Tuesday, December 18, 2018

Monday, December 3, 2018

आदमी जी रहा है, पर मर-मर कर जी रहा है...

दीपक राय (गैस त्रासदी के 34 साल पर विशेष लेख) वे गर्भवती नहीं हो पा रहीं। कुछ गर्भधारण करती हैं तो गर्भपात हो जाता है। जो बच्चे जन रही हैं तो बच्चे अपंग पैदा हो रहे। किसी का शारीरिक विकास रुक गया, किसी का दिमाग अविकसित हो रहा। किसी का ह्दय खराब, किसी की आंखें ही नहीं। हजारों लोग अपने आप अंधे हो गये। हजारों लोग कैंसर के मरीज बन गए। आज भी किडनी खराब हो रही हैं। महिलाएं असमय माहवारी और अत्यधिक रक्तस्राव की समस्या से जूझ रही हैं। वह जहरीली हवा अब कहीं उड़ गई, लेकिन शरीर में ऐसे घुसी की आज भी लोग खुद के बच्चों के मरने की दुआ करते हैं, वे भयंकर बीमार होकर भी तिल-तिलकर जी रहे हैं। धड़कनें हैं कि थमती ही नहीं। सरकारी सितम को सहते-सहते हजारों लोग असमय काल के गाल में समा गये। इस खौफनाक दृश्य को देखना है तो कभी समय निकालकर पुराने भोपाल घूम आइए। कभी भोपाल स्मारक अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र जाकर मरीजों से मिल आइए। भोपाल के जेपी नगर में जाकर दर्दनाक दृश्य अब भी दिखता है। यहां वह पीडि़त मिलेंगे, जिन्हें न इलाज मिला, न सम्मानजनक सरकारी सहायता। इन लोगों के गुनहगार कई व्यक्ति थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह पर भाजपा और समाजसेवी संगठनों ने गंभीर आरोप लगाए, लेकिन जब वही भाजपा सरकार में आई तो उसने भी पीडि़तों की मदद उस तरह नहीं कि जिसकी दरकार थी। अंत में गुनहगार एक गैस को ही माना गया। उस गैस का नाम था- 'मिथाइल आइसो साइनेट '। भोपाल गैस त्रासदी को आज 34 साल हो गए। उस कड़ाके की ठंड से भरी खौफनाक रात को याद करते हुए भोपालियों की रूह कांप जाती है। 3 दिसंबर तड़के (2 दिसंबर की रात) भोपाल स्थित यूनियन काबाईड इंडिया लिमिटेड के कारखाने से 40 टन मिथाइल आइसो साइनेट नामक जहरीली गैस रिसी थी। यह विश्व की सबसे बड़ी उद्यौगिक त्रासदी थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार मृतकों की संख्या 3,787 बताई। लेकिन उस वक्त आंखों से यह मंजर देखने वाले लोगों का कहना है कि 8 हजार से ज्यादा लोग तो एक दिन में ही मारे गए थे। 2006 में सरकार ने माना गया था करीब 558,125 सीधे तौर पर प्रभावित हुए थे। फैक्ट्री के आसपास 3-4 किमी क्षेत्र का भूजल जहरीला हो गया, जिसे पीकर भी लोग बीमार हुए। यह कचरा आज भी फैक्ट्री परिसर में मौजूद है। 1993 में सुप्रीम कोर्ट की बार-बार फटकार के बाद गैस पीडि़तों के इलाज के लिए अलग से अस्पताल बनाया गया। लेकिन वह भी अव्यवस्थाओं का शिकार है। न पर्याप्त स्टाफ है, न ही बेहतर चिकित्सीय सुविधाएं। 'भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभागÓ की 2016-2017 की रिपोर्ट के मुताबिक 63,819 दावा प्रकरणों में 10,251 कैंसर ग्रस्त गैस पीडि़त, 5250 किडनी रोगी हैं। 4902 लोगों में स्थाई विकलांगता है। जो भी सरकारें आईं उन्होंने आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेला। 29 सिंतबर 2014 को मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन की मौत हो गई। भाजपा कहती है कि घटना के वक्त केंद्र में राजीव गांधी की सरकारी थी। राजीव के आदेश के बाद मप्र की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एंडरसन को सुरक्षित दिल्ली भेजा। दिल्ली से राजीव ने उसे अमेरिका पहुंचा दिया। भोपाल के तत्कालीन कलेक्टर, एपी पर भी आरोप लगे, लेकिन वे तो छोटे मोहरे थे। कोर्ट में आज भी तारीख पर तारीख चल रही हैं। समाजसेवी संगठन कहते हैं कि भाजपा सरकारों ने गैस पीडि़तों न पर्याप्त मुआवजा दिया, न ही गुणवत्तापूर्ण इलाज मुहैया कराया। आदमी जी रहा है, पर मर-मर कर जी रहा है... (नोट : लेखक की अनुमति के बगैर इस लेख को प्रकाशित या पोसट करना प्रतिबंधित है।)
Bhopal Gas Tragedy