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NCERT Change Course for Mugal |
डॉ. दीपक राय, भोपाल, मोबाइल -9424950144
भारत की शिक्षा प्रणाली तो हमेशा से ही समृद्ध रही है, लेकिन कुछ समय ऐसा आया जिसमें देश के इतिहास को बदलने का कुत्सित प्रयास किये गए। इसमें सबसे पहला प्रहार भारतीय शिक्षा प्रणाली पर किया गया। असली दीमक मैकाले की शिक्षा पद्धति है, जिसमें अंग्रेजियत के प्रति भक्तिभाव, सन्दर्भ ग्रन्थ, उद्धरण सभी धूर्त अंग्रेजों के ही हैं।
मैकाले की शिक्षा नीति ने जितना नुकसान भारत का किया है, शायद ही किसी और ही किसी ने किया होगा। रक्त और रंग से भारतीय हो गए, लेकिन रुचि, विचारों, नैतिकता और बुद्धि से अंग्रेज रहे। अंग्रेज देश छोड़कर तो चले गए, लेकिन कई भारतीयों के अंदर अंग्रेजियत का खून दौड़ते रहा। आजाद भारत में भी शिक्षा व्यवस्था में ठोस बदलाव के प्रयास नहीं दिखे, जिससे
विश्वगुरु की झलक दिख सके। सबसे बड़ा प्रहार इतिहास पर किया गया। पुस्तकों के माध्यम से वह इतिहास पढ़ाया गया जिससे भावी पीढ़ी तक गलत संदेश पहुंचा। करीब 50 वर्षों से हमारे बच्चों को गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा था, यह कितना दुखद है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से सुकूनदायक समाचार मिल रहे हैं।'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020' (NEP) लागू होने के 5 वर्षों में कई बदलाव दिखे हैं। बच्चों को स्कूलों में पढाई जाने वाली एनसीईआरटी की पुस्तकों में शिक्षा तथ्यनिष्ठ, बहुस्तरीय और विवेकशील इतिहास शामिल किया जा रहा है।
विश्वगुरु की झलक दिख सके। सबसे बड़ा प्रहार इतिहास पर किया गया। पुस्तकों के माध्यम से वह इतिहास पढ़ाया गया जिससे भावी पीढ़ी तक गलत संदेश पहुंचा। करीब 50 वर्षों से हमारे बच्चों को गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा था, यह कितना दुखद है। हालांकि पिछले कुछ दिनों से सुकूनदायक समाचार मिल रहे हैं।'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020' (NEP) लागू होने के 5 वर्षों में कई बदलाव दिखे हैं। बच्चों को स्कूलों में पढाई जाने वाली एनसीईआरटी की पुस्तकों में शिक्षा तथ्यनिष्ठ, बहुस्तरीय और विवेकशील इतिहास शामिल किया जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर में 25 उन किताबों को प्रतिबंधित किया गया है जिनमें झूठा नैरेटिव फैलाने, आतंकवाद को महिमामंडित करने और युवाओं को गुमराह करने का काम किया जा रहा था। मौलाना मौदूदी, विक्टोरिया स्कोफील्ड, डेविड देवदास,अरुंधति रॉय, एजी नूरानी जैसे लेखकों की किताबों को प्रतिबंधित किया गया है। गृह विभाग की जांच में सामने आया है कि इन किताबों में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पढ़ाया जा रहा था।
इस मामले में सबसे ज्यादा सक्रियता एनसीईआरटी ने दिखाई है। महान योद्धाओं के अध्याय पाठ्यक्रम में जोड़े गए हैं। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान और मेजर सोमनाथ शर्मा जैसे देशभक्तों को पुस्तकों में शामिल करके विद्यार्थियों को साहस, कर्तव्य और बलिदान की प्रेरणादायक इतिहास से परिचित कराया जा रहा है। एनसीईआरटी ने कक्षा पांचवी, छठवीं, सातवीं और आठवीं का सिलेबस बड़े स्तर पर बदला है। कुछ किताबें तो बाजार में भी आ चुकी हैं। मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक और गौरवशाली इतिहास भी इसका हिस्सा है।
कुछ वर्ष पहले ते एनसीईआरटी की किताबें बच्चों को इतिहास की गलत जानकारी दे रही थीं। कक्षा सातवीं की इतिहास किताब के चैप्टर 4 में पेज नंबर 37 से 48 तक 12 पेज में केवल मुगल साम्राज्य का गुणगान था। 16 वीं एवं 17 वीं शताब्दी का दौर दिखाया गया था। जहांगीर से लेकर बहादुर शाह जफर तक के कार्यकाल का उल्लेख किया गया। इसमें मुगल काल की मुद्राएं, वहां की शासन व्यवस्था, वास्तु कला, धर्म, संस्कृति आदि का उल्लेख किया गया था। चैप्टर 8 में 18 वीं शताब्दी की राजनीति एवं मुगल साम्राज्य के बारे में पेज नंबर 94 से लेकर पेज नंबर 104 तक विस्तार से वर्णन किया गया था।
पुराने पाठ्यक्रम में अकबर को 'अकबर महान' लिखा गया। चित्तौड़गढ़ विजय (1568) में अकबर द्वारा लगभग 30,000 राजपूतों के नरसंहार, सत्ता और विस्तार की नीति के तहत कठोर निर्णयों को जानकार कोई अकबर को 'महान' कैसे कह सकता है। अब नए पाठ्यक्रम में 'महान' शब्द हटा दिया गया है। नवरत्न सभा जैसे सुधारवादी प्रयास अकबर के शासनकाल में दिखे थे। अकबर के नवरत्न में शामिल टोडरमल, मानसिंह, तानसेन और बीरबल के नवाचार, मुगल काल की राजस्व व्यवस्था, मनसफदारी व्यवस्था में टोडरमल का योगदान सामने आता है। दीन-ए-इलाही को उदारता कहा जाता है, जबकि सच यह है कि इस्लामिक विद्वानों ने ही स्वयं को नबी, खलीफा, पैगम्बर घोषित करवाने के लिए इसे चलाया था। भले ही कुछ प्रशासनिक सुधारों और नवरत्नों की चर्चा हो, लेकिन वे 'महान' तो कतई नहीं थे।
अब वर्ष 2025 में एनसीईआरटी ने कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान (इतिहास) की नई पुस्तक “Exploring Society: India and Beyond” में मुग़ल काल से संबंधित कई महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं। ये संशोधन ऐतिहासिक घटनाओं को अधिक वास्तविक, तथ्यात्मक, और संतुलित दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं। मुगल साम्राज्य को हटाकर मौसम, जलवायु, भौगोलिक परिवर्तन, भारतीय संविधान, बाजार की समीक्षा, व्यवसाय सहित कई अन्य विषयों को विस्तृत रूप में शामिल किया गया है।
पहले की पुस्तकों में बाबर को 'मुग़ल वंश का संस्थापक' और 'बुद्धिजीवी' पढ़ाया जा रहा था। अब उसे 'क्रूर आक्रमणकारी' और 'निर्दयी विजेता' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। भारत पर हमले के दौरान धार्मिक और सांस्कृतिक विध्वंस, मंदिरों के ध्वंस और लूटपाट का वर्णन दिया गया है। पहले औरंगज़ेब को एक “कठोर लेकिन प्रशासनिक रूप से सफल” सम्राट के तौर पर पढ़ाया जाता था। नए पाठ्यक्रम में उसका चित्रण धार्मिक असहिष्णु और दमनकारी शासक के रूप में किया गया है। इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि जज़िया कर की पुनःस्थापना, गुरु तेग बहादुर का वध, कई हिंदू मंदिरों और गुरुद्वारों का विध्वंस आदि पर विशेष रूप से प्रकाश डाला गया है। पुस्तक में यह भी बताया गया है कि उसके शासनकाल में राजनीतिक विद्रोह और धार्मिक असंतोष तेज़ी से बढ़े।
कक्षा 8 की पुस्तक में एक नया अनुभाग जोड़ा गया है: "Note on Some Darker Periods in History"। इसमें लिखा है कि “इतिहास के अंधेरे पक्षों को जानना आवश्यक है, परंतु उनके लिए आज के किसी समुदाय या वर्ग को दोष देना अनुचित है।” यह नोट छात्रों को इतिहास के क्रूर पक्ष को समझाते हुए आज के समाज में सहिष्णुता और एकता बनाए रखने का संदेश देता है। पूर्व के पाठ्यक्रम में प्रयुक्त शब्द और वर्तमान संशोधित शब्दों को देखें तो अकबर महान, अकबर: सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण, औरंगज़ेब– धार्मिक अनुशासक औरंगज़ेब–असहिष्णु और कट्टर शासक, बाबर–संस्थापक बाबर–आक्रामक आक्रमणकारी किया गया है। नए पाठ्यक्रम में मुग़ल काल के प्रशासन को केवल केंद्रीकृत और कुशल न बताकर, अब यह बताया गया है कि सत्ता का उपयोग कई बार राजनीतिक विरोध को दबाने, सांस्कृतिक प्रभुत्व और धार्मिक कट्टरता फैलाने के लिए भी किया गया था। दरअसल, अब विद्यार्थियों को इतिहास का तथ्यपरक और निष्पक्ष ज्ञान देने का वक्त आ गया है। जो पहले कभी नहीं हुआ, वह अब होते दिख रहा है, यह अच्छी बात है। लेकिन बदलाव को यहीं नहीं रुकना चाहिए। बहुत कुछ है जिसे बदलना अभी बाकि है। एनसीईआरटी को नई शिक्षा नीति के तहत तैयार की गई किताबों की सामग्री को लेकर प्रतिक्रियाएं मिली हैं, इसकी जांच के लिए विशेषज्ञ समिति बनाई गई है। इसकी रिपोर्ट के बाद पाठ्यक्रम में व्यापक बदलाव दिख सकते हैं। यह बदलाव यहीं तक सीमित नहीं होने चाहिए। इतिहासकारों की अपनी भूमिका है, पर समस्त विषयों के पठन-पाठन में ही पश्चिमी दृष्टि समाई है। स्व का, भारतीय चेतना का अभाव है। राज्यों में पाठ्यक्रम तैयार करने वाली संस्थाएं, अकादमियों को भी ऐसा संदर्भ तैयार करना चाहिए, जिससे झूठे नैरेटिव रोके जा सकें और भारतीय शिक्षा प्रणाली मूल उद्देश्य हो।
(लेखक भोपाल स्थित पत्रकार हैं, वे पिछले 16 वर्षों से पत्रकारिता एवं लेखन कार्य में सक्रिय हैं।)
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