Saturday, January 7, 2012

सावधान

बात 1997 की है। जब मैं चौथी कक्षा में पढ़ता था, गांव का सरकारी स्कूल। शिक्षकों की कमी का दौर था। मेरे गांव के पड़ोसी गांव में तो एक शिक्षक ही था, इसीलिए दोनों गांवों के बच्चे एक साथ पढ़ते थे। हमारे गांव के स्कूल में कक्षाएं एक साथ लगती थीं। एक मासाब थे मिश्रा सर, बड़े ही सख्त, शराब के आदी। एक दिन मैं स्कूल की खिड़की पार कर निकल गया, तब सर को पता चला तो, आव देखा न ताव उलटी हथेली गाल पर रख दी। उनकी सोने की अंगूठी मेरे गाल पर छप गई, जैसे किसी ने सील लगा दी। बस अपन रोते-रोते घर पहुंच गए। मेरी बऊ (दादी) ने ऐसा देखा तो गुस्से से लाल हो गई और पहुंच गर्इं स्कूल। मिश्रा जी को खूब डांट पड़ी। इसके बाद जब मां को जानकारी लगी तो उन्होंने बऊ को समझाया और मुझे धमकाया। कहा, दो बार ऐसी गलती की तो मैं भी मारूंगी।
उस समय शिक्षा का अधिकार कानून लागू नहीं हुआ था। शिक्षक रूल से पिटाई करते थे। बेशरम (एक प्रकार का पौधा)  की छड़ी से पिटाई होती थी। सजा पर रोक नहीं थी। आप सोच रहे होंगे ये आत्मकथा मैं आपको क्यों सुना रहा हूं।
दरअसल भोपाल के एक स्कूल की घटना ने मुझे यह लिखने पर मजबूर कर दिया। लाइब्रेरी में बैठे छात्र जब हू-हल्ला मचा रहे थे तो एक शिक्षक ने उन्हें सजा दे दी। वो भी 500 बार यह लिखवाया कि हम दोबारा अनुशासन नहीं तोड़ेंगे। बेशक बच्चे बहुत छोटे थे। पर माता-पिता को यह मामला बड़ा लगा, अखबार में खबरें छपीं। बाल अधिकार संरक्षण आयोग स्कूल पहुंच गया। आखिर इतनी जरूरत क्या थी। बच्चों को दी गई सजा मामूली थी। शारीरिक भी नहीं। ऐसे में माता-पिता इतने उत्तेजित कैसे हो सकते हैं। क्या बच्चों को सिर में नहीं चढ़ा रहे हैं।
पिछले साल की घटना को ले लें राजधानी के एक प्रतिष्ठित स्कूल जिसका रिजल्ट अब खराब हो गया है, में पढ़ने वाले छात्रों को स्कूल ने टीसी दे दी थी, कारण था वे पढ़ाई के प्रति लापरवाह और अनुशासन को तोड़ने में हमेशा आगे रहते थे। कई बार चेतावनी के बाद भी वे नहीं सुधरे तो स्कूल ने बाहर कर दिया। विवाद कलेक्टर तक पहुंच गया। शिक्षा के अधिकार कानून का भला हो। स्कूल की नहीं चली और बच्चे फिर स्कूल में पहुंच गए। रिजल्ट आया तो मेरिट में कोई भी छात्र नहीं था, एक ऐसे स्कूल से जिसने कई आईएएस दिए हैं।
बच्चों की हरकतों पर नजर न रखने के कारण बच्चों में कई समस्याएं आ रही हैं। ऐसे में बच्चों को अच्छे संस्कार देने का समय आ गया है, नहीं तो इस उम्र में बच्चे क्या सीखेंगे उसके दूरगामी परिणाम दुख भरे हो सकते हैं।
गाजियाबाद के एक स्कूल की घटना है, न्यू ईयर में 10वीं के छात्र-छात्राएं शराब पीते पकड़े गए। ये बच्चे घर से पार्टी मनाने की बात कहकर निकले थे। माता-पिता को क्या पता कि वे क्या कर रहे हैं। ये बच्चे 12-15 साल की उम्र के थे।
.......................
शोध का सच
एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि बच्चे जल्द युवा बनने की चाहत रखते हैं। पर्यावण के बदलने के साथ-साथ बच्चों में सेक्चुअल हार्मोन भी जल्द विकसित हो रहे हैं। बच्चे ब्यॉवफ्रेंड, गर्लफ्रेंड की बातें करते हैं। प्यार के बारे में कुछ पता नहीं, लेकिन पटरी पर कट जाते हैं।  स्कूलों में मस्ती के स्तर को भी पार कर जाते हैं। स्कूलों में मोबाइल फोन ले जाते हैं, ऐसे वैसे नहीं ब्लैकबेरी। एक छात्र जब दूसरे को यह दिखाता है तो उनके अंदर प्रतिस्पर्धा की भावना आती है। पढ़ाई दूर की बात यू-ट्यूब पर वीडियो देखते हैं। अश्लील फिल्में भी देखते हैं। एक कमरे में कैद बच्चे क्या कर रहे हैं। कामकाजी माता-पिता को इसकी जानकारी ही नहीं रहती। ऐसे में बच्चों को इतना सिर में चढ़ाना गलत है। बच्चों के बारे में हमेशा जानकारी लेना पालकों का कर्तव्य होना चाहिए।

3 comments:

maidan se said...

Bahut achha likha hai deepak babu... school walon ko bhi kuch sochana chahiye. school walon ne sahi punishment diya lekin kya kare akhbar wale is ghatna ke ek hi pahlu tak pahuch paye... sikke ka dusra pahlu bahut kam logon ko dikhai deta hai...

achha likha. ummid hai aage bhi padhne ko milega...

good luck.

वृजेश सिंह said...

आपकी यह पोस्ट पढ़ी. बहुत ख़ुशी हुई कि शिक्षा के मुद्दे को लेकर आप इतने जागरूक हैं और अपने विचारों को लोगों के साथ साझा भी कर रहे है.हम आने वाली पीढ़ी को बुजुर्गों की नजर से नहीं देख सकते.हमें उनको उनके समय के साथ जोड़कर देखना चाहिए. पहले बच्चों में स्कूलों के नाम के खौफ होता था. उसे दूर करने के लिए ही विद्यालय में बाल अधिकारों के संरक्षण पर इतना जोर दिया जा रहा है.बच्चा स्वतः सीखने में सक्षम होता है. यह जानने के बाद किसी भी अध्यापक को देखने का हमारा नजरिया बदल सकता है. आज के दौर में उनके उदार छबि की जरुरत है. छोटे बच्चों और बड़ी उम्र के बच्चों को भी हमें अलग करके देखना चाहिए. भोपाल का जिक्र सुनकर अच्छा लगा...

Dr Ajay said...

very true and very nice deepak.....