Friday, July 16, 2021

ऑक्सीजन स्वाहा, बख्श दो बक्स्वाहा

 

डॉ. दीपक राय। 

दुनिया उस मोड़ पर खड़ी है, जहां उसके पास बंगला है, कार है, अथाह दौलत है। लेकिन 21वीं सदी का इंसान आज भी पल-पल की सांस को मोहताज है। ये कोई ईश्वरीय शक्ति ही है, जहाँ कि विज्ञान के इतने विकास कर लेने के बाद भी इंसान अमर नहीं है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो कोविड19 महामारी ने विश्व को अहसास करा दिया कि इंसान एक वायरस के आगे निढाल हो चुका है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने एक बार कहा था- इंसान भले मंगल में जीवन तालाश चुका हो, लेकिन वो आज भी धरती में रहना नहीं सीख पाया है। आज ये बात सही साबित हुई है। 

हाल में गुजरी कोरोना की दूसरी लहर में हजारों लोग मारे गए (वास्तव में लाखों)। सोशल मीडिया और टीवी न्यूज़ में हमने देखा कि लोग ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। बिना ऑक्सीजन के दम तोड़ रहे थे। सारे अस्पताल भर गए। लोग एक ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए लाखों रुपए देने तैयार थे, लेकिन ऑक्सीजन मिली ही नहीं, क्योंकि वो उपलब्ध ही नहीं थी। 

मंगल पर पहुँच चुकी दुनिया आज भी ये मानने को तैयार नहीं कि प्राकृतिक रूप से मिलने वाली ऑक्सीजन को हम सिलेंडर में नहीं भर सकते। इंसान दुनिया की बड़ी से बड़ी चीज खरीद सकता है, लेकिन ऑक्सीजन नहीं। फिर भी यही इंसान उन्हीं पेड़ों को काट रहा है, जिससे ऑक्सीजन लेकर जीवित है। हर साल सैकड़ों एकड़ वन काटे जा रहे हैं। जंगल काटकर कंक्रीट के जंगल (शहरीकरण) बनाये जा रहे हैं।

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज मध्यप्रदेश के एक चिंताजनक तथ्य पर गौर करना प्रासंगिक होगा।

छतरपुर में सरकार हजार एकड़ से भी अधिक क्षेत्र के घने वन को खत्म करने की तैयारी कर रही है। इस मामले ने दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी हैं। कई संगठन इस जंगल को बचाने आगे आ रहे हैं। दरअसल, छतरपुर जिले में बक्स्वाहा नामक कस्बा है, जहां देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार होने का अनुमान है। 382.131 हेक्टेयर (लगभग 1000 एकड़) में फैले हरे-भरे इस जंगल के नीचे  3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे होने का अनुमान है। अब हीरे निकालने के लिए सरकार इस जंगल को खत्म करना चाहती है। दो लाख 15 हजार 875 पेड़ों को काटा जाना है। यहां लगभग 40 हजार पेड़ सागौन, के अलावा पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औषधीय पेड़ भी हैं। ये तो सरकार का अनुमान है, जबकि पर्यावरण कार्यकर्ताओं का दावा है कि यहां 3 लाख से ज्यादा पेड़ काटे जाएंगे। प्रदेश सरकार यह जमीन इस कंपनी को 50 साल के लिए लीज पर दे रही है। हीरे के लिए सरकार इतने बड़े जंगल को खत्म करने का शायद देश का पहला मामला है। इतने बड़े जंगल को खत्म करने के लिए वर्तमान में  राज्य सरकार से मंजूरी मिल चुकी है। बस केंद्र से हरी झंडी का इन्तजार है। 

जिस दौर में हम ऑक्सीजन की किल्लत से जूझ रहे हैं, उस दौर में ऑक्सीजन के इतने बड़े प्राकृतिक स्रोत को खत्म करना कहाँ का अच्छा सौदा है। जंगल के कटने से पर्यावरण को गंभीर नुकसान होना तय है। वे क्षेत्र बुंदेलखंड में आता है, जहां पहले ही सूखाग्रस्त है। कृषि के अच्छे साधन नहीं हैं। जंगल काटने के बाद स्थिति और विषम हो जाएगी। खदान को लगभग 1100 फीट गहरा खोदा जाएगा, जिससे आस-पास के सभी ट्यूबबेल सूख जाने की भयावह आशंका है। सूखाग्रस्त क्षेत्र में भूमिगत जल स्तर और ज्यादा गिरेगा तथा लोग पानी के लिए मोहताज हो जायेंगे। वन्यजीवों पर भी संकट आ जाएगा। इस जंगल मे तेंदुआ, बाज (वल्चर), भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर जैसे कई पशु हैं। पर्यावरण के गंभीर इस मुद्दे का मामला सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी भी पहुंच चुका है। युवा सोशल मीडिया में विरोध कर रहे हैं। आज (5 जून विश्व पर्यावरण दिवस) के अवसर पर दोपहर 2 बजे से युवाओं ने #savebuxwahaforest को ट्विटर पर ट्रेंड करेंगे। “एक दीया प्रकृति के नाम” नामक अभियान के माध्यम से पर्यावरण दिवस की शाम समस्त देशवासियों से एक दीया जलाने का आव्हान किया है। कुछ भी हो, लेकिन ये सवाल मुंह बाए खड़ा है कि जब पूरी दुनिया महामारी से जूझ रही है, ग्लोबल वॉर्मिंग तेजी से बढ़ रही है, दुनिया भर में पर्यावरण को बचाने की मुहिम चल रही है। बावजूद इसके, सरकारें बड़े-बड़े जंगलों को ख़त्म करने के बारे में सोच भी कैसे सकती हैं? बक्स्वाहा को बचाना हम सभी की ज़िम्मेदारी है, अगर हम आज चुप रहे तो कल फिर गंभीर खतरों के लिए तैयार रहना होगा। ऑक्सीजन के बिना दम तोड़ने तैयार रहना होगा।


(लेखक डॉ. दीपक हैं)