Saturday, July 25, 2009

पत्रकारिता का गुड आने लगे है


जब से पेसे की पत्रकारिता करने लगे है
कसम से अपनों और समाज से दूर रहने लेगे है
कसम ऊपर वाले की दिन भर सोने लेगे है
शाम४ बजे से रात २ बजे नौकरी करकर
प्रकृति से लड़ने लगे है
अब हम मन ही मन वो कागज़ की कसती वो बारिस का पानी
गाना गाने लगे है
इस को हमारी टेंसन न समजो यारो
हम सही की पत्रकारिता करने लगे है
रात २ बजे दाल चावल गटकने लगे है
राय जो करते थे नाटक अब सुखा रुखा खाने लगे है
अब हमे विस्वास हो गया यारो हम्मे एक पत्रकार का गुड
अन्ने लगे है
अब तो लोग कहते है भाई राय साहब बदलने लगे है

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