Monday, February 7, 2011

बड़े काम की चीज है

 
रोटीवेटर
छोटा हार्वेस्टर
रीपर
छोटा ट्रेक्टर
टपक सिंचाई
प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय
ग्रीन हाउस
भोपाल में कश्मीरी ज्यूस
कंडे भी बिक रहे हैं दाई
संतरे लगाओ खूब कमाओ
सफेद मुसली
शराब पीना जरूरी नहीं है
आलू लगाओं लखपति बनो
आवले के लड्डू

कंडे भी बिक रहे हैं दाई
पशुओ के गोबर को गोल-गोल कर कंडे बनाते तो खूब देखे हैं मैंने पर दादी ने कंडों से सिर्फ खाना ही बनाया था। पर मेले के कंडे तो अद्भुत थे ये बिकने रखे थे, बताया गया कि इन कंडों से आप यज्ञ भी कर सकते हैं। अच्छा है एक बढ़िया व्यवसाय शुरू कर सकते हैं किसान।

भोपाल में कश्मीरी ज्यूस
मेले में घूम-घूमकर मैं थक गया आखिर गर्मी का मौसम जो शुरू हो गया है। तो मैं गया मेले में आए कश्मीर के कृषि विभाग के स्टॉल में जहां पर कश्मीर से लाए गए स्पेशल सेब (एप्पल) से ज्यूस बनाकर दिया जा रहा था। वो भी सिर्फ 10 रुपए में क्या बात इतना सस्ता। मैंने भी एक गिलास पीने की ठानी और गटक गया। पता नहीं कश्मीर जाने को कब मिले कम से कम ज्यूस ता पी लिया मैंने।

प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय
मध्यप्रदेश में दो कृषि विश्वविद्यालय हैं एक महाकौशल जबलपुर में और दूसरा ग्वालियर में। जबलपुर में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय और ग्वालियर में राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्व विद्यालय नाम दिया गया है। आपको बता दें 2 साल पहले ही ग्वालियर में कृषि विवि की शुरूआत हुई है। ये दो यूनिवर्सिटी अच्छे कृषि वैज्ञानिक तैयार कर रही हैं। पर खेद की बात यह है कि अधिकतर छात्र मैथ्स-बायो लेकर इंजीनियरिंग मेडिकल में कैरियर बनाना चाहते हैं पर कृषि में उज्जवल भविष्य उन्हें दिखाई नहीं देता। इसका बड़ा उदाहरण है कि कई वैज्ञानिक संस्थानों में कृषि अधिकारियों, वैज्ञानिकों की कमी है। उन्हें अच्छे प्रतिभागी नहीं मिल रहे हैं।

रीपर
यह भी बड़ी काम की छोटी मशीन है आप अपनी टू व्हीलर बाईक में टांगकर एक गावं से दूसरे शहर तक जा सकते हैं। इसका काम भी फसल काटने का है। कीमत सिर्फ 80-90 हजार रुपए। इससे कटाई तो होती है पर फसल गट्ठे बन जाती है। इसके बाद गहाई (फसल से दाने निकालना) अलग से करवानी पड़ती है। इसका उपयोग लोगों ने व्यवसाय के रूप में भी किया है। 400 से 500 रुपए घंटे लेकर लोग दूसरे के खेतों की फसल काटते हैं इससे उन्हें अच्छी आमदनी मिल जाती है।

सफेद मुसली
सफेद मुसली यानी किसानों को करोड़पति बनाने वाली फसल। सफेद मुसली का उपयोग दवाई बनाने में होता है भारत में तो कम पर विदेशों में इसकी कीमत बहुत अधिक है। सफेद मुसली से सेक्स बढ़ाने संबंधी दवाएं बनाई जाती हैं। मध्यप्रदेश में मुसली का अच्छा बाजार न होने से बहुत कम ही लोग लगाते हैं। लेकिन आपको बता दें एक एकड़ में आप 1 लाख रुपए लगाकर 4 लाख रुपए तक कमा सकते हैं। तो क्यों ने इसकी खेती की जाए। वर्तमान में सबसे ज्यादा फायदा देने वाली फसल है सफेद मुसली।


संतरे लगाओ खूब कमाओ

अगर आपके पास पानी की कमी है और आप अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो आप संतरे की खेती कीजिए। टपक सिस्टम से सिंचाई करने के बाद संतरे का उत्पादन मध्यप्रदेश के कई जिलों में किसान कर रहे हैं।

टपक सिंचाई
वर्तमान समय में पानी का कम होना, जलस्तर गिरना बड़ी समस्याएं हैं। ऐसे में खेतों की सिंचाई करना एक बड़ी समस्या बनेगी इसलिए अभी सचेत होना जरूरी है। इस समस्या से बचाने हमारे वैज्ञानिकों ने तैयार किया ‘टपक सिंचाई सिस्टम’ इसके द्वारा पानी टपक-टपक के खेतों में गिरता है। खास बात यह है कि इससे पानी की बचत होती है और फसल की जड़ तक पानी जाता है। इस सिस्टम का उपयोग सब्जी, संतरे व अन्य फल वाले बड़े पेड़ों के लिए उपयुक्त होता है। गेहूं, सोयाबीन के लिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता। कम लागत, कम पानी में ज्यादा फायदा देने वाला यह सिस्टम  छिंदवाड़ा, बैतूल आदि जिलों के खेतों में आप देख सकते हैं।

आलू लगाओं लखपति बनो
मम्मी लेज की चिप्स खाने हैं , नहीं मुझे तो बिंगो ही चाहिए। जी हां अकसर छोटे बच्चे यही कहते देखे जाते हैं। 10 चिप्स की कीमत 5 रुपए होती हैं। चिप्स बनते हैं आलू से बस ज्यादा कमाने की ललक हो तो कोई भी ईमानदारी से अमीर बन सकता है। बड़ी-बड़ी कंपनियां किसानों से आलू खरीदती हैं जिससे चिप्स बनाए जाते हैं। मुरैना के किसान उन किसानों से अलग है, जो सोयाबीन गेहूं की फसल लगाकर हमेशा खेती-बाड़ी को कोसते हैं। इस किसान ने आलू की खेती की और उत्पादन हुआ तो 1 किलो तक के आलू का उत्पादन किया। अब वह कम ही समय में लखपति बन गया है। किसान और व्यापारी भी आलू की खेती करके अच्छा पैसा कमा सकते हैं।

आवले के लड्डू
सबसे ज्यादा विटामिन सी का स्रोत आंवला भी प्रदर्शनी में आया था। प्रदर्शनी में किसानों का आंवले के लड्डू, मिठाईयां देखने को मिलीं। स्टॉल वालों ने बताया कि आप अपने खेतों में आंवला की खेती करें और इस आवला को कंपनियों को बेंचे और अधिक मुनाफा कमाएं। अगर किसान उद्यमी है तो वह खुद की प्रोसेसिंग यूनिट लगा सकता है और आंवले से उत्पाद बना सकता है।

शराब पीना जरूरी नहीं है
रतलाम के एक किसान ने पहले तो अंगूरों की खेती की, पर जब उसे ज्यादा कमाने की सूझी तो उसने अंगूर से शराब (वाईन) बनाने की ठान ली। और लगा लिया प्लांट। इस फोटो को देखिए इसकी कीमत 150 रुपए तक है। वाईन बनाने वाला किसान जल्द ही अच्छे रुपए कमाने लगा है।

छोटा हार्वेस्टर
आजकल मजदूरों की कमी है ,इसलिए फसलों की कटाई के लिए मशीन ईजाद की गई है, यह ऐसी मशीन है जिससे फसल कटाई, गहाई सब एक साथ जल्दी-जल्दी हो जाती है। और हमें घर में सीधा दाना मिलता है। लेकिन बड़े हार्वेस्टर 15 से 20 लाख रुपए के आते हैं एक मध्यमवर्गीय किसान के लिए उसे लेना संभव नहीं होता, इसलिए हमारे वैज्ञानिको ने छोटा हार्वेस्टर ईजाद कर दिया। इसे हर किसान खरीद सकता है। इसकी कीमत 2 से 3 लाख रुपए तक है। इसे रखने के लिए एक बाईक बराबर जगह की जरूरत होगी।

छोटा ट्रेक्टर
बड़े-बड़े टेÑक्टर तो आपने बहुत देखे होंगे पर यह छोटा ट्रेक्टर मस्त चीज है। अपनी स्वयं की खेती करने के लिए यह अच्छा यंत्र है। आप इससे अपनी खेती आराम से कर सकते हैं। पर इसकी कमी मुझे देखने को मिली आप इसका व्यवसायिक उपयोग नहीं कर सकते। इसके टायर भी छोटे-छोटे हैं जो गीली मिट्टी में फंस सकते हैं और ज्यादा लोड नहीं लेगा। टायर भी जल्द खराब हो सकते हैं। हां लेकिन इतनी सस्ती कीमत में और क्या मिलेगा। इसकी कीमत 2 से 3 लाख रुपए तक बताई गई है।

ग्रीन हाउस
ग्रीन हाउस क्या है और इसका क्या उपयोग है? यह प्रश्न कक्षा पांचवी में मैंने पढ़ा था बड़ा ही आईएमपी यानी परीक्षा में पूछा जाने वाला महत्वपूर्ण प्रश्न हर साल परीक्षा में आता था पर कभी प्रेक्टिकल नहीं बताया गया हमें बनता ही नहीं था। लेकिन मेले में यह बड़ा मॉडल देखने को मिला। ग्रीन हाउस वह घर है जिसके अंदर सूर्य की किरणें प्रवेश तो करती हैं पर घर से बाहर नहीं निकल पातीं। जब किसी क्षेत्र में आत्याधिक ठंड पड़ती है तो वहां खेतों में ऐेसे घर बना दिए जाते हैं जिसमें एक विशेष प्रकार की पॉलीथिन की छत बना दी जाती है। वहां से सूर्य की किरण प्रवेश करती हैं और अंदर की फसल को गर्म   बनाए रखती हैं। जिससे फसल को ठंड से नुकसान नहीं पहुंचता।

रोटीवेटर
इस यंत्र का काम है मिट्टी को पलटना यानी जब किसान हार्वेस्टर या मजदूरों द्वारा फसल को कटवाया जाता है तो नीचे की फसल का भाग बच जाता है, इसे साफ के लिए किसान खेतों में आग लगाता है जिससे कई नुकसान होते हैं जैसे- पर्यावरण प्रदूषण, दूसरे की फसलों में आग लग जाना, जंगलों में आग लगना, किसी का घर जल जाना, और सबसे बड़ी हानि स्वयं किसान को ही होती है। इससे मिट्टी का उपजाऊपन कम होता है। हां रोटीवेटर से यह सब नहीं होता इसे ट्रेक्टर में फंसाकर चलाने से खेत का कचरा मिट्टी के नीचे चला जाता है और एक साल बाद दबे-दबे खाद में बदल जाता है इससे खेत की उर्वरा क्षमता भी बढ़ती है।
   
 

मृदा परीक्षण केंद्र
जिस प्रकार हम दवाई खाने के पहले उसकी एक्सपायरी डेट देखते हैं, डॉक्टर से मिलने से पहले उसकी विशेषज्ञता जांचते हैं उसी प्रकार फसल बोने से पहले मिट्टी का परीक्षण जरूरी होता है। कौन सी मिट्टी में कौन सी फसल अधिक उत्पादन देगी, मिट्टी अम्लीय (एसिडिक) है या क्षारीय (बेसिक) या फिर उदासीन है, यह मृदा परीक्षण के बाद ही पता चलता है। आपका बता दूं भोपाल के गौतम नगर स्थित सरकारी लैब है यहां पर आप अपने खेत की मिट्टी नि:शुल्क चैक करवा सकते हैं। जबलपुर, ग्वालियर, सीहोर, इंदौर, आदि जगह भी यह टेस्ट होते हैं। अधिक जानकारी के लिए अपने कृषि विकास अधिकारी से भी संपर्क कर सकते हैं।




नोट- अधिक जानकारी के लिए निकटतम कृषि विभाग के कार्यालय से भी संपर्क कर सकते हैं। या फिर मेरे मेल पर संपर्क कर सकते हैं।

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