Friday, November 14, 2025

डॉ. मोहन भैया सिर्फ स्कीम नहीं चला रहे, बहनों से वादा निभा रहे, रिश्ता कमा रहे

 

1500 रुपये की 'स्नेह राशि' और विकास की नई इबारत एवं नारी सशक्तिकरण का 'मोहन' मॉडल 

 

प्रसंगवश
डॉ. दीपक राय, भोपाल
दैनिक मीडिया गैलरी
मो. 9424950144
12 नवंबर 2025

Ladli Behna Yojna Money Increase by Dr. Mohan Yadav



लाड़ली बहना योजना महज एक 'स्कीम' नहीं है, बल्कि एक 'रिश्ता' है। यह केवल 1500 रूपये का हस्तांतरण नहीं है, यह एक 'आर्थिक महायज्ञ' है, जिसकी आहुति सीधे प्रदेश की अर्थव्यवस्था की नींव को मजबूत कर रही है। कई कार्यक्रमों में सार्वजनिक रूप से बहनें अपने 'भैया मोहन' का आभार जताते हुए कहती हैं कि "वे ठीक उसी प्रकार हमारा ध्यान रख रहे हैं, जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा का ध्यान रखा था।" यह उपमा साधारण नहीं है। यह योजना को सरकारी फाइलों से निकालकर सीधे भारतीय संस्कृति और परिवार के भावनात्मक ताने-बाने से जोड़ देती है। यह 'मुख्यमंत्री' को 'परिवार के मुखिया' या 'बड़े भाई' के रूप में स्थापित करता है, जो अपनी बहनों की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है...



मध्य प्रदेश के इतिहास के पन्नों में 12 नवंबर 2025 की तारीख एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में जुड़ रही है। यह तारीख केवल कैलेंडर की एक तारीख नहीं, बल्कि यह प्रदेश की 1.26 करोड़ से अधिक बहनों के विश्वास, आशा और सशक्तिकरण के उत्सव का दिन है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, जिन्हें प्रदेश की बहनें स्नेह से 'मोहन भैया' कहती हैं, अपना एक बड़ा वादा पूरा करने जा रहे हैं। 
1000 रूपये महीने से शुरू हुई लाड़ली बहना योजना को 1500 रूपये करने का कीर्तिमान रचने का यह डॉ. मोहन यादव को मिल रहा है। सिवनी का पॉलिटेक्निक कॉलेज मैदान भी उस पल का गवाह बनने वाला है जहां से 'सिंगल क्लिक' के माध्यम से, वे 'मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना' की 30वीं किस्त के रूप में 1857 करोड़ रुपये की राशि अंतरित होने जा रही है। आज की यह कोई सामान्य किस्त नहीं है। यह वह क्षण है जब योजना की राशि बढ़कर 1500 रुपये प्रति माह हो रही है। यह सिर्फ 250 रुपये की वृद्धि नहीं है; यह एक प्रतिबद्धता का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि डॉ. मोहन के लिए 'नारी सशक्तिकरण' केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक दृढ़ संकल्प है।

राज्य-स्तरीय कार्यक्रम के लिए सिवनी का चयन अपने आप में एक गहरा संदेश देता है। यह दर्शाता है कि विकास और कल्याण का केंद्र अब केवल राजधानी भोपाल या बड़े महानगरों तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकार की दृष्टि प्रदेश के हर कोने पर समान रूप से है। एक तरफ प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के माध्यम से नागरिकों का तत्काल आर्थिक सशक्तिकरण, और दूसरी तरफ, बुनियादी ढाँचे (सड़कें, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा) में निवेश करके दीर्घकालिक विकास को गति देना। यह 'कल्याण' और 'विकास' का एक संतुलित मॉडल है, जिसे डॉ. मोहन यादव की सरकार आगे बढ़ा रही है।
जब 17 दिसंबर 2023 में डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला, तब कुछ लोगों ने इस योजना के भविष्य पर संदेह व्यक्त किया था। लेकिन डॉ. यादव ने न केवल इस योजना को पूरी दृढ़ता से जारी रखा, बल्कि इसे और अधिक मजबूती प्रदान की। राशि को क्रमिक रूप से बढ़ाने का वादा किया गया था, और अब 1500 रुपये की किस्त जारी करके, डॉ. यादव ने यह सिद्ध कर दिया है कि वे अपने पूर्ववर्ती की विरासत को न केवल सहेज रहे हैं, बल्कि उसे एक नया आयाम भी दे रहे हैं।
यह कदम राजनीतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह 'भैया' के वादे की निरंतरता को दर्शाता है, जो प्रदेश की महिलाओं को आश्वस्त करता है कि सरकार बदलने से उनकी प्राथमिकताएँ नहीं बदली हैं।
इस योजना की सफलता का एक बड़ा कारण यह केवल एक 'स्कीम' नहीं है, बल्कि एक 'रिश्ता' है। कई कार्यक्रमों में सार्वजनिक रूप से बहनें अपने 'भैया मोहन' का आभार जताते हुए कहती हैं कि "वे ठीक उसी प्रकार हमारा ध्यान रख रहे हैं, जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा का ध्यान रखा था।"
यह उपमा साधारण नहीं है। यह योजना को सरकारी फाइलों से निकालकर सीधे भारतीय संस्कृति और परिवार के भावनात्मक ताने-बाने से जोड़ देती है। यह 'मुख्यमंत्री' को 'परिवार के मुखिया' या 'बड़े भाई' के रूप में स्थापित करता है, जो अपनी बहनों की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। यह भावनात्मक जुड़ाव ही इस योजना की आत्मा है, जो इसे किसी भी अन्य कल्याणकारी योजना से अलग और अधिक प्रभावशाली बनाता है।

आंकड़ों के आईने में: इस योजना का पैमाना और इसका वित्तीय प्रभाव चकित करने वाला है। 30वीं किस्त को मिलाकर, जून 2023 से अब तक 44,917.92 करोड़ रुपये से अधिक की राशि सीधे महिलाओं के खातों में अंतरित की जा चुकी है। इसमें रक्षा बंधन पर तीन बार दी गई 250 रुपये की विशेष सहायता राशि भी शामिल है। प्रदेश के सभी 52 जिलों में 1 करोड़ 26 लाख 36 हजार से अधिक लाभार्थी, यह संख्या दर्शाती है कि शायद ही कोई ऐसा गरीब या मध्यमवर्गीय परिवार हो, जो इस योजना के सकारात्मक प्रभाव से अछूता हो।

व्यापक पहुंच: इंदौर जिले में सर्वाधिक 4.40 लाख लाभार्थी हैं, तो सागर में 4.19 लाख और रीवा में 4.03 लाख। यह दिखाता है कि योजना ने शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में समान रूप से अपनी पैठ बनाई है।
हर कोने तक लाभ: दूसरी ओर, निवाड़ी जैसे छोटे जिले में भी 80 हजार से अधिक बहनें लाभान्वित हो रही हैं। छिंदवाड़ा (3.90 लाख), जबलपुर (3.81 लाख), और ग्वालियर (3.05 लाख) जैसे प्रमुख केंद्रों से लेकर अलीराजपुर (1.23 लाख) और श्योपुर (1.08 लाख) जैसे आदिवासी बहुल जिलों तक, इसका विस्तार अभूतपूर्व है।

आर्थिक आत्मनिर्भरता: 
यह योजना सिर्फ 1500 रुपये देने से कहीं आगे निकल गई है। इसके बहुआयामी प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। जो आर्थिक स्वतंत्रता से पारिवारिक निर्णय तक फैले हैं। यह राशि महिलाओं को अपनी छोटी-छोटी वित्तीय आवश्यकताओं के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहने देती। चाहे वह बच्चों की स्कूल की फीस हो, घर के लिए कोई जरूरी सामान हो, या खुद के लिए दवाइयाँ हों, अब उनके पास अपना पैसा है।
बैंकिंग प्रणाली से जुड़ाव: इस योजना ने लाखों महिलाओं को पहली बार औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ा है। अपने खाते का संचालन करना, डिजिटल भुगतान सीखना और बचत की आदत डालना, यह एक मूक वित्तीय क्रांति है।
उद्यमिता को बल: कई महिलाओं ने इस राशि का उपयोग 'पूंजी' के रूप में किया है। सिलाई मशीन खरीदना, सब्जी की दुकान लगाना या कोई छोटा-मोटा घरेलू व्यापार शुरू करना—यह पैसा उन्हें 'उद्यमी' बनने का आत्मविश्वास दे रहा है।
पारिवारिक निर्णयों में भूमिका: जब एक महिला आर्थिक रूप से योगदान देती है, तो परिवारिक निर्णयों में उसकी आवाज का वजन बढ़ जाता है। यह योजना महिलाओं के 'सामाजिक सम्मान' को सुदृढ़ कर रही है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा 1500 रुपये की किस्त जारी करना एक वादे को निभाने से कहीं अधिक है। यह 'आत्मनिर्भर मध्य प्रदेश' के निर्माण की दिशा में एक ठोस कदम है। यह इस विश्वास की पुष्टि है कि जब प्रदेश की आधी आबादी (महिलाएं) आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर होंगी, तभी राज्य सही मायनों में प्रगति कर सकता है।
लाड़ली बहना योजना अब केवल एक योजना नहीं है; यह मध्य प्रदेश के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य का एक स्थायी हिस्सा बन चुकी है। यह एक ऐसा 'सुरक्षा कवच' है, जो बहनों को विश्वास दिलाता है कि उनका 'भैया' उनके साथ खड़ा है। सिवनी से जलने वाली यह विकास की लौ, निश्चित रूप से पूरे मध्य प्रदेश को 'आत्मनिर्भरता' के प्रकाश से आलोकित करेगी।
(लेखक डॉ. दीपक राय "MY मध्यप्रदेश" , "सोशल मीडिया राजनीति और समाज" पुस्तक के लेखक हैं।)

Janjatiya Gaurav Diwas & Dr. Mohan Yadav Government Pledge

 Dreams of Dharti Aba and Efforts Being Made in Madhya Pradesh

 Dr. Deepak Rai, Mob. 9424950144

CM Dr. Mohan Yadav working for Tribal of Madhya Pradesh Janjatiya Gaurav Diwas


Today, as we celebrate the completion of the 150th birth anniversary of 'Dharti Aba' Bhagwan Birsa Munda, the entire nation is immersed in the joy of 'Tribal Pride Day.' This day is not merely a commemoration, but a day to express gratitude to the countless tribal heroes who, even at the cost of their lives, protected the self-respect, culture, and personal dignity of this nation. Madhya Pradesh, home to the largest tribal population in the country, has been an important chapter in this glorious saga. The land here is irrigated by the valor of countless heroes like Rayanna, Sidho-Kanhu Santhal, Baba Tilka Manjhi, Alluri Sitarama Raju, Gundadhur, Surendra Sai, immortal martyr Shankar Shah, Raghunath Shah, Tantya Bhil, Khajya Nayak, Bhima Nayak, and Jhalkari Bai. Therefore, the question naturally arises: against this historical backdrop, what is the current Madhya Pradesh government doing to uplift its tribal community? It would be pertinent to analyze the vision and actions of Chief Minister Dr. Mohan Yadav's government, which is about to complete two years in office in a month and a quarter. From the very beginning of its tenure, the Dr. Mohan Yadav government made it clear that tribal welfare is not only a matter of economic but also of cultural respect. After the formation of the government, the first cabinet meeting was held in Jabalpur in January 2024, in the name of the brave women Rani Durgavati and Rani Avantibai. This trend did not stop there; By holding a cabinet meeting on October 5, 2024, on the birth anniversary of the brave queen Rani Durgavati, in her first capital, Singrampur, the government sent a clear message that honoring tribal heroes is not merely symbolic but also a policy-making one. In this vein, renaming Alirajpur district to "Alirajpur" is not merely a name change, but a symbol of respect for the identity of the tribal community and their cultural renaissance. The biggest evidence of any government's priorities is its budget. The Dr. Mohan Yadav government has made a significant impact on this front. The budget has been increased unprecedentedly to ₹47,295 crore (₹47,295 crore). This represents a massive increase of ₹6,491 crore (15.91%) compared to the previous year. This figure demonstrates the government's commitment to welfare with all its heart, mind, and money. This increased budget is giving impetus to ambitious schemes like 'PM Janman' and 'Dharti Aba', which directly aim at the overall development of backward and vulnerable tribes especially Baiga, Bharia, Saharia. One of the biggest challenges facing tribal communities is access to healthcare. The government has taken this on a mission mode. The "Sickle Cell Hemoglobinopathy Mission" has been implemented in all 89 tribal development blocks of Madhya Pradesh. This is significant because sickle cell anemia has been a major health challenge in this community. Distributing over one crore sickle cell screening and counseling cards so far is a major achievement. In addition, 66 Mobile Medical Units (MMUs) are operating in 21 districts to provide access to healthcare services in remote areas. The "Aahar Anudan Yojana," which provides a monthly nutritional grant of Rs. 1,500 to women heads of Scheduled Tribes, is directly improving maternal and child health. Madhya Pradesh's ranking first in the country in the construction of Anganwadi buildings under the "PM Jan-Mann Yojana" reflects this commitment. Education holds the key to the upliftment of any community. The Dr. Mohan Yadav government has created a new ecosystem of opportunities for tribal students. The most striking example of this is the performance of tribal students in difficult examinations like JEE and NEET. The success of 51 students in JEE Main, 10 in JEE Advanced, and 115 in NEET in 2024-25 is nothing short of revolutionary, especially when the figure was only two in 2022-23. This performance has placed Madhya Pradesh at the second position in the national rankings. A vast infrastructure is behind this success. There are 34,557 educational institutions (primary schools, ashrams, hostels, Eklavya schools, etc.) operating in the state. Scholarships in hostels are now offered for 12 months instead of 10 months. Initiatives like the 'Aakanksha Yojana' and the 'Rani Durgavati Training Academy' (where free coaching will be provided) are ensuring that talent does not face a lack of resources. Most importantly, the initiative to include the biography of Bhagwan Birsa Munda Ji and the valorous tales of other brave heroes in the school curriculum is instilling a sense of pride in the new generation towards their roots. The soul of tribal society is linked to "water, forest, and land." The PESA Act has played a crucial role in preserving indigenous culture and empowering village councils. Tribal village councils now have genuine control over their biological resources, land, and traditional systems. They are formulating their own village development plans, establishing a strong foundation for self-governance in tribal areas. On the livelihood front, increasing the remuneration of millions of tendu leaf collectors to ₹4,000 per standard sack is a major economic boost. The process of establishing separate battalions for Baiga, Bharia, and Saharia under the "Shaurya Sankalp Yojana" is providing them with a unique opportunity to serve the nation. Lord Birsa Munda called for the "Ulgulan" to protect water, forest, land, and our culture. Today, the Madhya Pradesh government, under the leadership of Dr. Mohan Yadav, is living out that same call in a new context. This government is not limited to welfare schemes, but is focused on the "respect," "empowerment," and "self-governance" of tribal communities. It would not be an exaggeration to say that Chief Minister Dr. Mohan Yadav's government is working to ensure the welfare of the tribal community and laying the foundation for a culturally rich and prosperous Madhya Pradesh, as envisioned by "Dharti Aba."

https://centralchronicle.com/epaper/index.php?pgno=6&date1=2025-11-15

जनजातीय गौरव दिवस और मध्य प्रदेश सरकार का संकल्प

 


धरती आबा के सपने और मध्यप्रदेश में किये जा रहे प्रयास

डॉ. दीपक राय, शोध लेखक एवं पत्रकार, मो. 9424950144

Dr. Mohan Yadav Government Work for Tribal Community in Madhya Pradesh


आज, जब हम 'धरती आबा' भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के समापन वर्ष का उत्सव मना रहे हैं, पूरा देश 'जनजातीय गौरव दिवस' के उल्लास में डूबा है। यह दिवस केवल एक स्मरणोत्सव नहीं, बल्कि उन असंख्य जनजातीय वीरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का दिन है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर भी इस देश के आत्मसम्मान, संस्कृति और निज गौरव की रक्षा की। मध्य प्रदेश, जो देश की सर्वाधिक जनजातीय आबादी का घर है, इस गौरवगाथा का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है। यहाँ की धरती रायन्ना, सिद्धो-कान्हू संथाल, बाबा तिलका मांझी, अल्लूरी सीताराम राजू, गुण्डाधुर, सुरेन्द्र साय, अमर शहीद शंकर शाह, रघुनाथ शाह, टंट्या भील, खाज्या नायक, भीमा नायक, और झलकारी बाई जैसे अनगिनत वीरों के शौर्य से सिंचित है। ऐसे में, यह प्रश्न स्वाभाविक है कि इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में, वर्तमान मध्य प्रदेश सरकार अपने जनजातीय समाज के उत्थान के लिए क्या कर रही है? सवा महीने बाद अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे करने जा रहे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार के दृष्टिकोण और कार्यों का विश्लेषण करना समीचीन होगा। डॉ. मोहन यादव सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही यह स्पष्ट कर दिया कि जनजातीय कल्याण केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक सम्मान का भी विषय है। सरकार के गठन के बाद जनवरी 2024 में पहली कैबिनेट बैठक वीरांगना रानी दुर्गावती और रानी अवंतीबाई के नाम पर जबलपुर में आयोजित की गई। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका; 5 अक्टूबर 2024 को वीरांगना रानी दुर्गावती के जन्म दिवस पर उनकी पहली राजधानी सिंग्रामपुर में कैबिनेट की बैठक कर सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया कि जनजातीय नायकों का सम्मान केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि नीतिगत भी है। इसी दिशा में, अलीराजपुर जिले का नाम परिवर्तित कर 'आलीराजपुर' करना, केवल एक नाम परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह जनजातीय वर्ग की अस्मिता के सम्मान और उनके सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। किसी भी सरकार की प्राथमिकता का सबसे बड़ा प्रमाण उसका बजट होता है। डॉ. मोहन यादव सरकार ने इस मोर्चे पर एक बड़ी लकीर खींची है। बजट को अभूतपूर्व रूप से बढ़ाकर 47 हजार 295 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 6,491 करोड़ रुपये (15.91%) की भारी वृद्धि है। यह आँकड़ा दर्शाता है कि सरकार कल्याण के लिए 'तन, मन और धन' से जुटी हुई है। यह बढ़ा हुआ बजट 'पीएम जनमन' और 'धरती आबा' जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं को गति दे रहा है, जिनका सीधा लक्ष्य विशेष रूप से पिछड़ी और कमजोर जनजातियों जैसे बैगा, भारिया, सहरिया का समग्र विकास करना है।

जनजातीय समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच रही है। सरकार ने इसे मिशन मोड में लिया है। मध्य प्रदेश के सभी 89 जनजातीय विकासखंडों में 'सिकलसेल हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन' लागू किया गया है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सिकल सेल एनीमिया इस समुदाय में एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती रही है। अब तक एक करोड़ से अधिक सिकल सेल स्क्रीनिंग एवं काउंसिलिंग कार्ड वितरित किया जाना एक बड़ी उपलब्धि है।


इसके अतिरिक्त, दूर-दराज के अंचलों तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने के लिए 21 जिलों में 66 मोबाइल मेडिकल यूनिट्स (एमएमयू) संचालित हैं। 'आहार अनुदान योजना' के तहत विशेष पिछड़ी जनजातियों की महिला मुखिया को 1,500 रुपये प्रतिमाह पोषण आहार अनुदान देना, सीधे तौर पर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार ला रहा है। 'पीएम जन-मन कार्यक्रम' के अंतर्गत आंगनवाड़ी भवनों के निर्माण में मध्य प्रदेश का देश में पहले स्थान पर होना इसी प्रतिबद्धता को दिखाता है।

किसी भी समाज के उत्थान की कुंजी शिक्षा में निहित है। डॉ. मोहन यादव सरकार ने जनजातीय विद्यार्थियों के लिए अवसरों का एक नया पारिस्थितिकी तंत्र तैयार किया है। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण जेईई और नीट जैसी कठिन परीक्षाओं में जनजातीय विद्यार्थियों का प्रदर्शन है। 2024-25 में जेईई मेंस में 51, जेईई एडवांस्ड में 10 और नीट में 115 विद्यार्थियों का उत्तीर्ण होना एक क्रांति से कम नहीं है, खासकर तब जब 2022-23 तक यह आंकड़ा मात्र 2 था। इस प्रदर्शन ने मध्य प्रदेश को देश की रैंकिंग में दूसरे स्थान पर ला दिया है। इस सफलता के पीछे एक विशाल ढाँचा काम कर रहा है। प्रदेश में 34,557 शैक्षणिक संस्थाएं (प्राथमिक शाला, आश्रम, छात्रावास, एकलव्य विद्यालय आदि) संचालित हैं। छात्रावासों में अब 10 माह के स्थान पर 12 माह की शिष्यवृत्ति दी जा रही है। 'आकांक्षा योजना' और 'रानी दुर्गावती प्रशिक्षण अकादमी' (जहाँ फ्री कोचिंग दी जाएगी) जैसी पहलें यह सुनिश्चित कर रही हैं कि प्रतिभा को संसाधनों की कमी का सामना न करना पड़े। सबसे महत्वपूर्ण, भगवान बिरसा मुंडा जी की जीवनी और अन्य वीर नायकों की शौर्य कथाओं को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की पहल, नई पीढ़ी में अपनी जड़ों के प्रति गर्व का भाव भर रही है।

जनजातीय समाज की आत्मा 'जल, जंगल और जमीन' से जुड़ी है। देशज संस्कृति को संरक्षित रखने और ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने में 'पेसा नियमों' ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। अब जनजातीय ग्राम सभाओं को अपने जैविक संसाधनों, भूमि और पारम्परिक व्यवस्थाओं पर वास्तविक अधिकार प्राप्त हुए हैं। वे अपने गांवों की विकास योजनाएं खुद बना रही हैं, जिससे जनजातीय अंचलों में 'स्वशासन' का एक सशक्त आधार स्थापित हुआ है। आजीविका के मोर्चे पर, लाखों तेंदूपत्ता संग्राहकों का पारिश्रमिक बढ़ाकर 4,000 रुपये प्रति मानक बोरी करना एक बड़ा आर्थिक संबल है। वहीं, 'शौर्य संकल्प योजना' के तहत बैगा, भारिया एवं सहरिया के लिये अलग बटालियन गठित करने की प्रक्रिया, उन्हें राष्ट्र सेवा में एक विशिष्ट अवसर प्रदान कर रही है।

भगवान बिरसा मुंडा ने 'उलगुलान' का आह्वान जल, जंगल, जमीन और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए किया था। आज, डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्य प्रदेश सरकार उसी आह्वान को एक नए संदर्भ में जी रही है। यह सरकार केवल कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जनजातीय समाज के 'सम्मान', 'सशक्तिकरण' और 'स्वशासन' पर केंद्रित है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार, जनजातीय समुदाय के कल्याण के साथ-साथ सांस्कृतिक रूप से संपन्न और समृद्ध मध्य प्रदेश की उस नींव का निर्माण कर रही है, जिसका सपना 'धरती आबा' ने देखा था।


Wednesday, November 5, 2025

Why Ekta Diwas Matter -Dr. Deepak Rai Journalist Article

 Dr. Deepak Rai Journalist Article 


Why Ekta Diwas Matter

 Dr. Deepak Rai Journalist Article Ocassion of Ekta Diwas

One India, Great India: The Legacy of Ekta Diwas

Iron Man Sardar Ballabh Bhai Patel Article by Dr. Deepak Rai


 

-      DR. DEEPAK RAI Bhopal, Mb.9424950144


 


Every year on October 31, the nation pauses to honour one of its tallest leaders — Sardar Vallabhbhai Patel, the Iron Man of India. His vision, courage and statesmanship transformed a fragmented subcontinent into a single, united country. The day is observed as Ekta Diwas or National Unity Day, a tribute not only to Patel’s leadership but also to the enduring idea of India — diverse yet indivisible.


The Man Who Forged a Nation : When India won independence in 1947, celebration came with an enormous challenge. The British left behind more than 560 princely states, each with its own ruler and aspirations. The dream of a united India could have easily collapsed into chaos and division.


At that critical moment, Sardar Patel stepped forward as the architect of national integration. With a rare blend of firmness and diplomacy, he persuaded most rulers to accede to India, while dealing decisively with those who resisted. His handling of Hyderabad, Junagadh and other difficult regions showed a combination of restraint, tact and iron will.


Patel’s success was not just administrative; it was visionary. He believed that political unity was the foundation upon which India’s social and economic progress would stand. Without his leadership, the India we know today — stretching from Kashmir to Kanyakumari — might never have taken shape.


The Meaning Behind Ekta Diwas : Ekta Diwas is not a mere date on the calendar. It is a reminder of the values that bind us as a nation. It urges every Indian to remember that our strength lies in our unity, not in our divisions. The observance of the day across schools, institutions and offices — through runs for unity, cultural programs and pledges — is a symbolic reaffirmation of the principle Patel stood for: India first, always.


But beyond ceremony, the essence of Ekta Diwas lies in reflection. In a nation as vast and diverse as ours — with its multitude of languages, religions and customs — unity does not mean uniformity. It means the willingness to stand together despite differences, and to see in that diversity our greatest strength.


Relevance in a Changing India : More than seven decades after independence, the message of Ekta Diwas feels as relevant as ever. The challenges facing India today are different from those of 1947, yet they echo the same theme — the need to stay united amidst complexity.


Regionalism, communal divides and political polarization continue to test our collective spirit. But the idea of “Ek Bharat, Shreshtha Bharat” — One India, Great India — remains the guiding light. It reminds us that India’s greatness lies not in sameness, but in its ability to hold together countless differences through shared values and mutual respect.


The Statue of Unity in Gujarat, standing tall at 182 meters, is more than a monument. It is a message in stone — that one man’s determination can shape a nation’s destiny. It stands as a daily reminder of Patel’s belief that India’s unity was not a gift, but an achievement won through vision and resolve.


The Living Legacy of Patel : Patel’s legacy cannot be confined to the pages of history. It lives in the very structure of India — in its civil services, its federal framework, and its national character. His emphasis on discipline, duty and national interest continues to guide public life.


He once said, “Manpower without unity is not a strength unless it is harmonized and united properly.” His words hold a mirror to our times, when rapid progress and technological change must still be rooted in a sense of common purpose. Unity, for Patel, was not an abstract idea — it was the lifeblood of a strong and stable democracy.


One India, Great India : To celebrate Ekta Diwas is to celebrate the idea of nationhood that transcends all barriers — caste, creed, language or region. It calls upon every citizen to rise above narrow loyalties and commit to the larger ideal of India.


As we mark this day each year, we must remember that unity is not inherited; it must be nurtured. It is a daily act of responsibility — in how we treat each other, how we respect diversity, and how we place the nation above self-interest.


Sardar Vallabhbhai Patel gave us a united India. The task of keeping it strong, inclusive and vibrant rests with us. The spirit of Ekta Diwas reminds us that only a united India can truly be a great India — One India, Great India.


 

Tuesday, October 28, 2025

Greenfield Highways : MP's Growth Engine

 

Highways Being Built Away From Densely Populated Areas, Minimizing Disruption to Existing Routes


Dr. Deepak Rai, Research Writer & Journalist

Bhopal, 29 October 2025 Youth  Update

Greenfield Highways in Madhya Pradesh. Bharat Yadav IAS


Roads are the backbone of any country or state's economic, social, and cultural development. Roads strengthen the movement of people, goods, industry, agriculture, education, healthcare, and social sector connectivity. Roads are the pivotal factor in creating new employment opportunities and improving the living standards of rural populations. A state with good roads creates a new story of prosperity. Consequently, Madhya Pradesh, home to a rich agricultural and cultural heritage, is making significant progress in building road infrastructure. Under the leadership of Chief Minister Dr. Mohan Yadav, the Madhya Pradesh Road Development Corporation (MPRDC) is implementing numerous road projects across the state to improve connectivity and reduce travel time. New Greenfield Highway projects are targeted to boost economic activity. The state is poised to develop its first access-controlled Greenfield Highways. Two 4-lane corridors are being constructed, with provisions for future expansion, modern safety features, and a smart traffic management system. The MPRDC has initiated a series of Greenfield Highway projects that will transform travel across the state. Key projects include the Ujjain-Jawar Greenfield Highway, a 98.7-kilometer-long, four-lane corridor. Similarly, the Indore-Ujjain Greenfield Highway, a 48-kilometer-long highway, will reduce travel time between two of Madhya Pradesh's busiest cities. Ujjain, the cultural and spiritual capital, will witness the Simhastha Kumbh in 2028, so both these Greenfield Highways will be of particular importance. The Indore-Ujjain and Ujjain-Jawar sections are expected to decongest the city and reduce travel time ahead of Simhastha. MPRDC Managing Director, IAS Bharat Yadav (2008 batch), is known for his results-oriented approach and ability to successfully steer infrastructure projects from planning to implementation. He explains, "The Greenfield Highway will adopt environmentally friendly practices and sustainable construction methods, including the use of high-quality materials such as Ultra-High Performance Concrete (UHPC), glass fiber, geopolymer, and cold mix technology. The aim is to achieve zero-carbon emissions projects. Bharat Yadav further adds, "Our focus will be on promoting green energy during both construction and operation." It's important to understand what Greenfield Highways are? Unlike conventional road upgrades, these are built on new routes, away from densely populated areas to minimize disruption to existing routes. This highway ensures faster implementation, modern design standards, and improved connectivity for both logistics and passenger traffic. Greenfield highway construction will provide safe, sustainable road infrastructure, benefit rural populations, and ensure high-quality services through advanced technologies. MPRDC also plans to utilize innovations, including automated guided machinery, pre-cast technology, road master plans, RAMS, digital project management platforms, and IRC/IBC standards, to enhance road safety and quality. The MPRDC is also implementing several innovations in road construction. The construction of the 9.1-kilometer-long Raisen-Rahatgarh elevated road over the dam's backwaters is an engineering feat that will serve as a vital transportation link and a scenic route for travelers. Surrounded by water and lush greenery, this elevated bridge not only ensures seamless connectivity but is also expected to become a weekend destination for nature lovers who want to enjoy driving through a picturesque waterway. Advanced planning and monitoring technologies, such as the GIS-based Road Asset Management System (RAMS) and Integrated Project Management System (IPMS), are being used to ensure real-time data collection, transparency, and efficient resource utilization. Sustainability remains a key focus, with low-carbon construction practices and environmentally conscious designs reducing emissions and increasing road durability. These projects, being implemented under Dr. Mohan Yadav's government, are expected to have a multiplier effect on Madhya Pradesh's economy. This will not only provide better connectivity but also strengthen industrial corridors, facilitate agricultural transportation, promote tourism and attract investment. Currently, the government is constructing several roads in the Indore and Ujjain regions, and some reconstruction work is underway. Road overbridges are being built at several locations, and roads in the Indore and Ujjain regions, along with the entire state, are being developed to connect them to major markets across the country. This will strengthen the farmers here by connecting them to national markets. These Greenfield Highways will usher in a new era of highways, connectivity and sustainability in the state, including the commercial capital Indore, the spiritual and cultural city of Emperor Vikramaditya Ujjain, and the entire state. Furthermore, in the state capital Bhopal, keeping in mind the ever-increasing traffic and future requirements, the MPRDC is planning several ambitious projects to further strengthen the city's road infrastructure.

 

 "The Greenfield Highway will adopt environmentally friendly practices and sustainable construction methods, including the use of high-quality materials such as Ultra-High Performance Concrete (UHPC), glass fiber, geopolymer, and cold mix technology. The aim is to achieve zero-carbon emissions projects. Our focus will be on promoting green energy during both construction and operation."

- Bharat Yadav, MD, MPRDC

 

Tuesday, October 14, 2025

शाखा के अनुशासन से खुले सेवा के रास्ते


 राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में​ विस्तृत जानकारीयुक्त लेख डॉ. दीपक राय


RSS का शताब्दी वर्ष : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में बहुत कुछ जानना जरूरी है
प्रसंगवश
डॉ. दीपक राय, भोपाल
राष्ट्र साधना के लिए राष्ट्र प्रथम के लक्ष्य के साथ अपना सफर प्रारंभ करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है। 100 साल का यह सफर सुगम नहीं रहा। संघ के हर स्वयंसेवक ने अनुशासन के रास्ते इन 100 सालों में, नि:स्वार्थ अपने खाते में कई उपलब्धियां हासिल की हैं। संघ के सफर का सबसे बड़ा पड़ाव मैं 'सेवा' को मानता हूं। यह बात तथ्यों के साथ जानना जरूरी है।वर्ष 1925 की विजयादशमी के दिन जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी, तब उन्होंने कहा था कि राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति के लिए अपना जीवन-सर्वस्व आत्मीयतापूर्वक अर्पित करने को तैयार नेता ही स्वयंसेवक हैं। महात्मा गांधी ने कई अवसरों पर संघ के अनुशासन और राष्ट्र सेवा की सरहाना की थी। वर्ष 1934 में गांधीजी ने वर्धा में आरएसएस के एक शिविर का दौरा भी किया था जहां उन्होंने संघ में  समरसता, अनुशासन, अस्पृश्यता के पूर्ण अभाव, उच्च सादगी की प्रशंसा की थी। 16 सितंबर 1947 को गांधीजी ने दिल्ली में आरएसएस की एक सभा को संबोधित करते हुए आरएसएस की सेवा एवं बलिदान भावना को सराहा था। संघ के शताब्दी वर्ष समारोह में 1 अक्टूबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई यह बात— 'खुद दुख उठाकर दूसरों के दुख हरना। ये स्वयंसेवक की पहचान है। संघ देख के उन क्षेत्रों में भी कार्य करता रहा है जो दुर्गम हैं, जहां पहुंचना सबसे कठिन है।' बहुत महत्वपूर्ण है। संघ की 100 वर्षों की इस गौरवमयी यात्रा की स्मृति में भारत सरकार ने विशेष डाक टिकट और स्मृति सिक्के भी जारी किए हैं। 27 सितंबर 1925 को जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी, तब शायद ही किसी ने ऐसा सोचा होगा कि आगामी सौ वर्षों में यह संगठन इतना विशाल और प्रभावशाली बन जाएगा। जिस तरह विशाल नदियों के किनारे मानव सभ्यताएं पनपती हैं, उसी तरह संघ के किनारे भी सैकड़ों जीवन पुष्पित-पल्लवित हुए हैं। शिक्षा, कृषि, समाज कल्याण, आदिवासी कल्याण, महिला सशक्तिकरण, समाज जीवन के ऐसे कई क्षेत्रों में संघ निरंतर कार्य करता रहा है। विविध क्षेत्र में काम करने वाले हर संगठन का उद्देश्य एक ही है, भाव एक ही है— राष्ट्र प्रथम। संघ का कार्य लगातार समाज के समर्थन से ही आगे बढ़ते रहा है। संघ-कार्य सामान्यजन की भावनाओं के अनुरूप होने के कारण शनैः शनैः इस कार्य की स्वीकार्यता समाज में बढ़ती चली गई। राष्ट्र-कार्य हेतु समाज की बहनों की भागीदारी के लिए राष्ट्र सेविका समिति की भूमिका इस यात्रा में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। संघ जब से अस्तित्व में आया है तब से संघ के लिए देश की प्राथमिकता ही उसकी अपनी प्राथमिकता रही। आज़ादी की लड़ाई के समय डॉक्टर हेडगेवार जी समेत अनेक कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया, डॉक्टर साहब कई बार जेल तक गए। आजादी की लड़ाई में संघ ने कितने ही स्वतन्त्रता सेनानियों को संघ संरक्षण दिया। हिंसा से प्रभावित लोगों को सुरक्षा, चिकित्सा उपलब्ध कराई, विस्थापित लोगों का पुनर्वास कराया। विभाजन से पहले भी आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गुरुजी एम.एस. गोलवलकर और संघ के कई वरिष्ठ नेताओं ने पंजाब के विभिन्न हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया था और उन्होंने वहाँ के लोगों को आत्मरक्षा और राहत कार्यों के लिए संगठित किया था। तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं ने भी अपने परिवारों और समुदाय की रक्षा के लिए संघ की मदद ली थी।  द ट्रिब्यून अख़बार ने अपनी एक रिपोर्ट में आरएसएस को “The sword arm of Punjab” कहा था। 1984 में जब सिख विरोधी दंगे के दौरान स्वयंसेवक सिखों की रक्षा और राहत कार्यों के लिए सबसे आगे रहे। लेखक खुशवंत सिंह ने कहा है कि  इंदिरा गांधी की हत्या के बाद में हिंदू-सिख एकता बनाए रखने में आरएसएस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मार्च 1947 में, मुस्लिम लीग द्वारा उकसाई गई भीड़ हरमंदिर साहिब की ओर बढ़ी, तो तलवारों और लाठियों से लैस आरएसएस के स्वयंसेवकों ने उसे पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। कश्मीर से गोवा और दादरा नगर हवेली तक, संघ ने भारत की अखंडता को बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाई है। आरएसएस स्वयंसेवकों ने 1947-48 के युद्ध के दौरान सेना की सहायता भी की थी। 1954 में स्वयंसेवकों ने दादरा और नगर हवेली को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराने में अग्रणी भूमिका निभाई। गोवा की आज़ादी के लिए आरएसएस ने भूमिगत स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया था। पुर्तगाली सैनिकों की गोलीबारी में कई स्वयंसेवकों ने अपने प्राण न्योछावर भी किए। उनका बलिदान गोवा के भारत-विलय में निर्णायक साबित हुआ। शताब्दी वर्ष में आरएसएस पंच-परिवर्तन के माध्यम से स्वदेशी, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और परिवार प्रबोधन का संदेश जन-जन तक पहुंचाने का पुण्य कार्य कर रहा है। निरंतर राष्ट्र साधना में लगे संघ के खिलाफ साजिशें भी हुईं, संघ को कुचलने का प्रयास भी हुआ। ऋषितुल्य परम पूज्य गुरु जी को झूठे केस में फंसाया गया। लेकिन संघ कभी नहीं डिगा। प्रारंभ से संघ राष्ट्रभक्ति और सेवा का पर्याय रहा है। विभाजन की पीड़ा में जब लाखों परिवार बेघर थे तब स्वयंसेवकों ने शरणार्थियों की सेवा की। संघ की शाखाएं व्यक्ति निर्माण की नर्सरी हैं, जहां अनुशासन, नेतृत्व और कर्तव्यनिष्ठा सिखाई जाती है। हमने देखा है कि देश में प्राकृतिक आपदा हो या कोई संकट, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्य करते दिख जाते हैं। ऐसे स्वयंसेवकों की तपस्या और समर्पण ने इसे विश्व का सबसे बड़ा गैर लाभकारी संगठन बनाया है। जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण जैसे राष्ट्रीय संकल्पों में भी संघ के कार्यकर्ताओं का सक्रिय योगदान भूला नहीं जा सकता। कोविड-19 महामारी के दौरान भी संघ और उसके स्वयंसेवकों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए मई 2021 में लगभग 300 स्वयंसेवकों ने कोलार में लंबे समय से बंद पड़े एक अस्पताल को मात्र दो सप्ताह में फिर से शुरू कर दिया।
वर्ष 1952 में स्थापित, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम, आज देश का सबसे बड़ा आदिवासी कल्याण संगठन है। वर्तमान में यह संगठन देश के 323 ज़िलों की लगभग 52,000 बस्तियों और गाँवों में 20,000 से अधिक परियोजनाएँ चला रहा है। इन परियोजनाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कौशल विकास और सांस्कृतिक पुनर्जागरण जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। आज भी प्राकृतिक आपदा में हर जगह स्वयंसेवक सबसे पहले पहुंचने वालों में से एक रहते हैं। एक समय में जहां सरकारें नहीं पहुंच पाती थीं वहां संघ पहुंच जाता। अलगाववाद और उग्रवाद झेल रहे पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों में आरएसएस ने 1946 में गुवाहाटी में पहली शाखा स्थापित की।आरएसएस दशकों से आदिवासी परंपराओं, आदिवासी रीति-रिवाज, आदिवासी मूल्यों को सहेजने-संवारने का अपना कर्तव्य निभा रहा है। सेवा भारती, विद्या भारती, एकल विद्यालय, वनवासी कल्याण आश्रम, आदिवासी समाज के सशक्तिकरण के मॉडल हैं। संघ की हर महान विभूति ने, हर सर-संघचालक ने भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी समरसता के लिए समाज के सामने एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान का स्पष्ट लक्ष्य रखा है। आज संघ के समक्ष अलग चुनौतियां हैं। दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता, हमारी एकता को तोड़ने की साजिशें, डेमोग्राफी में बदलाव के षड़यंत्र जैसे मुद्दों पर संघ कार्य कर रहा है। यह गर्व की बात है कि स्वदेशी भावना के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इन चुनौतियों से निपटने के लिए ठोस रोडमैप भी बना लिया है। वर्ष 2026 में संघ के शताब्दी वर्ष के पूर्ण होने पर हर भारतीय राष्ट्रयज्ञ में अपनी भूमिका निभाएगा और भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने में योगदान देगा। साल 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य पूरा करने में भी संघ के कार्यकर्ता अपना बहुमूल्य योगदान देंगे, स्वयंसेवक देश की ऊर्जा बढ़ाएंगे, देश को प्रेरित करेंगे। अपने इन संकल्पों को लेकर संघ अब अगली शताब्दी यात्रा शुरू करने केे लिए तैयार दिख रहा है।

RSS : जड़ों से वट वृक्ष बनने की यात्रा


Deepak Rai Article for RSS @ 100 Years


*राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के 100 वर्ष : संगठन को शक्ति और ऊर्जा देने वाले व्यक्तित्व*
प्रसंगवश
डॉ. दीपक राय, भोपाल।
इस विजयादशमी पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) 100 वर्ष का हो रहा है। इन 100 साल की यात्राओं को तभी समझा जा सकता है, जबकि इसकी जड़ों की ओर गहनता के साथ देखा जाए। हमें यह पता है कि कोई भी पेड़ अपनी जड़ों  की दम पर ही मजबूत बनता है। संघ रूपी पेड़ को वटवृक्ष रूपी मजबूती प्रदान करने के लिए यूं तो हर स्वयंसेवक का श्रेय है, लेकिन इसकी जड़ों को सींचने में कुछ प्रमुख महानुभावों ने मुख्य भूमिका निभाई है। वर्ष 1925 की विजयादशमी भारतवर्ष के लिए स्वर्ण अक्षरों में तब दर्ज हुई जबकि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी, इसी दिन संघ की स्थापना हुई। इन 100 वर्षों में संघ ने न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन उसके नेतृत्वकर्ताओं ने संगठन को डिगने नहीं दिया, यह अपने 'राष्ट्रप्रथम' के लक्ष्यों के साथ निरंतर हरा—भरा होते रहा। आरएसएस को अब तक 6 सरसंघचालकों का नेतृत्व प्राप्त हुआ है। आपने, अलग—अलग परिस्थितियों, अलग-अलग कालखंड में संगठन को नई दिशा, नई दशा और ऊर्जा दी।
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार: महाराष्ट्र के नागपुर में 1 अप्रैल 1889 को जन्मे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार संघ के संस्थापक और प्रथम सरसंघचालक थे। उनका  कार्यकाल 1925-1940 के बची रहा। उनकी सोच थी कि भारत की गुलामी का कारण असंगठित हिंदू समाज है। यही कारण है कि उन्होंने युवावस्था में ही क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया। उनके विचारों के बाद संघ की नींव रखी गई। डॉ. हेडगेवार ने 'शाखा' के माध्यम से अनुशासन, संगठन और राष्ट्रभक्ति का बीज बोया। संघ का बीज अंकुरित होकर एक पौधे का रूप ले रहा था, तभी 21 जून 1940 को वे दुनिया छोड़कर चले गए।
माधव सदाशिव गोलवलकर श्रीगुरुजी : माधव सदाशिव गोलवलकर श्रीगुरुजी संघ के दूसरे सरसंघचालक रहे। 19 फरवरी 1906 को जन्मे श्रीगुरुजी का कार्यकाल सबसे लंबा 1940-1973 (33 वर्ष) तक रहा। 1947 के विभाजन में लाखों शरणार्थियों की सेवा, 1948 में गांधीजी हत्या के बाद लगे प्रतिबंध का सामना के बीच उन्होंने संघ को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया। सांस्कृतिक राष्ट्र की अवधारणा उनके नेतृत्व में ही सामने आई।
बाला साहेब देवरस : 11 दिसंबर 1915 को जन्मे बाला साहेब का कार्यकाल  1973-1994 तक रहा। संघ को समाज के अधिक निकट कैसे लाया जाये? इस कार्ययोजना को उन्होंने परिणाम तक पहुंचाया। 'संघ को सेवाकार्यों' से जोड़ने की पहल उनके कार्यकाल में ही प्रारंभ हुई। देवरस साहब का स्पष्ट मानना था कि संघ का कार्य केवल एक वर्ग का नहीं, बल्कि सम्पूर्ण समाज का है। वनवासी, दलित और वंचित समाज को संघ की धारा से जोड़ने का अभियान उनके नेतृत्व में ही धार पकड़ पाया। 1975-77 के आपातकाल में संघ के कार्यकर्ता लोकतंत्र की रक्षा जेल गए और आंदोलन किए।
प्रो. राजेंद्र सिंह रज्जू भैया : 29 जनवरी 1922 को रज्जू भैया का जन्म हुआ। उनका कार्यकाल वर्ष 1994-2000 तक रहा। वे थे तो भौतिकी के प्राध्यापक, लेकिन विद्वता, सौम्यता और आत्मीयता उनकी पहचान थी। वे संवादप्रिय कार्यशैली के साथ कार्य करते थे। गहरी बातों को सरल शब्दों में समझाने की क्षमता रखते थे। जब वे सरसंघचालक बने तो कार्यकर्ताओं के बीच परिवार जैसा भाव जगाया। जो भी संघ कार्यकर्ता उनके कार्यकाल में रहा, वह अक्सर स्मृतियां साझा करते देखा जाता है।
कुप्पाहल्ली सीतारामैया सुदर्शन : आप संघ के पांचवें सरसंघचालक (2000-2009) रहे। 18 जून 1931 को रायपुर में जन्मे सुदर्शन जी तकनीकों पृष्ठभूमि वाले इंजीनियर थे। राष्ट्रीय स्वयं सेवक को आधुनिक दृष्टिकोण अपनाने की विशेष पहल की। स्वदेशी, विज्ञान और अध्यात्म को मिलाकर उन्होंने संघ को नई दिशा प्रदान की। 'जब हम अपनी संस्कृति, स्वावलंबन और स्वदेशी पर टिके रहेंगे तभी भारत की प्रगति तभी संभव है' ऐसे विचारों वाले सुदर्शन जी का 15 सितंबर 2012 को उनका निधन हो गया।
डॉ. मोहन भागवत : डॉ. मोहनराव मधुकर राव भागवत 2009 से वर्तमान तक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं। उनका जन्म 11 सितंबर 1950 को महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ। उनके पिता मधुकर राव भागवत गुजरात के प्रांत प्रचारक थे और माता मालती जी स्वयं संघकार्य के प्रति समर्पित थीं। इसलिए बाल्यकाल से ही उनमें संघ के बीज पड़ गए। नागपुर से पशु चिकित्सा विज्ञान (B.V.Sc. & A.H.) की पढ़ाई करने वाले डॉ. भागवत ने अपना चमचमाता पेशेवर भविष्य को त्यागकर 'राष्ट्र प्रथम' को चुना। वे 1977 में पूर्णकालिक प्रचारक बने और 1975 की आपातकालीन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी नहीं डिगे। वर्ष 1991 में उन्हें संघ का अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख बनाया गया। इस दौरान भागवत ने संघ की कार्यपद्धति और विचारधारा को देशभर में नई ऊर्जा के साथ पहुंचाया। 21 मार्च 2009 को वे संघ के पांचवे सरसंघचालक बने। वे इस पद पर आसीन होने वाले सबसे युवा सरसंघचालक हैं। संवाद के साथ समन्वय की रणनीति के साथ आधुनिक समाज में संघ को प्रासंगिक और सर्वग्राही बनाने का उनका प्रयास दिखाई दे रहा है। उन्होंने सामाजिक समरता की बेल को आगे बढ़ाया और जाति, पंथ और भाषा की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर 'हम सब हिंदू है' के संकल्प को बलवान किया। संघ को परंपरावादी तरीके से आगे बढ़ाते हुए तकनीक, पर्यावरण, महिला सहभागिता, शिक्षा और ग्राम विकास, स्वदेशी जैसे समकालीन विषयों को संघ का हिस्सा बनाया।
करोड़ों स्वयंसेवकों के साथ आज अगर संघ इस ऊँचाई पर पहुंचा है तो वह सभी छह सरसंघचालकों की दूरदृष्टि और आजीवन तपस्या का परिणाम है। डॉ. हेडगेवार जी ने बीज बोया, श्रीगुरुजी ने वटवृक्ष बनाया, बालासाहेब देवरस ने उसे समाज से जोड़ा, रज्जू भैया ने आत्मीयता दी, सुदर्शन ने उसे आधुनिक विचारों का जोड़ा और वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत ने उसे विश्व पटल पर आत्मविश्वास, संवाद और व्यापक स्वीकार्यता के साथ स्थापित किया।
इसी का परिणाम है कि वर्ष 1925 की स्थापना तारीख से आत तक संघ राष्ट्रभक्ति और संगठनशीलता के ध्येय के साथ एक सशक्त, स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर राष्ट्र का निर्माण करने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है।

Tuesday, September 30, 2025

Modi Ji 75th Birthday Special Page and Article


 

Modi Ji 75th Birthday Special Page and Article

NEP: Mughal 'Great' Mugaalta & false Narratives


Dr. Deepak Rai, Bhopal, Mobile -9424950144
India's education system has always been rich, but there came a time when nefarious attempts were made to change the country's history. The first attack was made on the Indian education system. The real termite is Macaulay's education system, in which devotion to Englishism, reference books, quotes, all belong to the cunning British. Macaulay's education policy has caused as much damage to India as perhaps no other policy could have done. We became Indians by blood and colour, but remained British by interest, thoughts, morality and intellect. The British left the country, but the blood of Britishness continued to run inside many Indians. Even in independent India, no efforts were seen to bring about concrete changes in the education system, so that a glimpse of Vishwaguru could be seen. The biggest attack was made on history. That history was taught through books, which gave a wrong message to the future generation. It is very sad that for the last 50 years our children were being taught wrong history. However, for the last few days, some comforting news has been received. Many changes have been seen in the 5 years since the implementation of 'National Education Policy 2020' (NEP). Factual, multi-layered and rational history is being included in the NCERT books taught to children in schools.
25 books have been banned in Jammu and Kashmir which were spreading false narratives, glorifying terrorism and misleading the youth. Books of authors like Maulana Maududi, Victoria Schofield, David Devdas, Arundhati Roy, AG Noorani have been banned. The investigation by the Home Department has revealed that history was being distorted and taught in these books. NCERT has shown the most activism in this matter. Chapters on great warriors have been added to the syllabus. By including patriots like Field Marshal Sam Manekshaw, Brigadier Mohammad Usman and Major Somnath Sharma in the books, students are being introduced to the inspiring history of courage, duty and sacrifice. NCERT has changed the syllabus of class 5th, 6th, 7th and 8th on a large scale. Some books have already come in the market. The cultural and glorious history of Madhya Pradesh is also a part of it. A few years ago, NCERT books were giving wrong information about history to children. In chapter 4 of the history book of class VII, from page number 37 to 48, 12 pages were devoted to the praise of the Mughal Empire. The period of 16th and 17th century was shown. The tenure of Jahangir to Bahadur Shah Zafar was mentioned. In this, the coins of the Mughal period, the system of governance, architecture, religion, culture etc. were mentioned. In chapter 8, from page number 94 to page number 104, the politics of the 18th century and the Mughal Empire were described in detail. In the old syllabus, Akbar was written as 'Akbar the Great'. How can anyone call Akbar 'great' knowing the massacre of about 30,000 Rajputs by Akbar in Chittorgarh Vijay (1568) and the harsh decisions taken by him as part of his policy of power and expansion. Now the word 'great' has been removed from the new syllabus. Reformist efforts like Navratna Sabha were seen during Akbar's reign. The innovations of Todarmal, Mansingh, Tansen and Birbal, who were included in Akbar's Navratna, the revenue system of the Mughal period, Todarmal's contribution in the Mansafdari system come to the fore. Din-e-Ilahi is called liberal, while the truth is that Islamic scholars themselves started it to get themselves declared as Nabi, Khalifa, Paigambar. Even though there is a discussion of some administrative reforms and Navratnas, he was definitely not 'great'. Now in the year 2025, NCERT has made many important amendments related to the Mughal period in the new book of Social Science (History) of class 8 “Exploring Society: India and Beyond”. These amendments are presenting historical events from a more real, factual, and balanced point of view. Many other topics including weather, climate, geographical changes, Indian Constitution, market review, business, etc. have been covered in detail by removing the Mughal Empire. In earlier books, Babur was being taught as the 'founder of the Mughal dynasty' and an 'intellectual'. Now he has been presented as a 'cruel invader' and 'ruthless conqueror'. Religious and cultural destruction, destruction of temples and looting during the invasion of India have been described. Earlier Aurangzeb was taught as a "harsh but administratively successful" emperor. In the new syllabus, he has been portrayed as a religiously intolerant and oppressive ruler. It has also been mentioned that the reinstatement of Jaziya tax, the execution of Guru Tegh Bahadur, the destruction of many Hindu temples and gurudwaras, etc. have been specially highlighted. The book also states that political rebellion and religious discontent increased rapidly during his reign. A new section has been added to the Class 8 book: "Note on Some Darker Periods in History". It says, "It is important to know the dark sides of history, but it is unfair to blame any community or class of today for them." This note explains the cruel side of history to the students and gives the message of maintaining tolerance and unity in today's society. If we look at the words used in the previous syllabus and the current revised words, Akbar the Great, Akbar: a mixture of tolerance and cruelty, Aurangzeb – religious disciplinarian Aurangzeb – intolerant and fanatic ruler, Babur – founder Babur – aggressive invader. In the new syllabus, instead of describing the administration of the Mughal period as only centralized and efficient, it has now been told that power was also used many times to suppress political opposition, spread cultural dominance and religious fanaticism. Actually, now the time has come to give factual and unbiased knowledge of history to the students. What never happened before, is now seen happening, this is a good thing. But the change should not stop here. There is a lot that is yet to change. NCERT has received feedback regarding the content of the books prepared under the new education policy, an expert committee has been formed to investigate it. After its report, extensive changes can be seen in the curriculum. These changes should not be limited to this. Historians have their own role, but the western view is embedded in the teaching of all subjects. There is a lack of self, Indian consciousness. The institutions and academies preparing the curriculum in the states should also prepare such a reference, which can stop false narratives and make the Indian education system the main objective.
(The author is a Bhopal-based journalist, he has been active in journalism and writing work for the last 16 years.)

एनईपी : मुगल 'महान' मुगालता और झूठे नैरेटिव

NCERT Change Course for Mugal

डॉ. दीपक राय, भोपाल, मोबाइल -9424950144

भारत की शिक्षा प्रणाली तो हमेशा से ही समृद्ध रही है, लेकिन कुछ समय ऐसा आया जिसमें देश के इतिहास को बदलने का कुत्सित प्रयास किये गए। इसमें सबसे पहला प्रहार भारतीय शिक्षा प्रणाली पर किया गया। असली दीमक मैकाले की शिक्षा पद्धति है, जिसमें अंग्रेजियत के प्रति भक्तिभाव, सन्दर्भ ग्रन्थ, उद्धरण सभी धूर्त अंग्रेजों के ही हैं। 
मैकाले की शिक्षा नीति ने जितना नुकसान भारत का किया है, शायद ही किसी और ही किसी ने किया होगा। रक्त और रंग से भारतीय हो गए, लेकिन रुचि, विचारों, नैतिकता और बुद्धि से अंग्रेज रहे। अंग्रेज देश छोड़कर तो चले गए, लेकिन कई भारतीयों के अंदर अंग्रेजियत का खून दौड़ते रहा। आजाद भारत में भी शिक्षा व्यवस्था में ठोस बदलाव के प्रयास नहीं दिखे, जिससे
विश्वगुरु की झलक दिख सके। सबसे बड़ा प्रहार इतिहास पर किया गया। पुस्तकों के माध्यम से वह इतिहास पढ़ाया गया जिससे भावी पीढ़ी तक गलत संदेश पहुंचा। करीब 50 वर्षों से हमारे बच्चों को गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा था, यह कितना दुखद है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से सुकूनदायक समाचार मिल रहे हैं।'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020' (NEP) लागू होने ​के 5 वर्षों में कई बदलाव दिखे हैं। बच्चों को स्कूलों में पढाई जाने वाली एनसीईआरटी की पुस्तकों में शिक्षा तथ्यनिष्ठ, बहुस्तरीय और विवेकशील इतिहास शामिल किया जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर में 25 उन किताबों को प्रतिबंधित किया गया है जिनमें झूठा नैरेटिव फैलाने, आतंकवाद को महिमामंडित करने और युवाओं को गुमराह करने का काम किया जा रहा था। मौलाना मौदूदी, विक्टोरिया स्कोफील्ड, डेविड देवदास,अरुंधति रॉय, एजी नूरानी जैसे लेखकों की किताबों को प्रतिबंधित किया गया है। गृह विभाग की जांच में सामने आया है कि इन किताबों में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पढ़ाया जा रहा था।
इस मामले में सबसे ज्यादा सक्रियता एनसीईआरटी ने दिखाई है। महान योद्धाओं के अध्याय पाठ्यक्रम में जोड़े गए हैं। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान और मेजर सोमनाथ शर्मा जैसे देशभक्तों को पुस्तकों में शामिल करके विद्यार्थियों को साहस, कर्तव्य और बलिदान की प्रेरणादायक इतिहास से परिचित कराया जा रहा है। एनसीईआरटी ने कक्षा पांचवी, छठवीं, सातवीं और आठवीं का सिलेबस बड़े स्तर पर बदला है। कुछ किताबें तो बाजार में भी आ चुकी हैं। मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक और गौरवशाली इतिहास भी इसका हिस्सा है। 
कुछ वर्ष पहले ते एनसीईआरटी की किताबें बच्चों को इतिहास की गलत जानकारी दे रही थीं। कक्षा सातवीं की इतिहास किताब के चैप्टर 4 में पेज नंबर 37 से 48 तक 12 पेज में केवल मुगल साम्राज्य का गुणगान था। 16 वीं एवं 17 वीं शताब्दी का दौर दिखाया गया था। जहांगीर से लेकर बहादुर शाह जफर तक के कार्यकाल का उल्लेख किया गया। इसमें मुगल काल की मुद्राएं, वहां की शासन व्यवस्था, वास्तु कला, धर्म, संस्कृति आदि का उल्लेख किया गया था। चैप्टर 8 में 18 वीं शताब्दी की राजनीति एवं मुगल साम्राज्य के बारे में पेज नंबर 94 से लेकर पेज नंबर 104 तक विस्तार से वर्णन किया गया था। 
पुराने पाठ्यक्रम में अकबर को 'अकबर महान' लिखा गया। चित्तौड़गढ़ विजय (1568) में अकबर द्वारा लगभग 30,000 राजपूतों के नरसंहार, सत्ता और विस्तार की नीति के तहत कठोर निर्णयों को जानकार कोई अकबर को 'महान' कैसे कह सकता है। अब नए पाठ्यक्रम में 'महान' शब्द हटा दिया गया है। नवरत्न सभा जैसे सुधारवादी प्रयास अकबर के शासनकाल में दिखे थे। अकबर के नवरत्न में शामिल टोडरमल, मानसिंह, तानसेन और बीरबल के नवाचार, मुगल काल की राजस्व व्यवस्था, मनसफदारी व्यवस्था में टोडरमल का योगदान सामने आता है। दीन-ए-इलाही को उदारता कहा जाता है, जबकि सच यह है कि इस्लामिक विद्वानों ने ही स्वयं को नबी, खलीफा, पैगम्बर घोषित करवाने के लिए इसे चलाया था। भले ही कुछ प्रशासनिक सुधारों और नवरत्नों की चर्चा हो, लेकिन वे 'महान' तो कतई नहीं थे।
अब वर्ष 2025 में एनसीईआरटी ने कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान (इतिहास) की नई पुस्तक “Exploring Society: India and Beyond” में मुग़ल काल से संबंधित कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं। ये संशोधन ऐतिहासिक घटनाओं को अधिक वास्तविक, तथ्यात्मक, और संतुलित दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं। मुगल साम्राज्य को हटाकर मौसम, जलवायु, भौगोलिक परिवर्तन, भारतीय संविधान, बाजार की समीक्षा, व्यवसाय सहित कई अन्य विषयों को विस्तृत रूप में शामिल किया गया है।
पहले की पुस्तकों में बाबर को 'मुग़ल वंश का संस्थापक' और 'बुद्धिजीवी' पढ़ाया जा रहा था। अब उसे 'क्रूर आक्रमणकारी' और 'निर्दयी विजेता' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। भारत पर हमले के दौरान धार्मिक और सांस्कृतिक विध्वंस, मंदिरों के ध्वंस और लूटपाट का वर्णन दिया गया है। पहले औरंगज़ेब को एक “कठोर लेकिन प्रशासनिक रूप से सफल” सम्राट के तौर पर पढ़ाया जाता था। नए पाठ्यक्रम में उसका चित्रण धार्मिक असहिष्णु और दमनकारी शासक के रूप में किया गया है। इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि जज़िया कर की पुनःस्थापना, गुरु तेग बहादुर का वध, कई हिंदू मंदिरों और गुरुद्वारों का विध्वंस आदि पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि उसके शासनकाल में राजनीतिक विद्रोह और धार्मिक असंतोष तेज़ी से बढ़े।
कक्षा 8 की पुस्तक में एक नया अनुभाग जोड़ा गया है: "Note on Some Darker Periods in History"। इसमें लिखा है कि “इतिहास के अंधेरे पक्षों को जानना आवश्यक है, परंतु उनके लिए आज के किसी समुदाय या वर्ग को दोष देना अनुचित है।” यह नोट छात्रों को इतिहास के क्रूर पक्ष को समझाते हुए आज के समाज में सहिष्णुता और एकता बनाए रखने का संदेश देता है। पूर्व के पाठ्यक्रम में प्रयुक्त शब्द और वर्तमान संशोधित शब्दों को देखें तो अकबर महान, अकबर: सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण, औरंगज़ेब– धार्मिक अनुशासक औरंगज़ेब–असहिष्णु और कट्टर शासक, बाबर–संस्थापक बाबर–आक्रामक आक्रमणकारी किया गया है। नए पाठ्यक्रम में मुग़ल काल के प्रशासन को केवल केंद्रीकृत और कुशल न बताकर, अब यह बताया गया है कि सत्ता का उपयोग कई बार राजनीतिक विरोध को दबाने, सांस्कृतिक प्रभुत्व और धार्मिक कट्टरता फैलाने के लिए भी किया गया था। दरअसल, अब विद्यार्थियों को इतिहास का तथ्यपरक और निष्पक्ष ज्ञान देने का वक्त आ गया है। जो पहले कभी नहीं हुआ, वह अब होते दिख रहा है, यह अच्छी बात है। लेकिन बदलाव को यहीं नहीं रुकना चाहिए। बहुत कुछ है जिसे बदलना अभी बाकि है। एनसीईआरटी को नई शिक्षा नीति के तहत तैयार की गई किताबों की सामग्री को लेकर प्रतिक्रियाएं मिली हैं, इसकी जांच के लिए विशेषज्ञ समिति बनाई गई है। इसकी रिपोर्ट के बाद पाठ्यक्रम में व्यापक बदलाव दिख सकते हैं। यह बदलाव यहीं तक सीमित नहीं होने चाहिए। इतिहासकारों की अपनी भूमिका है, पर समस्त विषयों के पठन-पाठन में ही पश्चिमी दृष्टि समाई है। स्व का, भारतीय चेतना का अभाव है। राज्यों में पाठ्यक्रम तैयार करने वाली संस्थाएं, अकादमियों को भी ऐसा संदर्भ तैयार करना चाहिए, जिससे झूठे नैरेटिव रोके जा सकें और भारतीय शिक्षा प्रणाली मूल उद्देश्य हो।
(लेखक भोपाल स्थित पत्रकार हैं, वे पिछले 16 वर्षों से पत्रकारिता एवं लेखन कार्य में सक्रिय हैं।)

एक्ट ईस्ट' : संपर्क और सामरिक रूप से समृद्ध होता भारत

 




Modi Govt Poicy for North Eastern State, Mizoram Connect First Time Railway line, Sairong-Bairabi Rail Line


पूर्वोत्तर सीमांत राज्य से आंखों देखा हाल :  मिजोरम की राजधानी का रेल नेटवर्क से जुड़ना

डॉ. दीपक राय, 9424950144

भारत को आज पूर्वोत्तर संपर्क के साथ ही सामरिक तौर पर बड़ी उपलब्धि मिलने जा रही है। मिजोरम राज्य की राजधानी आइजोल के सायरंग स्टेशन से ट्रेनें आज से दौड़ने लगेंगी। पहली बार रेल नेटवर्क से जुड़ा यह राज्य यातायात, संपर्क, अर्थव्यवस्था और पयर्टन के मानचित्र पर तो आएगा ही। साथ ही साथ सुरक्षा सामरिक दृष्टि से यह बेहद महत्वपूर्ण है। यह आलेख मैंने स्वयं के अनुभव के आधार पर लिखा है। मैं पिछले दिनों इस राज्य का भ्रमण करके आया हूं और इस दौरान संपूर्ण रेल लाइन का दौरा भी किया है। आपको बता दूं कि देश के किसी भी हिस्से से मिजोरम पहुंचने का सड़क मार्ग काफी संकरा, लंबा और 'खतरनाक' है। नई दिल्ली से 50 घंटे यानि 2 दिन 2 रात यात्रा करके यहां पहुंचा जाता है। हवाई यात्रा भी बहुत सीमित और काफी महंगी है। वर्ष 2030 तक उत्तर पूर्वी सीमांत 7 राज्यों की की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में यह बड़ा कदम है। बइरबी—साइरंग 51.38 किलोमीटर लंबी रेल लाइन ने 'मिजोरम से अब दिल्ली दूर नहीं' को पुष्ट किया है। अब मिजोरम के लोग भारत की राजधानी नई दिल्ली के साथ सभी राज्यों से रेल मार्ग से जुड़ गए हैं। इस रेल लाइन से जहां आवाजाही बहुत तेज़, सुरक्षित और सस्ती होगी, आंतरिक सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी। चूंकि मिजोरम राज्य की सीमा बांग्लादेश और म्यामांर से सटी हुई है। यह रेल लाइन राष्ट्रीय सुरक्षा की लाइफ लाइन बनेगी। चूंकि मिजोर में 8 से 10 महीने मानसून चलता है, सड़क मार्ग बहुत बाधित रहता है। रेल से अब यहां सफर सुहाना होगा। जैसा कि हम जानते हैं मिज़ोरम लंबे समय से एक अनदेखा पर्यटन रत्न रहा है। अब देश के अन्य हिस्सों से लोग रेल मार्ग से मिजोरम की अनछुए पहाड़, पारंपरिक उत्सव और इको-टूरिज्म का आनंद ले सकते हैं। आइए इस रेल लाइन के बारे में जानते हैं। फरवरी 2011 में भारतीय रेलवे ने इस परियोजना को पूरा करने के लिए वर्ष 2015 तक लक्ष्य रखा था, लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया। 29 नवंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस लाइन की आधारशिला रखी थी। 21 मार्च 2016 को असम बॉर्डर से सटे मिजोरम के बइरबी तक रेल मार्ग को ब्रॉड गेज में परिवर्तित किया था। अब 13 सितंबर 2025 को यहां से राजधानी एक्सप्रेस सहित तीन यात्री ट्रेनों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरी झंडी दिखाएंगे। उत्तर पूर्व के 7 राज्यों को '7 सिस्टर्स स्टेट इन इंडिया' कहा जाता है। अभी असम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश में ट्रेनें चल रही हैं। मिज़ोरम में ट्रेनें आज से दौड़ने लगेंगी। जबकि मणिपुर, मेघालय, नागालैंड और सिक्किम रेल नेटवर्क से बाहर हैं।  'मिजोरम का देश से जुड़ना' सरकारी के 'संकल्प से सिद्धी' का उदाहरण है क्योंकि उत्तर पूर्वी राज्य की सिर्फ 51.30 किमी दूरी की लाइन बिछाने के लिए 8071 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। आमतौर पर मैदानी इलाके में 1 किलोमीटर तक रेले लाइन बिछाने में लगभग 10 से 12 करोड़ का खर्च आता है। लेकिन यह रेल लाइन इतनी चुनौती भरी है कि इसमें लंबी—लंबी टनल और ऊंचे-ऊंचे ब्रिज बनाए गए हैं। अधिकांश रेलमार्ग टनल—पुल से गुजरता है। इस लिहाज बइरबी—सायरंग रेल लाइन के एक किलो मीटर लाइन बिछाने में औसत 157 करोड़ रुपये खर्च हुए। यह लागत हाई स्पीड रेल कॉरिडोर बनाने के बराबर है। यहां रेल पटरी बिछाने का काम जोखिम भरा रहा। पूरी लाइन घने जंगल से होकर गुजरती है जिसमें गहरी खाइयां, खड़ी पहाड़ियां हैं। यहां 70 मीटर से अधिक और 114 मीटर तक की अधिकतम ऊंचाई वाले छह ऊंचे पुल हैं। एक ब्रिज 114 मीटर उंचा है, जो कि दिल्ली के कुतुबमीनार (72 मीटर) से 42 मीटर अधिक उंचा है। कुल लंबाई का 23 प्रतिशत मार्ग पुलों से होकर गुजरता है, 55 बड़े पुल, जबकि छोटे पुलों की संख्या 88 है। सभी सुरंगों में बलास्ट रहित ट्रैक बिछाया गया है। इस रेल लाइन में 45 सुरंगें हैं, जो कुल ट्रैक की 31% हैं। सबसे लंबी सुरंग 1.868 कि.मी. लंबाई वाली है। सुरंगों और पुलों के अलावा, 23.715 किलोमीटर (46%) ट्रैक खुला है। ज़्यादातर हिस्सा गहरी कटाई के ज़रिए तैयार किया गया है। आपको बता दूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक्ट ईस्ट नीति' की शुरुआत की। इसका लक्ष्य पूर्वोत्तर राज्यों को देश की मुख्यधारा से जोड़ना है। मोदी ने कहा था कि पूर्व अर्थात ईस्‍ट का अर्थ है- एम्पॉवर (सशक्त बनाना), एक्ट (कार्य करना), स्ट्रेंथन (मजबूत बनाना) और ट्रांसफॉर्म (बदलना)। ये शब्द पूर्वोत्तर के प्रति सरकार के दृष्टिकोण का सार बताते हैं। आज से मिजोरम के लोग असम के सिलचर, गुवाहाटी और दिल्ली तक आसानी से पहुंचेंगे। मालगाड़ियों की आवाजाही से व्यापार और लॉजिस्टिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। आइज़ोल के बाज़ारों में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें कम होंगी। “गुवाहाटी से आगे पूर्वोत्तर की खोज” के तहत एक स्पेशल टूरिस्ट ट्रेन यहां तक पहुंच पाएगी। रणनीतिक रूप से अहम इसलिए है क्योंकि  पूर्वोत्तर के मिजोरम राज्य की सीमा बांग्लादेश और म्यांमार से जुड़ती है। वहीं अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के जरिये चीन, नेपाल, भूटान तक सीमा पहुंचती है। यहां तक रेलवे लाइन बिछने से रणनीतिक सुरक्षा की दृष्टि से सरकार मजबूत होगी।

भरत यादव का दूसरा नाम, नवाचारी काम

 


जन्मदिवस विशेष : एक आईएएस की अनकही, अनसुनी सुशासन की कहानियां

प्रसंगवश

डॉ. दीपक राय,

डेली मीडिया गैलरी, भोपाल

9424950144

IAS Bharat Yadav Best Work Doing his Service


हमने देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अक्सर यह कहते सुना है- 'अफसरों को अपने कैबिन से निकलकर जनता के बीच पहुंचना चाहिए, इससे सुशासन कायम होता है और शासन के प्रति जनता का विश्वास बढ़ता है।' कुछ अफसर ऐसा करते हैं, लेकिन अधिकांश नहीं करते। आज एक ऐसे ही आईएएस अफसर का जन्मदिवस है। नाम है- भरत यादव। वर्ष 2008 बैच के मध्यप्रदेश कैडर के इस आईएएस अफसर के बारे में, मैं आपको कुछ ऐसी बातें बताने जा रहा हूं- जिसे शायद आपने न पहले सुना होगा, न ही पढ़ा होगा। इससे पहले उनके बारे में कुछ जान लेते हैं। भरत यादव हाशिए पर पड़े समुदायों तक कल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाने के अपने अभिनव दृष्टिकोण के लिए पहचाने जाते हैं। 20 जून 1981 को दतिया जिले में जन्मे भरत यादव चांदी की चम्मच मुंह में लेकर नहीं आए थे। उन्होंने जीवन का हर मुकाम अपनी मेहनत और कठिन परिश्रम के दम पर हासिल किया। बचपन से ही वे पढ़ाई में इतने होशियार थे कि 5वीं कक्षा में ही नवोदय विद्यालय प्रवेश की कठिन परीक्षा पास कर ली थी। बीए (इंग्लिश लिटरेचर), एमए राजनीति शास्त्र पढ़ने के बाद वे रेलवे में टीटीई रहे। पढ़ने की इतनी ललक कि रेलवे की कठिन नौकरी के दौरान समय निकालकर खूब पढ़ते थे। इसी मेहनत के दम पर भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयन हुआ। पहली पोस्टिंग सहायक कलेक्टर अलीराजपुर मिली। सहायक कलेक्टर होशंगाबाद, एसडीएम मुलताई, सीईओ जिला पंचायत नरसिंहपुर, उपसचिव नगरीय प्रशासन, प्रोजेक्ट डायरेक्टर उदय के पद पर कार्य किया। पहली कलेक्टरी सिवनी में मिली। यहां उन्होंने सुशासन और समाजहित के ऐसे कार्य किये जो इतिहास में दर्ज हो गए। संभवत: वह कार्य देश में कोई अन्य कलेक्टर नहीं कर पाया। सिवनी के बाद बालाघाट, मुरैना, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, जबलपुर, नरसिंहपुर कलेक्टर रहे। उनकी कार्यशैली जनता और शासन को इतनी पसंद आई कि 7 जिलों में कलेक्टर रहे। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई बार सार्वजनिक मंच से भरत यादव के कार्यों की सराहना की। बाद में वे प्रबंध संचालक ऊर्जा विकास निगम रहे, आयुक्त मप्र गृह निर्माण मंडल, आयुक्त नगरीय प्रशासन विभाग, मुख्यमंत्री के सचिव पद का दायित्व भी संभाला। अब एमपीआरडीसी के एमडी के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।

भरत यादव पहली बार सिवनी जिला कलेक्टर बनाए गए। उन्होंने कभी भी अपने उपर 'लालफीताशाही' हावी नहीं होने दिया। उनसे मिलने के लिए कभी किसी को लंबा इंतजार नहीं करना पड़ा। आफिस का दरवाजा आम आदमी के लिए हमेशा खुले रहता था। वे एक बार एक स्कूल पहुंचे, जो कि दृष्टिहीन बच्चों का था। वहां जाकर देखा तो तमाम अव्यवस्थाएं थीं। प्रबंधन ने आर्थिक समस्या बताई। वर्ष 2015 में कलेक्टर भरत यादव ने सामाजिक भागीदारी से एक एक चैरिटी शो करवाया और डेढ़ करोड़ रुपए जुट गए। इस नवाचार ने दिव्यांग बच्चों का जीवन संवार दिया। भरत यादव ने ऐसा ऐतिहासिक कार्य किया था जो शायद ही देश में कोई कलेक्टर कर पाया होगा! मीडिया की खबर पर संज्ञान लेकर 'सड़क पर घूम रहे मानसिक दिव्यांगों के लिए पुनर्वास' योजना बनाई थी। कईयों को उपचार के लिए ग्वालियर भेजा था। नतीजा यह रहा कि दो मानसिक दिव्यांग अब स्वस्थ हैं और अपने घर में रहकर अच्छा जीवन यापन कर रहे हैं। उस समय सोशल मीडिया वेबसाइट फेसबुक लोगों में लोकप्रिय थी। स्वयं कलेक्टर सक्रिय रहते थे। लोग अपनी समस्याएं लिखकर उन्हें मैंसेजर भेज देते थे, जिस पर वे तत्काल संबंधित अधिकारियों को घटनास्थल पर भेज देते थे, समस्याओं का निराकरण की फोटो भी पोस्ट करवाते थे। इन बातों को 9-10 साल बीत गए, लेकिन सिवनीवासी आज भी उन्हें याद करते हैं। भरत यादव की दूसरी पदस्थापना बालाघाट कलेक्टर के रूप में रही। वहां 151 दिव्यांग जोड़ों की शादी कराने का रिकॉर्ड बनाया था। वे जिले के उन दुर्गम गांवों में दौरा करने पहुंच जाते थे, जहां पर आजादी के बाद कोई अधिकारी नहीं पहुंचा था। वे जबलपुर कलेक्टर बनाए गए। कोविड-19 पैर पसार रहा था। एक ऐसा जिला जो देश के सबसे लंबे नेशनल हाइवे से जुड़ा था। इस दौरान उन्होंने एसपी अमित सिंह के साथ मिलकर सक्रिय लॉकडाउन उपाय और एसओपी अपनाया। बाद में अन्य जिलों में भी जबलपुर मॉडल लागू किया गया। पहली लहर में जबलपुर में जन सहयोग से एक लाख लोगों को राशन बांटने का रिकॉर्ड बनाया। जबलपुर राष्ट्रीय स्तर पर पांचवां और प्रदेश में पहला जिला माना गया था। लोगों ने माना था कि भरत यादव में जनसमर्थन की गजब अपील है, जिस कारण जनता उनसे जुड़ना पसंद करती है। मुरैना जिले में कलेक्टर रहने के दौरान वे स्कूल-कॉलेज जाते और वहां युवाओं को प्रेरित करते थे। उन्होंने आर्मी में जाने की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए लाइब्रेरी और शारीरिक प्रशिक्षण के लिए कई संसाधन उपलब्ध करवाए थे। ग्वालियर में कलेक्टर रहते हुए भी उनके कई कार्य उल्लेखनीय रहे। कोरोना काल में जब कई जिलों के कलेक्टर फोन तक नहीं उठाते थे। तब नरसिंहपुर कलेक्टर रहते हुए भरत यादव ने मिसाल कायम की। स्वयं को खतरे में डालते हुए जिला पंचायत सीईओ केके भार्गव के साथ पीपीई किट पहनकर जिला चिकित्सालय पहुंच गए थे। कोरोना मरीजों का हाल जाना और मरीजों व मेडिकल स्टाफ का मनोबल बढ़ाया था।

आईएएस भरत यादव ने गृह निर्माण एवं अधोसंरचना विकास मंडल म. प्र. के आयुक्त पद पर रहते हुए रिडेंसीफिकेशन (पुनर्घनत्वीकरण) का नवाचार किया। आज वह पुनर्घनत्वीकरण योजना राज्य के साथ ही देश में बहुत लोकप्रिय है। प्रदेश के सैकड़ों सरकारी कार्यालयों की सूरत बदल गई है, जबकि शासन का एक पैसा भी व्यय नहीं हो रहा। भरत यादव के नवाचारी मस्तिष्क और व्यावहारिक सरलता से प्रभावित होकर तत्कालीन शिवराज सरकार ने उन्हें नगरीय प्रशासन विभाग का आयुक्त बनाया। उनके कार्यकाल में 'स्वच्छ सर्वेक्षण 2023' में मध्यप्रदेश को देश का दूसरा स्वच्छतम प्रदेश का पुरस्कार मिला। इंदौर सातवीं बार देश का सबसे स्वच्छ शहर बना। पीएम स्वनिधि और पीएम आवास योजना योजनाओं में मध्यप्रदेश की रैंकिंग नंबर वन आई। एक बार नगरीय प्रशासन विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की अनुशासनहीनता की शिकायतें आई थीं। किसी अफसर ने उसे नौकरी से निकालने की अनुशंसा कर दी थी। जब यह फाइल आयुक्त भरत यादव के पास पहुंची तो उन्होंने एक संवेदनशील टिप्पणी लिखकर कर्मचारी की नौकरी बचा ली। हालांकि उन्होंने कर्मचारी को अनुशासनहीनता की सजा भी दी और उस कर्मचारी तबादला कर दिया गया था।

यूं तो आईएएस भरत यादव से जुड़ी सैकड़ों कहानियां हैं, लेकिन यहां जगह और समय की  सीमाएं हैं। लेखनी को यहीं विराम देता हूं। संवेदनशीलता, सुशासन, नवाचार और सहृदयता वाले व्यक्तित्व आईएएस भरत यादव को जन्म दिवस की हार्दिक बधाईयां एवं शुभकामनाएं। बाबा महाकाल और बाबा कामतानाथ आपकी हर मनोकानाएं पूरी करें...


भारत के लिए कितने जरूरी हैं मोदी?

 

प्रधानमंत्री का जन्म दिवस आज: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया होने के मायने

प्रशंगवश

डॉ. दीपक राय, भोपाल

दैनिक मीडिया गैलरी

17 सितंबर 2025

मो. 9424950144

Why Narendra Modi Importance for India?


दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 75 वर्ष की उम्र में पहुंच गए हैं। हम अपने आस-पास समाज में देखते हैं- इस उम्र में कई लोग गतिहीन हो जाते हैं, लेकिन मोदी जी इसका अपवाद हैं। 75 की उम्र में भी मोदी जी में गजब की 'गतिशक्ति' दिखती है। वे 'मैन इन एक्शन' की तरह काम करते दिखते हैं। जब मैं उनके भाषण सुनता हूं, उनकी चाल-ढाल देखता हूं तो लगता ही नहीं कि वे 75 की उम्र के होंगे! उर्जा से भरा व्यक्तित्व, वैश्विक विजन से भरपूर मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं। दुनियाभर के लोगों में, सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म में सबसे ज्यादा पसंद किये जाने वाले नेताओं में नरेंद्र मोदी अव्वल हैं। मोदी के बाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उसके बाद वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नंबर आता हैं। भारत पर 50% टैरिफ लगाने वाले ट्रंप को उनके देश की जनता ने ही नपसंद किया है, यह हमने हाल ही में देखा है, जबकि मोदी के दृढ़निश्चय को भारत सहित दुनियाभर में सराहा गया है। पीएम मोदी के ट्विटर पर 109 मिलियन (1 मिलियन = 10 लाख), फेसबुक में 51 मिलियन, यूट्यूब में 29 मिलियन और इंस्टाग्राम में 97 मिलियन फॉलोअर्स हैं। बराक ओबामा के ट्विटर पर 130.6 मिलियन, फेसबुक पर 55 मिलियन, यूट्यूब पर 6 लाख 40 हजार और इंस्टा पर 38 मिलियन फॉलोअर्स हैं। ट्रंप के ट्विटर पर 109.2 मिलियन, फेसबुक पर 37 मिलियन, यूट्यूब पर 3.96 मिलियन और इंस्टाग्राम पर 38 मिलियन फॉलोअर्स हैं।

आज मोदी 75 वर्ष के हो रहे हैं तो यह सवाल सहज ही सामने आता है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में कई युवा नेता भी हैं जो देश का नेतृत्व कर सकते हैं? तो फिर मोदी की जरूरत क्या है? इस सवाल के जवाब की तह तक जाने के लिए यह समझना जरूरी है कि आखिर मोदी देश के लिए क्यों जरूरी हैं?

हमें वर्ष 2014 के पहले के भारत को जान लेना चाहिए। तब अक्सर गठबंधन की सरकारें रहीं, दुनिया के नक्शे में भारत को उचित पहचान न मिल सकी। आए दिन आतंकी हमले और आंतरिक सुरक्षा की अनिश्चितता बनी रहती थी। यूपीए गठबंधन की मजबूरी ने देश को कमजोर किया, भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान रचे जाते थे। लेकिन वर्ष 2014 में जब मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो भारत की परिस्थितियां बदलने लगीं। वर्ष 2019 का पुलवामा हमला और हाल ही में पहलगाम हमले को छोड़ दें तो देश में 11 वर्षों में कोई आतंकवादी वारदात नहीं हुई। आंतरिक सुरक्षा भी सुदृढ़ हुई। जब भी पड़ोसी देशों ने दुस्साहस किया तो भारत ने उन्हें उन्हीं के घर में घुसकर मारा। पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर इसके ही उदाहरण हैं। भारत के शौर्य ने नापाक पड़ोसियों को सबक सिखाया। सेना को जितनी आजादी मोदी के शासनकाल में मिली है, शायद ही पहले मिली हो। नक्सली मोर्चे पर भी भारत ने काफी हद तक नियंत्रण पा लिया है। भारत की ख्याति दुनिया में तेजी से बढ़ रही है। हाल में हुए शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में तीन मजबूत देश भारत, रूस और चीन के मुखिया का मिलना, पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना है। अमेरिका जैसे देश ईष्या में जल रहे हैं।  

भारत को दुनिया में यह मुकाम यूं ही हासिल नहीं हुआ है। यह मोदी जी के 11 वर्षों के कार्यों का फल है। भारत के सशक्तिकरण के लिए किये गए कार्यों को देखें कई किताबें लिखनी पड़ेंगी। कुछ मुख्य विकास कार्यों की बात करें तो रेलवे का विकास, बुलेट ट्रेन परियोजना, वंदे भारत, पूर्वोत्तर राज्यों को रेलवे से जोड़ना, अमृत भारत स्टेशन, अग्निपथ, स्वच्छ भारत अभियान जैसे कई कदम हम अपनी आंखों से देख रहे हैं। कई लागों ने भले मोदी पर 'धार्मिकता' संबंधी आरोप लगाए हों, लेकिन क्या कोई बता सकता है कि उनकी सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में ऐसा भेदभाव दिखा हो? प्रधानमंत्री आवास योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, जनधन खाता, आयुष्मान भारत योजना, पीएम स्वनिधि, स्वामित्व योजना, पीएम किसान सम्मान निधि, जल जीवन मिशन, खेलो इंडिया, पीएम मातृ वंदना योजना, पीएम फसल बीमा, स्टेंड अप इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, डिजिटल इंडिया, लखपित दीदी, अटल पेंशन, दीनदयाल अंत्योदय योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण, पीएम स्वनिधि स्ट्रीट वेंडर जैसी न जाने कितनी स्कीम हैं, जिनका लाभ करोड़ों लोगों को मिल रहा है। क्या कोई बता सकता है कि इन योजनाओं के लाभ लेने के फॉर्म में धर्म और जाति का कोई कॉलम बनाया गया है। बिल्कुल नहीं, 'सबके साथ, सबके विकास' की योजनाएं ही मोदी सरकार का ध्येय रहा है। तभी तो सरकार को सबका विश्‍वास हासिल हो रहा है। पीएम मोदी ने हर धर्म, हर जाति के नागरिकों को योजनाओं का लाभ दिया। तीन तलाक जैसी बर्बर प्रथा के खिलाफ कानून बनाकर मुस्लिम महिलाओं के जीवन को नर्क से बाहर निकालने वाले मोदी ही हैं। मुस्लिम समाज की महिलाओं में भी मोदी बेहद लोकप्रिय हुए हैं। डबल इंजन की सरकार वाले राज्यों में महिलाओं के सशक्तिकरण की आर्थिक लाभ वाली योजनाओं में हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई सभी महिलाओं के बैंक खातों में बराबर राशि पहुंच रही है।

सिर्फ सरकारी योजनाओं तक ही नहीं, राजनीतिक परिदृश्य पर भी कई निर्णय ऐतिहासिक हैं। अयोध्या में श्री राम मंदिर बनाकर कई वर्षों से चले आ रहे विवाद का शांतिपूर्ण हल निकालने का मॉडल हम सबके सामने है। हम जानते हैं कि मोदी दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा से आते हैं, उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी ही पार्टी में परिवारवाद पर नियंत्रण करने का राजनीतिक नवाचार प्रारंभ किया है। पीएम मोदी अपनी मां से खूब प्रेम करते थे, लेकिन कभी भी उन्हें और अपने परिवार को पीएम आवास में नहीं रखा। आज जिस बेटे का जन्म दिन मनाया जा रहा है, भले उनकी मां हीराबेन मोदी इस दुनिया में न हों, लेकिन बेटे द्वारा राजनीतिक सुचिता और पारदर्शिता के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं वह लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा और मजबूती को बताता है।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि कोई व्यक्ति या नेता कितना भी बड़े विजनरी व्यक्तित्व का धनी क्यों न हो, उम्र किसी की सगी नहीं होती। उम्र, घड़ी के कांटे के साथ बढ़ते रहती है। प्रधानमंत्री जी, वैसे तो आज जन्म दिन के मौके पर आपको तोहफा दिया जाना चाहिए, लेकिन देश की जनता आपसे आज कुछ मांगना चाहती है। मोदी जी जनता को आप से ढेर सारी उम्मीदें हैं। हम जानते हैं कि नरेंद्र मोदी सख्ती और ईमानदारी से बड़े-बड़े फैसले लेने में कभी नहीं हिचकते। वर्तमान में किसी अन्य नेताओं से ऐसी उम्मीदें नहीं की जा सकतीं। ऐसे में मोदी जी से ही कुछ आशाएं हैं। देश, आपके प्रधानमंत्री रहते 'वन नेशन वन इलेक्शन' होते देखना चाहता है। राजनीति में अब भी भाजपा में परिवारवाद के उदाहरण दिखते हैं, इस पर 100% नियंत्रण लगाने की जरूरत है। मोदी जी, इस कुप्रथा को आप ही समाप्त करने की क्षमता रखते हैं। आरक्षण व्यवस्था में बदलाव किया जाना बहुत जरूरी है, इसे जाति आधारित से बदलाव करके आय आधारित करना समय की जरूरत है। आयुष्मान भारत योजना से आपने हर व्यक्ति को 5 लाख रुपये तक देकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में कीर्तिमान रचा है। अब शिक्षा के क्षेत्र में अब कुछ ऐसी की क्रांतिकारी योजना प्रारंभ करने की अपेक्षा है। एक और महत्वपूर्ण बात- डिजिटल इंडिया से भारत में जो इंटरनेट क्रांति आई है, उसने भारतीयों का जीवन बदलकर रख दिया है, लेकिन इंटरनेट की स्वच्छंदता फेक न्यूज के रूप में संकट बन गई है। एआई ने डीप फेक के रूप में बहुत बड़ा खतरा पैदा किया है। एआई से बन रहे फोटो, वीडियो की बाढ़ बहुत बड़ा संकट है। इससे निपटने के लिए विशेष प्रयास जरूरी हैं। प्रधानमंत्री जी, अगर आप उपरोक्त जनता के 'मन की बात' को पूरा करने के लिए प्रयास करेंगे तो यकीन मानिए आपका नाम इतिहास के पन्नों में अमर हो जाएगा। प्रधानमंत्री जी, मैं इस आशा के साथ अपनी बात यहीं समाप्त कर रहा हूं- आप सदैव स्वस्थ्य रहें, सदा उर्जावान रहें, आपकी शेर जैसी छवि से भारत की प्रतिष्ठा पूरी दुनिया में लगातार बढ़े। इन्हीं कामनाओं के साथ आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं...

Wednesday, August 13, 2025

मिनीमन गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस : विदिशा कलेक्टर अंशुल गुप्ता (IAS Anshul Gupta 2016) इन दिनों चर्चा में क्यों हैं?

जमीन, जायजा, जनता और जनभागीदारी

 डॉ. दीपक राय, भोपाल, 25 जुलाई 2025 (मो. 9424950144)

IAS Anshul Gupta Good Work During Collector


आलेख को पढ़ना शुरू करने से पहले इसकी तस्वीर को गौर से देखिए। चूंकि मेरी किशोरावस्था ठेठ गांव में गुजरी है और शासन और जनता के बीच की दूरी मैंने खू​ब महसूस की है, आज भी जनता इस दूरी को महसूस करती है। इसलिए इस फोटो को देखकर मैं सहसा ठहर गया। मेरा निजी आंकलन कहता है कि इस फोटो में दिख रहे शख्स कोई मास्साब हैं, जो कि गांव के गली-मोहल्ले में घूम रहे हैं। कोई महिला उनसे वार्तालाप कर रही है। मेरी सोच इससे आगे नहीं पहुंच पाएगी। क्योंकि शिक्षक सर्वसुभल होते हैं। वर्तमान दौर की बात करें तो किसी को लगेगा कि यह व्यक्ति ग्राम पंचायत का रोजगार सहायक है, कोई इन्हें पंचायत सचिव कह सकता हैै। कुछ लोग पटवारी तक पहुंच सकते हैं। लेकिन कोई भी नायब तहसीलदार तक पहुंच पाएगा? मुझे ऐसा नहीं लगता। शासन की इसी दूरी की वजह से सरकार, आम जनता का भरोसा नहीं जीत पाती। मुझे अच्छे से याद है, साल 2014 में, मैं पी.-एच.डी. कर रहा था। नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे। संसद की सीढ़ियों में अपना माथा टेकने के बाद उन्होंने 'मिनीमन गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस' की अवधारणा दी थी। वे न्यूनतम शासन में अधिकतम सुशासन चाहते थे। इसी कारण डिजिटल इंडिया अभियान लांच किया गया। मोदी सरकार हर काम फास्ट और पारदर्शी तरीके से करना चाहती थी, अभी भी चाहती है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, मुख्य सचिव अनुराग जैन कई दफा कह चुके हैं कि अफसरों को अपने कार्यालय से बाहर निकलकर भी कार्य करना चाहिए। अफसरों को, सीधे जनता के बीच पहुंचकर सीधा संवाद करना चाहिए। अधिकांश अफसरों ने ऐसा नहीं किया, लेकिन कुछ अधिकारियों ने नवाचार के रूप में इसे अपनाया। मुझे याद है— पी. नरहरि, डॉ. सुदाम खाड़े, तरुण पिथौड़े, भरत यादव, डॉ. इलैया राजा टी., डॉ. सलोनी सिडाना, दीपक सक्सेना, वीएस चौधरी कोलसानी, प्रवीण अढ़ायच, कौशलेंद्र विक्रम सिंह, रोशन सिंह ने अपने जिले में कलेक्टर रहते हुए जमीन में जनता के बीच जाकर कई नवाचार किये। इन अफसरों ने जनता के दिलों में जो जगह बनाई है, वह अद्वितीय है। तरुण पिथौड़े तो बाइक में बैठकर कभी भी, किसी भी गांव का जायजा लेने पहुंच जाते थे। एक बार नहीं, कईयों बार उन्होंने ऐसा किया।

चलिए, अब सस्पेंस खत्म करते हैं। मेरे आलेख के फोटो में ग्रामीण महिला से संवाद कर रहे शख्स के बारे में बताता हूं। आईआईटी, आईआईएम से पढ़े-लिखे इस युवा का नाम अंशुल गुप्ता हैं, वर्ष 2016 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी हैं। अभी विदिशा कलेक्टर हैं। दूसरे शख्स आईएएस ओमप्रकाश सनोड़िया हैं, वे जिला पंचायत के सीईओ हैं। जिस दौर में आम आदमी के लिए नायब तहसीलदार के आफिस में घुसना भी 'खौफ खाने वाली' बात हो। ऐसे में पर्ची भेजकर कलेक्टर से मिलने की 'हिमाकत' करने की बात तो दूर की कौड़ी है? लेकिन कलेक्टर अंशुल गुप्ता खुद जनता तक पहुंच  रहे हैं, इसलिए यह तस्वीर सुकून दे रही है। 'जनता के बीच' जमीन पर उतरकर मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ संवाद कर रहे यह अफसर, जनता में 'भरोसा' और 'उम्मीद' की किरण हैं। दरअसल, अंशुल गुप्ता ने कुछ दिन पहले ही कलेक्टरी संभाली है, उसके बाद से लगातार जमीनी दौरे पर निकल पड़ते हैं। पिछले दिनों नटेरन तहसील क्षेत्र के एक गांव में पहुंचे थे, तस्वीर वहीं की है। वे लगातार जमीनी स्तर पर सघन भ्रमण करके यह समझ रहे हैं कि शासन की योजनाएं धरातल तक पहुंच रही हैं या नहीं? वे सिर्फ भ्रमण नहीं करते, पैदल चलकर ग्रामीणों से संवाद करके उनकी समस्याएं सुनते हैं, संवाद करते हैं। यह तो रही सिर्फ एक तस्वीर की चर्चा। विदिशा में और भी बहुत-कुछ हो रहा है। कुछ और काम 'जरा हटकर' स्टाइल में किये जा रहे हैं। सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों के निराकरण के प्रति वे इतने गंभीर हैं कि अफसरों पर निगरानी शुरू कर दी है। हर शिकायत का सही तरीके से संतुष्टिपूर्वक निराकरण हो, इसके लिए युद्धगति से मॉनिटरिंग कर रहे हैं। हर मंगलवार को जिला मुख्यालय पर होने वाली जनसुनवाई में अधिकांश समय स्वयं उपस्थित रहकर समस्याएं सुनते हैं। अपने धैर्य के साथ संकल्प को पूरा करने के लिए पहचाने जाने वाले कलेक्टर अंशुल गुप्ता जब उज्जैन नगर निगम कमिश्नर रहे तब भी कई राष्ट्रीय अवार्ड जीते। नवाचारी अफसर होने के कारण वे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की टीम का हिस्सा भी रहे हैं। अपनी एकाग्रता और दृढ़ता के लिए पहचाने जाने वाले यह आईएएस, जनभागीदारी के साथ जन-संचालित अभियान चलाने के लिए चर्चा में हैं। विदिशा में एक और मौन क्रांति की पटकथा लिखी जा रही है। कुपोषण को खत्म करने के लिए संचालित पोषण संजीवनी अभियान में जनभागीदारी के माध्यम से कुपोषण को समाप्त करने की ओर बढ़ रहे हैं। विदिशा में जनभागीदारी के साथ अब यह अभियान स्वत: स्फूर्त जन आंदोलन बन गया है। यह अभियान एक राष्ट्रीय मॉडल के रूप में उभर रहा है। कई रिसर्च में यह दावा किया गया है कि कुपोषण केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक समस्या भी है। इस अभियान की शक्ति अंतर-विभागीय सहयोग और जमीनी स्तर पर लोगों की भागीदारी बढ़ाई जा सकती है। विदिशा में स्वास्थ्य विभाग, महिला एवं बाल विकास, पंचायती राज विभाग और नागरिक समाज समूहों ने एक बहुआयामी रणनीति को लागू करने के लिए निर्बाध समन्वय में काम किया है। जिले के ब्लॉक मुख्यालयों में स्थित पांच एनआरसी को आधुनिक पोषण केंद्रों के रूप में उन्नत किया गया है, जहां चौबीसों घंटे बाल चिकित्सा देखभाल, पोषण निगरानी और व्यक्तिगत उपचार उपलब्ध हैं। इन केंद्रों में भर्ती बच्चों को अब चिकित्सा हस्तक्षेप से लेकर भावनात्मक समर्थन तक, सभी पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए, प्रशासन ने सामुदायिक दान, स्वयं सहायता समूहों के प्रयासों और कॉर्पाेरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) निधि का उपयोग करके स्वच्छता सामग्री, स्टील के बर्तन और स्थानीय स्तर पर प्राप्त पौष्टिक भोजन से युक्त पोषण किट तैयार किया है। विदिशा में अपनाई गई इस रणनीति ने न केवल संसाधन अंतराल को पाटा, बल्कि समुदाय के सदस्यों के बीच एक मजबूत भावनात्मक हिस्सेदारी भी बनाई। कलेक्टर की सोच है कि पोषण केवल भोजन तक सीमित नहीं है, इसलिए इस अभियान के तहत मातृ शिक्षा, उचित स्तनपान प्रथाओं, हाथों की स्वच्छता, आहार विविधता और निरंतर परामर्श पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। मासिक समीक्षा, डिजिटल डैशबोर्ड, एमआईएस ट्रैकिंग और बाल रोग विशेषज्ञों और पोषण विशेषज्ञों द्वारा क्षेत्रीय दौरों ने वास्तविक समय की निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित की जा रही है।

पिछले दिनों विदिशा में जल गंगा संवर्धन अभियान भी मिशन मोड में संचालित हुआ। सीईओ ओमप्रकाश सनोड़िया बताते हैं कि खेत तालाब, डगवेल रिचार्ज, कूप रिचार्ज निर्माण लक्ष्य से अधिक हुआ। यह तब हुआ, जबकि विदिशा की भूमि कृषि के लिए उर्वर है, इस कारण किसान तालाब निर्माण में रुचि नहीं दिखा रहे थे। इसके बाद खुद कलेक्टर अंशुल गुप्ता जनता के बीच पहुंचे और तालाबों से स्वरोजगार की पहल और भूमिगत जल संरक्षण पर लंबी चर्चा की। देखते ही देखते सैकड़ों तालाब खुद गए, आज सब लबालब हैं। आईएएस अंशुल गुप्ता द्वारा विदिशा जिले में चलाया जा रहा 'जमीन, जायजा, जनता  और जनभागीदारी से शासन' का मिशन एक आशा की एक नई किरण बन रहा है। मुझे लगता है जनता से जुड़कर ही सुशासन शब्द को जमीन पर उतारा जा सकता है। 

(लेखक डॉ. दीपक राय भोपाल स्थित पत्रकार हैं, वे 16 वर्षों से पत्रकारिता, संचार और शोध लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं।)