Saturday, January 15, 2011

शिवकुमार जी ये क्या कह रहे हैं आप

  दीपक राय सब-एडिटर
एवं किसान भोपाल

भारतीय किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष शिवकुमार शर्मा अब  फिल्म को किसानों की आत्महत्या का कारण बता रहे हैं। उनका दावा है कि किसानों की बदहाली के लिए सरकार नहीं, बल्कि आमिर खान की फिल्म पीपली लाइव ज्यादा बड़ा कारण है। राजधानी में शुक्रवार को पत्रकारों से चर्चा करते हुए श्री शर्मा ने कहा कि बीते दो माह में दस किसान कर्ज के कारण मौत को गले लगा चुके हैं। ‘
शर्मा जी आप जैसे पढ़े-लिखे (एलएलबी व अन्य मास्टर डिग्री हासिल, सरकारी नौकरी छोड़कर किसानी अपनाई , किसानों के हम की लड़ाई के लिए भोपाल में महाबंद कराया) किसान हितौषी  किसान नेता ऐसा कैसे कह सकते हैं। अधिकतर फिल्में तो किसानों के हितों पर ध्यान रखते हुए बनाई गई हैं। और इन्हीं में से एक है ‘पीपली लाईव’ इस फिल्म के लिए तो आपको आमिर खान की तारीफ करनी चाहिए। उन्होंने किसानों को मोहरा बनाने वाले नेताओं और कुछ मीडिया का सच बताया है। ऐसे नेता मप्र में भी तो हो सकते हैं जो वोट बैंक के लिए किसानों को मोहरा बना रहे हों, हो सकता है कोई ‘तत्व’ हों जो किसानों के मन में आत्महत्या की बातें भर रहे हों। क्योंकि किसान तो अन्नदाता है। अगर वो खाद डालता है तो उतनी जितनी कि इंसान पचा सकता है। कभी आपने ‘गेहूं खाने से मौत’ या ‘दाल ने ली जान’ खबर नहीं पढ़ी होगी। अब तो शिक्षक भी किसान की दाल से फायदा उठाता है वह दाल कम पानी ज्यादा मिलाकर बच्चे को मध्यान भोजन खिलवाता है। इंजीनियर तो बेईमानी के चक्कर में पुल इतना कमजोर कर देता है कि वह पहली बारिश में ही बह जाए।  डाक्टर पैसे के चक्कर में प्रसूता को अस्पताल के बाहर ही छोड़ देता है और उसकी मौत हो जाती है। पुलिस रिश्वत के चक्कर में गरीब को जेल तक भिजवा देती है। बस किसान ही है जो ज्यादा लोभ नहीं करता। इसके बाद भी वह फसल खराब होने पर आत्महत्या नहीं करता। नुकसानी की भरपाई करने किसान रवि के मौसम में ‘चना की भाजी और मक्के की रोटी’ खाकर 3 महीने तक व्यतीत कर देता है। गर्मी में ‘बेर को पकाकर’ भोजन करता है। इसके बाद भी अगर अब आत्महत्या बढ़ीं है तो वह किसानों की कमजोरी को दर्शाती है। या फिर उनका नुकसान बहुत ज्यादा हो गया है। उन्हें नए तरीके से खेती के बारे में जागृत नहीं किया गया है।
ढूढिए वजह तो अच्छा होगा
किसानों की समस्याओं से लड़ने वाले लोगों से गुजारिश है कि वे किसानों के बीच जाकर गहरी रिसर्च करें, ऐसे किसान के पास जाएं, जो खरपतवार नाशी दवा डालता तो है पर, तब डालता है जब खरपतवार बहुत बड़े हो जाते हैं। नियम न जानकर वह नकली दवाएं खरीद लेता है। ऐसे किसानों को जागरुक करके ही समस्याएं कुछ हद तक दूर की जा सकती हैं, न कि फिल्मों को दोष देने से।

3 comments:

manoj rathore said...

very good artical kishan par rajniti karna galat hai.

drishti said...

दीपक बहुत बढ़िया जा रहे हो। किसानों एवं किसानी के प्रति तुम्हारा लगाव वास्तव में दिली है। दिमाग से सोचने पर किसानों की दुर्दशा पर रोना आएगा। स्थितियां वाकई किसानों के खिलाफ होती जा रही हैं। खाद में मिलावट, कीटनाशक नकली, बीज नकली नहर का पानी नुकसानदेह, पाताल का पानी शहर ने सोख लिया, किसानों के पास बचा क्या। जीएम बीज के नाम पर भी वह लूटा जा रहा है। नौकरशाही टीनू जोशी और अरविंद जोशी बना हुआ है। योगीराजों ने लूट लिया है। अपने ही देश में किसान पराए कर दिए गए हैं। 24 घंटे बिजली पाने वाले शहरवालों को किसानों से कुछ लेना-देना रहा नहीं। पिछले माह किसानों के धरना के दौरान शहर वालों ने जिस तरह से हाय-तौबा मचाई, उससे भी यह बात सामने आई। किसान माने पिसान, यह कहावत पूर्वांचल में चलती है, लेकिन पूरे देश के किसानों के लिए सच है। पिसान यानी ऐसा साबुत गेहूं, जिसे दो पाटों के बीच मसल दिया जाता है, फिर लोग उसका रोटियां बना कर खाते हैं। राजनेता अपनी रोटियां सिर्फ सेंकते हैं।
धूमिल याद आते हैं- एक वह है, जोरोटी बेलता है, दूसरा वह है, जो रोटी खाता है, तीसरा भी है, जो न रोटी बेलता है और और न ही रोटी सेकता है, मैं पूछता हूं, यह कौन है, मेरे देश की संसद मौन है।
तेज बहादुर यादव

Rahul said...

Bahut badiya story...."sarkari kaam to aise hi howat hai"
abhi mai pichhle dino vibhinn ilaakon me kheton ka haal dekh raha tha...to maine paaya ki jahan sarkari amla apne poore taamjham ke saath prayas kar raha hai wahin par paala se sabse jyada nuksaan hua hai. Un kshetro mei jahan par kisaan jaivik tareeke se kheti kar rahe hai, wahan abhi bhi haalat samaanya hai. Ye dekhkar mujhe ye pankti yaad aa gayi..." ke dard badhta gaya..jyo jyo dawa ki"