Wednesday, February 25, 2009

आने वाले कल से उम्मीद रखनी होगी।



कहते हैं, जब रात सबसे अंधेरी हो, तो समझना चाहिए कि उजाला होने ही वाला है। आज जो लोग रिसेशन की वजह से ल
े-ऑफ के शिकार हो रहे हैं, उन्हें आने वाले कल से उम्मीद रखनी होगी। रिसेशन के मौजूदा समय में आप 'ले-ऑफ' से नहीं लड़ सकते। एक सर्वे के अनुसार, यह संकट दुनियाभर में फैल रहा है। कंपनियां अपने घाटे को कम करने के लिए ले-ऑफ का सहारा ले रही हैं। हर सेकंड लोगों की जॉब्स जा रही हैं। ऐसे में किसी घर में अकेले कमाने वाले व्यक्ति का घबरा जाना स्वाभाविक है। वह यह सोच सकता है कि मानो उसकी दुनिया का अंत ही हो गया। हालांकि निराश होना किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। बुरा वक्त आता है, तो वह हमेशा नहीं रहता। अगर आप भी ले-ऑफ के शिकार हुए हैं, तो यह समय जान लें कि यह समय खुद को तैयार करने, क्षमताओं को पहचानने और स्किल्स के भरपूर उपयोग का समय है। कहा भी गया है कि 'करने' और 'नहीं करने' में केवल दो अक्षरों का फर्क है। एक नामी कंपनी के फ्लाइट अटैंडंट अंशु सूद को हाल ही में ले-ऑफ झेलना पड़ा। कारण बताया गया, रिसेशन। अंशु ने हार नहीं मानी और नए सिरे से अपना करिअर शुरू किया। वह बताते हैं, 'एयरलाइंस जॉइन करने से पहले मैं वेडिंग प्लानर था। केवल स्टेबल इनकम की वजह से ही मैंने यह जॉब जॉइन की थी। अब मेरे पास जॉब नहीं है, तो मैंने वेडिंग प्लानिंग के पुराने बिजनस को फिर शुरू कर दिया है। संयोग है कि मेरी आमदनी मेरी सैलरी से भी अधिक हो गई है। हां, ले-ऑफ के समय मुझे काफी दुख हुआ था। मैं और मेरे पेरंट्स काफी डिप्रेशन में थे। मैंने स्थिति को समझा और यह काम शुरू कर दिया। जब आप यह कहते हैं कि मैं इन हालात का मुकाबला नहीं कर सकता या इससे बुरा कुछ और नहीं हो सकता, तो इसका सीधा-सा मतलब है कि आप कमजोर हैं। इस सोच से आपकी परेशानी और बढ़ जाएगी। वहीं, जब आप यह सोचते हैं कि मैं इससे बाहर निकल सकता हूं और सफलता की आशा रखते हुए काम करते हैं, तो आत्मविश्वास और खुशी अपने आप आ जाएंगे। एक बड़ी कंपनी की मार्किटिंग इग्जिक्यूटिव भावना सोनी को बिना नोटिस और पे-चेक दिए ही बाहर कर दिया गया। वह कहती हैं, 'मैं मार्किटिं में अचानक आई थी। मेरी कंपनी ने 200 वर्कर्स को लेड ऑफ किया है। यह उन लोगों और उनके परिवार के लिए बड़ा झटका है। हालांकि मैंने इस स्थिति को हायर एजुकेशन के लिए इस्तेमाल किया है। अब मैं एमबीए कर रही हूं।' सोनी की ही तरह एक एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में मार्किटिं इग्जिक्यूटिव वरुणा जेटली कहती हैं, 'इस ले-ऑफ ने मुझे सीएस कोर्स करने का मौका दिया है। मैं हमेशा कंपनी सेक्रटरी बनना चाहती थी। हमेशा याद रखें कि जब एक रास्ता बंद होता है, तो कई अन्य रास्ते अपने आप खुल जाते हैं।' दीपिका सरीन कुछ दिनों पहले तक एक एजुकेशनल इंस्टिट्यूट में काउंसिलर थी। उन्हें जॉब से हटा दिया गया है। वह कहती हैं, 'मैं उस कंपनी में काफी असहज महसूस कर रही थी। वहां का माहौल बहुत खराब हो चुका था। मुझे खास आर्थिक फायदा भी नहीं हो रहा था। यह शर्त भी लगाई गई थी कि मैं अपना रेज्यूमे किसी अन्य कंपनी या इंटरनेट पर नहीं दे सकती। एक दिन उन लोगों ने मुझे बिना नोटिस दिए बाहर कर दिया। उन्होंने मुझे कोई एक्स्पीरियंस लेटर तक नहीं दिया। हां, कम सैलरी पर फिर जॉइन करने का ऑफर जरूर दिया, लेकिन इसके लिए मैंने मना कर दिया। दरअसल, मैं हायर एजुकेशन लेना चाहती थी। अब मेरे पास इतना वक्त है कि मैं एमबीए एंट्रंस एग्जाम की तैयारी कर सकती हूं। कुल मिलाकर, कह सकते हैं कि जो होता है, अच्छे के लिए होता है। मीठा फल मिलेगा, एक शुरुआत तो कीजिए।

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