धरती आबा के सपने और मध्यप्रदेश में किये जा रहे प्रयास
डॉ. दीपक राय, शोध लेखक एवं पत्रकार, मो. 9424950144
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| Dr. Mohan Yadav Government Work for Tribal Community in Madhya Pradesh |
आज, जब हम 'धरती आबा' भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के समापन वर्ष का उत्सव मना रहे हैं, पूरा देश 'जनजातीय गौरव दिवस' के उल्लास में डूबा है। यह दिवस केवल एक स्मरणोत्सव नहीं, बल्कि उन असंख्य जनजातीय वीरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का दिन है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर भी इस देश के आत्मसम्मान, संस्कृति और निज गौरव की रक्षा की। मध्य प्रदेश, जो देश की सर्वाधिक जनजातीय आबादी का घर है, इस गौरवगाथा का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है। यहाँ की धरती रायन्ना, सिद्धो-कान्हू संथाल, बाबा तिलका मांझी, अल्लूरी सीताराम राजू, गुण्डाधुर, सुरेन्द्र साय, अमर शहीद शंकर शाह, रघुनाथ शाह, टंट्या भील, खाज्या नायक, भीमा नायक, और झलकारी बाई जैसे अनगिनत वीरों के शौर्य से सिंचित है। ऐसे में, यह प्रश्न स्वाभाविक है कि इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में, वर्तमान मध्य प्रदेश सरकार अपने जनजातीय समाज के उत्थान के लिए क्या कर रही है? सवा महीने बाद अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे करने जा रहे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार के दृष्टिकोण और कार्यों का विश्लेषण करना समीचीन होगा। डॉ. मोहन यादव सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही यह स्पष्ट कर दिया कि जनजातीय कल्याण केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक सम्मान का भी विषय है। सरकार के गठन के बाद जनवरी 2024 में पहली कैबिनेट बैठक वीरांगना रानी दुर्गावती और रानी अवंतीबाई के नाम पर जबलपुर में आयोजित की गई। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका; 5 अक्टूबर 2024 को वीरांगना रानी दुर्गावती के जन्म दिवस पर उनकी पहली राजधानी सिंग्रामपुर में कैबिनेट की बैठक कर सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया कि जनजातीय नायकों का सम्मान केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि नीतिगत भी है। इसी दिशा में, अलीराजपुर जिले का नाम परिवर्तित कर 'आलीराजपुर' करना, केवल एक नाम परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह जनजातीय वर्ग की अस्मिता के सम्मान और उनके सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है। किसी भी सरकार की प्राथमिकता का सबसे बड़ा प्रमाण उसका बजट होता है। डॉ. मोहन यादव सरकार ने इस मोर्चे पर एक बड़ी लकीर खींची है। बजट को अभूतपूर्व रूप से बढ़ाकर 47 हजार 295 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 6,491 करोड़ रुपये (15.91%) की भारी वृद्धि है। यह आँकड़ा दर्शाता है कि सरकार कल्याण के लिए 'तन, मन और धन' से जुटी हुई है। यह बढ़ा हुआ बजट 'पीएम जनमन' और 'धरती आबा' जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं को गति दे रहा है, जिनका सीधा लक्ष्य विशेष रूप से पिछड़ी और कमजोर जनजातियों जैसे बैगा, भारिया, सहरिया का समग्र विकास करना है।
जनजातीय समाज के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच रही है। सरकार ने इसे मिशन मोड में लिया है। मध्य प्रदेश के सभी 89 जनजातीय विकासखंडों में 'सिकलसेल हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन' लागू किया गया है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सिकल सेल एनीमिया इस समुदाय में एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती रही है। अब तक एक करोड़ से अधिक सिकल सेल स्क्रीनिंग एवं काउंसिलिंग कार्ड वितरित किया जाना एक बड़ी उपलब्धि है।
इसके अतिरिक्त, दूर-दराज के अंचलों तक स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाने के लिए 21 जिलों में 66 मोबाइल मेडिकल यूनिट्स (एमएमयू) संचालित हैं। 'आहार अनुदान योजना' के तहत विशेष पिछड़ी जनजातियों की महिला मुखिया को 1,500 रुपये प्रतिमाह पोषण आहार अनुदान देना, सीधे तौर पर मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार ला रहा है। 'पीएम जन-मन कार्यक्रम' के अंतर्गत आंगनवाड़ी भवनों के निर्माण में मध्य प्रदेश का देश में पहले स्थान पर होना इसी प्रतिबद्धता को दिखाता है।
किसी भी समाज के उत्थान की कुंजी शिक्षा में निहित है। डॉ. मोहन यादव सरकार ने जनजातीय विद्यार्थियों के लिए अवसरों का एक नया पारिस्थितिकी तंत्र तैयार किया है। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण जेईई और नीट जैसी कठिन परीक्षाओं में जनजातीय विद्यार्थियों का प्रदर्शन है। 2024-25 में जेईई मेंस में 51, जेईई एडवांस्ड में 10 और नीट में 115 विद्यार्थियों का उत्तीर्ण होना एक क्रांति से कम नहीं है, खासकर तब जब 2022-23 तक यह आंकड़ा मात्र 2 था। इस प्रदर्शन ने मध्य प्रदेश को देश की रैंकिंग में दूसरे स्थान पर ला दिया है। इस सफलता के पीछे एक विशाल ढाँचा काम कर रहा है। प्रदेश में 34,557 शैक्षणिक संस्थाएं (प्राथमिक शाला, आश्रम, छात्रावास, एकलव्य विद्यालय आदि) संचालित हैं। छात्रावासों में अब 10 माह के स्थान पर 12 माह की शिष्यवृत्ति दी जा रही है। 'आकांक्षा योजना' और 'रानी दुर्गावती प्रशिक्षण अकादमी' (जहाँ फ्री कोचिंग दी जाएगी) जैसी पहलें यह सुनिश्चित कर रही हैं कि प्रतिभा को संसाधनों की कमी का सामना न करना पड़े। सबसे महत्वपूर्ण, भगवान बिरसा मुंडा जी की जीवनी और अन्य वीर नायकों की शौर्य कथाओं को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की पहल, नई पीढ़ी में अपनी जड़ों के प्रति गर्व का भाव भर रही है।
जनजातीय समाज की आत्मा 'जल, जंगल और जमीन' से जुड़ी है। देशज संस्कृति को संरक्षित रखने और ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने में 'पेसा नियमों' ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। अब जनजातीय ग्राम सभाओं को अपने जैविक संसाधनों, भूमि और पारम्परिक व्यवस्थाओं पर वास्तविक अधिकार प्राप्त हुए हैं। वे अपने गांवों की विकास योजनाएं खुद बना रही हैं, जिससे जनजातीय अंचलों में 'स्वशासन' का एक सशक्त आधार स्थापित हुआ है। आजीविका के मोर्चे पर, लाखों तेंदूपत्ता संग्राहकों का पारिश्रमिक बढ़ाकर 4,000 रुपये प्रति मानक बोरी करना एक बड़ा आर्थिक संबल है। वहीं, 'शौर्य संकल्प योजना' के तहत बैगा, भारिया एवं सहरिया के लिये अलग बटालियन गठित करने की प्रक्रिया, उन्हें राष्ट्र सेवा में एक विशिष्ट अवसर प्रदान कर रही है।
भगवान बिरसा मुंडा ने 'उलगुलान' का आह्वान जल, जंगल, जमीन और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए किया था। आज, डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में मध्य प्रदेश सरकार उसी आह्वान को एक नए संदर्भ में जी रही है। यह सरकार केवल कल्याणकारी योजनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जनजातीय समाज के 'सम्मान', 'सशक्तिकरण' और 'स्वशासन' पर केंद्रित है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार, जनजातीय समुदाय के कल्याण के साथ-साथ सांस्कृतिक रूप से संपन्न और समृद्ध मध्य प्रदेश की उस नींव का निर्माण कर रही है, जिसका सपना 'धरती आबा' ने देखा था।

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