of crores of rupees have been received.

Apart from foreign trips, grand events like RIC, interactive sessions, Global Investors Summit have been organized in the country, through which a favorable environment for investment in the state seems to be being created. But is Madhya Pradesh a transparent and trustworthy state for investors? How favorable is it for investors? Why will investors come here to set up business? In answer to this, we come to know - 18 new industrial policies have been launched in MP. Ease of doing business, Jan Vishwas Act, single window system, adequate land bank, instant permissions, adequate availability of water and electricity, subsidy to industrialists (Rs 5260 crore in the year 2024-25), facility of additional incentives to small investors. Skilled human labor, easy connectivity with the whole country by road-air-rail, tourism, pharma, mining, agriculture, dairy, renewable energy, low operating cost, availability of trained young talent can become the choice of global investors. The government has shown innovation to start industry offices in Coimbatore, Tamil Nadu and Ahmedabad, Gujarat. In such a situation, the trips undertaken by CM Dr. Mohan Yadav for investment can prove to be important not only for Madhya Pradesh but for the entire country. The trips present the development plans and possibilities of the state on the global platform. If the head of the state himself goes to other countries to explore investment possibilities, then what is it if not vision and dedication? The Chief Minister's activism and development-oriented approach has strengthened his image not only in the state but also at the national level. This trip can prove to be an important step towards establishing Madhya Pradesh more strongly on the global investment map.

Tourism : Why MP Most Welcoming Investment State

How much scope is there for foreign investment in tourism?

Dr. Deepak Rai, Bhopal. 29/07/2025

Mob. 9424950144

Efforts for foreign investment in Madhya Pradesh tourism, impact of Dr. Mohan Yadav's foreign trip, Madhya Pradesh tourism department, efforts of Tourism MD Dr. Ilaya Raja T.



'Most Welcoming State', greenery all around, rich in forests, presence of all the wildlife of the Big Cat family, 5 lakh kilometer road network rail and air network, the heartland of India, ideal home for wildlife, "Tiger Capital of the World", white lion, the only place in Asia where cheetahs are found. There are three UNESCO World Heritage Sites like Khajuraho, Sanchi and Bhimbetka. Madhya Pradesh is a place of such rich historical and cultural heritage. Due to the new Tourism Policy-2025, there are vast possibilities of development and investment in the tourism sector in the state. Under the new tourism policy, NOCs have been reduced from 30 to 10 and a single window system has been implemented. The Madhya Pradesh government, which has promoted industrial investment in the state in collaboration with 13 countries, has now embarked on new paths for investment. From 13 to 19 July 2025, Chief Minister Dr. Mohan Yadav went to Dubai and Spain on a 'foreign trip for investment'. The Chief Minister introduced in detail the possibilities of industrial investment in tourism in Madhya Pradesh. The government presented information to the investors about the investment-friendly policies of the state, easy availability of necessary land, water, energy and strong infrastructure. Excellent logistics connectivity, skilled human resources, smooth and transparent administrative process, 'Ease of Doing Business', a safe, stable and capable state for investment, which opens the doors for long-term cooperation for global companies. Important topics like participation of Indian Mission to organize "MP Day" in Dubai were discussed. Investment possibilities in hospitality were discussed. Span Communications revealed the possibility of creating 100-150 jobs with an investment of Rs 500 crore to promote tourism, naturopathy resorts and cruise tourism in the state. A high-level meeting was held on topics related to industry, tourism, sports, culture and film production at the 'Invest in Madhya Pradesh' business forum in Madrid, Spain. MD Dr. Ilaya Raja T. presented a presentation on industrial policy and investment, IT and infrastructure sector. MoU was signed between India and Spain on cooperation in the field of film production. CM informed about the diverse and scenic locations of Madhya Pradesh and the film-friendly policy of the state. Investment dialogue was held with the giants of global textile and fashion sector. Discussed the need for cooperation on bilateral skill development and technical training opportunities in areas like post-production, VFX, script writing. Discussions were also held on the possibilities of starting short term courses and exchange programs with the leading film institutes of Spain. The possibility of organizing an event like "Madhya Pradesh Film Showcase" in Spain was considered. Possibilities of programs based on sports, leadership and life skills, a joint tourism campaign to promote the world heritage sites Sanchi, Khajuraho and Bhimbetka in Europe were also agreed upon. There are more than enough opportunities for investment in hospitality, wellness and adventure tourism in MP. Madhya Pradesh is a land of history and heritage. There are 62 UNESCO World Heritage sites located in India, out of which 18 are in Madhya Pradesh. Madhya Pradesh is very rich in terms of culture and spirituality. Along with 2 Jyotirlingas, Maa Narmada, one of the oldest rivers in the world and a revered river, flows through the state. In today's stressful life, all the places situated on the banks of Maa Narmada fill you with spirituality and positive energy. India, especially Madhya Pradesh, is as safe and capable for global investment as any developed country. The vision of the government is that the approach of long-term vision, public participation and global design coordination should be adopted in the development of religious places like Ujjain, Omkareshwar, Chitrakoot. The plan to take our traditional arts like Gond, Phad, Mandna etc. to digital platforms and international forums should be made more effective. This is also because art is not only a medium of identity, but is also an effective tool for education, employment and tourism development. We are seeing that under the leadership of CM Dr. Mohan Yadav, tourism is moving forward with the coordination of art, culture and investment. With the aim of promoting the tourism sector so that world-class tourism facilities can be developed, the Madhya Pradesh government is giving financial assistance of up to Rs 30 crore on hotel projects. Even before the visit to Dubai and Spain, many efforts have been made by the Madhya Pradesh government for tourism investment. Concrete efforts have been made for setting up new units in the industrial sector in Madhya Pradesh through Regional Industry Conclave, Global Investors Summit in Bhopal, visits to England, Germany and Japan, sector wise meetings and seminars in major cities of India like Kolkata, Coimbatore, Surat, Ludhiana. Investment proposals worth more than Rs 30.77 lakh crore have been received from the Global Investors Summit in Bhopal. Allotment of land to an industrialist in London immediately after online application for investment is an example of ease of doing business in Madhya Pradesh. Madhya Pradesh tourism also got a new flight at Rewa Regional Tourism Conclave where investment proposals worth more than Rs 3000 crore have been received. Health and wellness tourism, religious tourism, PM Shri tourism air service booking portal, booking facility on IRCTC portal, home stay online booking portal have been launched by connecting Gramstay developed in tourist villages with digital booking system. CM Dr. Mohan Yadav says that tourism is our favorite investment sector. We also know its pleasant aspects. Due to better air connectivity and expansion in tourism facilities, the number of foreign tourists in MP is expected to increase by 30-40 percent. Madhya Pradesh is the state with the fastest growing economy in India. It has remained a leader for the last 10 years. The state government has implemented 18 new policies, which are the best in the country. The ESG (Environmental, Social and Good Governance) module being developed by the Madhya Pradesh government is getting positive response at the global level. This visit of the Chief Minister can prove to be a historic step towards establishing Madhya Pradesh tourism more strongly on the global investment map. This statement of the CM to foreign investors points towards the new future of tourism- Do visit Madhya Pradesh once, you will never forget the tourism of Madhya Pradesh. "Man of Ideas" Dr. Mohan Yadav's efforts for investment with a strong will to bring the ideas to the ground can be seen in the coming time.


मध्यप्रदेश पर्यटन में निवेश की कितनी संभावनाएं

पर्यटन : मोस्ट वेलकमिंग निवेश स्टेट मध्यप्रदेश

पर्यटन में 'मोस्ट वेलकमिंग स्टेट' बनने के मायने

टूरिज्म का ब्रांड बनता मध्यप्रदेश

 

डॉ. दीपक राय, भोपाल।

डेली मीडिया गैलरी, 29/07/2025

मो. 9424950144

 


'मोस्ट वेलकमिंग स्टेट', चहुंओर हरियाली, वनों से समृद्ध, बिग कैट फैमिली के सभी वन्यप्राणी की मौजूदगी, 5 लाख किलोमीटर का रोड नेटवर्क रेल और एयर नेटर्वक, भारत का हृदय प्रदेश, वन्यजीवों का आदर्श घर, "विश्व की टाइगर राजधानी", सफेद शेर, एशिया का एकमात्र ऐसा स्थान जहां चीता हैं। खजुराहो, सांची और भीमबेठका जैसे तीन यूनेस्को विश्व विरासत स्थल हैं। ऐसी समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का स्थल है मध्यप्रदेश।

नई पर्यटन नीति-2025 के कारण राज्य में पर्यटन क्षेत्र के विकास और निवेश की व्यापक संभावनाएं हैं। नई पर्यटन नीति के तहत NOCs को 30 से घटाकर 10 किया गया है और सिंगल विंडो सिस्टम लागू किया गया है। 13 देशों के साथ मिलकर प्रदेश में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने वाली मध्यप्रदेश सरकार अब निवेश के लिए नए रास्तों पर निकल पड़ी है। 13 से 19 जुलाई 2025 तक मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव 'निवेश के लिए विदेश यात्रा' पर दुबई और स्पेन गए थे। मुख्यमंत्री ने मध्यप्रदेश के पर्यटन में औद्योगिक निवेश की संभावनाओं के बारे में विस्तार से परिचय कराया। सरकार ने, निवेशकों के समक्ष राज्य की निवेश-अनुकूल नीतियों, आवश्यक भूमि, जल, ऊर्जा और मजबूत आधारभूत संरचना की सहज रूप से उपलब्धता की जानकारी प्रस्तुत की। उत्कृष्ट लॉजिस्टिक कनेक्टिविटी, दक्ष मानव संसाधन, सुगम और पारदर्शी प्रशासनिक प्रक्रिया, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस, निवेश के लिए एक सुरक्षित, स्थिर और समर्थ राज्य, जो वैश्विक कंपनियों के लिए दीर्घकालिक सहयोग के द्वार खोलता है। दुबई में “एमपी डे आयोजित करने के लिए भारतीय मिशन की भागीदारी जैसे अहम विषय बेहद महत्वपूर्ण विषय पर संवाद हुआ। हॉस्पिटैलिटी में निवेश की संभावनाओं पर बात हुई। स्पैन कम्युनिकेशन्स ने राज्य में पर्यटन, नेचुरोपैथी रिसॉर्ट और क्रूज़ टूरिज्म को प्रोत्साहित करने हेतु 500 करोड़ रुपये निवेश के साथ 100-150 रोजगार सृजन की संभावना सामने आई। स्पेन के मैड्रिड में ‘इन्वेस्ट इन मध्यप्रदेशबिजनेस फोरम में उद्योग, पर्यटन, खेल, संस्कृति तथा फिल्म निर्माण से जुड़े विषयों पर उच्चस्तरीय बैठक हुई। एमडी डॉ. इलैया राजा टी. ने औद्योगिक नीति एवं निवेश, आईटी और अधोसंरचना सेक्टर पर प्रेजेन्टेशन प्रस्तुत किया। भारत और स्पेन के बीच फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सहयोग पर एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। सीएम ने मध्यप्रदेश की विविध और दर्शनीय लोकेशन्स और राज्य की फिल्म-फ्रेंडली नीति की जानकारी दी। वैश्विक कपड़ा एवं फैशन क्षेत्र के दिग्गजों से निवेश संवाद किया। पोस्ट-प्रोडक्शन, वीएफएक्स, स्क्रिप्ट लेखन जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय कौशल विकास और तकनीकी प्रशिक्षण के अवसरों पर सहयोग की आवश्यकता पर चर्चा की। स्पेन के प्रमुख फिल्म संस्थानों के साथ शॉर्ट टर्म कोर्स और एक्सचेंज प्रोग्राम शुरू करने की संभावनाओं पर भी बातचीत हुई। स्पेन में एक "मध्यप्रदेश फिल्म शोकेस" जैसे आयोजन की संभावना पर विचार किया गया। खेल, नेतृत्व और जीवन कौशल पर आधारित कार्यक्रमों की संभावनाएं, विश्व धरोहर स्थलों साँची, खजुराहो और भीमबेटका को यूरोप में प्रमोट करने के लिए संयुक्त पर्यटन अभियान पर भी सहमति बनी। 

Foreign Investment in Madhya Pradesh Tourism, Article by Dr. Deepak Rai 


म.प्र. में हॉस्पिटैलिटी, वेलनेस और एडवेंचर टूरिज्म में निवेश के पर्याप्त से भी ज्यादा अवसर हैं। मध्यप्रदेश, इतिहास और विरासत की भूमि है। भारत में स्थित यूनेस्को की 62 विश्व धरोहर है जिसमें से 18 मध्यप्रदेश में है। संस्कृति और आध्यात्म की दृष्टि से मध्यप्रदेश अत्यंत समृद्ध है। प्रदेश में 2 ज्योतिर्लिंग के साथ विश्व की प्राचीनतम नदियों में से एक और प्रदेश में पूजनीय नदी माँ नर्मदा बहती है। आज के तनाव भरे जीवन में मां नर्मदा के किनारे स्थित सभी स्थल आपको अध्यात्म और सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं। भारत, विशेष रूप से मध्यप्रदेश, वैश्विक निवेश के लिए उतना ही सुरक्षित और सक्षम है जितना कोई विकसित देश।

सरकार का विजन है कि उज्जैन, ओंकारेश्वर, चित्रकूट जैसे धार्मिक स्थलों के उन्नयन में दीर्घकालिक दृष्टि, लोक सहभागिता और वैश्विक डिज़ाइन समन्वय का दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। हमारी पारंपरिक कलाओं गोंड, फड़, मांडना आदि को डिजिटल प्लेटफॉर्म और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पहुंचाने की योजना को और अधिक प्रभावी बनाया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी क्योंकि कला न केवल पहचान का माध्यम है, बल्कि शिक्षा, रोजगार और पर्यटन विकास का प्रभावी उपकरण भी है।

हमें यह दिख रहा है कि सीएम डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में पर्यटन, कला, संस्कृति और निवेशतीनों के समन्वय से आगे बढ़ रहा है। विश्वस्तरीय पर्यटन सुविधाएं विकसित हो सकें, इसलिए टूरिज्म सेक्टर को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से होटल परियोजनाओं पर मप्र सरकार 30 करोड़ रुपये तक की वित्तीय सहायता दे रही है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा दुबई और स्पेन की यात्रा से पहले भी पर्यटन निवेश के लिए कई प्रयास किये गए हैं। रीजनल इंडस्ट्री कॉनक्लेव, भोपाल में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट, इंग्लैंड, जर्मनी और जापान की यात्रा, भारत के प्रमुख नगरों कोलकाता, कोयम्बटूर, सूरत, लुधियाना में भी सेक्टर वाइज बैठकों और संगोष्ठियों के माध्यम से मध्यप्रदेश में उद्योग क्षेत्र में नई इकाईयों की स्थापना के लिए ठोस प्रयास किए गए हैं। भोपाल में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से लगभग 30.77 लाख करोड़ रुपए से अधिक के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। लंदन में एक उद्योगपति को निवेश के लिए आनलाइन आवेदन के तुरंत बाद भूमि आवंटन किया जाना मप्र में इज आफ डूइंग बिजनेस का उदाहरण है।

मध्यप्रदेश पर्यटन को नई उड़ान रीवा रीजनल टूरिज्म कॉन्क्लेव में भी मिलती दिखी जहां 3000 करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। हेल्थ एंड वेलनेस टूरिज्म, धार्मिक पर्यटन, पीएमश्री पर्यटन वायु सेवा बुकिंग पोर्टल का IRCTC पोर्टल पर बुकिंग सुविधा, पर्यटन ग्रामों में विकसित ग्रामस्टे को डिजिटल बुकिंग प्रणाली से जोड़ते हुए होम स्टे ऑनलाइन बुकिंग पोर्टल को लॉन्च किया गया है।

सीएम डॉ. मोहन यादव कहते हैं कि पर्यटन तो हमारा प्रिय निवेश क्षेत्र है। इसके सुखद पहलू भी हमें पता हैं। बेहतर एयर कनेक्टिविटी एवं पर्यटन सुविधाओं में विस्तार के कारण म.प्र. में विदेशी पर्यटकों की संख्या 30-40 फीसदी बढ़ने का अनुमान है। मध्यप्रदेश भारत में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला राज्य है। यह पिछले 10 साल से अग्रणी बनी हुई है। प्रदेश सरकार ने 18 नई नीतियां लागू की हैं, जो देश में सर्वश्रेष्ठ हैं। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विकसित किये जा रहे ईएसजी (पर्यावरण, सामाजिक और सुशासन) मॉड्यूल को वैश्विक स्तर पर सकरात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है। मुख्यमंत्री की यह यात्रा मध्यप्रदेश के पर्यटन को वैश्विक निवेश नक्शे पर और सशक्त रूप से स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकती है। विदेशी निवेशकों से सीएम द्वारा कहीं गई यह बात पर्यटन के नए भविष्य की ओर इशारा करती है एक बार मध्यप्रदेश अवश्य आइये, मध्यप्रदेश के पर्यटन को भूल नहीं पाएंगे। "मैन ऑफ आइडिया" डॉ. मोहन यादव विचारों को जमीन पर उतारने की दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ निवेश के लिए प्रयास क्या रंग लाएंगे, आने वाले समय में यह दिख सकता है।

Tuesday, July 22, 2025

मध्यप्रदेश में निवेश की वैश्विक रणनीति

 

विदेश दौरे का हासिल : ग्लोबल एप्रोच से परफॉर्म, रिफॉर्म और ट्रांसफॉर्म के प्रयास

डॉ. दीपक राय, भोपाल (Mb. 9424950144)

 

Dr. Deepak Rai Journalist Article About CM Dr. Mohan Yadav

परफॉर्म, रिफॉर्म, ट्रांसफॉर्मके मूलमंत्र को आधार बनाकर ही कोई राज्य आत्म-निर्भर बन सकता है। उद्योगों की स्थापना और निवेश को बढ़ाकर इस मूलमंत्र को जमीन पर उतारा जा सकता है। इन दिनों मध्यप्रदेश की संभावनाओं को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने के लिए 'उद्योग एवं रोजगार वर्ष 2025' के तहत 'लोकल से ग्लोबल' प्रयास किये जा रहे हैं। हमें यह समझना चाहिए कि संभावनाएं कितनी भी क्यों हों? लेकिन जब तक 'आकर्षण' नहीं होगा, कोई यूं की खिंचा नहीं चला आएगा। आकर्षण होने बाद अगर कोई पास आता भी जाता है तो वह ज्यादा समय टिक पाएगा? इसकी गारंटी सुविधाओं और 'ईज ऑफ डूइंग' से तय होती है। यह बातें मैं किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं कह रहा हूं। उपरोक्त सभी बातें एक राज्य से संबंधित हैं, जो कि संभावनाओं और सुविधाओं से युक्त है। मध्यप्रदेश औद्योगिक, सांस्कृतिक और पर्यटन संभावनाओं वाला प्रदेश है, यह बात किसी से नहीं छिपी नहीं है। लेकिन संभावनाओं के प्रसार का जो कार्य पिछले डेढ़ वर्ष में होते दिख रहा है, वह चौंकाता है। सिर्फ अफसरों के भरोसे रहने वाली'निवेश की रणनीति' में बदलाव हुआ है। अब नए किरदार के रूप में राज्य के मुखिया भागीरथी प्रयास करते दिख रहे हैं। एक वर्ष 7 महीने के छोटे से कार्यकाल में सीएम डॉ. मोहन यादव तीन बार में 5 देशों की यात्रा कर चुके हैं। यह यात्रा निवेशकों को आकर्षित करने, प्रदेश को वैश्विक व्यापार के केंद्र के रूप में स्थापित करने और राज्य में रोजगार सृजन की संभावनाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई है। हाल ही में दुबई और स्पेन में निवेशकों से संवाद करके भोपाल लौटे सीएम आशाओं से भरे और उत्साह युक्त दिखाई दिए। राज्य में उद्योग विस्तार और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए सीएम की विदेश यात्रा क्यों जरूरी है? इसका जवाब भी जानना होगा। एक बेहतर प्रशासक की पहचान यह है कि वहकुंए का मेंढक़बनकर रहे। एक अच्छे प्रशासक को, देश-दुनिया में क्या चल रहा है? इसका प्रथम दृष्ट्या जमीनी अनुभव होना चाहिए। सीएम डॉ. मोहन यादव उन देशों के तौर-तरीके, वहां की संभावनाएं, उन देशों से नवाचार सीखकर रहे हैं। इतिहास गवाह है- दुनिया की तरक्की, एक दूसरे देशों की अच्छी बातों और नवाचारों को ग्रहण करने के कारण हुई है। हमें यह जान लेना चाहिए कि अमेरिका, जर्मनी, दुबई, जापान और स्पेन ही क्यों हो? सभी के विकास का मूल आधार वहां के उद्योग-धंधे ही हैं। यू.के. और जर्मनी नगर-नियोजन, सभ्यता, औद्योगिक तरक्की और ट्रैफिक व्यवस्था मध्यप्रदेश में अपनाने योग्य है। आने वाले समय में यह मध्यप्रदेश में भी अपनाए जा सकते हैं। मेरी सलाह है किसरकारों को लगातार इस तरह देश और विदेशों के विकसित इलाकों का दौरा करते रहना चाहिए, क्योंकि सुनने की बजाएयात्रा करके' लिया गया अनुभव ज्यादा असरकारक होता है।




निवेश यात्राओं से इन्वेस्टमेंट की राह तो खुलेंगी ही, प्रदेश के विकास के लिए नई दृष्टि मिल सकेगी। प्रदेश के विकास के लिए यह यात्रा आगे उपयोगी सिद्ध होगी ही, साथ ही साथ 'विकसित भारत @2047' के निर्माण में मध्यप्रदेश की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। मध्यप्रदेश की संभावनाओं को समझने के लिए यह दो बयान बहुत महत्वपूर्ण है। सीएम के तत्कालीन यू.के. दौरा के दौरान ब्रिटिश सांसद लॉर्ड रमिन्दर रेंजर ने कहा था- ''यूरोप और यूएसए की ग्रोथ की अपेक्षा भारत में 8 प्रतिशत से ज्यादा की ग्रोथ मौजूद है। भारत में इन्वेस्ट किया गया धन सेफ है।'' एक अन्य सांसद लॉर्ड कुलवीर रेंजर की बात भी गौर फरमाइए- ''मध्यप्रदेश उभरता हुआ राज्य है। सीएम डॉ. मोहन यादव ने निवेशकों के साथ की वन-ऑन-वन मीटिंग्स के सकारात्मक परिणाम आएंगे।'' तीन बार में पांच देशों की यात्राओं से मध्यप्रदेश को क्या हासिल हुआ है? यह जानना भी जरूरी है।

पहली यात्रा: 24 से 30 नवंबर 2024 तक यूके और जर्मनी का दौरा किया। वहां से लगभग 78 हजार करोड़ के निवेश के प्रस्ताव प्राप्त हुए। जर्मनी के मात्र डेढ़ दिन के प्रवास में 18 हजार करोड़ के निवेश के प्रस्ताव मिल गए। कई प्रस्तावों पर कार्य आगे बढ़ चुके हैं।

दूसरी यात्रा : 27 जनवरी से 31 जनवरी 2024 तक जापान की निवेश यात्रा की। ऑटोमोबाइल, कपास उत्पादन, रेडीमेड गारमेंट से निवेश के प्रस्ताव मिले। जापान के सबसे अमीर उद्योगपति ने मध्यप्रदेश में निवेश पर रुचि दिखाई।

तीसरी यात्रा : अब मुख्यमंत्री 20 जुलाई 2025 को भोपाल पहुंचे हैं। 13 से 19 जुलाई तक दुबई और स्पेन में शीर्ष व्यापारिक प्रतिनिधियों से मिले। यहां से 11 हजार 119 करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्ताव मिले हैं। जिससे 14 हजार से अधिक व्यक्तियों को रोजगार भी मिलने की उम्मीद है।

विदेश यात्राओं के अलावा देश में आरआईसी, इंटरएक्टिव सेशन, ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट जैसे भव्य आयोजन हुए हैं, जिनके जरिये राज्य में निवेश के लिए अनुकूल माहौल तैयार होता दिख रहा है। लेकिन क्या मध्यप्रदेश निवेशकों के लिए एक पारदर्शी और भरोसेमंद राज्य है? यह निवेशकों के लिए कितना अनुकूल है? आखिर यहां निवेशक उद्योग धंधे क्यों लगाने आएंगे? इसके जवाब में हमें पता चलता है- एमपी में 18 नई औद्योगिक नीतियां लांच की गई हैं। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, जनविश्वास अधिनियम, सिंगल विंडो सिस्टम, पर्याप्त लैंड बैंक, हाथों-हाथ अनुमतियां, पानी और बिजली की पर्याप्त उपलब्धता, उद्योगपतियों को सब्सिडी (वर्ष 2024-25 में 5260 करोड़ रुपये), छोटे निवेशकों को अतिरिक्त प्रोत्साहन की सुविधा। कुशल मानव श्रम, सड़क-हवाई-रेलवे मार्ग से पूरे देश से आसान कनेक्टिविटी, पर्यटन, फार्मा, माइनिंग, कृषि, डेयरी, नवकरणीय ऊर्जा, कम संचालन लागत, प्रशिक्षित युवा प्रतिभा की उपलब्धता वैश्विक निवेशकों की पसंद बन सकते हैं। तमिलनाडु के कोयंबटूर और गुजरात के अहमदाबाद में उद्योग कार्यालय प्रारंभ करने के लिए सरकार ने नवाचार प्रदर्शित किया है।

ऐसे में, सीएम डॉ. मोहन यादव के द्वारा निवेश के लिए की जाने वाली यात्राएं केवल मध्यप्रदेश, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती हैं। यात्राओं से वैश्विक मंच पर राज्य की विकास योजनाओं और संभावनाओं को प्रस्तुत किया जाता है। खुद राज्य के मुखिया का अन्य देशों में निवेश की संभावनाओं को तलाशने पहुंच जाना, यह विजन और डेडिकेशन नहीं तो और क्या है? मुख्यमंत्री की सक्रियता और विकासोन्मुखी दृष्टिकोण ने केवल राज्य में, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी छवि को मजबूत किया है। यह यात्रा मध्य प्रदेश को वैश्विक निवेश के नक्शे पर और मजबूती से स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।