A New Era of Sustainable Water Management
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New beginning on the 100th birth anniversary of former Prime Minister Bharat Ratna Atal Bihari Vajpayee
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Interlinking of Rivers : A new chapter of sustainable water management
Dr. Deepak Rai.
'Ken-Betwa River Linking Project' (KBLP): This is India's biggest river project. KBLP is a boon for Madhya Pradesh and Uttar Pradesh. 'Good days' will come for 'Bundelkhand', which is one of the most dry and deprived backward regions of the country. On the 100th birth anniversary of former Prime Minister Bharat Ratna Late Atal Bihari Vajpayee, Prime Minister Narendra Modi will lay the foundation stone of KBLP in Khajuraho today. Modi’s Government approved the implementation of the project in December, 2021 with an estimated cost of RS 44,605 crore (year 2020-21 price level) with a Central Support of RS 39,317 crore. KBLP will provide water for irrigation, drinking water and industrial use in 8.5 lakh hectares of Madhya Pradesh and 2.5 lakh hectares of neighboring Uttar Pradesh. KBLP can prove to be the lifeline of Bundelkhand. The lives of citizens can be made prosperous by power generation, production of many crops and development in the tourism sector. The Ken and Betwa rivers originate in Madhya Pradesh and flow through parts of the state. They are being linked under the project. In addition, the Betwa flows in southwestern Uttar Pradesh. The Ken-Betwa link will provide more than 1,000 million cubic metres (MCM) of water annually, which will significantly increase the availability of water for agriculture and drinking purposes in 10 districts of Bundelkhand in Madhya Pradesh and 4 districts in Uttar Pradesh. It will directly benefit 1900 villages in Madhya Pradesh. There will be increased agricultural area, hydropower generation, sustainable livelihoods and control migration from drought-prone Bundelkhand. Madhya Pradesh's efforts in speeding up both the projects have been highly commendable. Chief Minister Dr. Mohan Yadav has played an important role. This is because MP holds a central position among the three states involved in the project, Madhya Pradesh, Rajasthan and Uttar Pradesh. The origin of all the rivers linked under these projects is Madhya Pradesh. Dr. Mohan's government is trying to link Narmada-Shipra at the state level. River linking projects are also important for Madhya Pradesh because it is the ‘NADIYON KA MAYKA’ (parental home of rivers). It is the origin place of big and major rivers like Narmada, Tapti, Son and Chambal. If these ILR projects will be successful then, a new chapter of sustainable water management can be writted in the whole India.
(Dr. Deepak Rai is Youth Research Journalist & Writer, Mb.- 9424950144)
आलेख
आइ ब्रो
पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर नई शुरुआत
हेडिंग
नदी जोड़ो परियोजना : सतत जल प्रबंधन का नया अध्याय
डॉ. दीपक राय।
भारत प्राकृतिक विविधता वाला देश है। एक ही समय में कहीं गर्मी होती है, तो कहीं बर्फ जमता है। कहीं अथाह जलराशि से बाढ़ आ जाती है, तो कहीं सूखा पड़ता है। कहीं पानी का भंडार है, तो कहीं सिंचाई के अभाव में खेत सूखे पड़े हैं। कृषि उत्पादकता, आर्थिक अस्थिरता, आर्थिक—सामाजिक असमानता, पलायन जैसी समस्याओं का मुख्य कारण 'पानी की कमी' ही है। 'नदी-जोड़ने' की अवधारणा इस समस्या का हल है। वर्ष 1858 में आर्थर कॉटन ने पहली बार नदियों को जोड़ने की बात कही थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने 28 वर्ष पहले 1996 में नदी जोड़ने पर विचार किया। वर्ष 2002 में परियोजना को गति मिली। दो निकायों राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) की स्थापना की गई। अटल जी का विजन था— 'बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों से अधिशेष पानी को, पानी की कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सकता है, जिससे पीने, सिंचाई और उद्योग के लिए पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। 'नदी जोड़ो परियोजना' (आइएलआर) उसी विजन का मिशन स्वरूप था। लेकिन यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकार आई। उस दौरान आइएलआर ने गति नहीं पकड़ी। भाजपा की सरकार बनते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2014 में ट्वीट करके 'नदियों को जोड़ने' का अटलजी का सपना पूरा करने का वादा किया। 10 वर्ष के दौरान यह वादा जमीन पर उतरते दिख रहा है। राष्ट्रीय नदी जोड़ो प्रोजेक्ट में प्रारंभिक रूप से 30 लिंक के माध्यम से 37 नदियों को जोड़ा जा रहा है। इसके तहत 3 हजार स्टोरेज डेम का नेटवर्क होगा। 15,000 किमी लंबी नई नहरों के द्वारा 174 घन किमी पानी स्टोर करने का लक्ष्य है। एक हिस्सा हिमालयी नदियों के विकास, जबकि दूसरा भाग प्रायद्वीप नदियों के विकास का है। आज से देश भर की नदियों को जोड़कर बिखरी पड़ी जल-शक्ति के समुचित प्रबंधन का सपना पूरा हो रहा है। पीएम मोदी को आधुनिक भागीरथ कहा जाये तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा।
आज, देश की सबसे बड़ी 'केन-बेतवा नदी लिंक' परियोजना का उदय मध्यप्रदेश के हिस्से वाले बुदेलखंड (खजुराहो) से हो रहा है। प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदर्शी सोच उनकी 100वीं जयंती के मौके पर साकार होती दिख रही है। मध्यप्रदेश के लिए यह सौभाग्य की बात है कि 'नदी जोड़ो परियोजना' के तहत 2 परियोजनाएं 'केन-बेतवा' और 'पार्वती-कालीसिंध-चंबल' की सौगात प्रदेश को मिली है। यह भी महत्वपूर्ण है कि मध्यप्रदेश महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (एनआरएलपी) को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन रहा है।
'पार्वती-कालीसिंध-चंबल' (पीकेसी) : 'पार्वती-कालीसिंध-चंबल' (पीकेसी) और केन-बेतवा परियोजनाएं प्रायद्वीपीय घटक के अंतर्गत आती हैं। 17 दिसंबर 2024 को जयपुर में 'पार्वती-कालीसिंध-चंबल' (पीकेसी) परियोजना का शिलान्यास पीएम मोदी कर चुके हैं। पीएम ने यहां पर सीएम डॉ. मोहन यादव को 'लाड़ला मुख्यमंत्री' की संज्ञा दी। इस बयान की गहराई में जाएं तो पता चलता है कि इसकी जड़ों काफी गहरी हैं। यह परियोजना करीब 20 वर्ष से लंबित थी। मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके समन्वित प्रयासों के कारण दोनों परियोजनाओं को गति मिली। अनुमानित 70 हजार करोड़ रुपये लागत वाली पीकेसी परियोजना से चंबल एवं मालवांचल में खुशहाली आएगी। इन नदियों से संबद्ध भूमि शस्य-श्यामला बनेगी। मध्य प्रदेश और राजस्थान के करीब 13-13 जिलों के लोगों को सिंचाई, पीने और औद्योगिक उपयोग के लिए पानी उपलब्ध होगा। पीकेसी से मध्यप्रदेश को 3,000 और राजस्थान को 4,103 एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) पानी मिलेगा। एमपी के गुना, मुरैना, शिवपुरी, भिंड, श्योपुर, उज्जैन, सीहोर, मंदसौर, इंदौर, देवास, आगर मालवा, शाजापुर और राजगढ़ जिलों में 22 परियोजनाओं से 3217 गांवों को लाभ मिलेगा। मालवा और चंबल क्षेत्र की 6.13 लाख हेक्टेयर भूमि हरीभरी हो जाएगी। 40 लाख से अधिक आबादी को पेयजल उपलब्ध होगा। परियोजना के अंतर्गत 17 बांध एवं 4 बैराज समेत 21 जल संरचनाओं का निर्माण किया जाना है। चंबल और मालवा क्षेत्रों के 2,094 गांवों की 6.13 लाख हेक्टेयर भूमि को कवर करेगी। इसके अलावा, यह 40 लाख लोगों की आबादी को पीने का पानी उपलब्ध कराएगी और 60 साल पुरानी चंबल मुख्य नहर वितरण प्रणाली का आधुनिकीकरण और उन्नयन करेगी।
'केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना' : यह भारत की सबसे बड़ी नदी परियोजना है। 'केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना' मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के लिए वरदान है। देश के सबसे सूखे और अभावग्रस्त, पिछले क्षेत्रों में शामिल 'बुंदेलखंड' के 'अच्छे दिन' आएंगे। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेई की 100वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना का खजुराहो में शिलान्यास करेंगे। केन-बेतवा लिंक परियोजना (केबीएलपी) एनपीपी के तहत पहला लिंक है जिसके लिए कार्यान्वयन शुरू हो चुका है। भारत सरकार ने दिसंबर, 2021 में ₹ 44,605 करोड़ (वर्ष 2020-21 मूल्य स्तर) की अनुमानित लागत और ₹ 39,317 करोड़ की केंद्रीय सहायता के साथ परियोजना के कार्यान्वयन को मंजूरी दी थी। केन-बेतवा लिंक परियोजना से मध्यप्रदेश के 8.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में, जबकि पड़ोसी उत्तर प्रदेश के 2.5 लाख हेक्टेयर में सिंचाई, पेयजल और औद्योगिक उपयोग के लिए पानी उपलब्ध हो सकेगा। केन-बेतवा लिंक परियोजना बुन्दलेखण्ड की जीवन रेखा साबित हो सकती है। बिजली उत्पादन, कई फसलों की पैदावार एवं पर्यटन क्षेत्र में विकास से नागरिकों का जीवन खुशहाल सकता है। केन और बेतवा नदियां मध्य प्रदेश से निकलती हैं और राज्य के कुछ हिस्सों से होकर बहती हैं। इन्हें परियोजना के तहत जोड़ा जा रहा है। इसके अलावा, बेतवा दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहती है। केन-बेतवा लिंक से सालाना 1,000 मिलियन क्यूबिक मीटर (MCM) से ज़्यादा पानी मिलेगा, जिससे मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदलेखंड के 10 जिलों और उत्तर प्रदेश के 4 जिलों में कृषि और पीने के लिए पानी की उपलब्धता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। इससे मध्य प्रदेश के 1900 गांवों को सीधे लाभ होगा। कृषि रकबा बढ़ेेगा, जलविद्युत उत्पादन, टिकाऊ आजीविका और सूखाग्रस्त बुंदेलखंड से पलायन को कम होगा। दोनों ही परियोजनाओं को गति देने में मध्यप्रदेश के प्रयास बेहद सराहनीय रहे हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसा इसलिए क्योंकि परियोजना में शामिल तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्त्तर प्रदेश में एमपी केंद्रीय स्थान रखता है। इन परियोजनाओं के तहत आपस में जुड़ने वाली सभी नदियों का उद्गम स्थल मध्यप्रदेश ही है। डॉ. मोहन सरकार राज्य स्तर पर नर्मदा-शिप्रा को लिंक करने का प्रयास कर रही है। मध्यप्रदेश के लिए नदी जोड़ो परियोजनाएं इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह 'नदियों का मायका' है। नर्मदा, ताप्ती, सोन और चंबल जैसी बड़ी और प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है। इन नदी लिंकों के सफल होने से पूरे भारत में सतत जल प्रबंधन का एक नया अध्याय लिख जा सकता है।
(लेखक मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। Contact : 9424950144)
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