Friday, February 4, 2011

भैया सरकारी काम ऐसो ही होत है

-deepak rai 
sub editor and farmer bhoapl
  मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा कृषि मेला है ‘फार्मटेक-2011’ राजधानी भोपाल के लाल परेड ग्राऊंड में विशाल टेंट के अंदर लगे इस मेले में देश-भर से वैज्ञानिक, एनजीओ, संस्थाएं और कई स्टॉल आए हैं। लेकिन खेद किसान ही ’नहीं’ आए।
  यह सरकार की बड़ी असफलता ही कही जाएगी कि वह किसानों को यहां तक लाने में असमर्थ रही।
मेरा विश्लेषण-
क्यों नहीं आए किसान(किसानों से साक्षात्कार पर आधारित)
1. वर्तमान समय में किसानों की फसलों में पानी सिंचाई चल रही है वे इतना महत्वपूर्ण कार्य छोड़कर मेले में कैसे आ सकते हैं।
2. प्रदेश के कई शहर इतनी दूर हैं कि आने-जाने कि दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
3. मेला का पर्याप्त प्रचार-प्रसार नहीं किया गया।
4. किसानों का शासन-सरकार के प्रति निराशा होना।
5. किसानों का सोचना है कि जब पटवारी से प्रमाण पत्र बनवाने में पैसे लगते हैं तो पता नहीं मेले में कितनी लूट मचती होगी।
6. पैसों की दिक्कत, अधिकतर किसान गरीब हैं।





मेला-वेला छोड़ो यार चलों नींद ले लें।

सोलर एनर्जी (सौर उर्जा) से चलने वाला यह पंप वाकई काम की चीज है।


कश्मीर का कृषि विभाग ने भी अपना स्टॉल यहां लगाया है।

मस्त छोटा सा हार्वेस्टर, देखने पर मजा आ गया।


प्रमुख गेट।

कुछ झलकियां घटना स्थल से


3 फरवरी घटना करीब 3 बजे की है
मैं लाल परेड ग्राउंड में प्रवेश कर ही रहा था कि सामने से किसाना चले आ रहे थे, चिल्लाते हुए ‘अरे यार कहन भर के पटेल हैं गंदी गाली.... खाना के पेकट लेन नाने कैसो घुसो बेटा , अपन खे तो मिलोई नई ’ दूसरा किसान ‘तू ही तो मरो जात तो खाना के नाने मैं तो पहलेई कहततो नई लगें लाईन में, देख लओं खान नाने भी नई मिलो और धक्का खाओ वो अलग’
तीसरा साथी
‘अरे रहन दे रे रमेश होटल चलिएं नाश्ता-माश्ता खा लेत हैं’
इतने में एक आदमी की आवाज आई
चलो विदिशा सिहोर की बस चली
इतना सुनते ही भूखे किसान बोल
‘नाश्ता-फास्ता छोड़ो रे घर चलिएं कहां बेकार में फंस गए हीयां’
एक बस सामने आई और वे लोग उसमें बैठ गए।
3.30 बजे
मैं अंदर गया तो सामने ही मारुति वाले की कार जो कई शहरों के शो रूम से उठ गई है हां हां मारुति 800 खड़ी हुई थी। कंपनी उस कार का प्रदर्शन कर रही थी। वहां किसानों की भीड़ देखिए साहब
मैंने पूछा भईया यहां क्या हो रहा है
कई किसान एक साथ बोले पर्ची भर दो पर्ची
एक किसान-‘भईया जा सिलिप भर दो भागन से मारुति मेल जाहे तोम्हे’
मैंने भी सोचा क्यों न भाग्य आजमाया जाए
एजेंट से पर्ची ली और भर दिया, इतने में 4-5 किसान मेरे पास आए ‘भईया पेन दईओ, अरे मेरी स्लिप भी भर दो’ मैंने उनकी कूपन भर दी इतने में एक ने मेरा पेन मांग लिया। एक के बाद एक वह कई स्लिप भरता गया आखिर मुझे ही कहना पड़ा अरे भईया मेहे आफिस जाने है पेन दे दे।
4 बजे
मैं अंदर गया तो कई स्टॉल लगे थे कई सरकारी विभाग के जहां पर ऐसे मॉडल प्रदर्शित थे(बड़े-बड़े टमाटर, अमरूद, अन्य सब्जी आदि) जिन्हें देखकर लगा कि कहां पड़े हैं हम नौकरी में खेती बाड़ी कर कमाया जाए। पर खेद हुआ स्टॉल में जानकारी देने विभाग के विशेषज्ञ नहीं बल्कि लिपिक और चतुर्थ ग्रेड के कर्मचारियों को बैठा दिया गया था। वे ही जानकारी दे रहे थे। कुछ जगह ही अधिकारियों के दर्शन हुए वे भी आयोजन कराने वालों को कोस रहे थे ‘सालों ने पानी की व्यवस्था तक नहीं करी’
इतने में किसानों का एक समूह आपस में बातें करते हुए मेरे पास से गुजरा
 ‘भईया सरकारी काम ऐसोई होत है’
इतने में मैंने मोबाईल देखा तो 4.30 हो गए थे और मैं आॅफिस के लिए लेट हो गया था मैं सरपट वहां से निकल गया।
4 फरवरी दूसरा दिन
समय 2.30 बजे
 तीन तारीख को छूटे प्रदर्शन देखने में फिर प्रदर्शनी में गया तो बिल्कुल सन्नाटा। आवाज सिर्फ विज्ञापनों की जो टेक्टर वाले, हार्वेस्टर वाले।
किसानों की संख्या 100 भी बड़े मुश्किल से रही होगी।
 प्रदेश के सबसे बड़े मेले का यह हश्र क्या होगा खेती का, किसानों का और सरकार के ऐसे आयोजनों का?

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