Saturday, January 29, 2011

बेईमानों की कविता

  ये बेईमान भी कैसे-कैसे होते हैं।
खुलती है इनकी पोल जब अति करते हैं।
छापा पड़ा घरों में देखिए
सरकारी इंजीनियर करोड़पति होते हैं।
मध्यप्रदेश मे भी खूब बेईमान दिखे यारो
विधुत मंडल के इंजीनियर भी करोड़ों में खेलते हैं।
जब उस सड़क पर दीपक चले तो रो दिए
गड्ढे भी अपनी दुदर्शा पर रोते हैं
हमारे कमजोर पुल भी इंजीनियरों को कोसते हैं।
जिस देश में बहती हो गरीबी
जहां करोड़ों लोग भूखे पेट सोते हैं।
उन हरामियों को तो देखों
करोड़ों रुपए के बंगलों में नींद की गोली लेते हैं।
इन्हें नीद भी आए तो कैसे राय
इनके पैसे तो बैंक में भी सुरक्षित नहीं होते हैं।
गांव में स्कूल भी बनवाना हो तो
रिश्वत लेकर ये इंजीनियर घटिया बिल्डिंग पास कर देते हैं।
20-25 हजार की नौकरी करने वाले नौकर,
तभी तो कार-बंगला और ऐश भी करते हैं।
नेताओं से मिलकर बांटते हैं रिश्वत
रिश्वत मिले तो लूट लें मां की ईज्जत
इनके लिए रिश्ते-नाते भी कहां होते हैं।
अपनी परिवार भला रहे तो सब भला,
बांकी लोग इनके दुश्मन होते हैं।
लोग जिंदगी भर मेहनत कर नहीं बना पाते आशियाना (घर)
क्योंकि ये बेईमान ही सबका पैसा अपने पास रखते हैं।
दौलत की कमी नहीं है मेरी भारत माता है पास,
कोई 100 रुपए को तरसा, तो कोई करोड़ों पर खेलते हैं।
का अड्डा बन गया है देश
वरना राय भी कहां ऐर-गैर लिखते हैं।
-दीपक राय, उपसंपादक भोपाल।
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