Thursday, January 13, 2011

‘बेटा खेती नई नौकरी कर’

   दीपक राय, सब एडिटर भोपाल।
बेटा खेती नई नौकरी कर हां यही बात सभी लोग बोलते हैं जब
मैं खेती करने की बात कहता हूं। भले ही क्लर्क की नौकरी क्यों न हो पर खेती न करना। फिर भी मैं खेती करने के इरादे पर अटल रहता हूं। एक बात तो तय है आप क्यों न जज बन जाएं, क्यों न सरकारी वकील या एसपी, कलेक्टर बन जाएं (अगर बेईमान न हुए तो) किसान के बराबर पैसा कभी भी नहीं कमा सकते। पर अब  वही किसान मौत को गले लगा रहा है। एक चपरासी के घर करोड़ों रुपए निकल रहे हैं। क्या हो रहा है यह? ऐसे में युवा खेती से मुंह न मोड़े तो आखिर क्या करे। मेरे गांव के अधिकतर बच्चे खेती न करने की चाह रखते हैं वे 150 दिन में स्कूल में अतिथि शिक्षक बनकर नौकरी करना पसंद कर रहे हैं। ऐसे में मुझे चिंता सताती है कि अगर हर कोई ऐसा सोचेगा तो फसल कौन उगाएगा। हम खाएंगे क्या?

दिसंबर के आखिर और जनवरी के पहले सप्ताह पड़ी कड़ाके की ठंड ने विगत 50 सालों के रिकार्ड तोड़ दिए। प्रदेश में बर्फ जम गया। मैं तब हतप्रद रह गया जब मेरे चाचा की बेटी ने सुबह-सुबह पौधे की पत्तियों से बर्फनुमा ओस उठाकर मुझे दिखाया। कड़ाके की ठँडक में जहां लोग रजाई में दबकर गहरी नींद ले रहे थे। तब एक किसान जिसने कर्ज लेकर बुआई किया है। एक वह किसान जिसकी तुअर (जिसकी दाल हम खाते हैं) की फसल लगी है, वह रजाई में दबकर भी नींद नहीं लगा पा रहा था। आखिर पाला पड़ा(जब तापमान 3 डिग्री से नीचे पहुंच जाता है तो ठंडक पौधों की पत्तियों में जमने लगती है। यह खुले इलाके यानी खेतों में ज्यादा होती है। और पूरी तरह  पौधा मरने लगता है।) पड़ा और किसान की फसल तबाह हो गई। अब कर्ज कैसे चुकाए, आने वाले महीने में क्या खाएं क्योंकि फसल तो कुछ भी नहीं बची। मुआवजा तो ऊंट के मुंह में जीरा के समान मिलेगा, पता नहीं वह भी कब मिलेगा। हां यह सच है प्रकृति हमेशा प्रहार नहीं करती वह भी किसानों की हितैषी भी है। पर इस बार तो नुकसान हो ही गया।
अब ऐसे में किसान बनने की चाहत कौन रखेगा। प्रकृति की मार झेल रहे किसान की पीड़ा पर मरहम लगाने की बजाए प्रदेश के कृषि मंत्री का घटिया बयान कि ‘यह तो किसानों के कर्मों का ही फल है’ अगर किसान को कर्मों का फल ऐसे ही मिलता है तो सोचिए भ्रष्ट मंत्रियों को उपर वाला क्या फल देगा। उन्हें इसकी चिंता आज से ही करनी चाहिए।
एक के बाद एक किसान आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसे में खेती कहां तक लाभ का सौदा होगी। ऐसे में कई बार मैं भी सोचता हूं कि किसान सहीं कहता है ‘बेटा खेती नई नौकरी करियो’




समाचार इस प्रकार है
(13 जनवरी को पीपुल्स समाचार में  प्रकाशित )
दमोह जिले के ग्राम महलवारा के किसान मोहन रैकवार द्वारा जहरीला पदार्थ पीकर आत्महत्या के प्रयास के चौबीस घंटे भी नहीं बीते थे कि बोरीखुर्द के किसान कन्हैयालाल पटेल (30) ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या का प्रयास किया। दूसरी ओर नरसिंहपुर में तेंदूखेड़ा के कठौतिया निवासी चोखेलाल मेहरा (37) ने रेल से कटकर जान दे दी। बताया जाता है कि आर्थिक तंगी के चलते उसने यह कदम उठाया। रेलवे पुलिस ने उसके पास से सुसाइड नोट बरामद होने को नकारा है। नरसिंहपुर के ही करेली क्षेत्र में एक और किसान धनराज कौरव (55) पिता हरिराम कौरव ने सल्फास खाकर जान देने की कोशिश की, जिसे जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया है।
जानकारी के अनुसार इन तीनों ही मामलों में आर्थिक तंगी और पाले की वजह से फसल बर्बाद होने की वजह से अन्नदाताओं ने आत्मघाती कदम उठाया। हालांकि प्रशासन का दावा है कि जांच की जा रही है और आत्महत्या के प्रयासों के कारणों का पता जल्द ही लगा लिया जाएगा। दमोह में पाले से फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, जहां आत्महत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं।
दमोह जिले के हटा थाना अंतर्गत ग्राम बोरीखुर्द के छपरा निवासी कन्हैयालाल पटेल (30) ने बुधवार को सुबह पांच बजे खेत में रखे कीटनाशक का सेवन कर आत्महत्या का प्रयास किया। उसे इलाज के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हटा में भर्ती कराया गया जहां से उसे दमोह जिला चिकित्सालय रैफर कर दिया गया।
कन्हैयालाल के भाई संतोष पटेल ने बताया कि उसके भाई कन्हैया ने सात एकड़ जमीन शिवदयाल अहिरवार से 32,500 रुपए में तथा हटा निवासी शंकर स्वामी की 4 एकड़ जमीन सात बोरा चना में अधिया पर लिया था।  उसके भाई ने इस जमीन पर अरहर और मसूर की बोवनी की थी, लेकिन पाला पड़ने से उसकी संपूर्ण फसल तबाह हो गई।  कन्हैयालाल ने गांव के ही गुड्डू अहिरवार से 10 हजार व परम मिस्त्री से 20 हजार रुपए का कर्ज लिया था। 
तेरहवीं के लिए बेचे बैल
छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा में किसान की तेरही के लिए उसके परिजनों द्वारा धन जुटाने के लिए कथित तौर पर एक जोड़ी बैल बेचे जाने का मामला प्रकाश में आया है। पांढुर्णा तहसील मुख्यालय के गांधी वार्ड निवासी किसान मोतीराम खोड़े ने छह जनवरी को जहर खाया था, नागपुर में उसकी मौत हुई थी। मोतीराम के पुत्र ललित का कहना है कि उसके पिता पर 1.70 लाख रुपए का कर्ज था। ललित ने बताया कि आर्थिक तंगी के बीच 20 जनवरी को होने वाली तेरही भोज के लिए उन्होंने बैल जोड़ी बेचकर रकम जुटाई।
दमोह। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया पाला पड़ने से हुई फसलों की बर्बादी को पुराने पापों का फल   मानते हैं। उनका कहना है कि खेती में रसायनों का इस्तेमाल बढ़ने से मिट्टी की सेहत खराब हुई है और उसकी प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो चुकी है। ऐसा होने से मिट्टी में नमी नहीं रहती और पाला अपना असर दिखा जाता है।  कुसमरिया ने कहा कि एक ओर जंगल कट गए हैं तो दूसरी ओर गाय का उपयोग कम हो रहा है। संतुलन गड़बड़ाने से यह हो रहा है।
किसानों की बर्बादी उनके पापों का फल
कुसमरिया ने प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ाने से मानव जाति के विलुप्त होने की भी आशंका जताई है। उनका कहना है कि जब डायनासोर विलुप्त हो सकते हैं, तो मानव क्या चीज है। उन्होंने आगे कहा है कि अब सचेत होने का वक्त आ गया है, अब प्रकृति से खिलवाड़ बंद कर उसे प्रसन्न करना होगा। इसके लिए वृक्षारोपण करना होगा, गोपालन को बढ़ावा देना होगा और जैविक खेती को अपनाना होगा। उन्होंने आशंका जताई कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो और भी घातक नतीजे सामने आएंगे।

No comments: